लोकतंत्र की कार्यप्रणाली नोट्स ,निबंध ,व अन्य कई महत्वपूर्ण जानकारी

द्वितीय प्रश्नपत्र Democracy introduction notes in hindi
सामान्य अध्ययन: विशेष सामग्री
लोकतंत्र की कार्यप्रणाली :- Democracy introduction notes in hindi
भारत दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था है | भारत में लोकतंत्र 67 वर्षों से सफल रहा है और आने वाले कई वर्षों के लिए इसकी निरंतरता का आश्वासन दिया जा सकता है| एक प्रक्रियागत लोकतंत्र के तौर पर भारत विकास कर रहा है| भारतीय नागरिक अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति धीरे-धीरे जागरुक हो रहे हैं| मतदान का प्रतिशत बढ़ रहा है और समाज के प्रत्येक वर्ग के लोग मतदान कर रहे हैं| मतदाताओं को अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करने में निर्वाचन आयोग भारत सरकार नागरिक समाज के संगठन और निजी क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं|Democracy introduction notes in hindi
साल 2014 मे विश्व ने भारत में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक चुनाव देखा| इस चुनाव में पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का प्रयोग किया गया सुरक्षा की दृष्टि से यह उपलब्धि और भी महत्वपूर्ण है कि बिना किसी समस्या के भारतीय अधिकारियों और सुरक्षाबलों ने इतना बड़ा चुनाव संपन्न कराया| चुनावी भागीदारी के हिसाब से राजनीति के इतिहास में यह सबसे बड़ा चुनाव था स्पष्ट है कि भारत में निर्वाचन आमतौर पर निष्पक्ष एवं स्वतंत्र होते हैं यदि इस आधार पर हम दूसरे देशों से तुलना करें तो हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था सराहनीय है किंतु विगत कुछ वर्षों से यह महसूस भी किया गया है कि हमारी लोकतांत्रिक निर्वाचन प्रणाली कई गलतियां और कमियां भी है| भारतीय सामाजिक आर्थिक असमानता बाहुबल एवं पैसे की बढ़ती भूमिका राजनीति का अपराधीकरण सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग पढ़ती संप्रदायिकता धर्म का राजनीतिकरण आधी चिंता का विषय है|Democracy introduction notes in hindi
स्पष्ट है कि हमारी वर्तमान लोकतांत्रिक निर्वाचन प्रणाली की मौजूदा संरचना और इसे नियंत्रित करने वाले कानून वांछित परिणाम देने में असमर्थ है अतः समता परत एवं न्याय पूर्ण राजनीतिक लोकतांत्रिक व्यवस्था तैयार करने हेतु निर्वाचन प्रक्रिया में सुधार करना हमारे लिए अपरिहार्य है| वस्तुतः हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को कई स्तरों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है इन चुनौतियों को हम तीन स्तरों पर बांट सकते हैं—-
1. राजनीतिक दलों एवं उनके उम्मीदवारों के स्तर पर|
2. मतदाताओं के स्तर पर|

3. निर्वाचन आयोग के कामकाज एवं इसकी संरचना के स्तर पर|




राजनीतिक दल :-  एक राजनीतिक संस्था जो शासन में राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने एवं उसे बनाए रखने का प्रयत्न करता है| इसके लिए प्राय: वह चुनाव की प्रक्रिया में भाग लेता है| अन्य शब्दों में राजनीतिक दल नागरिकों के उस संगठित समुदाय को कहते हैं जिसके सदस्य समान राजनीतिक विचार रखते हैं और एक राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करते हुए शासन को अपने हाथ में रखने की कोशिश करते हैं|
लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों का स्थान केंद्रीय अवधारणा के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण है| राजनीतिक दल किसी भी व्यवस्था में शक्ति के वितरण और सत्ता के आकांक्षी व्यक्तियों एवं समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं| वे परस्पर विरोधी हितों के सारणीकरण अनुशासन और सामंजस्य का प्रमुख साधन रहे हैं| इस तरह से राजनीतिक दल समाज व्यवस्था के लक्षण सामाजिक गतिशीलता सामाजिक परिवर्तनों के अवरोधों और सामाजिक आंदोलनों से भी संबंधित होते हैं |Democracy introduction notes in hindi
राजनीतिक दलों के प्रकार हैं  —Democracy introduction notes in hindi
1. प्रतिक्रियावादी दल– यह दल प्राचीन सामाजिक आर्थिक तथा राजनीतिक संस्थाओं में विश्वास करते हैं और उन्हें बनाए रखना चाहते हैं|
2. रूढ़िवादी दल– यह दल यथास्थिति में विश्वास रखता है|
3. उदारवादी दल– यह दल विद्यमान संस्थाओं में लगातार सुधार में विश्वास रखता है|
4. सुधारवादी दल– इस दल का उद्देश्य विद्यमान व्यवस्था को हटाकर नई व्यवस्था स्थापित करना होता है|
राजनीतिक चिंतकों ने विचारधारा के आधार पर सुधारवादी दलों को बाय और उदारवादी दलों को मध्य में तथा प्रतिक्रिया एवं दक्षिणपंथी दल कहा जाता है भारत में सीपीआई एवं सीपीएम वाम दलों के कांग्रेस केंद्रीय दल तथा भाजपा के उदाहरण है |
    इसके अलावा संख्या के आधार पर विश्व के लोकतांत्रिक देशों में तीन तरह की दलीय व्यवस्था है-
1. एक दलीय व्यवस्था– एक दलीय व्यवस्था में केवल सत्तारूढ़ दल होता है विरोधी दल की व्यवस्था नहीं होती है जैसे चीन|
2. द्विदलीय व्यवस्था– द्विदलीय व्यवस्था में दो बड़े दल विद्यमान रहते हैं जैसे अमेरिका में डेमोक्रेटिक वह रिपब्लिकन एवं ब्रिटेन में कंज़र्वेटिव व लेबर|
3. बहुदलीय व्यवस्था– बहुदलीय व्यवस्था में कई प्रकार के दर्द विद्यमान होते हैं जो कई बार साझा सरकार का निर्माण भी करते हैं जैसे भारत फ्रांस आदि|
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 राजनीतिक दलों के कार्य– Democracy introduction notes in hindi
1. जनमत का निर्माण करना|
2. सार्वजनिक नीतियों का निर्माण करना|
3. विपक्ष के रूप में शासन की आलोचना करना|
4. सत्तारूढ़ दल के रूप में शासन का संचालन करना|
5. चुनावों का संचालन करना|
6. शासन एवं जनता के बीच मध्यस्थ का रूप में कार्य करना|
7. जनता को राजनीतिक रूप से प्रशिक्षित करना|

8. अन्य सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्य करना जैसे हरिजन कल्याण स्त्री उद्धार आदि|


भारत में दलीय व्यवस्था :- Democracy introduction notes in hindi
राजनीतिक दल आज लोकतंत्रीय व्यवस्था का संचालन करने वाले महत्वपूर्ण तंत्र बन गया है| भारत में राजनीतिक दलों का विकास स्वतंत्रता के पूर्व से ही प्रारंभ हो गया था उल्लेखनीय है कि महात्मा गांधी और लोकनायक जया नारायण ने भारत के लिए दलविहीन लोकतंत्र की परिकल्पना की थी गांधी जी की इच्छा थी कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कांग्रेस अपने दलीय स्वरूप को विघटित कर लोक सेवक संघ के रूप में कार्य करें|
भारत में दलीय व्यवस्था के विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों में जहां एक और स्वतंत्रता आंदोलन की पृष्ठभूमि और संसदीय लोकतंत्र की मांग थी तो वहीं दूसरी ओर विशाल सांस्कृतिक धार्मिक विविधता सामाजिक आर्थिक पिछड़ापन आदि भी प्रमुख थे भारत में दलीय व्यवस्था का स्वरूप समय के साथ बदलता रहा|1950 के पश्चात भारतीय दलीय व्यवस्था की कुछ विशेषताएं उभरकर सामने आई हैं जो निम्नलिखित है–
1. खुली राजनीतिक व्यवस्था– भारत का संविधान नागरिकों को समुदाय बनाने की स्वतंत्रता देता है जिसके फलस्वरुप नागरिकों को किसी भी राजनीतिक दल के निर्माण करने का अधिकार प्राप्त है|
2.बहुदलीय व्यवस्था- भारत विविधताओं और जटिलताओं वाला देश है जहां विभिन्न भाषा धर्म जाति सिद्धांतों एवं हितों के लोग रहते हैं स्पष्ट है कि जहां कहीं भी इस प्रकार की विविधताएं होंगी वहां बहुदलीय व्यवस्था के पनपने की संभावना भी अधिक होगी इसी कारण भारत में बहुदलीय व्यवस्था है|
3. एक दल प्रभुत्व व्यवस्था– दलों की संख्या की दृष्टि से भारत में प्रारंभ से ही बहुदलीय व्यवस्था रही किंतु लगभग 30 वर्ष तक केंद्र एवं राज्यों की राजनीति में कांग्रेस दल का आधिपत्य बना रहा भारत में1977-1979 के काल को यदि छोड़ दे तो 1989 तक राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का प्रभुत्व रहा| वर्ष 2014 में भाजपा को मिला स्पष्ट बहुमत 30 साल बाद किसी भी दल को मिलने वाला स्पष्ट बहुमत है यह दलीय व्यवस्था के नए दौर याद किसी वापसी का इशारा हो सकता है | Democracy introduction notes in hindi
4. गुटबाजी दलबदल तथा दलीय विभाजन– भारतीय दलीय व्यवस्था की एक विशेषता या कमी जो भी माना जाए रही है कि भारत में राजनीतिक चुनावों से पहले व बाद दलबदल जमकर होती है इसे रोकने के लिए समय-समय पर कानून भी बनाए गए परंतु या आज भी कायम है दलों में मौजूद गुटों की राजनीतिक भी एक समस्या है जो दलों को कमजोर ही करती है दलों का विभाजन होना भारतीय दलीय व्यवस्था की खासियत है समानता दलों का विभाजन व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए होता रहा है|
5. प्रभावी विपक्ष का भाव– ससशक्त विपक्ष भारतीय दलीय व्यवस्था की विशेषता नहीं है इसके विपरीत कमजोर विपक्ष इसकी विशेषता है बहुदलीय व्यवस्था के कारण विपक्ष हमेशा बटा रहता है उसमें एकता का अभाव पाया जाता है और कई बार तो यह लगता है कि विपक्ष जैसी चीज भारत में ही नहीं| उदारता–1952,1957,1962 में कम्युनिस्ट पार्टी लोकसभा में विपक्ष में थी जिसे मात्र 20 30 सीटें ही प्राप्त होती थी वर्तमान में 2014 के चुनाव में भी विपक्ष कई दलों में विभक्त है जिससे वह अपनी प्रभावी भूमिका नहीं निभा पाता है|
6.जाति धर्म क्षेत्र भाषा पर आधारित दल– भारतीय दलीय व्यवस्था की एक अन्य विशेषता इन में पाए जाने वाले राजनीतिक दल है जो जाति धर्म क्षेत्र भाषा की राजनीति करते हैं इन मुद्दों के आधार पर वोट बैंक की राजनीति करते हैं । Democracy introduction notes in hindi
7. व्यक्ति पूजा– भारतीय राजनीतिक दलों की एक महत्वपूर्ण विशेषता व्यक्ति केंद्रित होना है एक ही व्यक्ति या परिवार संपूर्ण राजनीतिक दल का सर्वे सर्वा होता है और सामान्यता या व्यक्ति या उसका परिवार ही दल का सुप्रीमो माना जाता है पूरा दल उस व्यक्ति की पूजा करता है उसके आदेशों का पालन करता है और दल का हर कार्यकर्ता बस उसे खुश करने का प्रयास करता है भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गांधी परिवार समाजवादी दल में मुलायम सिंह यादव बहुजन पार्टी में मायावती  डीएमके मैं करुणानिधि  इनके नामचीन उदाहरण है|




8. क्षेत्रीय दलों का महत्व– भारतीय दलीय व्यवस्था व राजनीति में क्षेत्रीय दलों का महत्वपूर्ण स्थान है 1967 के बाद क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ना प्रारंभ हुआ क्योंकि इन दोनों में अलग-अलग राज्यों में अपनी जड़ें जमा कर कांग्रेस को 9 राज्यों से बाहर कर दिया इन दलों ने अपने लिए अधिक स्वतंत्रता की मांग करना शुरू कर दी 1980 के दशक में जमकर क्षेत्रीयता की राजनीति हुई क्षेत्रीय दलों ने क्षेत्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ कर अकेले बहुमत जीता और राष्ट्रीय स्तर पर कोई भी राजनीतिक दल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं रहा |


भारतीय दलीय व्यवस्था की समस्याएं :- Democracy introduction notes in hindi
भारतीय दलीय व्यवस्था के उदय के साथ ही समस्या भी उपजी और बढ़ती गई जो निम्न है–
1. भारत के लगभग सभी दलों में आंतरिक लोकतंत्र नहीं है एक स्वस्थ लोकतांत्रिक देश के लिए स्वस्थ लोकतांत्रिक दलों का होना आवश्यक है जबकि भारत में शायद ही कोई दल हो जिसे सही मायनों में लोकतांत्रिक कहा जा सके
2. कई दल सामाजिक कुरीतियों जैसे परिवारवाद वंशवाद जाति धर्म संप्रदायिकता पितृसत्ता को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा देते हैं Democracy introduction notes in hindi
3. अपराधीकरण भारतीय दलीय व्यवस्था की एक गंभीर समस्या है जो लगातार व्यापक होती जा रही है हर दल में अपराधी ससांसद व राजनेता मिल जाते हैं सांसद में लगभग 50 फ़ीसदी सांसदों पर मुकदमे दर्ज होते हैं और कई मामलों में तो गंभीर अपराधों की धाराएं हत्या बलात्कार यौन शोषण भी उन पर लगी होती है बावजूद इसके स्वच्छ राजनीति में विश्वास करने की बात करने वाले राजनीतिक दल उन्हें टिकट देते हैं
4. भारत में सशक्त विपक्ष नहीं पाया जाता है विपक्ष में एकता का अभाव रहता है कई बार जिसका फायदा सत्ताधारी दल उठाता है | Democracy introduction notes in hindi
5. फंडिंग दलीय व्यवस्था में एक अन्य समस्या है यह आरोप आम है कि उम्मीदवार चुनाव प्रचार में तथा सीमा से ज्यादा पैसा खर्च करते हैं चुनावों में काले धन का इस्तेमाल करते हैं मीडिया को खरीद लेते हैं राजनीतिक दल अपने फंड का सही से ब्यौरा नहीं देते वह सूचना के अधिकार के अंतर्गत नहीं आना चाहते हैं जबकि विडंबना है कि यह दल स्वयं पारदर्शिता व भ्रष्टाचार के अंत के दावे करते हैं|
6. दलबदल भारतीय दलीय व्यवस्था की बड़ी समस्या है|

7. भारत में स्पष्ट विचारधारात्मक दलों का भाव है|


मतदाताओं की सहभागिता :- Democracy introduction notes in hindi
किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के सफल संचालन में मतदाताओं की सबसे प्रमुख भूमिका होती है उनकी अधिक से अधिक सहभागिता लोकतंत्र की सेहत का सबसे महत्वपूर्ण सूचक होता है भारत में भी निर्णय प्रक्रिया में मतदाताओं की सहभागिता बढ़ाने के लिए निर्वाचन आयोग ने पहल की है जो निम्न है–
1. पर्याप्त सूचना प्रदान करना– निर्वाचन आयोग चुनाव के दौरान मतदाताओं के लिए प्रभावी सुरक्षा प्रदान करता है ताकि मतदाता बिना किसी भय के स्वतंत्र रूप से मतदान करें|
2. मतदाता सूची की पूर्ण निरीक्षण– निर्वाचन आयोग नियमित अंतराल पर मतदाता सूची संशोधित करता है नए मतदाताओं के पंजीकरण और पुराने के नवीनीकरण की प्रक्रिया को आयोग ने आसान बना दिया है इससे मतदाताओं की सहभागिता बढ़ती है|
3. मतदाता पहचान पत्र जारी करना– चुनाव आयोग मतदाताओं को मतदाता पहचान पत्र जारी करता है ताकि मतदान के दौरान अन्य पहचान पर दिखाने की समस्या समाप्त हो सके साथ ही गैरकानूनी गतिविधियों पर रोक लगाई जा सके| Democracy introduction notes in hindi
4. सर्वेक्षण– चुनाव आयोग मतदाताओं की सहभागिता बढ़ाने के लिए सर्वेक्षण करता है और सहभागिता रोकने वाले कारकों का पता कर उन पर उचित कार्यवाही करता है|

5. सूचना एवं संचार माध्यमों का प्रयोग– मतदाताओं की सहभागिता को बढ़ाने हेतु निर्वाचन आयोग प्रचार और गैर प्रचार माध्यमों लोक कला समूह केबल नेटवर्क सोशल साइट, मीडिया, मैराथन, मानव श्रृंखला, प्रदर्शनी, पोस्टर, परिचय सिनेमा क्लाइंट ,नुक्कड़ नाटक आदि का भी बेहतर तरीके से प्रयोग करता है उपरोक्त के अलावा निर्वाचन आयोग एवं सरकार मतदाताओं की सहभागिता बढ़ाने हेतु शैक्षणिक संस्थानों में पाठ्यक्रम में भी लोकतंत्र एवं चुनावों को शामिल कर रहा है उपरोक्त कार्यो के अलावा मतदाताओं के संबंध में कुछ चुनौतियां भी हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था से जनता का तेजी से मोहभंग हो रहा है और चुनाव इस फैसले का उनके लिए कोई महत्व नहीं रह गया बढ़ता भ्रष्टाचार धन एवं बाहुबल का प्रयोग बढ़ती सांप्रदायिकता आदि इसके प्रमुख कारण है अगर मतदान की बात करें तो जनता ने खुद को छोटे-छोटे लाभ एवं संकीर्ण प्रवृत्ति के आधार पर वोटिंग करने के लिए नकारात्मक रूप से तंत्र के अनुकूल बना लिया है इसका परिणाम यह होता है कि वोट पाने के लिए राजनीतिक दलों की पेशकश को जनता बड़ी आसानी से स्वीकार कर लेती है राजनीतिक दलों ने चुनाव को एक बड़े आयोजन में बदल दिया है और राजनीति पूरी तरह से व्यापार और कारोबार में बदल गई है इसके अलावा मतदाताओं को प्रत्याशियों के बारे में सभी जानकारियां भी उपलब्ध नहीं हो पाती है 


 निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता :- Democracy introduction notes in hindi
संविधान में निर्वाचन आयोग को स्वतंत्र बनाने के लिए निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं–
1. मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है|
2. निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत नहीं है|
3. मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के प्रथम श्रेणी में रखा गया है|
4. निर्वाचन आयोग के गठन के लिए संविधान में प्रावधान किया गया है कि इसका गठन कार्यपालिका या विधायक के द्वारा नहीं किया गया है इसीलिए यह संवैधानिक निकाय है|
5. मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के पश्चात उनकी सेवा शर्तों में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता|

7. मुख्य निर्वाचन आयुक्त को संसद द्वारा पारित संकल्प पर ही पद से हटाया जा सकता है|


 निर्वाचन व्यवस्था — Democracy introduction notes in hindi
भारतीय संविधान के भाग 15 अनुच्छेद 324 से 329 में निर्वाचन संबंधी प्रावधानों का उल्लेख किया गया है जो निम्नलिखित है-– Democracy introduction notes in hindi
1. अनुच्छेद 324- सस्वतंत्र निर्वाचन आयोग की स्थापना करता है इसमें राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति संसद तथा राज्य के विधानमंडल के चुनाव के अधीक्षण निर्देशन तथा नियंत्रण की शक्ति निहित होगी|
2.अनुच्छेद 325 के अनुसार कोई व्यक्ति धर्म मूलवंश या लिंग के आधार पर मतदाता सूची में नामित होने के लिए अपात्र नहीं होगा| Democracy introduction notes in hindi
3. अनुच्छेद 326 के अनुसार लोकसभा और प्रत्येक राज्य के विधानसभा के लिए निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे जो व्यक्ति भारत का नागरिक है 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका है वह मत देने का अधिकार रखता है तथा प्रत्येक राज्य की विधायिका के चुनाव के लिए प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में केवल एक मतदाता सूची होगी|
4. अनुच्छेद 327 के अनुसार संसद को निम्नलिखित विषयों पर कानून बनाने की शक्ति है , निर्वाचन नामावली तैयार करना|निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन तथा अन्य निर्वाचन संबंधी मामले|
5. अनुच्छेद 329 के अनुसार निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन तथा इन क्षेत्रों के लिए आवंटित सस्थानों से संबंधित कानून न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किए जा सकते हैं|

उल्लेखनीय है कि परिसीमन आयोग द्वारा पारित आदेश अंतिम होते हैं उन्हें किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती| Democracy introduction notes in hindi


 संसद में अनुच्छेद 327 में दी गई शक्ति का प्रयोग करते हुए निर्वाचन के संबंध में निम्नलिखित कानून बनाया है–
1.जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950– वह अधिनियम मतदाता की योग्यता मतदाता सूची की तैयारियों निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन संसद तथा राज्य  विधायिकाओं में स्थानों के आवंटन आदि के बारे में प्रावधान करता है|
2. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951- यह अधिनियम निर्वाचन कराने मतदान निर्वाचन अपराध चुनावी विवाद उपचुनाव राजनीतिक दलों के पंजीकरण तथा निर्वाचन में प्रशासन तंत्र की भूमिका के बारे में प्रावधान करता है|

3.परिसीमन आयोग अधिनियम 1952– अधिनियम स्थानों की उना व्यवस्था क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन तथा आरक्षण के बारे में प्रावधान करता है|




 निर्वाचन सुधार Democracy introduction notes in hindi
1. मतदाता की आयु में कमी- 61 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1988 के द्वारा लोकसभा तथा विधानसभा के निर्वाचन के लिए मतदान की उम्र को 21 से घटाकर 18 कर दिया गया|
2. प्रस्तावकों की संख्या में वृद्धि– राज्य सभा तथा राज्य विधान परिषद के चुनाव के लिए 1988 में प्रस्तावकों की संख्या में वृद्धि की गई प्रस्तावकों की संख्या निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या का 10% अथवा 10 निर्वाचक जो कम हो कर दी गई|
3.निर्वाचन आयोग में प्रतिनियुक्ति- 1988 में  यह प्रावधान लाया गया कि निर्वाचन संबंधी कार्य को सुचारू रूप से करने के लिए कुछ अधिकारियों एवं कर्मचारियों की प्रतिनियुक्ति निर्धारित समय के लिए चुनाव आयोग में की जा सकेगी या अधिकारी व कर्मचारी निर्वाचन आयोग द्वारा नियंत्रित एवं अनुशासित होंगे|
4. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का प्रयोग– चुनाव सुधारों के क्रम में 1988 में प्रयोग के तौर पर राजस्थान मध्य प्रदेश तथा दिल्ली विधानसभा चुनाव के कुछ चुने हुए निर्वाचन क्षेत्रों में किया गया ईवीएम का पहला प्रयोग पूर्ण रूप से 1999 में गोवा विधानसभा चुनाव के दौरान किया गया|
5.मतदान का रद्द होना–  1989यह प्रावधान किया गया कि यदि मतदान केंद्रों में मतदान के दौरान किसी भी प्रकार की बाधा पहुंचाई जाती है जैसे  मतदान केंद्रों को लूटना मतदाता को धमकाना आदि तो मतदान को स्थगित या रद्द किया जा सकता है |
6.उम्मीदवारों के नाम की सूची बनाना– चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों का तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है मान्यता प्राप्त दलों के उम्मीदवार गैर मान्यता प्राप्त पंजीकरण दलों के उम्मीदवार निर्दलीय उम्मीदवार|
7.शराब की बिक्री पर रोक– चुनाव के दौरान मतगणना तिथि के 48 घंटे पहले से निर्वाचन क्षेत्र में शराब नहीं बेची जाएगी|Democracy introduction notes in hindi
8.प्रस्ताव की संख्या– चुनाव के दौरान नामांकन भरते समय निर्दलीय उम्मीदवार को10 प्रस्तावकों का समर्थन होना चाहिए किंतु मान्यता प्राप्त दल के उम्मीदवार के लिए मात्र 1 प्रस्तावक ही आवश्यक है|
9.मतदान के दिन अवकाश– मतदान के दिन सार्वजनिक अवकाश रहेगा साथ ही किसी भी उद्योग व्यापार या किसी संस्था में कार्यरत पंजीकृत मतदाता को उस दिन का वेतन भी देना पड़ेगा|
10. उम्मीदवारों पर प्रतिबंध– कोई भी उम्मीदवार दो से अधिक संसदीय अथवा विधानसभा क्षेत्र में चुनाव नहीं लड़ सकता है|
11. प्रचार सभा में कमी — नाम वापसी की अंतिम तिथि तथा मतदान की तिथि के मध्य  अंतर 20 दिन से घटाकर 14 दिन कर दिया गया है| 
12. राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति के निराचन में सुधार– राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हेतु प्रस्ताव को एवं अनुवादकों की संख्या 5 से बढ़ाकर 20 कर दी गई है इसके साथ ही जमानत राशि ढाई हजार से बढ़ाकर 15000 कर दी गई है|
13. डाक मतपत्र द्वारा मतदान– 1999 से कुछ विशेष व्यक्तियों के मतदान के लिए डाक मतपत्र का प्रावधान किया गया है|
14. उम्मीदवारों के संबंध में सुधार– 2003 से निर्वाचन आयोग ने प्रत्येक उम्मीदवार को आवेदन पत्र दाखिल करते समय कुछ जानकारियां भरना अनिवार्य कर दी जैसे अपराधिक प्रकरण के संदर्भ में संपत्ति का ब्यौरा शैक्षणिक योग्यता देनदारी आदि शपथ पत्र में झूठी सूचना दिए जाने पर उसे निर्वाचन नियमावली के विरुद्ध अपराध माना जाएगा|Democracy introduction notes in hindi
15.राज्य सभा निर्वाचन में परिवर्तन– 2003 में राज्यसभा में निवास संबंधी बाध्यता को समाप्त कर दिया गया है अब कोई भी उम्मीदवार किसी भी राज्य से राज्यसभा का चुनाव लड़ सकता है बस उसे केवल भारत के किसी भी संसदीय क्षेत्र का पंजीकृत मतदाताओं होना चाहिए इसके अलावा राज्य सभा के निर्वाचन में मतदान के स्थान पर खुले मतदान व्यवस्था को लागू किया गया है|
16. चंदा लेने की स्वतंत्रता–2003 से राजनीतिक दलों को किसी व्यक्ति या कंपनी से कोई भी राशि का चंदा स्वीकार करने की स्वतंत्रता है साथ ही आयकर में राहत प्राप्त करने के लिए 20000 से अधिक हर चंदे की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी|Democracy introduction notes in hindi
17. नोटा को लागू करना– चुनाव आयोग ने वर्ष 2013 से नोटा सिंबोल को चुनाव में सम्मिलित किया नोटा का मतलब है इनमें से कोई नहीं अर्थात यदि मतदाता को दिए गए चुनाव चिन्ह एवं उनके उम्मीदवार में से कोई भी मत के लिए उपयुक्त नहीं लग रहा है तो यह नोटा पर निशान लगा सकता है|
18. राष्ट्रीय गौरव का अनादर करने पर अयोग्य होना–राष्ट्रीय गौरव अपमान निरोधक अधिनियम 1971 के तहत यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रीय ध्वज राष्ट्रगान एवं राष्ट्रीय भारतीय संविधान के अनादर का अपराध करता है तो वह 6 वर्ष तक लोकसभा तथा विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य होगा|
19. एग्जिट पोल पर प्रतिबंध– 2009 के निर्वाचन सुधार के अनुसार लोकसभा और राज्यसभा विधानसभा के चुनाव के दौरान एग्जिट कॉल करने और उनके परिणामों को प्रकाशित करने पर रोक लगा दी गई है इस प्रावधान का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को 2 वर्ष की सजा व जुर्माना का प्रावधान है|
20. जमानत राशि में वृद्धि– लोकसभा व विधानसभा के उम्मीदवारों के लिए जमानत राशि में वृद्धि की गई है कि लोकसभा चुनाव में सामान्य जाति के उम्मीदवारों के लिए 10000 से बढ़ाकर ₹25000 तक अनुसूचित जाति एवं जनजाति के उम्मीदवार के लिए ₹5000 से बढ़ाकर ₹12000 कर दी गई है इसी प्रकार विधानसभा चुनाव में सामान्य जाति के उम्मीदवार के लिए 5000 से बढ़ाकर 10000 तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के उम्मीदवार के लिए 2500 से बढ़ाकर 5000 कर दी गई है|
21. विदेशों में रहने वाले भारतीयों को मतदान का अधिकार— 2017 में विदेशों में रहने वाले भारतीयों को मतदान का अधिकार प्रदान किया गया है|Democracy introduction notes in hindi

22. निर्वाचन खर्चों में वृद्धि– वर्तमान में लोकसभा चुनाव में बड़े राज्य के लिए निर्वाचन खर्च 7000000 रुपए और छोटे राज्य के लिए 5400000 रूपय है इसी प्रकार विधानसभा चुनाव में बड़े राज्यों के लिए निर्वाचन 2800000 रुपए तथा छोटे राज्यों के लिए 2000000 रुपए है|




 निर्वाचन आयोग की चुनौतियां Democracy introduction notes in hindi
संविधान लागू होने के पश्चात निर्वाचन आयोग ने भारतीय लोकतंत्र के संरक्षक के रूप में कार्य किया है भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में मतदाताओं की बहुत बड़ी संख्या  साथ निर्वाचन आयोग ने कहीं सफल चुनाव संपन्न कराया विगत वर्षों में न्यायपालिका के निर्णय हो तथा विधानसभा के द्वारा बनाए गए कानूनों से भी निर्वाचन आयोग को अपने स्तर पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा जो निम्नलिखित है–
1.आयोग को राजनीतिक दलों के वित्तीय खातों का लेखा परीक्षण करने से रोका गया है ज्यादातर राजनीतिक दल आयोग को अपने वित्तीय खातों का ब्यौरा नहीं सकते हैं या फिर आधी अधूरी जानकारी प्रदान करते हैं ऐसे मामलों में आयोग के पास राजनीतिक दलों पर सख्त जुर्माना लगाने का कोई कानून नहीं है|
2.चुनाव आयोग की नियुक्ति में बढ़ता राजनीतिक झुकाव निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है वस्तुतः चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में पारदर्शिता लाने हेतु कॉलेजियम व्यवस्था लाना चाहिए|
3.अपराधियों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए अधिनियमित कानूनों में स्पष्टता नहीं है परिणाम स्वरुप निर्वाचन आयोग सख्त कार्यवाही नहीं कर पाती है|
4.निर्वाचन आयोग के पास स्वतंत्र सचिवालय नहीं है|
5.विभिन्न राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव है निर्वाचन आयोग को राजनीतिक दलों के चुनाव करने की जिम्मेदारी भी देना चाहिए| Democracy introduction notes in hindi
6.संविधान में निर्वाचन आयोग के सदस्य की  योग्यता भी निर्धारित नहीं की गई है इस बात का भी उल्लेख नहीं किया गया है कि अन्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल कितना होगा|

7.निर्वाचन आयुक्तों की सेवानिवृत्ति के पश्चात संविधान द्वारा अन्य नियुक्तियों पर रोक नहीं लगाई गई है|


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