दादाभाई नौरोजी : ग्रैंड ओल्ड मैन

-दादाभाई नौरोजी की पुण्यतिथि 30 जून

– ब्रिटिश संसद में चुने जाने वाले पहले एशियाई द ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ़ इंडिया भारत की आशा और भारतीय राजनीति के पितामह जैसे नामों से दुनिया में जिन्हे पहचान मिली वे देश के प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दादाभाई नौरोजी थे वह दिग्गज राजनेता उद्योगपति शिक्षाविद और विचारक थे 1906 में उनकी अध्यक्षता में पहली बार कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में देश के लिए पूर्ण स्वराज्य की मांग की गई उस समय दादा भाई ने कहा हम दया की भीख नहीं मांगते हम केवल न्याय चाहते हैं उनके द्वारा लिखी गई महान कृति पॉवर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया राष्ट्रीय आंदोलन की बाइबल कही जाती है वे महात्मा गांधी के प्रेरणा स्त्रोत थे वे पहले भारतीय थे जिन्हें उस समय की प्रसिद्ध एलफिंस्टन कॉलेज में बतौर प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति मिली बाद में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में भी उन्होंने प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति मिली बाद में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में भी उन्होंने प्रोफेसररूप में अपनी सेवाएं दी दादा भाई नौरोजी ब्रिटिश संसद में चुने जाने वाले पहले एशियाई थी संसद सदस्य रहते हुए उन्होंने ब्रिटेन में भारत के विरोध को प्रस्तुत किया। Dadabhai naoroji

Dadabhai naoroji
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– गरीबी को परास्त कर पाई उच्च शिक्षा

कहते हैं कि प्रतिभाएं हर परिस्थिति को परास्त कर आगे बढ़ती जाती हैं यही बात दादाभाई नौरोजी पर भी लागू होती है वह एक बेहद गरीब परिवार से थे लेकिन उन्होंने अपनी प्रतिभा के दम पर गरीबी से लड़कर भी उच्च शिक्षा पाने में सफलता प्राप्त की उनका जन्म 4 सितंबर 1825 को मुंबई के एक गरीब पारसी परिवार में हुआ था उनके पिता का नाम नरोजी पलांजी डोरडी तथा माता का नाम मेनकबाई था दादा भाई जब केवल 4 वर्ष के थे तब उनके पिता का देहांत हो गया दादा भाई का पालन पोषण उनकी माता ने किया जिन्होंने स्वयं अनपढ़ होने के बावजूद दादा भाई की पढ़ाई में विशेष ध्यान दिया दादा भाई को शुरुआती शिक्षा नेटिव एजुकेशन सोसाइटी स्कूल में हुई इसके बाद दादा भाई ने एलफिनटोन इंस्टीट्यूट मुंबई में पढ़ाई की एक छात्र के तौर दादाभाई गणित और अंग्रेजी में बहुत अच्छे थे शिक्षा पूरी करने के बाद उन्हें उसी संस्थान के अध्यापक की नौकरी मिल गई और नौरोजी मात्र 27 साल की उम्र में गणित और भौतिक शास्त्र के प्राध्यापक बन गए हैं यहां के एक अंग्रेजी प्राध्यापक ने इन्हें भारत की आशा की संज्ञा दी 1853 में उन्होंने मुंबई एसोसिएशन की स्थापना की और 1856 में उन्होंने अध्यापक पद से त्यागपत्र दे दिया उसके बाद दादाभाई कामा एंड कंपनी नामक कंपनी में नौकरी करने लगे यह पहली भारतीय कंपनी थी जो ब्रिटेन में स्थापित हुई थी व्यापारिक कार्य से उन्हें लंदन जाने का अवसर मिला जहां काम करने के दौरान उन्हें कंपनी के अनैतिक तरीकों के बारे में पता चला जो उन्हें पसंद नहीं आए और उन्होंने इस कंपनी से इस्तीफा दे दिया उसके बाद उन्होंने खुद की एक और कॉटन ट्रेडिंग कंपनी शापित की जो बाद में दादाभाई नौरोजी कंपनी के नाम से जाने जाने लगी। Dadabhai naoroji

– ड्रेन ऑफ वेल्थ थ्योरी के जरिए उजागर किया अंग्रेजों का स्वरूप

1860 के दशक की शुरुआत में दादाभाई भाई ने सक्रिय रूप से भारतीयों के उत्थान के लिए काम करना शुरू किया था वह भारत में अंग्रेजी की प्रवासिय शासन विधि के सख्त खिलाफ थे सन 1868 में उन्होंने अंग्रेजों के सामने ड्रेन थ्योरी प्रस्तुत की जिसमें बताया गया था कि वे किस तरह से भारत का शोषण कर रहे थे कैसे वे योजनाबद्ध तरीके से भारत के धन और संसाधनों में कमी ला रहे हैं और देश को गरीब बना रहे हैं भारत का अनचाहा धन भारत से इंग्लैंड जा रहा था धन का यह अपार निष्कासन भारत को अंदर ही अंदर कमजोर बनाते जा रहा था उन्होंने कहा था कि भारत का धन भारत से बाहर जाता है और फिर यह धन भारत को दोबारा ऋण के रूप में दिया जाता है जिसके लिए उसे और धन ब्याज के रूप से चुकाना पड़ता है यह सब एक दुष्चक्र था जिसे तोड़ना कठिन था दादा भाई की थियोरी ने अंग्रेजों को सकते में ला दिया था देश के स्वतंत्रता आंदोलन में दादा भाई का महत्वपूर्ण योगदान था वह ऐसे उदारवादी नेता थे जो हिंसात्मक आंदोलन के विरोध और शांतिपूर्ण तरीकों से स्वतंत्रता के पक्ष में थे उन्होंने ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना कर भारतीय लोगो की सहायता और उनकी स्थिति सुधारने का प्रयास किया इस संस्था में भारत के उच्च अधिकारियों को शामिल किया गया जिनकी पहुंच ब्रिटिश संसद में सदस्य तक थी उन्होंने भारतीयों की निर्धनता और अशिक्षा के लिए ब्रिटिश शासन को जिम्मेदार बताया अंग्रेजी सरकार ने जब उनकी इस बात पर अविश्वास किया तो उन्होंने एक पुस्तक पॉवर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया लिख कर अपनी बात को तर्क से प्रस्तुत किया। Dadabhai naoroji

– भारतीय मूल के पहले ब्रिटिश संसद बने

नौरोजी वर्ष 1892 में हुए ब्रिटेन के आम चुनाव के लिबरल पार्टी के टिकट पर फिंसबरी सेंट्रल में जीतकर भारतीय मूल के पहले ब्रिटिश सांसद बने थे उस दौरान उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा इंग्लैंड और भारत में एक साथ कराने हेतु प्रयास किया नारोजी गोपाल कृष्ण गोखले और महात्मा गांधी के सलाहकार भी थे वह सर सुरेंद्रनाथ बनर्जी द्वारा स्थापित इंडियन नेशनल एसोसिएशन के सदस्य भी रहे पहले भारतीय थे जिन्होंने कहा कि भारत भारत वासियों का है और भारत को आजाद करना है दादा भाई ने कहा हम दया की भीख नहीं मांगते हमें केवल न्याय चाहते हैं ब्रिटिश नागरिकों के समान अधिकारों का जिक्र नहीं करते हम सुशासन चाहते हैं अपने भाषण में उन्होंने भारतीय जनता की 3 मौलिक अधिकारों का वर्णन किया है यह अधिकार थे लोक सेवाओं में भारतीय जनता की अधिक नियुक्ति विधानसभा में भारतीयों का अधिक प्रतिनिधित्व भारत और इंग्लैंड उचित आर्थिक सबन्ध स्थापित करना था नौरोजी मानते थे कि अंग्रेजों के विरोध का स्वरूप अहिंसक और संवैधानिक होना चाहिए अपने भाषणों के माध्यम से देश में आजादी के लिए जागरूकता फैलाते रहे और भारतवासियों के साथ ही रहे अन्याय को रोकने के लिए अंग्रेज  पर दबाव बनाते रहे ।

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-भारतीय राजनीति में निभाई ग्रैंड ओल्ड मैन की भूमिका

दादाभाई नौरोजी महिलाओं और पुरुष को एक समान अधिकार देने के पक्ष में थे वे महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष रूप से निशुल्क शिक्षा के लिए जोर देते थे क्योंकि वे जानते थे कि उनकी मां को उन्हें शिक्षा दिलाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था वह भारत में महिलाओं की स्थिति में भी काफी सुधार करना चाहते थे इसके लिए उन्होंने मुंबई में ज्ञान प्रसारक मंडल के रूप में लड़कियों की एकमात्र उच्च विद्यालय की नींव रखी मुंबई में एक पहचान कायम करने के बाद वे इंग्लैंड गए और वहां भारतीय अर्थशास्त्र और राजनीति में पुनरुद्धार के लिए आवाज बुलंद की वे हाउस ऑफ कॉमन के लिए भी चुने गए अपने प्रभावित सामाजिक सुधारों की वजह से भारतीय राजनीति के पितामह कहे जाने लगे थे उन्होंने शिक्षा के विकास सामाजिक उत्थान और परोपकार के लिए बहुत सी संस्थाओं को प्रोत्साहित करने में योगदान दिया वे एक प्रसिद्ध अखबार साप्ताहिक राफ्ट गोफ्तार के संपादक भी रहे वे कई अन्य जर्नल से भी जुड़े रहे । Dadabhai naoroji

-इंग्लैंड की पार्लिमेंट में दिलाया प्रतिनिधित्व

सुरेंद्रनाथ बनर्जी दादाभाई नौरोजी मदन मोहन मालवीय गोपाल कृष्ण गोखले केटी तेलंग फिरोजशाह मेहता आदि शांतिपूर्ण ढंग से मांगे मनवाने के लिए प्रयासरत थे अंग्रेजों की दासता से मुक्ति दिलाना इन सभी नेताओं का एकमात्र लक्ष्य था दादा भाई ने यह मांग उठाई कि इंग्लैंड की पार्लिमेंट में कम से कम  एक भारतीय के लिए सीट सुनिश्चित होनी चाहिए उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर और तर्कों से पराजित होकर अंग्रेजों ने उनकी यह मांग मान ली उन्हें इंग्लैंड की पार्लिमेंट में भारतीयों का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया  अंग्रेजी की पार्लिमेंट में खड़े होकर उनके विरोध में बोलना दादा भाई जैसे व्यक्ति के लिए ही संभव था इन्होंने में बड़ी सूझबूझ से अपने इस दायित्व का निर्वहन किया देश और समाज की सेवा के लिए समर्पित दादाभाई नौरोजी नरमपंथी नेताओं के तो आदर्श थे ही लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे गर्म पंथी नेता भी उन्हें प्रेरणा स्त्रोत मानते थे तिलक ने दादा भाई के साथ रहकर वकालत का व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त किया एक बार दादा भाई को किसी मुकदमे के संबंध में इंग्लैंड जाना पड़ा उनके साथ सहायक के रूप में तिलक जी भी गए दादा भाई मितव्ययता की दृष्टि से लंदन में ना रहकर वहां से दूर उपनगर में ठहरे सवेरे जल्दी उठने की आदत थी घर का सारा काम स्वयं करते थे एक दिन जब वे घर का काम कर रहे थे तभी तिलक जी की आंख खुल गई उन्होंने कहा क्या आज नौकर नहीं आया जो सब काम आपको करने पड़ रहा है इस पर दादा भाई ने तिलक जी को समझाते हुए कहा मैं अपना काम स्वयं करता हूं अपने किसी कार्य के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहता यह सुनकर तिलक जी अभिभूत हो गये दादा भाई बीच-बीच में इंग्लैंड जाते रहे परंतु स्वास्थ्य ठीक ना रहने के कारण वे प्राय देश में रहे और 92 वर्ष की उम्र में 30 जून 1917 को मुंबई में ही उनका देहांत हो गया वे भारत में राष्ट्रीय भावना के जनक थे उन्होंने देश में स्वराज्य की नींव डाली दादाभाई नौरोजी के सम्मान में मुंबई और लंदन में भी कई सड़कों इमारतों और चौराहों का नामकरण किया गया है। Dadabhai naoroji


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