‎डॉ॰अंबेडकर के राजनीतिक विचार

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General studies paper – 4 notes 

Part – 22

Topic – अंबेडकर के राजनीतिक विचार,स्वतंत्रता व प्रजातंत्र के पक्षधर,राज्य समाजवाद, सरकार की भूमिका, पाकिस्तान का प्रश्न, अंबेडकर और भारतीय संविधान

-अंबेडकर के राजनीतिक विचार

– अंबेडकर उदारवादी राजनीतिक दर्शन से प्रेरित थे स्वतंत्रता समानता और भातृत्व के सिद्धांतों को वे अति महत्वपूर्ण मानते थे उन्होंने इस सिद्धांतों को अपने लेख और पुस्तकों में महत्वपूर्ण स्थान दिया है उन्होंने कहा था सकारात्मक दृष्टि से मेरा सामाजिक दर्शन तीन तत्वों से अंतर्निहित कहा जा सकता है स्वतंत्रता समानता भातृत्व भाव अंबेडकर क्योंकि प्रजातंत्र के कट्टर समर्थक थे इसलिए उनके राजनीतिक दर्शन के लिए आधारभूत सिद्धांत है अंबेडकर राजनीतिक दर्शन का वर्णन निम्न बिंदुओं के माध्यम से किया जा सकता है। dr Bhimrao Ramji Ambedkar

-स्वतंत्रता के पक्षधर

डॉ आंबेडकर की प्रशासनिक व्यवस्था में आस्था थी प्रजातंत्र को बनाए रखने के लिए वे स्वतंत्रता को होना अनिवार्य मानते थे स्वतंत्रता की दृष्टि से उन्होंने व्यक्ति के कुछ अधिकार प्रदान करने का समर्थन किया ताकि समाज में स्वतंत्रता का विचार वास्तविक रूप ले सके इस संदर्भ में उन्होंने जीवन के अधिकार संपत्ति के अधिकार स्वतंत्र भ्रमण के अधिकार जीविका चुनने के अधिकार विचार और अभिव्यक्ति के अधिकार को महत्वपूर्ण माना है राजनीतिक दृष्टिकोण से वे विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का महत्वपूर्ण मानते थे यही कारण था कि उन्होंने संसदात्मक व्यवस्था स्वतंत्र चुनाव तथा राजनीतिक दलों का समर्थन किया। dr Bhimrao Ramji Ambedkar

– प्रजातंत्र के समर्थक

अंबेडकर का दर्शन स्वतंत्रता समानता और व्यक्तित्व के सिद्धांत पर आधारित है यह सिद्धांत प्रजातंत्र की आधारशिला भी है इनके अभाव में प्रजातंत्र वास्तविकता में परिणित नहीं हो सकता उपरोक्त सिद्धांतों के पक्षधर होने के कारण अंबेडकर की प्रजातंत्र में पूर्ण आस्था थी अंबेडकर ने प्रजातंत्र के विभिन्न रूपों में प्रजातंत्र की संसदीय व्यवस्था को पसंद किया उन्होंने प्रजातंत्र को शांतिपूर्ण परिवर्तन का एक माध्यम माना वे प्रजातंत्र को शासन का एक प्रकार ही नहीं मानते थे बल्कि वे उसे समाज और अर्थव्यवस्था के व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखते थे उनका विचार था कि प्रजातांत्रिक सरकार शून्य में कार्य नहीं करती वह समाज में कार्यरत होगी है चुनाव दल और संसद प्रजातंत्र की औपचारिक संस्थाएं हैं अप्रजातांत्रिक वातावरण में प्रभावी नहीं हो सकती राजनीतिक प्रजातंत्र एक व्यक्ति एक मत के सिद्धांत पर आधारित है यह सिद्धांत राजनीति का द्योतक है । dr Bhimrao Ramji Ambedkar

 

-प्रजातंत्र की सफलता हेतु आवश्यक शर्तें

अंबेडकर ने प्रजातंत्र के सफल संचालन के लिए कुछ तत्वों को आवश्यक बताया जो इस प्रकार हैं अंबेडकर ने संसदीय प्रजातंत्र की सफलता हेतु राजनीतिक दलों को आवश्यक बताया राजनीतिक दलों में विरोधी दलों को महत्वपूर्ण मानते थे क्योंकि विरोधी दल के अभाव में कार्यपालिका निरंकुश हो जाएगी तटस्थ कार्यपालिका से तातपर्य स्थाई कार्यपालिका से है जिसका भविष्य राजनीतिक नहीं होता अंबेडकर प्रजातन्त्र की सफलता के लिए नैतिक तत्व को भी अनिवार्य मानते थे संविधान द्वारा प्रजातन्त्र की स्थापना पर्याप्त नहीं है क्योंकि संविधान तो नियमों का समूह मात्र है यह नियम तभी अर्थ पूर्ण बनेंगे कब संविधान के अनुरूप उस परंपराओं की स्थापना होगी व्यक्तियों और राजनीतिज्ञों को सार्वजनिक जीवन में कुछ नियमों का अनुसरण करना चाहिए उसी प्रकार समाज के कुछ नियमों का अस्तित्व भी होना चाहिए। dr Bhimrao Ramji Ambedkar

– राज्य समाजवाद का समर्थन

जैसा कहा जा चुका है कि अंबेडकर का विचार था कि प्रजातंत्र में जब तक जनता के साथ समानता का अस्तित्व नहीं होगा प्रजातन्त्र पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता स्वतंत्रता के साथ-साथ समानता के विचार का पक्ष लेने के कारण अंबेडकर का झुकाव समाजवाद की ओर हुआ उन्होंने समाजवाद की मार्क्सवादी दृष्टिकोण की इस मान्यता को स्वीकार किया कि समाज में समानता लाने के लिए समाज को पूर्ण रूप से बदलने की आवश्यकता है लेकिन प्रजातंत्र के समर्थक होने के कारण वे पूर्ण रूप से मार्क्सवादी दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं कर पाए ।

-सरकार की भूमिका

अंबेडकर का विश्वास था कि राज्य जिस संस्था सरकार के माध्यम से कार्यरत होता है उसे तटस्थ रहकर संपूर्ण समुदाय के हित में कार्य करना चाहिए अंबेडकर का कहना था कि सरकार को कल्याणकारी संस्था की भूमिका निभानी चाहिए उसे समाज के तीव्र विकास की ओर ध्यान देना चाहिए तथा इस बात को भी सुनिश्चित करना चाहिए कि विकास से होने वाले लाभ का वितरण न्याय पूर्ण ढंग से हो। dr Bhimrao Ramji Ambedkar

 

– हिंदी को राष्ट्रभाषा स्वीकार करने का समर्थन

अंबेडकर ने कहा था यदि हम लोग अपने एक सामान्य संस्कृति को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो हम सब लोगों के कर्तव्य है कि हिंदी को अपनी राष्ट्र की एक राज्य भाषा माने संवैधानिक साधनों के पक्षधर अंबेडकर हिंसा विरोधी और संवैधानिक साधनों के पक्ष में थे अपने द्वारा संचालित सार्वजनिक आंदोलनों में उन्होंने सदैव संवैधानिक साधनों का पक्ष लिया नासिक में एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने अछुतो को आदेश दिया भले ही उनमें जोश और उत्साह है हमें संयत तथा अहिंसात्मक विधि का परित्याग किया भी दिशा में नहीं करना चाहिए ।

-पाकिस्तान का प्रश्न

उन्होंने भारत-पाकिस्तान विभाजन का पक्ष लेते हुए कहा कि हिंदुओं की शांति और समृद्धि भारत विभाजन द्वारा संभव है उनका मत था कि पाकिस्तान को एक राष्ट्र के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए क्योंकि उनका अपना अलग धर्म भाषा और संस्कृति है भारत के प्राकृतिक स्त्रोतों क्योंकी पाकिस्तान की तुलना में अधिक होंगे इसलिए पाकिस्तान भारत को कमजोर नहीं करेगा । dr Bhimrao Ramji Ambedkar

-अंबेडकर और भारतीय संविधान : भारतीय संविधान के लिए अंबेडकर द्वारा प्रस्तावित धाराओं से उनके राजनीतिक विचार और अधिक स्पष्ट रूप से हमारे सामने आते हैं यह सर्वविदित है कि अंबेडकर को 1947 में प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने संविधान में प्रशासनिक प्रावधानों की विस्तार पूर्ण व्यवस्था पर बल दिया इस बात के पक्ष में उनका कहना था कि हमने परंपरावादी समाज में प्रजातन्त्र की स्थापना की है यदि प्रशासनिक प्रावधानों की विस्तारपूर्वक व्याख्या नहीं की गई तो भावी शासक संविधान का उल्लंघन किए बिना संविधान का दुरुपयोग करने में सक्षम हो जाएंगे संविधान का अस्तित्व तो रहेगा लेकिन उसका वास्तविक उद्देश्य समाप्त हो जाएगा अंबेडकर के यह विचार उनके संविधानवाद में दृढ़ विश्वास को प्रकट करते हैं ।

-विधि संबंधी विचार

कुशल विधि वक्ता और न्याय शास्त्री के रूप में अंबेडकर ने विधि की भूमिका पर विशेष बल दिया उनके अनुसार विधि समानता और स्वतंत्रता की सजग प्रहरी है विधि समाजिक शांति स्थापित करने तथा समाज के विभिन्न वर्गों के मध्य सौहार्दपूर्ण वातावरण स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है। dr Bhimrao Ramji Ambedkar

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-1 सामाजिक सशक्तीकरण, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद और धर्म-निरपेक्षता।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-4 भारत तथा विश्व के नैतिक विचारकों तथा दार्शनिकों के योगदान।


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