कस्तूरबा गांधी जयंती 11 अप्रैल

कस्तूरबा गांधी जयंती 11 अप्रैल

– गांधी जी की परछाई कस्तूरबा ने निभाया देश के प्रति अपना कर्तव्य कहते हैं कि हर सफल पुरुष के पीछे किसी ना किसी महिला का हाथ जरूर होता है यह बात हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में भी कही जा सकती है देश को आजादी दिलाने की जिस काम में उन्होंने अपने आप को समर्पित कर दिया था वह मूर्त रूप नहीं ले पाता अगर उनको कस्तूरबा के रूप में उनकी जीवनसंगिनी का सक्रिय सहयोग न मिलता कस्तूरबा गांधी की मौत के बाद उन्होंने श्रद्धांजलि देते हुए एक बार गांधी जी ने कहा था अगर कस्तूरबा का साथ ना होता तो मैं इतना ऊंचा उठ ही नहीं सकता था यह वही थी जिसने मेरा पूरा साथ दिया नहीं तो भगवान जाने क्या होता मेरी पत्नी मेरे अंतर्मन को जिस प्रकार हीलाती थी उस प्रकार दुनिया की कोई स्त्री नहीं हिला सकती वह मेरा अनमोल रत्न थी जो लोग मेरे और कस्तूरबा के निकट संपर्क में आए हैं उनमें अधिक संख्या तो ऐसे लोगों की है जो मेरे अपेक्षा वा पर कई गुना अधिक श्रद्धा रखते हैं। कस्तूरबा गांधी जयंती 11 अप्रैल

– अगर हम भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बात करें तो अनेक महिलाओं ने इस में सक्रियता से अपना योगदान दिया था पर वह महिला जिनका नाम ही स्वतंत्रता का पर्याय बन गया है वह है कस्तूरबा गांधी के नाम से दुनिया भर में विख्यात कस्तूरबा गांधी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की धर्मपत्नी थी ओर भारत के स्वाधीनता आंदोलन में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया निरक्षर होने के बावजूद कस्तूरबा गांधी के अंदर अच्छे बुरे को पहचानने का विवेक था उनका व्यक्तित्व इतना सशक्त था कि वे कई मौकों पर तो गांधी जी को भी चेतावनी देने से नहीं रुकी।

– कर्तव्य पालन में निरक्षरता नहीं बनी बाधा कस्तूरबा गांधी का जन्म 11 अप्रैल सन 1869 में काठियावाड़ के पोरबंदर नगर में हुआ था कस्तूरबा के पिता गोकुलदास मकनजी एक साधारण व्यापारी थे और महात्मा गांधी की पिता के करीबी मित्र थे दोनों मित्रो ने अपनी मित्रता को रिश्तेदारी में बदलने का निर्णय लिया और कसतुरबा जब केवल 7 साल की थी तभी उनकी सगाई उनसे 6 महीने छोटे मोहनदास के साथ कर ली गई और तेरा साल की उम्र में उन दोनों का विवाह हो गया उनके सामने में कठिनाइयां आई लेकिन उन्होंने निरक्षरता को अपने कर्तव्यों के पालन में कभी भी बाधा नहीं बनने दिया क्योंकि कस्तूरबा अपना एक सुंदर व्यक्तित्व भी रखती थी ।

-कई सालों तक अकेले संभाला गृहस्ती का दायित्व विवाह पश्चात कई कारणों से उन्हें सालों तक अकेले ही गृहस्थी का दायित्व संभालना पड़ा लेकिन उन्होंने कभी भी हिम्मत नहीं हारी उनके पति मोहन दास कानून की पढ़ाई करने लंबे समय तक इंग्लैंड में रहे उनकी अनुपस्थिति में उन्होंने अपने बच्चे हरी लाल का लालन पोषण किया शिक्षा समाप्त करने के बाद गांधीजी इंग्लैंड से लौट आये पर उन्हें जल्दी दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा इसके पश्चात मोहनदास सन 1896 में भारत आये और कस्तूरबा को अपने साथ ले गए दक्षिण अफ्रीका जाने से लेकर मृत्यु तक वा महात्मा गांधी का अनुसरण करती रही उन्होंने अपने जीवन को गांधीजी की तरह ही साधारण बना लिया था गांधी जी ने स्वाधीनता आंदोलन के दौरान अनेक उपवास रखे ओर इन उपवास में वह अक्सर उनके साथ रही और देखभाल करती रही । कस्तूरबा गांधी जयंती 11 अप्रैल

-दक्षिण अफ्रीका में जब जेल अधिकारियों को झुकना पड़ा दक्षिण अफ्रीका में जब गांधी जी ने भारतीय लोगों की दुर्दशा के विरोध में आंदोलन किया तो कस्तूरबा भी उसमें शामिल हुई इस दौरान उन्हें गिरफ्तार कर 3 महीनों की कड़ी सजा के साथ जेल भेज दिया गया जेल में मिला भोजन उनकी लिए उपयुक्त नहीं था इसलिए उन्हें फलाहार करने का निश्चय किया पर अधिकारियों द्वारा उनके अनुरोध पर ध्यान नहीं दिए जाने पर वे उपवास रखने लगी अंत में अधिकारियों को झुकना पड़ा सन 1915 में कस्तूरबा भी महात्मा गांधी के साथ भारत लौट आई और हर कदम पर उनका साथ दिया कई बार जब गांधी जी जेल गए तब उन्होंने उनकी जगह व्यवस्थाएं संभाली कस्तूरबा ने समय-समय पर अपने कर्तव्य के गुणों का परिचय भी दिया स्वाधीनता संग्राम के सभी अहिंसक प्रयासों में अग्रणी बनी रही अंग्रेजी सरकार ने महात्मा गांधी समेत कांग्रेस के सभी शीर्ष नेताओं को 9  अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया इसके पश्चात वा ने मुंबई के शिवाजी पार्क में भाषण करने का निश्चय किया किंतु वहां पहुंचने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और पूना की आगाखान महल में भेज दिया गया सरकार ने महात्मा गांधी को भी यही रखा था उस समय वे अस्वस्थ थी गिरफ्तारी के बाद उनका स्वास्थ्य बिगड़ता ही गया 22 फरवरी 1944 को उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वह हमेशा के लिए दुनिया छोड़ कर चली गई उनकी मृत्यु के उपरांत राष्ट्र ने महिला कल्याण के निमित्त एक करोड़ रूपया इंदौर में कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट की स्थापना की ।

कस्तूरबा गांधी जयंती 11 अप्रैल

-गांधीजी के प्रयोगों को पहले समझा फिर अपनाया अपनी तमाम कमजोरियों के साथ मोहनदास के महात्मा बनने की यात्रा को यदि किसी ने सबसे करीब से देखा तो वह कस्तूरबा ही थी जो परछाई की तरह हमेशा उनके साथ रहे चाहे वह संपत्ति का पूर्ण त्याग करने वाली बात हो या ब्रह्मचर्य का एकतरफा व्रत लेने की बात कस्तूरबा मित्रवत मीठे उलाहना के साथ तो कभी पूरी श्रद्धा के साथ गांधीजी का साथ दिया लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वह कस्तूरबा से अपनी सारी बात आंख मूंदकर मनवा सके कस्तूरबा के व्यक्तित्व का एक ऐसा कोना हमेशा कायम रहा जो स्वायत्त रहा वह गांधीजी के प्रयोग को  भी पहले स्वयं समझकर और जहां तक संभव हो उसे परख कर फिर अपनाना चाहती थी आश्रम जीवन अपनाने के बाद गांधीजी कस्तूरबा को वा यानी मां कहने लगे थे और कस्तूरबा भी उन्हें बापू कहने लगी थी वा ने धीरे-धीरे गांधीजी के नजरिए से ही जीवन और समाज को देखना शुरू कर दिया था।

– गांधीजी ने ब्रिटिश लेखक को बताई कस्तूरबा की खूबियां महात्मा गांधी पर किताब लिखने वाले लेखक होरेस एलेग्जेंडर को कुछ पश्चिमी लेखकों की किताबें पढ़कर लगा कि गांधीजी और कस्तूरबा के बीच संबंध अच्छे नहीं रहते हैं और उनके बीच मतैक्य भी नहीं रहता उन्होंने 1929 में गांधी जी को पत्र लिखकर पूछा कि क्या यह बात सच है इसके जवाब में 7 मार्च 1929 को गांधी जी ने अपने पत्र में लिखा अपनी पत्नी के बारे में लिखी गई बातों को मैंने नहीं देखा है लेकिन आपको बतला सकता हूं कि हम दोनों के बीच अत्यंत प्रेम पूर्ण संबंध है ययदि उन पुस्तकों से आपको ऐसा लगा हो कि मेरी पत्नी बुद्धि पूर्वक मेरा अनुसरण नहीं करती है तो यह बिल्कुल सच है उसकी निष्ठा अद्भुत है और मेरे जीवन मैं जो भी परिवर्तन हुए हैं उन सब में उसने मेरा साथ दिया है मेरा अपना दृढ़ विश्वास है कि भारतीय पुरुष भारतीय स्त्रियों के लिए जो आदर भाव रखते हैं वह पश्चिम में पुरुषों द्वारा स्त्रियों के प्रति महसूस किए जाने वाले आदर भाव की बराबर ही है लेकिन जरा भिन्न ढंग का है । कस्तूरबा गांधी जयंती 11 अप्रैल

इसके अलावा महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में भी कस्तूरबा के व्यक्तित्व की विशेषताओं को उल्लेखित करते हुए लिखा है कोई यह नहीं समझ ले कि हम दोनों आदर्श पति पत्नी है या मेरी पत्नी में कोई दोष नहीं है या कि अब तो हमारे आदर्श एक ही हैं कस्तूरबा की अपनी कोई स्वतंत्र आदर्श है या नहीं वह बेचारी खुद भी नहीं जानती होगी संभव है कि मेरे बहुतेरी आचरण उसे आज भी अच्छे नहीं लगते हो इस संबंध में हम कभी चर्चा नहीं करते करने में कोई सार भी नहीं है उसे ना तो उसके माता-पिता ने शिक्षा दी और ना जब समय था तब मैं दे सका पर उसमें 1 गुण बहुत ही बड़ी मात्रा में है जो दूसरी बहुत-सी स्त्रियों में कम मात्रा में रहता है इच्छा से हो चाहे अनिच्छा से ज्ञान से हो जाए अज्ञान से उसने मेरे पीछे-पीछे चलने में अपने जीवन की सार्थकता समझी है और स्वस्थ जीवन बिताने के मेरे प्रयत्न में मुझे कभी रोका नही है इस कारण यद्यपि हमारी बुद्धि शक्ति में बहुत अंतर है फिर भी मैंने अनुभव किया है कि हमारा जीवन संतोषी सुखी और ऊध्र्वगामी है। कस्तूरबा गांधी जयंती 11 अप्रैल


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