भारत में सिविल सेवा का इतिहास

– भारत में सिविल सेवा का इतिहास

स्वतंत्रता पूर्व युग 

– प्राचीन और मध्ययुगीन समय भारतीय सिविल सेवा प्रणाली विश्व की सबसे प्राचीन प्रशासनिक प्रणाली है इसका उत्स प्राचीन भारत के मौर्य काल में था निरंतर विस्तार करते मौर्य साम्राज्य को दक्ष प्रशासन के लिए योग्य और गुणवान सिविल सेवकों की आवश्यकता थी मौर्य प्रशासन ने अध्यक्ष और राजुको के नाम से सिविल सेवकों की भर्ती किया कौटिल्य का अर्थशास्त्र सिविल सेवकों के चयन और पदोन्नति के सिद्धांतों सिविल सेवा में नियुक्ति के लिए निष्ठा की शर्तों उनके कार्य के मूल्यांकन की पद्धतियों और उनके आचार संहिता का प्रतिपादन करता है अर्थशास्त्र उनकी नियुक्ति में सतर्कता के लिए कुछ निश्चित नियंत्रण और संतुलन का उल्लेख करता है इसने सिविल सेवा के कार्यकलापों पर नियंत्रण दृष्टि रखने की अनुशंसा की जिसमें सिविल सेवकों के कार्य प्रदर्शन के संबंध में राजा को नियमित रूप से जानकारी देना शामिल था मध्ययुगीन काल में अकबर ने सुधारों का प्रवर्तन किया और भू राजस्व प्रणाली स्थापित की जो परवर्ती काल में भारतीय करारोपण प्रणाली का एक बड़ा घटक बन गई उनको सेवा की अवधारणा जनकल्याण तथा विनियामकाय व्यवस्था की ओर उन्मुख थी। History of Civil Services in India 

– ईस्ट इंडिया कंपनी और सिविल सेवा

ईस्ट इंडिया कंपनी का गठन महामहिम रानी एलिजाबेथ के राजकीय अध्यादेश से 1600 में हुआ इसका गठन रेशम मसालों और अन्य लाभप्रद भारतीय वस्तुओं के व्यापार के लिए किया गया था कंपनी ने अपने व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए भारत के तटों के किनारे मुख्य रूप से कोलकाता मद्रास और बंबई में सीमा चौकियां और फैक्ट्रियों की स्थापना की कंपनी को अपने परिसरों की रक्षा के लिए कर्मियों की आवश्यकता थी और इसके परिणाम स्वरूप धीरे-धीरे उनकी शक्तियों के लिए सैनिकों की नियुक्ति की गई और यह फैक्ट्री शीघ्र उनकी दुर्ग बन गई फिर भी ईस्ट इंडिया कंपनी ने शासन व्यवस्था के लिए कभी किसी विशिष्ट सेवा की स्थापना नहीं की क्योंकि उनका अधिशेष वाणिज्य तक सीमित था ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी कंपनी के निवेशकों द्वारा मनोनीत किए जाते थे और उनके पश्चात उन्हें लंदन के हेलीबेरी कॉलेज में प्रशिक्षण दिया जाता था और फिर भारत भेज दिया जाता था वर्ष 1773 के विनियामक अधिनियम के द्वारा कंपनी का प्रबंधन ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में आ गया फरवरी 1786 में भारत का गवर्नर जनरल बनने के पश्चात लॉर्ड कार्नवालिस में श्रृंखलाबद्ध विधिक और प्रशासनिक सुधार लागू की भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की समग्र शासन व्यवस्था में सुधार लाने के लिए उन्होंने 1786 में कार्नवालिस संहिता को विधिक रुप दिया कार्नवालिस संहिता की स्थापना करके उन्होंने राजस्व प्रशासन और न्यायिक प्रशासन को पृथक कर दिया। History of Civil Services in India 

उन्हें भारत में सिविल सेवा का जनक कहा जाता है क्योंकि उन्होंने कंपनी के प्रशासन को सुधारा और गठित किया कंपनी के सेवको में सर्वव्यापी और अनियंत्रित भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के लिए लॉर्ड कार्नवालिस ने सिविल सेवकों के उपहार और रिश्वत लेने पर रोक लगा दी यहां तक कि उन्होंने उनका वेतन बढ़ा दिया और ऐसे सिविल सेवकों के लिए निजी व्यापार को निषिद्ध कर दिया गवर्नर जनरल वेलेजली ने सेवा में भर्ती में नए सदस्यों को प्रशिक्षण देने के लिए फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की जिसे तत्पश्चात कंपनी के निदेशकों ने अस्वीकृत कर दिया इसके परिणाम स्वरूप ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की गई जो नए सदस्यों को 2 वर्ष का प्रशिक्षण देने के लिए 1806 में इंग्लैंड के हेलिबरी कॉलेज में स्थापित किया गया । History of Civil Services in India 

लॉर्ड मेकाले और सिविल सेवा

-लॉर्ड मेकाले के अधीन हुई प्रगति 1833 का चार्टर अधिनियम में मूल देशज भारतीयों को ब्रिटिश भारत के प्रशासन का अंग बनाने की अनुमति दी चार्टर अधिनियम में भारत के पहले विधि आयोग की स्थापना की जिसके अध्यक्ष लॉर्ड मेकाले थे आयोग ने दंड संहिता अपराधिक प्रक्रिया संहिता और अन्य विधिक प्रावधानों के संहिताकरण की अनुशंसा की ब्रिटिश संसद की प्रवर समिति को लॉर्ड मेकाले की रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने के उपरांत 1854 में भारत में योग्यता आधारित आधुनिक सिविल सेवा की अवधारणा प्रवर्तित की गई इस रिपोर्ट में अनुशंसा की गई थी कि ईस्ट इंडिया कंपनी की संरक्षण आधारित व्यवस्था के स्थान पर स्थाई सिविल सेवा की स्थापना की जाए जो योग्यता आधारित प्रणाली पर आधारित हो और जिसमें प्रवेश प्रतियोगिता परीक्षाओं के माध्यम से अनुशंसा के आधार पर 1854 में लंदन में सिविल सेवा आयोग की स्थापना की गई और प्रतियोगिता परीक्षाएं 1855 से आरंभ हुई 1853 के चार्टर अधिनियम में सेवकों की नियुक्ति के लिए कंपनी के संरक्षण की व्यवस्था को आधिकारिक रूप से समाप्त कर दिया और लॉर्ड मेकाले की अनुशंसा ने सिविल सेवकों की भर्ती के लिए योग्यता आधारित परीक्षा का मार्ग प्रशस्त किया लॉर्ड मेकाले की अनुशंसा 1853 के चार्टर अधिनियम और उसके 1858 की रानी की उद्घोषणा की पृष्ठभूमि के फल स्वरुप भारतीय सिविल सेवा अधिनियम 1861 अधिनियमित किया गया जिसमें भारतीयों को ब्रिटिश नागरिकों के साथ एक खुली योग्यता आधारित भर्ती में बराबरी से प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति प्रदान की आरंभ में भारतीय सिविल सेवा के लिए परीक्षाएं केवल लंदन में आयोजित की जाती थी और आयु सीमा 18 तथा 23 वर्ष के बीच निर्धारित की गई थी पाठ्यक्रम ब्रिटिश निवासियों के पक्ष में तैयार किया गया था जिसने भारतीयों के लिए सफलता प्राप्त करना कठिन बना दिया था 1864 में श्री सत्येंद्र नाथ टैगोर जो श्री रविंद्र नाथ टैगोर के भाई थे इस परीक्षा में सफलता प्राप्त करने वाले पहले भारतीय बने । History of Civil Services in India 

-लोकसेवा पर एचीसन समिति 1886 अगले पूरे 50 वर्षों तक भारतीय अनुनय करते रहे कि परीक्षा साथ-साथ भारत में भी आयोजित की जाए किंतु उन्हें अधिक सफलता नहीं मिली क्योंकि ब्रिटिश शासन इस सेवा में अधिक भारतीयों को आने देने के लिए उत्सुक नहीं था और इसका कारण यह था कि वह इसका भारतीयकरण होने से डरते थे तथापि 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के निर्माण के परवर्ती वर्षों में भारत और लंदन में एक साथ परीक्षा करवाने की मांग बढ़ती गई और उसके साथ ही ऊपरी आयु सीमा बढ़ाने की मांग भी तीव्र होती गई इन बढ़ती मांगों के आधार पर विशेष रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदार धड़े के द्वारा जो प्रतिनिधित्व के विचार में विश्वास करता था लॉर्ड डफरिन ने भारत में सिविल सेवा की समस्याओं की जांच पड़ताल के लिए 1886 में लोक सेवा पर एचिसन समिति की नियुक्ति की समिति ने लंदन और भारत में एक साथ परीक्षा आयोजित करने की विचार को अस्वीकार कर दिया किंतु इसके स्थान पर प्रांतीय सिविल सेवा की स्थापना का प्रस्ताव रखा इसके सदस्य प्रत्येक प्रांत में या तो निचले पदों में पदोन्नति के द्वारा सीधी भर्ती के द्वारा अलग से भर्ती किए जाएं समिति ने यह भी सुझाव दिया कि प्रसंविदाबद्ध और असंविदाब्द्ध शब्दों को साम्राज्य और प्रांतीय शब्दों से बदल दिया जाए उसने खुली सिविल सेवा परीक्षा में भारतीयों के लिए न्यूनतम और अधिकतम आयु सीमा 19 वर्ष और 23 वर्ष रखने का भी सुझाव दिया एचीसन समिति की अनुशंसा स्वीकार कर ली गई और प्रसंविदाबद्ध सिविल सेवा भारत की सिविल सेवा के रूप में जानी जाने लगी प्रांतीय सेवा राज्य विशेष के नाम से जानी जाने लगी। History of Civil Services in India 

– मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार

– मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार के अंतर्गत प्रस्तावित परिवर्तन भारतीय इतिहास के परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार अधिनियम 1919 के माध्यम से लाए गए मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार अधिक प्रख्यात है जो भारत में द्विशासन अर्थात कार्यकारी सभासदों लोकप्रिय मंत्रियों के द्वारा शासन के लिए परिवर्तित किए गए थे इस ने सिविल सेवा परीक्षा भारत में भी करवाने के लंबे समय से टलती आ रही मांग भी स्वीकार कर ली इसलिए वचन अनुसार भारतीय सिविल सेवा परीक्षा लंदन में आयोजित होने के साथ-साथ 1922 से भारत में भी आयोजित की जाने लगी भारत सरकार अधिनियम 1919 में भारत के लोक सेवा आयोग की स्थापना जिसकी अनुशंसा पहले इसलिंगटन आयोग ने की थी का प्रावधान भी किया गया था जो अक्टूबर 1926 में स्थापित किया गया इसलिंगटन आयोग ने 1917 की अपनी रिपोर्ट में अनुशंसा की थी कि सरकार के 25% उच्च पद भारतीयों को मिलने चाहिए तथापि मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार ने प्रस्तावित किया कि सेवाओं में उच्च पदों पर एक तिहाई नियुक्तियां भारतीयों को मिलनी चाहिए जिसके परिणाम स्वरूप इसलिंगटन आयोग का प्रस्ताव अस्वीकृत हो गया । History of Civil Services in India 

-भारत में उच्चतर सिविल सेवाओं पर रॉयल कमीशन 1923 सिविल सेवाओं की भारतीय जड़ों को विकसित करने और खिलाने में अगला बड़ा घटनाक्रम उच्चतर सिविल सेवाओं पर रॉयल कमीशन की नियुक्ति थी जिसे ली कमीशन या ली आयोग के नाम से भी जाना जाता है इस आयोग की स्थापना ब्रिटिश सरकार ने 1923 में की थी ताकि भारत सरकार की उच्चतर भारतीय लोक सेवाओं के जातीय संकट पर विचार किया जा सके और इसमें भारतीय तथा ब्रिटिश सदस्य बराबर संख्या में लाई जा सके इसमें पहले इसलिंगटन आयोग ने 1917 की अपनी रिपोर्ट में अनुशंसा की थी कि सरकार के 25% उच्चतर पदों पर भारतीयों को मिलने चाहिए ली आयोग ने इसलिंगटन आयोग की रिपोर्ट की अनुशंसा पर जांच पड़ताल की और सेवाओं के 2 समूह में अखिल भारतीय सेवा और केंद्रीय सेवा की विद्यमान स्थिति की समीक्षा की प्रांतीय सेवाओं पर इसलिए विचार नहीं किया गया क्योंकि वह पहले से ही प्रांतीय सरकार के नियंत्रण में आती थी इसलिंगटन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ली आयोग ने 1924 में प्रस्तावित किया कि 20% उत्तर पद प्रांतीय सेवाओं से पदोन्नति के आधार पर भरे जाने चाहिए और शेष 80% भावी परीक्षार्थियों में 40% ब्रिटिश और 40% भारतीयों की सीधी भर्ती की जानी चाहिए ली आयोग ने 1924 में अपनी रिपोर्ट में अनुशंसा की कि भारत सरकार अधिनियम 1919 द्वारा अपेक्षित सांविधिक लोक सेवा आयोग थोड़ी भी देरी किए बिना स्थापित किया जाना चाहिए इसलिए 1 अक्टूबर 1926 को भारत में पहली बार लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई अध्यक्ष के अतिरिक्त इसमें 4 सदस्य थे यूनाइटेड किंग्डम की होम सिविल सर्विस के सदस्य सर रोस बार्कर आयोग के पहले अध्यक्ष थे भारत सरकार अधिनियम 1919 में लोक सेवा आयोग के कार्यकलाप निर्धारित नही किए गए थे अपितु इन्हें लोक सेवा आयोग नियम 1926 के द्वारा विनियमित किया गया । History of Civil Services in India 

-स्वतंत्रता पर्यंत घटनाक्रम साइमन कमीशन की अनुशंसा को भारत सरकार अधिनियम 1935 के रूप में विधिक रूप दिया गया था जिसने विधाई कार्यपालिका और विधिक प्रावधानों के साथ-साथ भारत में राजा की सेवाएं भाग 10 का भी प्रावधान किया इस भाग में रक्षा सेवाओं सिविल सेवाओं न्यायिक अधिकारियों के लिए विशेष प्रावधान और संघ तथा प्रांतों के लिए अपने-अपने लोक सेवा आयोग की व्यवस्था की गई लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति संघ आयोग के संदर्भ में गवर्नर जनरल द्वारा अपने विवेक अधिकार से और प्रांतीय आयोग के संदर्भ में प्रांत के गवर्नर द्वारा अपने विवेक का अधिकार से की जाएगी संघ और प्रांतीय आयोग की सेवा में नियुक्ति के लिए परीक्षा आयोजित करने का दायित्व संघ और प्रांतीय सेवा आयोग का था इस प्रकार संघ और भारतीय आयोगों का प्रावधान तब तक बना रहा जब तक कि भारत सरकार अधिनियम 1935 को संविधान सभा में विस्तृत चर्चा और विचार-विमर्श के उपरांत वर्ष 1950 में भारत के संविधान द्वारा स्थापित नहीं कर दिया गया । History of Civil Services in India 

-निष्कर्ष

विस्तृत चर्चा और विचार-विमर्श के उपरांत संविधान सभा ने निर्णय लिया कि भारतीय सिविल सेवा की सहायता से भारत के प्रशासन को बनाए रखा जाए यद्यपि पंडित जवाहरलाल नेहरू इससे निराश थे वे प्रशासनिक सेवा में भर्ती के विद्यमान माध्यम के विरुद्ध नहीं थे अपितु वे चाहते थे कि सिविल सेवाओं के नए सदस्य अपने आरंभिक चयन और विशेष प्रशिक्षण के साथ साथ राज्य नीति के सिद्धांत के रूप में प्रगतिशील सामाजिकरण के विचार से भली-भांति परिचित हो तथापि सरदार वल्लभ भाई पटेल का विचार हावी रहा जिन्होंने इन सिविल सेवकों के साथ मिलकर कार्य किया और उनका अत्यधिक सम्मान करते थे इस प्रकार संविधान सभा ने भारतीय संविधान के भाग  के रूप में संघ और राज्यों के अंतर्गत सेवाओं से संबंधित प्रावधानों को शामिल किया भारतीय संविधान में इन प्रावधानों को भाग xiv संघ और राज्यों के अधीन सेवाओं के अंतर्गत देखा जा सकता है यह संघ आयोग के स्थान पर संघ लोक सेवा आयोग का प्रावधान करता है डॉ बी आर अंबेडकर ने प्रारूप संविधान प्रस्तुत करते हुए सिविल सेवा के महत्व पर कहा था भारतीय संघ में दोहरी राज्य नीति के माध्यम से एक दोहरी सेवा होगी किंतु एक अपवाद के साथ यह माना जाता है कि प्रत्येक देश में प्रशासनिक व्यवस्था में कुछ निश्चित पद होते हैं जिन्हें प्रशासन के मानदंडों को बनाए रखने के दृष्टिकोण से रणनीतिक कहा जाता है प्रशासन के विशाल और जटिल तंत्र में ऐसे पदों को पहचानना आसान नहीं भी हो सकता है परंतु इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि प्रशासन के मानदंड उन सिविल सेवकों की योग्यता क्षमता पर निर्भर करते हैं जिन्हें इन रणनीतिक पदों पर नियुक्ति किया जाता है हमारे लिए सौभाग्य की बात यह है कि हमने अतीत से उत्तराधिकार में एसे प्रशासन की व्यवस्था प्राप्त किया जो पूरे देश में साझा है और हम जानते हैं कि ये रणनीतिक पद कौन से हैं संविधान इस बात का प्रावधान करता है कि राज्यों को स्वयं अपने सिविल सेवाओं के गठन के अपने अधिकार से वंचित किए बिना एक अखिल भारतीय सेवा होगी जिसमें साझा योग्यताओं के साथ और एक समान वेतनमान के साथ अखिल भारतीय आधार पर भर्तियां की जाएगी और जिसके सदस्यों से ही केवल पूरे संघ में इन पदों पर नियुक्तियां की जा सकेगी  नोट अपने अगले लेख में हम उदारीकरण के युग तक  महत्वपूर्ण आयोग की रिपोर्ट के साथ सिविल सेवा में किए गए विभिन्न सुधार के बारे में विस्तृत छानबीन करेंगे। History of Civil Services in India 


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