भूतापीय ऊर्जा Geothermal Energy notes

भूतापीय ऊर्जा मानव के विकास की कहानी (Geothermal Energy notes in hindi)

-मानव के विकास की कहानी उसके द्वारा ऊर्जा के उपयोग की कहानी है जब जब मानव ने ऊर्जा का एक अभिनव स्त्रोत ढूंढा सभ्यता ने एक नया मोड़ लिया आज के औद्योगिक युग की शुरुआत भी 18वीं शताब्दी में कोयले के भंडार की खोज से हुई। विज्ञान ने जैसे जैसे मानव को सुख सुविधा के साधनों का उपहार दिया वैसे वैसे ऊर्जा की खबर बढ़ती रही दरअसल आज प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत को किसी देश के विकास का मान्य मानक माना जाता है किंतु ऊर्जा की आपूर्ति के लिए अभी तक हमारा अधिकतर जोर जीवाश्म इंधन जैसे कि कोयला पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस पर ही रहा है। यहां तक कि हमारे विद्युत ऊर्जा संयंत्र भी ताप विद्युत ऊर्जा संयंत्र ही है जिनमें इन्हीं जीवशम ईंधनों का उपयोग होता है ।जीवाश्म ईंधन का उपयोग सुविधाजनक तो है किंतु उनके उपयोग में दो परेशानियां है पहली यह कि यह इंधन जो पृथ्वी के अंदर लाखों वर्ष पूर्व दबे वृक्षों और सूक्ष्म जीवो के मृत शरीर पर विशाल दाब और ताप के तहत लंबी रसायनिक क्रियाओं से उत्पन्न हुए थे उन्हें हम खर्च तो तेजी से करते जा रहे हैं लेकिन इनका दोबारा उत्पादन इतनी जल्दी नहीं हो सकता है ।और दूसरा यह कि इनके दहन से उत्पन्न होने वाली जहरीली गैस हमारे वायुमंडल को प्रदूषित कर रही है जीवाश्म इंधन ओके यह भंडार इतनी तेजी से खर्च हो रहे हैं कि यदि वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों की शीघ्र तलाश ना की गई तो शीघ्र ही सारी सभ्यता ठहर जाएगी और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास ठप पड़ जाएगा इन्हीं समस्याओं के मद्देनजर ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों पर वैज्ञानिक गंभीरता से विचार कर रहे हैं उनमें से एक है भूतापीय उर्जा  Geothermal Energy notes in hindi

-भूतापीय ऊर्जा संसाधन

पृथ्वी की भूपर्पटी के नीचे पिघली गरम चट्टानों की मोटी परत जिसे मैग्मा कहते हैं यूरेनियम और पोटैशियम जैसे रेडियोएक्टिव तत्व के कारण लगातार उत्पन्न हो रही है ऊष्मा का विशाल भंडार हजारों साल तक हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है पृथ्वी की सतह के नीचे 30 से 50 मीटर जाने पर औसतन ताप वृद्धि 10 डिग्री सेल्सियस पाई गई है कुछ किलोमीटर नीचे उतरने पर 250 डिग्री सेल्सियस तक प्राप्त हो जाता है ।ज्वालामुखी क्षेत्रों की आस पास तो यह ताप और भी कम गहराई पर प्राप्त हो सकता है। यदि हम चाहे तो पृथ्वी में विद्यमान ऊर्जा स्त्रोत का प्रभावी उपयोग कर सकते हैं अनेक स्थानों पर पृथ्वी के इस ताप के कारण गरम धारा और झरनों के रूप में फूट निकलता है ।गरम पानी की झीलों और झरनों के रूप में पृथ्वी के अंदर की उष्मा का उपयोग हजारों वर्षों से होता आया है रोमन तो स्नान घरों कि अतिरिक्त अपने कमरों को गर्म करने के लिए भी गरम चश्मा यानी झरनों के लिए उपयोग करते थे ।अब तो पृथ्वी के अंदर की गर्मी यानी भूतापीय ऊर्जा का उपयोग विद्युत उत्पादन के लिए भी किया जा रहा है हालांकि भूतापीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन की अवधारणा बहुत पुरानी नहीं है दुनिया भर में टेक्टोनिक प्लेटों की गति के आसपास ऐसे क्षेत्रों की पहचान की जा रही है जहां भूतापीय विद्युत ऊर्जा संयंत्र लगाए जा सके और इस प्रकार के संयंत्र द्वारा 11000 मेगावाट से अधिक बिजली का उत्पादन शुरू भी हो गया है ।

-भूतापीय ऊर्जा का आग्रहण

भूतापीय उर्जा को कई तरीके से ग्रहण किया जा सकता है कुछ प्रमुख तरीके नीचे दिए गए हैं 

भू-तापीय विद्युत संयंत्र प्रश्न यह है कि हम उपयोगी कार्यों के लिए भूतापीय ऊर्जा को किस प्रकार प्राप्त कर सकते हैं भूतापीय ऊर्जा को उपयोग में लाने के लिए विद्युत संयंत्र लगाए जा सकते हैं इसके लिए सबसे पहले पृष्ठ पर हॉटस्पॉट अर्थात क्षेत्र की पहचान की जाए जहां कम गहराई पर अधिक ऊष्मा उपलब्ध हो यह क्षेत्र टेक्टोनिक प्लेट की सीमा रेखा के पास होते हैं इसके बाद हॉटस्पॉट पर भूमि के अंदर कूप बनाकर 1 से 2 किलोमीटर तक गहराई के  2 पाइप उतारे जाए ताकि एक पाइप से जमीन का गरम जल या भाप ऊपर आ सके और दूसरे पाइप से टरबाइन घुमाने के बाद बाहर आया जल वापस भूमि में जा सके तीसरे चरण में भाप या जल की ताप के अनुसार उपयुक्त विद्युत जनित्र लगाया जाए । Geothermal Energy notes in hindi

विद्युत जनित्र के तीन डिजाइन इस कार्य के लिए विकसित किए गए हैं ।पहले डिजाइन में पृथ्वी से निकाल के वाली बाप को सीधे टरबाइन घुमाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है और शेष भाग को संगठित कर वापस पृथ्वी के अंदर भेजा जाता है दूसरे डिजाइन में पृथ्वी से दाब के साथ तेजी से बाहर आने वाले गर्म पानी पर दाब दे कर इसे भाप में बदला जाता है और फिर इस भाप को टरबाइन घुमाने के लिए उपयोग में लाया जाता है ।तथा तीसरे डिजाइन में इसे बाइनरी प्रणाली कहा जाता है गर्म जल को एक उष्मा विनीमय से गुजारा जाता है जहां यह बंद रूप में विद्यमान आइसो ब्यूटेन जैसे कम क्वथनांक के द्रव को गर्म करता है। इस प्रकार उत्पन्न आइसो ब्यूटेन की वाष्प टरबाइन घुमाने के लिए उपयोग में लाई जाती है। यह महत्वपूर्ण यह है कि कहां किस प्रकार का जनरेटर लगाया जाए यह निर्णय तापीय संसाधन के ऊपर निर्भर करेगा यदि कूप् से जलवाष्प रूप में बाहर आता है तो पहला डिजाइन चलेगा यदि उच्च ताप पर गर्म जल बाहर आता है तो दूसरा डिजाइन काम में लाया जाएगा और दोनों स्थितियों ना होने पर उसमें युक्त तीसरा डिजाइन उपयोग करना पड़ेगा क्योंकि अधिकांश भूतापीय संसाधनों से गर्म जल ही बाहर आता है ना कि भाप या उच्च ताप का जल इसलिए ऊष्मा विनिमयक डिजाइन ही अधिकतर प्रयोग में लाया जाता है।

2- परिष्कृत भूतापीय जल ग्रहण –

भूतापीय झरना और गर्म जल के गीजर  के युगों पुराने अनुप्रयोग अभी भी जारी है गर्म जल के झरनों के निकट नहाने ग्रीन हाउस ओं को गर्म करने मछली सुखाने सड़कों पर से बर्फ हटाने तेल प्राप्त में सुधार तथा मत्स्य फार्मा और स्पा ग्रहों को गर्म करने के लिए सीधे गर्म करने के जल का उपयोग किया जाता है ।भुगत ऊष्मा जलाघरों तक पाइप उतार कर उससे गरम जल की सतह धारा प्राप्त कर विभिन्न प्रकार की नियंत्रण व्यवस्था करके भी इस जल का वांछित उपयोग करने के प्रयास हो रहे हैं । Geothermal Energy notes in hindi

-भूतल स्त्रोत हीट पंप

भू पृष्ठ से लगभग 10 फीट की गहराई पर तापमान लगभग एक समान 10 डिग्री सेल्सियस से 16 डिग्री सेल्सियस के बीच बना रहता है। वैसे ही जैसे गुफाओं में होता है यह ताप सर्दी में ऊपर की हवा के ताप से अधिक होता है और गर्मी में हवा के ताप से कम होता है ताप के इस अंतर का उपयोग करके भूतापीय उष्मा पंपों द्वारा भवनों को गर्म या ठंडा कर सकते हैं ।

भूतापीय ऊष्मा पंप में मूल रूप से 3 भाग होते हैं 
-भुगत ऊष्मा विनिमयक उष्मा पंप एकक तथा वायु प्रदायक प्रणाली। ऊष्मा विनिमय पाइपों का एक तंत्र है जिसे लूप कहते हैं जो भवन के निकट जमीन में थोड़ी गहराई में दबाया जाता है। पाइपों में हिम्निरोधक युक्त जल घुमाया जाता है जो भूमि के नीचे से उष्मा का अवशोषण या वहां उसका विसर्जन करता है।
 शीत ऋतु में उष्मा पंप ऊष्मा विनिमय के द्वारा भूमि से उष्मा ग्रहण कर भवन के अंदर की ओर को वायु को देता है जबकि ग्रीष्म ऋतु में यह इसके विपरीत कार्य करता है अर्थात भवन के अंदर की वायु से हटाई गई ऊष्मा का उपयोग जल गर्म करने के लिए भी किया जा सकता है ।और इस प्रकार हमें बिना किसी खर्च की गर्म जल मिल सकता है ।।भूतापीय उष्मा पंप में पारंपरिक उष्मा प्रणालियों की तुलना में बहुत कम ऊर्जा का उपयोग होता है क्योंकि वह भूमि से उष्मा निकालते हैं भवन को ठंडा करने के क्रम में उनकी दक्षता भी अधिक होती है इससे ना केवल ऊर्जा और धन की बचत होती है बल्कि वायु प्रदूषण में भी कमी आती है।

भूतापीय उष्मा पंप में पारंपरिक प्रणाली की तुलना में बहुत कम ऊर्जा का उपयोग होता है क्योंकि वह भूमि से उष्मा निकालते हैं भवन को ठंडा करने के लिए प्रक्रम में उनकी दक्षता भी अधिक होती है इससे ना केवल ऊर्जा और धन की बचत होती है बल्कि वायु प्रदूषण में भी कमी आती है ।

भूतापीय ऊर्जा के लाभ –

ऊर्जा संकट का सामना करने और वर्तमान प्रदूषणकारी ऊर्जा संयंत्र के आंशिक विकल्प के रूप में भूतापीय ऊर्जा को बढ़ावा देने पर विचार किया जाना चाहिए क्योंकि इसके बहुत से लाभ है जैसे यह स्वछ कम खर्च नवीकरणीय ऊर्जा की श्रेष्ठ स्त्रोत हो सकते हैं जिनसे हमें 24 घंटे 20 दिन बिना किसी व्यवधान की ऊर्जा प्राप्त होती रह सकती है ।

-अन्य ऊर्जा स्त्रोतों की तरह के ना तो कोई प्रदूषण फैलाते हैं इनमें कोई हानिकारक उत्पाद नही बनता है और ना ही किसी अपशिष्ट पदार्थ के निपटारे की समस्या रहती है यदि कोई थोड़ी बहुत प्रदूषण कारी गैस या गंदगी गर्म जल के साथ भूमि से बाहर आती है तो उसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है भूतापीय ऊर्जा संयंत्र छोटे आकार के होते हैं इस कारण ना तो यह बहाए पर्यावरण परिदृश्य को बिगड़ते हैं और ना ही निकटवर्ती वातावरण को प्रभावित करते हैं इन के लिए बहुत अधिक भूमि होने की आवश्यकता नहीं होती इसलिए इनकी स्थापना का खर्च जीवाश्म ईंधन या नाभिकीय ईंधनों पर आधारित संयंत्र की तुलना में कम पड़ता है । 

-भूतापीय उष्मा से ऊर्जा पैदा होती है इसलिए इनमे किसी ईंधन की आवश्यकता नहीं होती इनके द्वारा विद्युत पैदा करने की कीमत भी कम पड़ती है और इंधन खरीदने इसे शक्ति से सयंत्र तक लाने स्वच्छ करने भंडारण कर के रखने आदि की परेशानियां भी बच जाती हैं केवल जल पंप को चलाने में जो खर्च होता है वह होता है और उसके लिए आवश्यक ऊर्जा भी इसी संयंत्र से प्राप्त हो जाती है । Geothermal Energy notes in hindi

-आवश्यकता पड़ने पर एक संयंत्र से पंप को हटाकर दूसरे संयंत्र में इस्तेमाल किया जा सकता है और इस प्रकार ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति का नियमन किया जा सकता है । Geothermal Energy notes in hindi

-0.5 से 10 मेगावाट तक के भूतापीय ऊर्जा संयंत्र की स्थापना में लगभग 6 महीने का समय लगता है और इस प्रकार 250 मेगावाट से अधिक का क्लस्टर लगभग 2 वर्ष के समय में खड़ा किया जा सकता है ।भूतापीय ऊर्जा संयंत्र अनंत काल तक चलते हैं क्योंकि पृथ्वी से आप जो भी ऊष्मा निकालेंगे वह इसके अंदर विद्यमान रेडियोएक्टिव पदार्थ के कारण उत्पन्न होती रहने वाले ऊष्मा से कम हीं होगी। Geothermal Energy notes in hindi

:- भूतापीय ऊर्जा के उपयोग की सीमाएं

ऊपर वर्णित विभिन्न लाभों के बावजूद भूतापीय ऊर्जा के उपयोग की सीमाएं हैं इनमें से कुछ की चर्चा नीचे दी गई है

– भूतापीय उष्मा पंप लगाकर वातानुकूल तो संभवत सब जगह किया जा सकता है परंतु भूतापीय ऊर्जा संयंत्र हर जगह नहीं लगाया जा सकते उनके लिए तो टेक्टोनिक प्लेटों की सीमा रेखाओं के आसपास के हॉटस्पॉट की उपयोग स्थल है ।संयंत्र की स्थापना स्थायित्व पर बुरा प्रभाव डाल सकती हैं भूतापीय ऊर्जा संयंत्रों के स्थल पर लंबे समय पश्चात वाष्प समाप्त हो सकती है। तभी नए स्थल तलाशने होंगे और ऐसे में पुराने स्थलों पर ड्रिल करके पाइप उतारने पर किया हुआ खर्च व्यर्थ हो जाएगा। Geothermal Energy notes in hindi

– भूगर्भ से बाहर आने वाले जल में विषैली गैसों के अतिरिक्त कुछ विशेष विषैले खनिज भी खुले हो सकते हैं इन के कारण जल मृदा और वायु प्रदूषित हो सकती है इसका ध्यान रखना होगा ।

-भारत में भूतापीय ऊर्जा अनुमान है कि विश्व में कुल विद्युत उत्पादन में भूतापीय ऊर्जा की भागीदारी 6.5% की होगी इसमें भारत की भी बड़ी भागीदारी होगी विश्व के 78 देशों में भूतापीय उर्जा का उष्मा के लिए सीधा प्रयोग किया जा रहा है और 24 देशों में भूतापीय ऊर्जा संयंत्र लगभग 11000 मेगावाट ऊर्जा उत्पन्न कर रहे हैं परंतु अभी अपनी प्रारंभिक अवस्था में ही है। भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण ने देशभर में लगभग 340 भूतापीय गरम झरनो की पहचान की है इनमें से अधिकांश में जल का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस से 90 डिग्री सेल्सियस के बीच है जो सीधे प्रयोगों के लिए उपयुक्त है इन झरनो को 7 भूतापीय भागों में बांटा गया है  Geothermal Energy notes in hindi

हिमालय पूगा चुमतांग,सहारा घाटी,कैम्बे द्रोणी, सोन नर्मदा ताप्ती रेखा बेल्ट पश्चिमी तट, गोदावरी द्रोणी महानदी द्रोणी ये भूतापीय संसाधन आंध्र प्रदेश छत्तीसगढ़ गुजरात हिमाचल प्रदेश जम्मू और कश्मीर महाराष्ट्र झारखंड उड़ीसा उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल राज्य में खोजे गए हैं ।कुछ भूतापीय शक्ति संयंत्र पूगा घाटी चुमतांग जम्मू कश्मीर मणिकरण हिमाचल प्रदेश जलगांव महाराष्ट्र और तपोवन उत्तराखंड में स्थापित की गई है। गुजरात के नर्मदा और ताप्ती नदियों के बीच के क्षेत्र में उपलब्ध भूतापीय संसाधनों का उपयोग करके बिजली उत्पादन की तैयारियां पूरी हो चुकी है तातापानी छत्तीसगढ़ में भूतापीय बिजली उत्पादन के लिए एक नई पहचान की गई है यह भारतीय प्रायद्वीप में सर्वाधिक संभावना भूतापीय उर्जा स्त्रोत है यहां 0.05 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में अत्यंत सघन का प्रकरण देखा जा सकता है क्षेत्र में अनेक हॉट स्पॉट उष्मा जल धाराएं प्रवाहित होती है। झरनों की बेल्ट के 18 स्थानों पर 60 उष्ण जल धाराएं प्रभावित होती है । Geothermal Energy notes in hindi

भूतापी परियोजना को बहु उपयोगी परियोजना के रूप में देखा जाना चाहिए ना केवल उत्पादन के लिए बल्कि वातानुकूल प्रबंधन ग्रीनहाउस उत्पादन स्वास्थ्य सेवाओं के रखरखाव आदि के लिए भी इनका उपयोग किया जा सकता है ।

-क्या आप जानते हैं सबसे पहला भूतापीय बिजली केंद्र इटली में बनाया गया था ।

-दुनिया भर में भूतापीय संयंत्र से 10 गीगा वाट से अधिक विद्युत ऊर्जा उत्पादन करने की क्षमता है।

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