मौलाना अबुल कलाम आजाद राजनीतिक विचारक

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General studies paper – 4 notes 

Part – 21

Topic – मौलाना अबुल कलाम आजाद राजनीतिक विचारक,नैशनल एजुकेशन डे,स्वतंत्रता सेनानी और देश के पहले शिक्षा मंत्री

-मौलाना अबुल कलाम आजाद

  • मौलाना अबुल कलाम आजाद स्वतंत्रता सेनानी और देश के पहले शिक्षा मंत्री थे
  • उन्होंने देश में यूजीसी, आईआईएम, और आईआईटी जैसे संस्थान की नींव रखी
  • उनका जन्म मक्का में हुआ लेकिन परिवार कलकत्ता शिफ्ट हो गया था
  • उन्होंने धर्म के आधार पर पाकिस्तान के गठन का खुलकर विरोध किया

11 नवंबर को देश में नैशनल एजुकेशन डे के तौर पर मनाया जाता है। यह देश की उस बड़ी हस्ती को सम्मान है जिसने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और हिंदू-मुस्लिम एकता की नींव रखी। उन्होंने देश को आईआईटी, आईआईएम और यूजीसी जैसे संस्थान दिए।

पूरा नाम मौलाना अबुलकलाम मुहीउद्दीन अहमद
अन्य नाम मौलाना साहब
जन्म 11 नवम्बर, 1888
जन्म भूमि मक्का, सउदी अरब
मृत्यु 22 फ़रवरी, 1958
मृत्यु स्थान दिल्ली
अभिभावक मौलाना खैरूद्दीन और आलिया
पति/पत्नी ज़ुलैख़ा
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतन्त्रता सेनानी, क्रान्तिकारी, पत्रकार, समाजसुधारक, शिक्षा विशेषज्ञ
पार्टी कांग्रेस
पद भूतपूर्व शिक्षा मंत्री
भाषा उर्दू, फ़ारसी और अरबी
पुरस्कार-उपाधि भारत रत्न
विशेष योगदान वैज्ञानिक शिक्षा को प्रोत्साहन, कई विश्वविद्यालयों की स्थापना, उच्च शिक्षा और खोज को प्रोत्साहन, स्वाधीनता संग्राम
रचनाएँ इंडिया विन्स फ्रीडम अर्थात् भारत की आज़ादी की जीत,

क़ुरान शरीफ़ का अरबी से उर्दू में अनुवाद, तर्जुमन-ए-क़ुरान, ग़ुबारे-ए-खातिर,

हिज्र-ओ-वसल, खतबात-ल-आज़ाद, हमारी आज़ादी और तजकरा

– मौलाना आजाद मुस्लिम राजनीतिक विचारकों में पूर्व और पाश्चात्य की समन्वयकारी तथा सामूहिक राष्ट्रवाद के समर्थक थे उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा न केवल पूर्वी देशों में हुई बल्कि उनके वंशज अरब और भारत के प्रसिद्ध व्यक्ति थे। उदाहरण उनके पूर्वज मौलाना जमालुद्दीन ने सम्राट अकबर की दीन ए इलाही संबंधी घोषणा पर हस्ताक्षर करने से मना किया था उनके दादा मौलाना मुनव्वरउद्दीन मुसलमानों में गैर इस्लामी तौर तरीकों के विरोधी थे तथा उनके पिता मौलाना खैरूद्दीन वहाबी आंदोलन के कट्टर आलोचक थे। इसलिए मौलाना आजाद पर परंपरावादीता की गहरी छाप पड़ी थी फिर भी वे नवीन विचारों के विरोधी ही नहीं थे, बल्कि उनमें मौलिक चिंतन करने में आधुनिकता को स्वीकार करने की क्षमता थी वह सर सैयद के इन विचारों के कायल थी कि आधुनिक शिक्षित व्यक्ति बिना पाश्चात्य विज्ञान दर्शन और साहित्य का अध्ययन करें पूरी तौर से शिक्षित नहीं कहा जा सकता। maulana abul kalam azad

आजाद ने सर सैयद के अलीगढ़ आंदोलन को संकीर्ण मानकर ऐसे सार्वभौमिक चिंतन की कल्पना की जिसे समस्त इस्लामी संसार में फैलाया जा सके वह सैयद अहमद खां के इस विचार के समर्थक थे कि कुरान और विज्ञान एक दूसरे की विरोधी नहीं है तथा उन्होंने अहमद के तकलीद नकद करना और एतिहाद के विचारों का समर्थन किया ।इसके अतिरिक्त उन्हें साम्राज्यवाद विरोधी जमालुद्दीन अफ़गानी ने भी प्रभावित किया मौलाना मोहम्मद अली के पान इस्लामिस्म के प्रभाव से भी अछूते नहीं रहे। maulana abul kalam azad

मौलाना आजाद ने अपनी इस्लामी राजनीतिक विचारों की सरंचना पत्रिका al-hilal के माध्यम से की उन्होंने ईश्वरीय राज्य की स्थापना तथा शांति सत्य तथा एक आदर्श राज्य की स्थापना हेतु कुरान के आधार पर एक काल्पनिक आदर्श प्राप्ति के विचार प्रस्तुत किए उन्होंने भारतीय राजनीति का धार्मिक दृष्टिकोण से अवलोकन किया तथा उन्होंने धार्मिक आस्थावान तथा गैर धार्मिक आस्थावान के माध्यम से यह कल्पना की की सभी धर्म निष्ठा को एक होकर भारतीय राजनीति के दोष को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। maulana abul kalam azad

उनकी यह दृढ मान्यता थी कि धर्म के मार्ग में तर्क और ज्ञान बाधक ना होकर सहायक ही होता है आजाद की धार्मिक धारणा के तीन आधार थे और वे ईश्वर की सर्व शक्तिमान सार्वभौमिक स्वरूप के प्रतिपादक थे उनका कथन था कि मनुष्य की कितनी भी विभिन्न धार्मिक मान्यताएं क्यों ना हो फिर भी वे ईश्वर के एक अधिकारी स्वरूप को विभाजित नहीं कर सकती उनकी मान्यता थी कि ईश्वर रूप वृक्ष की जड़ के समान एक ही है जबकि विभिन्न मजहब पत्तियों की भांति अलग-अलग हो सकते हैं इस अंतर का कारण उन्होंने ज्ञान और सामाजिक दृष्टिकोण के आधार पर स्वीकार किया तथा सभी धर्मों से आत्मा की शुद्धि के आधार एक ही स्वरूप में ईश्वर के सार्वभौमिक स्वरूप की कल्पना की गई तथा ईश्वर के हिंदू और मुस्लिम स्वरूप से मौलिक रूप में कोई अंतर नहीं है।

आजाद के धार्मिक चिंतन का दूसरा आधार उचित कर्म पर बल देने की भावना में निहित है और इस भावना के अंतर्गत सभी धर्मों का उद्देश्य एक आदर्श समाज की स्थापना में निहित है उनका तीसरा आधार मृत्यु के उपरांत की कल्पना से संबंधित है मृत्यु को उन्होंने जीवन का अंत स्वीकार नहीं किया है तथा वे मानते थे कि पूर्व जन्म का अगले जन्म में व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है इसलिए इस आधार पर उन्होंने अच्छे कर्मों की करने पर बल दिया आजाद ने उपयुक्त आधार पर मोमिन और काफ़िर शब्दों का पुनः अवलोकन किया और यह माना कि जो धर्मनिष्ठ नहीं है उनको सुधारने हेतु ईश्वर का द्वार सदैव खुला रहता है तथा वे मानते थे कि प्रत्येक व्यक्ति चाहे जो भी धर्म क्यों ना माने यदि उसके कर्म सद्भावना और सत्कर्म है तो वह धर्म निष्ठता की परिभाषा में आता है मौलाना आजाद का धार्मिक चिंतन तर्क और उदारवादी था यह मानते थे कि तर्क ही मानवता का सर्वोत्तम गुण है तथा इसी के द्वारा मनुष्य में सर्वोत्तम गुणों का विकास होता है। maulana abul kalam azad

इस प्रकार से उनकी तर्क में आस्था होते हुए भी वे धार्मिक प्रेरणा के पक्षपात में थे और इस प्रकार से उनकी मान्यता थी कि इस प्रकार के सार्वभौमिक धर्म का मानव विकास में कभी भी महत्व कम नहीं होगा मौलाना अबुल कलाम आजाद के राष्ट्रवादी विचारों के दो पहलू थे एक तो उनके अंग्रेजों के प्रति विचार तथा दूसरे अपने देशवासियों की प्रति 1905 से बंग भंग से पूर्व में भी सर सैयद की भांति अंग्रेज प्रभाव और न्याय के समर्थक थे किंतु धीरे-धीरे उन्होंने अंग्रेजों की साम्राज्यवादी की नीति का विरोध करना प्रारंभ किया था अपने प्रारंभिक काल में उन्होंने मुसलमानों में कुरान के आधार पर अपने जीवन लक्ष्य को निर्धारित कर संगठित होने का आग्रह किया किंतु इस्लामी इकबाल के मुस्लिम राष्ट्रवादी के वातावरण में जब आजाद गांधी जी के संपर्क में आए तो उन्होंने देश की राजनीति का यथार्थवादीता के आधार पर अध्ययन किया और उन्होंने प्रजातंत्र धर्मनिरपेक्षता को राष्ट्रीयता का आधार स्वीकार करके सामूहिक राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रतिपादन किया और उन्होंने यह स्वीकार किया कि राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता देश का तत्कालीन परिस्थितियों में अंतिम लक्ष्य है। maulana abul kalam azad

अंग्रेजी यातना और दमन से मुक्ति देश की प्रथम आवश्यकता है और इस हेतु देश के सभी धर्मावलंबियों को एक मत होकर राष्ट्रीय आंदोलन में हिस्सा लेना चाहिए सामूहिक राष्ट्रवादी विचारधारा उदारवादी होगी और यह सर्व विश्व की कल्पना के रूप होते हुए सभी धर्मावलंबियों के साथ रहने की भावना के अनुरूप होगी गाँधी जी के अनुसार आजाद की राष्ट्रवाद में आस्था उतना ही गहरी थी जितना कि उनका धर्म में विश्वास था वे मानते थे कि प्रत्येक मुसलमान को भारत का राष्ट्रवादी होते हुए अपने देश की एकता को मजबूत करना चाहिए वे सांप्रदायिक सद्भावना के प्रतीक थे इस दिशा में हिंदू मुसलमान को राजनीतिक आधार पर सोचने की भावना पर बल देती थे। आजाद ने देश की आजादी हेतु भिक्षावृत्ति प्रस्ताव प्रस्तुत करने अथवा डेपुटेशन संगठित आदि करने की अपेक्षा प्रत्यक्ष रूप से सरकार पर दबाव डालने के विचारों का समर्थन करके गांधीजी के अत्यंत निकट आ गए उन्होंने धार्मिक निष्ठा और स्वतंत्रता की प्राप्ति हेतु असहयोग और अहिंसा के आंदोलनों को स्वतंत्रता प्राप्ति का साधन स्वीकार किया। maulana abul kalam azad

अहिंसा के संबंध में उनका विचार था कि यह राष्ट्रीय स्वतंत्रता की प्राप्ति हेतु एक साधन मात्र है और यदि आवश्यकता हो तो शक्ति के प्रयोग में भी हिचकना नहीं चाहिए किंतु शक्ति का प्रयोग अंतिम असहाय स्थिति में ही करना चाहिए ।उन्हें गांधीजी के निष्ठावान सहयोगी के रूप में अहिंसा और सत्याग्रह आंदोलन में अपना सहयोग दिया आजाद एक महान उदारवादी धर्मनिरपेक्ष समन्वयकारी विचारक थे अल हिलाल पत्रिका के माध्यम से उन्होंने मुस्लिम समाज से प्रजातंत्र पारस्परिक सहयोग सद्भावना के विचारों को प्राप्त करने की दिशा में जनमत तैयार किया। ईश्वरीय आस्था की एकता के संदर्भ में उन्होंने सभी धर्मावलंबियों के सार्वभौमिक दृष्टिकोण के आधार पर प्रजातंत्र की कल्पना की प्रजातंत्रीय व्यवस्था का आधार शक्ति ना होकर सहिष्णुता होता है इसके अतिरिक्त स्वतंत्रता मानवीय विकास हेतु आवश्यक तत्व है इसलिए आजाद के धार्मिक राष्ट्रवाद और प्रजातंत्र के विचारों की पृष्ठभूमि में विश्वास निष्ठा सद्भावना और सहिष्णुता की भावना का आधार था प्रजातंत्र की साधन और साध्य के दृष्टिकोण से भी आजाद ने मीमांसा की और इस बात पर बल दिया कि उचित शांतिपूर्ण तरीके से ही स्वतंत्रता प्राप्ति कर प्रजातंत्र व्यवस्था की स्थापना करनी चाहिए उनका कहना था कि देश सभी नागरिकों का है अतः सभी नागरिकों को उदारवादी दृष्टिकोण के आधार पर प्रजातंत्र व्यवस्था को स्वीकार करना चाहिए। maulana abul kalam azad

आजाद संसदात्मक और संघात्मक व्यवस्था को स्वतंत्रता उपरांत भारत में स्थापित करने के पक्षपाती थे तथा उनकी मान्यता थी कि प्रजातंत्र व्यवस्था ही देश की सांप्रदायिक समस्या को हल करने का एकमात्र उपाय है आजाद एक मुस्लिम राजनीतिक चिंतक थे उन्होंने मुस्लिम समस्या का यथार्थवादीता और वास्तविकता के आधार पर अध्ययन करके वस्तुस्थिति को समक्ष रख व्यवहारिकता के आधार पर चिंतन किया उनकी यह दृढ़ मान्यता थी कि प्रजातंत्र की स्थापना के बाद सांस्कृतिक और अल्प वर्ग की समस्याओं का स्वयं ही समाधान हो जाएगा उन्होंने समाजवाद की नीति के दृष्टिकोण से अपनाने के माध्यम से समय का राष्ट्रवादी कल्पना को और अधिक व्यावहारिक तथा धर्मनिरपेक्ष देश में भारत के शिक्षा मंत्री होने के नाते विभिन्न विद्यालय में नैतिक शिक्षा का समर्थन ही नहीं किया बल्कि इस प्रकार की नैतिक शिक्षा को प्रजातंत्र आधार का एक आवश्यक तत्व स्वीकार किया और अंत में उन्होंने सर्वमान्य वृहद अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण अपनाने पर बल दिया आजाद का चिंतन सत्य तर्क और बुद्धि पर आधारित था यद्यपि वे एक परंपरावादी चिंतक थे किंतु उनके विचार पूर्णतया अत्याधुनिक थे। maulana abul kalam azad


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