असहयोग आन्दोलन 1920 Non cooperation movement

Non cooperation movement hindi असहयोग आन्दोलन 1920

असहयोग आंदोलन और स्वराज दल 

-मांटेग्यू चेम्सफोर्ड प्रतिवेदन के आधार पर ब्रिटिश शासन द्वारा पारित भारत सरकार अधिनियम सन 1919 की व्यवस्था की अपर्याप्तता भारत सरकार द्वारा पारित रोलेट अधिनियम तथा उसके विरोध में हुई देशव्यापी हड़ताल तथा सरकार द्वारा किए गए दमन जलियांवाला बाग हत्याकांड तथा हंटर कमेटी द्वारा किए गए उसके अनुचित पक्ष पोषण तथा खिलाफत आंदोलन के विरोध के आधार पर हुई व्यापक हिंदू मुस्लिम एकता आदि के कारण देश में जिस उत्तेजक वातावरण की सृष्टि हुई उसमें महात्मा गांधी ब्रिटिश शासन के सहयोगी से असहयोगी बन गए। और 28 जुलाई 1920 को उन्होंने घोषणा की कि 1 अगस्त 1920 को उपवास और प्रार्थना के साथ असहयोग आंदोलन प्रारंभ हो जाएगा और असहयोग का प्रारंभ ही उन्होंने स्वयं ही सरकार द्वारा प्रदत अपने सब पदको को  लौटाते हुए किया जब उन्होंने वायसराय को लिखा कि मेरे हृदय में ऐसी सरकार के लिए ना सम्मान रहता है और ना प्रेम  जो अपनी नैतिकता की रक्षा के लिए एक के बाद एक अनुचित कार्य करती चली आ रही है मैंने इसलिए असहयोग का सुझाव रखा है जिससे वे लोग जो ऐसा करना चाहे सरकार से संबंध विच्छेद कर सके और यदि वह अहिँसात्मक बना रहा तो सरकार को अपने मार्ग बदलना पड़ेगा तथा अपनी भूलों को सुधारना होगा । Non cooperation movement hindi असहयोग आन्दोलन 1920

-कांग्रेस द्वारा असहयोग का निश्चय उपयुक्त पृष्टभूमि में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की विशेष बैठक कोलकाता में 4 दिसंबर 1920 को हुई जिसमें लगभग 3000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया महात्मा गांधी ने समिति के विचार में एक प्रस्ताव रखा जिसमें कहा गया कि ब्रिटिश सरकार ने खिलाफत के विषय में दिए हुए अपने वचन का पालन नहीं किया और ना उसने पंजाब के निर्दोष लोगों की रक्षा अत्याचारी अधिकारियों से की बर्बरता पूर्ण कार्यों के लिए उन्हें क्षमा कर दिया । इसलिए कांग्रेस का यह विचार है कि भारत में असंतोष ही रहेगा जब तक यह दोनों त्रुटियां ठीक ना कर दी जाए तथा भविष्य में ऐसी गलतियों की प्रवृत्ति को रोकने और राष्ट्रीय सम्मान का प्रदर्शन करने का प्रभावशाली ढंग यह है कि राज्य की स्थापना की जाए तथा भारत के लोगों के पास इसके सिवा और कोई चारा नहीं है । वे महात्मा गांधी द्वारा बताए हुए प्रगतिशील और असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम को स्वीकार करें और उसे तब तक चलाएं जब तक ऊपर कही हुई गलतियां ठीक ना हो जाए और राज्य की स्थापना ना हो जाए कुछ विसंगतियों के होते हुए भी 9 सितंबर को यह प्रस्ताव कार्य समिति द्वारा स्वीकार कर लिया गया था इसकी पुष्टि दिसंबर सन 1920 के कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में की गई । Non cooperation movement hindi असहयोग आन्दोलन 1920

कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन ने इस प्रसंग में दो महत्वपूर्ण निर्णय की जो उसकी अब तक की नीति से भिन्न दिशा में थे अब तक कांग्रेस का देश ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत स्वराज्य था पर अब महात्मा गांधी के शब्दों में स्वराज्य का अर्थ ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत और यदि आवश्यक हो तो उसके बाहर स्वराज्य हो गया इसी अधिवेशन में ध्येय की प्राप्ति के साधनों में परिवर्तन स्वीकार किया गया और वह यह था कि कांग्रेस अब अपने को वैधानिक उपाय तक सीमित रखने के लिए बाध्य ही नहीं है। अपितु आवश्यकतानुसार व अन्य शांतिपूर्ण और उचित उपायों का जिनमें कर बन्दी जैसे उपाय भी शामिल थे प्रयोग कर सकती थी इसी प्रकार दक्षिण तथा वामपंथी दोनों विचारधाराओं के राष्ट्रवादी ओ द्वारा स्वीकृत एक मार्ग निश्चित किया गया जिस पर देश का स्वतंत्रता आंदोलन चलना था सरकार के साथ सहयोग की घोषणा करना सरकार के विरुद्ध एक युद्ध की घोषणा जैसा कार्य था तथा अंतर केवल इतना था कि   उस युद्ध को केवल अहिंसात्मक होना था इस प्रसंग में जैसा गांधी जी ने स्पष्ट किया था पूर्ण सविनय अवज्ञा शांतिपूर्ण विद्रोह अर्थात राज्य द्वारा बनाई गई प्रत्येक विधि को मानने से इनकार कर देने की स्थिति है यह निश्चय ही सशस्त्र विद्रोह से अधिक खतरनाक है। Non cooperation movement hindi असहयोग आन्दोलन 1920

क्योंकि यदि सविनय अवज्ञा करने वाले असीमित कठिनाइयों को सहन कर सके तो इसे दबाया नहीं जा सकता यह वस्तुतः निष्कलंक कष्ट सहन करने की आवश्यकता पर ही आधारित है इस प्रसंग में यह भी उल्लेखनीय है कि जमाअतुल उलेमा ए हिंद ने भी एक फतवा जारी करके भारत के मुसलमानों का आह्वान किया कि वे सरकारी चुनाव स्कूल कॉलेज तथा न्यायालयों का बहिष्कार करें और शासन द्वारा दिए गए सभी खिताबों को वापस कर दे।

– असहयोग आंदोलन का कार्यक्रम

असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम का निश्चय कांग्रेस ने किया उसके विरोध आत्मक और रचनात्मक दोनों ही पक्ष थे विरोधाभास का कार्यक्रम इस प्रकार था

– उपाधियां और अवैतनिक पदों का त्याग 

-स्थानीय निकायों के मनोनीत सदस्यों द्वारा त्यागपत्र 

-सरकारी अधिकारियों द्वारा अथवा उनके सम्मान में आयोजित उत्सव और दरबारों में सम्मिलित होने का प्रतिरोध

– सरकार द्वारा संचालित नियंत्रित अथवा सहायता प्राप्त स्कूल और कॉलेजों से धीरे-धीरे वापस आना

– वकीलों द्वारा धीरे धीरे ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार किया जाना ।

-सैनिक लिपिकों और श्रमिकों द्वारा मेसोपोटामिया के लिए किए जाने वाली भर्ती की मनाही।

– पुनर्गठन विधान मंडलों के लिए होने वाले चुनाव के प्रत्याशियों को बैठाना तथा जो प्रत्याशी ना बैठे उन्हें अपना मत ना देना।

– विदेशी माल का बहिष्कार असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम का रचनात्मक पक्ष इस प्रकार था

– सरकारी संस्थानों के स्थान पर राष्ट्रीय शिक्षा संस्थानों की स्थापना करना 

-सरकारी न्यायालयों के स्थान पर गैरसरकारी पंच न्यायालय की स्थापना करना 

-सरकारी विधान परिषदों का

 स्थान कांग्रेस समितियों को देना

– घर घर में हाथ के कते सूत से जुलाहो द्वारा हाथ से बनाए कपड़ो का प्रयोग करना 

-हिंदू मुस्लिम एकता को प्रोत्साहन देना ।

-अस्पृश्यता निवारण का प्रचार करना

-असहयोग आंदोलन की प्रगति Non cooperation movement hindi असहयोग आन्दोलन 1920

– असहयोग आंदोलन के आह्वान का संपूर्ण देश की जनता पर बड़ा व्यापक प्रभाव हुआ तथा अनगिनत लोगों ने आंदोलन में भाग लिया सर्वत्र लोगों ने आंदोलन में इस प्रकार भाग लिया मानो वे किसी धार्मिक अनुष्ठान में भाग ले रहे हो सैकड़ों भारतीयों ने अपनी उपाधियां वापस की मजिस्ट्रेट ने त्यागपत्र दिए वकीलों ने अदालत ने छोड़ी तथा विद्यार्थियों ने शिक्षा संस्थानों का त्याग किया। अनेक राष्ट्रीय शिक्षालयों की स्थापना की गई नवीन एक्ट के तहत बनी व्यवस्थापिका सभाओं का भी यथासंभव बहिष्कार किया गया विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार तथा मद्य निषेध भी किया गया। राष्ट्रीय स्वयं सेवकों का संगठन किया गया तथा तिलक स्वराज्य कोश नामक एक कोर्स खोला गया फिर भी यह लक्ष्य रहा कि आंदोलन के कार्यक्रम का विरोधआत्मक पक्ष अधिक सफल नहीं रहा पर पुनरगठित व्यवस्थापिका सभाओं के चुनाव हुए उनके 784 स्थानों के लिए लगभग 2000 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा केवल छह स्थानों पर प्रत्याशियों के अभाव में चुनाव नहीं हो सके अनेक अवसरवादी व्यवस्था में पहुंची सरकारी कॉलेज अदालत और कार्यालय भी चलते रहे आंदोलन अहिंसक रहा यद्यपि कहीं कहीं सरकारी अधिकारियों से हिंसक संघर्ष भी हुआ प्रारंभ में सरकार ने आंदोलन को कोई महत्व नहीं दिया परंतु थोड़े दिनों में सरकार की नींद हराम होने लगी ।परिणाम स्वरुप सरकारी दमन चक्र का दौर चला और हजारों भारतीय जेल में भर दिए गए। सरकार की दमन नीति के फल स्वरुप मालेगाव असम में दंगे हुए जुलाई 1921 की कांग्रेस समिति की बैठक प्रिंस ऑफ वेल्स का जो उस समय भारत आने वाले थे  बहिष्कार किये जाने तथा उनके आगमन पर हड़ताल करने का निश्चय किया गया। Non cooperation movement hindi असहयोग आन्दोलन 1920

प्रिंस ऑफ वेल्स भारत में आने पर मुंबई में दंगा हुआ जिसमें एक व्यक्ति घायल हुए तथा मारे गए गांधीजी आंदोलन में हिंसा का प्रवेश नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने आंदोलन को उस समय तक के लिए स्थगित कर दिया जब तक देश हिंसात्मक आंदोलन के चलाने योग्य ना हो जाए 1 फरवरी 1922 को गांधी जी ने एक पत्र वायसराय को लिखा और सरकार को सूचित कर दिया कि सात दिवस में सरकारी नीति में परिवर्तन नहीं हुआ तो सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ कर दिया जाएगा और बारदोली उसके श्री गणेश का स्थान होगा।

– चोरा चोरी कांड और आंदोलन का स्थगन –

वायसराय को अपने पत्र में दिया हुआ समय पूरा होने से पहले ही एक घटना ऐसी हुई जिसके कारण गांधी जी ने आंदोलन स्थगित कर दिया 5 फरवरी 1922 को गोरखपुर जिले के चोरा चोरी गांव में वहां की जनता ने आवेश में आकर एक थाने में आग लगा दी जिसमें एक थानेदार और 21 सिपाही जलकर मर गए अहिंसा के पुजारी गांधी जी इसे सहन ना कर सके और उन्होंने सविनय अवज्ञा का विचार भी स्थगित कर दिया फरवरी 1922 में बारडोली में हुई कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में उन्होंने आंदोलन को निलंबित करने का प्रस्ताव रखा देशबंधु चितरंजन दास मोतीलाल नेहरू लाला लाजपत राय और सुभाष चंद्र बोस आदि नेताओं द्वारा आंदोलन के चालू रखने पर जोर दिए जाने के बावजूद भी गांधी जी ने उचित समझा कि आंदोलन बंद कर दिया जाए सुभाष चंद्र बोस ने तो इस संबंध में यहां तक कहा कि ठीक उस समय जब जनता का उत्साह चरमोत्कर्ष पर था वापस लौटने का आदेश दिया जाना राष्ट्रीय दुर्भाग्य ही था। पर गांधीजी के विचार के महत्व को मानते हुए कार्यकारिणी में सविनय अवज्ञा को भी निलंबित कर दिया और देश की सभी संस्थाओं से इस बात की अपील की की सर्वत्र अहिसात्मक वातावरण उत्पन्न किया जाए और रचनात्मक कार्यक्रम अपनाया जाए जिसमें हाथ की कढ़ाई और बुनाई अस्पृश्यता निवारण संप्रदायिकता की वृद्धि तथा शराब बंदिश सम्मिलित थी। सरकार ने जब यह देख लिया कि वातावरण शांत हो गया और यह समझ लिया कि गांधी जी की गिरफ्तारी से कोई गड़बड़ी नहीं हो सकती थी तो आंदोलन के निलंबन के 2 दिन बाद ही उसने गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें 6 वर्ष के कारावास का दंड दिया। Non cooperation movement hindi असहयोग आन्दोलन 1920

– असहयोग आंदोलन का मूल्यांकन

इस प्रकार असहयोग आंदोलन 2 वर्ष चलकर बिना किसी प्रत्यक्ष लाभ प्राप्ति के समाप्त हो गया देश में घोर निराशा के वातावरण में जन्म लिया तथा आंदोलन के प्रवर्तक को जेल में डाल दिया गया था फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि उस असहयोग आंदोलन का राष्ट्रीय आंदोलन में कोई स्थान नहीं है असहयोग आंदोलन में भारतीयों की शक्ति का प्रदर्शन कर यह दिखा दिया कि वे अपने अधिकारों के लिए मर मिटना जानते हैं तथा साथ ही साथ इस से भारतीयों को ऐसे अमोघ अस्त्र अहिंसा नामक सत्याग्रह की प्राप्ति हुई जिसका प्रयोग आगामी स्वतंत्रता आंदोलन में होता रहा और जिसके कारण अंत में स्वतंत्रता प्राप्ति हुई इसके अतिरिक्त जब तक देश में असहयोग आंदोलन चलता रहा सरकार उदारवादी युग का सहयोग प्राप्त करने के लिए उत्सुक रही और उसमें सुधारों को भी ठीक ढंग से कार्यान्वित करने का प्रयत्न किया और सहयोग से 1 वर्ष में स्वराज्य तो ना मिला परंतु यह अवश्य स्वीकार करना पड़ेगा कि उसके कारण राष्ट्रीय आंदोलन में एक नवीन अध्याय का श्रीगणेश हुआ और भारत में एक ऐसी राजनीतिक क्रांति का सूत्रपात हुआ जिसने राष्ट्रीय आंदोलन को ग्रामीण भारत का आंदोलन बनाकर उसे जन शक्ति प्रदान की। जिसकी प्रत्येक आंदोलन को आवश्यकता होती है जैसा कि श्री कुपलैंड ने लिखा है उन्होंने गांधी जी ने वह काम किया जो तिलक नहीं कर सके थे उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन को एक क्रांतिकारी आंदोलन के रूप में परिवर्तित कर दिया उन्होंने स्वतंत्रता के लक्ष्य की ओर बढ़ना सिखाया सरकार के ऊपर वैधानिक दबाव डालकर नहीं वाद विवाद तथा समझौते के द्वारा नहीं बल्कि शक्ति के द्वारा और शक्ति भी अहिंसा की उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन को क्रांतिकारी ही नहीं जनप्रिय बनाया अभी तक महानगरों के बुद्धिजीवी वर्ग तक सीमित था लेकिन अब गांव की जनता तक पहुंच गया।  Non cooperation movement hindi असहयोग आन्दोलन 1920

– विधान मंडलों में असहयोग स्वराज्यवादी आंदोलन –

मार्च 1922 में महात्मा गांधी को जेल चले जाने के पश्चात 3 माह तक असहयोग आंदोलन कार्यक्रम अनुसार चलता रहा इसके बाद सत्याग्रह समिति के नाम से एक समिति की नियुक्ति की गई जिसका कार्य आगामी कार्यक्रम अनुसार अपने प्रतिवेदन देना था समिति ने अन्य सिफारिशों के अतिरिक्त सामूहिक सत्याग्रह बंद करने उसके स्थान पर प्रांतीय कांग्रेस समितियों के उत्तरदायित्व पर छोटे रूप में सत्याग्रह किए जाने तथा सरकार का विरोध करने के लिए काउंसिलो में प्रवेश करने की सिफारिश की काउंसिल प्रवेश के प्रश्न पर कांग्रेस ने मतभेद हुआ सन 1922 की गया कांग्रेस ने इस प्रश्न पर बड़ा वाद विवाद हुआ तथा अंत में काउंसिल का बहिष्कार करने वालों को ही विजय हुई देशबंधु चितरंजन दास तथा पंडित मोतीलाल नेहरू इस निर्णय से सहमत ना थे इसलिए देश बंधु ने जो कांग्रेस के सभापति थे अपना त्यागपत्र देकर मोतीलाल नेहरू के सहयोग से जनवरी 1930 में स्वराज्य दल की स्थापना की। मार्च 1923 में इलाहाबाद में प्रथम साम्राज्यवादी सम्मेलन भी हुआ जिसमें दल का विधान बनाया गया तथा कार्यक्रम तैयार किया गया कार्यक्रम का सार काउंसिलो में जाकर सरकार के साथ असहयोग करना तथा बाद में कांग्रेस के ईद चिंतकों के प्रयत्न स्वरूप सितंबर 1923 में दिल्ली के विशेष कांग्रेस अधिवेशन में काउंसिल प्रवेश के समर्थक तथा उसके विरोधियों में एक समझौता हुआ जिसके अनुसार समाजवादी अपनी नीति पर चलते हुए भी कांग्रेस के अंग बने रहे और कांग्रेसियों को विधान मंडलों के चुनाव में भाग लेने के लिए स्वतंत्र कर दिया गया । Non cooperation movement hindi असहयोग आन्दोलन 1920

स्वराज्य दल की नीति –

स्वराज्य वादियों के अनुसार स्वराज्य दल का कार्यक्रम और सहयोग को विधान मंडलों तक पहुंचाना था और इस दृष्टिकोण से उन्होंने कार्य भी किया स्वराज्य दल का कार्यक्रम था सरकार द्वारा काउंसिल के इस प्रकार के प्रयोग को रोकना था सरकार को राष्ट्रीय मांगों की सूचना देना और यह स्पष्ट कर देना कि यदि मांगे असवीकृत हुई तो स्वराज्य दल अडंगा नीति का अनुसरण करेगा। दल की राजनीतिक मांगो में मुख्य राजनीतिक बंदियों की मुक्ति मनमानी कानूनों की समाप्ति तथा शासन आधारों पर एक गोलमेज परिषद का आयोजन था इसके अतिरिक्त उनकी यह भी स्पष्ट नीति थी कि सरकारी पद तथा समितियों की सदस्यता स्वीकार न की जाए तथा सतत और उचित विरोध की नीति बरती जाए। सन 1925 में बंगाल की व्यवस्थापिका सभा में भाषण देते हुए देशबंधु चितरंजन दास ने स्वराज्य पार्टी के उद्देश्य के विषय में उन्होंने कहा था हम ऐसे राजनीतिक व्यवस्था को समाप्त कर देना चाहते हैं जिसने ना तो कोई अच्छाई की है और जिसने ना किसी अच्छाई की आशा है हम इसे समाप्त करना चाहते हैं क्योंकि हम एक ऐसी व्यवस्था लागू करना चाहते हैं जो सफलतापूर्वक चल सके और जिससे जनता की भलाई हो सके। समाजवादी कांग्रेस के मुख्य असहयोग आंदोलन को भी कोई हानि नहीं पहुंचाना चाहते थे और उनका यह विश्वास था कि विधान मंडलों में जाने से असहयोग आंदोलन को हानि होने की वजह नाम ही होगा उनकी नीति आयरलैंड के नेता चार्ल्स स्टुअर्ट पारतेल की ब्रिटिश लोकसभा में प्रतिरोध करने की नीति जैसी थी जिसे वे उस समय तक चलाने के पक्ष में थे जब तक दल के अंतिम उद्देश्य स्वराज्य की प्राप्ति ना हो जाए। Non cooperation movement hindi असहयोग आन्दोलन 1920

– स्वराज्य दल के क्रियाकलाप-

चुनाव में स्वराज्य दल के उम्मीदवारों की सर्वत्र विजय हुई बंगाल और मध्य प्रदेश की विधान मंडलों में तो उन्हें बहुमत प्राप्त हुआ और वहां उन्होंने सरकार के प्रति असहयोग का प्रदर्शन किया उसके कारण व्यवस्थापन संबंधी कार्य असंभव हो गया और सन 1919 का संविधान स्थगित कर के आंतरिक भाग का प्रबंध सरकार को अपने हाथ में लेना पड़ा केंद्रीय असेंबली में दल के 50 सदस्य निर्वाचित हुए और उन्होंने वहां स्वतंत्र सदस्यों के सहयोग से सरकार को अनेक महत्वपूर्ण विषय पर पराजित किया फरवरी 1914 में केंद्रीय असेंबली में मोतीलाल नेहरू द्वारा रखा गया एक ऐसा प्रस्ताव स्वराज्य वादियों के प्रयत्न से पारित हुआ जिसमें भारत में पूर्ण उत्तरदाई शासन की व्यवस्था के लिए सन 1919 के भारत सरकार अधिनियम में संशोधन की मांग की गई और उसके लिए यह सुझाव दिया गया कि उक्त उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए गोलमेज परिषद संविधान तैयार करें और अंग्रेजी संसद उसे कानून का स्वरूप दें भारत सरकार द्वारा इस पर कोई आशापूर्णा उत्तर न दिए जाने पर केंद्रीय व्यवस्थापिका सभा में बड़ा रोष फैला और परिणाम स्वरूप सरकारी व्यय की मांगों को अस्वीकार कर दिया गया तथा वित्त विधेयक की व्यवस्थापिका में प्रस्तुत करने पर ही रोक लगा दी गई इसके अतिरिक्त सीडी अयंगर द्वारा एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया जिसने बंगाल में प्रचलित पुराने दमनकारी अध्यादेश को समाप्त करने की मांग की गई इस पर स्वराज्य वादियों की विजय और सरकार की पराजय हुई और प्रस्ताव 45 के विरुद्ध 58 मतों से स्वीकार हो गया । Non cooperation movement hindi असहयोग आन्दोलन 1920

रवि जी पटेल का प्रस्ताव जिसमें कुछ अन्य दमनकारी कानून को समाप्त किए जाने की मांग की गई थी असेंबली में स्वीकार हो गया श्री राजा का एक प्रस्ताव जिसमें भारत में एक सैनिक विद्यालय के खोलने की मांग की गई थी भी पारित हो गया अनेक मामलों में स्वराज्यवादियो ने व्यवस्थापिका सभाओं से बहिर्गमन भी किया इस प्रकार स्वराज्य वादियों के उक्त कार्यों ने यह स्पष्ट सिद्ध कर दिया कि 1919 कि शासन संबंधी सुधार वास्तव में भारत की आकांक्षाओं से बहुत दूर थे और वे जनतंत्र के प्राथमिक सिद्धांतों की भी पूर्ति नहीं करते थे स्वराज्यवादियों के द्वारा आयोजित इस विरोध प्रदर्शन का प्रभाव इंग्लैंड तक हुआ परिणाम स्वरूप साइमन कमीशन की समय से पूर्व ही नियुक्ति की गई। जून 1925 में देशबंधु चितरंजन दास की मृत्यु हो गई दल का संपूर्ण भार पंडित मोतीलाल नेहरू पर आ पड़ा कांग्रेस की कानपुर अधिवेशन में यह निश्चित हुआ कि यदि सरकार राष्ट्रीय मांगो को शीघ्र स्वीकार न करें तो स्वराज्य दल के लोगों को काउंसिल का बहिष्कार करना होगा जिससे सरकार के व्यवस्थापन कार्य में अड़ंगा पड़े यदिपि अपने स्थानों को रिक्त घोषित किए जाने से रोकने प्रांतीय बजट को अस्वीकार करने तथा नवीन कर लगाने वाले विधेयकों का विरोध करने के लिए उन्होंने काउंसिल में जाने की अनुमति दे दी गई थी ।स्वराज्यवादियों को विशेषता मध्य प्रांत से तथा महाराष्ट्र के लोगों को यह नीति पसंद नहीं थी और वे मानटेग्यू चमेस्फ़ोर्ड सुधारों को अपर्याप्त कहते हुए भी उन्हें कार्यक्रम देने के पक्ष में थे और इस आधार पर उन्होंने अपना एक पृथक दल बना लिया महात्मा गांधी ने जो फरवरी 1924 में स्वराज्य वादियों की मांग तथा अपनी बीमारी के कारण जेल से छूट चुके थे सन 1926 में साबरमती पैक्ट द्वारा एक बार फिर एकता स्थापित करने का प्रयत्न किया परंतु वे सफल नहीं हो सके ।क्योंकि कांग्रेस समिति ने ततसंबंधी समझौते को स्वीकार नहीं किया और अंत में स्वराज्य दल को दो भागों में विभाजित होकर रह गया । Non cooperation movement hindi असहयोग आन्दोलन 1920

इस प्रकार असहयोग आंदोलन की एक कड़ी के रूप में स्वराज्यवादी दल का असहयोग काउंसिलो में चलता रहा सैद्धांतिक दृष्टि से किसी संगठन में भिन्न-भिन्न दलों की उत्पत्ति उचित नहीं कही जा सकती और इस आधार पर कांग्रेस संगठन के अंतर्गत स्वराज्य दल की उत्पत्ति अनुचित ही थी फिर भी दल ने तत्कालीन परिस्थितियों में राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।

वस्तुतः उस समय जब राष्ट्रीय आंदोलन एक प्रकार से शांत था।तथा महात्मा गांधी के अनुयायियों का कार्यक्रम खादी तथा चरखा के ही प्रचार तक सीमित था व्यवस्थापिका सभाओं में स्वराज्य दल के सदस्यों की उपस्थिति के कारण सरकारी विरोध की अनुपम चहल पहल रही जिससे यह स्पष्ट किया कि मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार से भारत कितना अप्रसन्न है इसके बाद शासन सुधार का काल आया तथा अनेक सरकारी और गैर सरकारी योजनाएं प्रस्तुत हुई उनको यदि स्वराज्य दल के उक्त  कार्यक्रम का परिणाम आ माना जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। Non cooperation movement hindi असहयोग आन्दोलन 1920


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