भारत में लगातार बढ़ता एनपीए समस्या और समाधान
-NPA भूमिका
एनपीए नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट बैंक का वह कर्ज जो डूब गया हो और जिसे फिर से वापस आने की उम्मीद नहीं के बराबर हो उसे एनपीए non-performing एसेट कहा जाता है ।अगर बैंक को कर्ज की ईएमआई 3 महीने पर नहीं आती तो उस अकाउंट को एनपीए घोषित कर दिया जाता है मुमकिन है कि उसमें से कुछ रकम वापस आ भी जाए ।जून 2018 में खत्म हुई तिमाही में देश के बैंकों का करीब 8 लाख 30 हजार करोड डूबा हुआ था दूसरे शब्दों में बैंकों का 10 फ़ीसदी से ज्यादा कर्ज एनपीए है अमेरिका और चीन में यह अनुपात 2% से कम है ।
कोई लोन खाता निकट भविष्य में एनपीए बना सकता है इसकी पहचान के लिए आरबीआई ने नए नियम बनाए हैं इसके तहत बैंकों को उनके लोन खातों को स्पेशल मेंशन अकाउंट के तौर पर चिन्हित करना होता है अगर किसी लोन खाते में मूलधन या ब्याज की किश्त का भुगतान निर्धारित तिथि से 30 दिन तक नहीं होता तो उसे एसएमए-0 कहा जाता है ।भुगतान 31 से 60 दिन तक नहीं हो तो उसे एसएमए1 कहा जाता है अगर मूलधन या ब्याज का भुगतान 61 से 90 दिन तक ना हो तो उसे एसएमए,2 कहा जाता है इसके बाद रिजर्व बैंक ने 500 ऐसे खातों की पहचान की है जिनके ऊपर भारी कर्ज है वे इसे चुका नहीं रहे हैं इसके बाद दिवालिया कानून के तहत रिजर्व बैंक ने गद्दारों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया है ।12 बड़े कर्जदारों के खिलाफ कार्यवाही करने का बैंको को निर्देश दिया है। 12 कम्पनियों के पास विभिन्न बैंको का 2 लाख करोड़ फंसा हुआ है जो कुल एनपीए का लगभग एक चौथाई यानी 25% है। बैंकों के कुल एनपीए का लगातार लगभग आधा यानी 50% देश के 20 औद्योगिक घरानों के हिस्से आते हैं एनपीए का एक बड़ा भाग इस्पात ऊर्जा कपड़ा और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में है एनपीए में मामले में भारत दुनिया में पांचवी रैंकिंग पर पर पहुंच चुका है ब्रिक्स देशों में तो वह शीर्ष पर है केयर रेटिंग की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत 9.9 फ़ीसदी एनपीए अनुपात के साथ पांचवे नंबर पर है ग्रीस इस मामले में सबसे ऊपर है ।एनपीए सूची में शीर्ष पर रहे देशों का पिग्स यानी पिआईआजिएस पुर्तगाल इटली आयरलैंड ग्रीस और स्पेन के नाम से जाना जाता है हालांकि इस में स्पेन सातवें स्थान पर है जो रैंकिंग में भारत और रूस के बाद आता है ।
NPA के प्रकार
– अक्टूबर 2009 से रिजर्व बैंक ने एनपीए के संबंध में पूरक व्यवस्था के रूप में ग्रेडेड प्रोविजनिंग प्रणाली की व्यवस्था शुरू की इसके अनुसार एनपीए को तीन भागों में बांटा जा सकता है
- 1. सब्सटेंडर्ड संपत्तियां इसके अंतर्गत उन संपत्तियों को रखा जाता है जो कम से कम पिछले 18 माह तक एनपीए रही हो इसके अंतर्गत गिरवी रखी गई संपत्तियों का मूल्य उधार दी गई राशि से कम हो जाता है ।
- 2.सन्दिग्ध संपत्तियां इस वर्ग में उन संपत्तियों को रखा जाता है जो 18 महीने से अधिक एनपीए रही है इस ऋण में सभी कमजोरियां होती है जो कि सब स्टैंडर्ड समितियों में होती है
- 3.हानि वाली सम्पतिया- ऐसी सम्पतिया जिनकी पहचान बैंक की आंतरिक और बाहरी पर्यवेक्षक ने हानि वाली संपत्ति के रूप में गीना हो ।
भारत में गैर निस्पंदकारी सम्पति के बनने के कारण
- – परियोजना के पूरा होने में विलंब के कारण ब्याज तथा मूलधन की किस्त भुगतान में देरी
- -ब्याज दरों में वृद्धि के कारण किस्त भुगतान में कठिनाई।
- -सार्वजनिक बैंकों द्वारा विदेश में पहले से चली आ रही विधि के स्थान पर सिस्टम आधारित पद्धति अपनाने के कारण एनपीए की वृद्धि हुई है ।
- -बाजार में मौजूद अनिश्चितता के कारण लोगों ने ऋण लिए हैं उनके द्वारा ऋण ना चुका पाना।
- – जानबूझकर ऋण ना चुकाने वालों की संख्या में बढ़ोतरी होना और ऐसे बकायादारो के खिलाफ राजनीतिक दखल के कारण पर्याप्त कार्यवाही ना हो पाना।
- – जिस विशेष उद्देश्य के लिए उधार लिया जाता है उस काम के लिए उस धन का उपयोग नहीं किया जाना साल 2008 में भारतीय कंपनियों को भी मंदी का शिकार होना पड़ा था मंदी के दौर से बाहर आने के बाद बैंकों ने बड़ी कंपनियों को कर्ज देने में उनके वित्तीय स्थिति और क्रेडिट रेटिंग की अनदेखी की इससे भारतीय अर्थव्यवस्था एनपीए के जाल में फसने लगी।
सरकारी बैंकों द्वारा चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में गैर निष्पादित परिसंपत्तियों यानी एनपीए में मद में ज्यादा प्रावधान करने से इनके शुद्ध मुनाफे में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई 2017 से 18 में सार्वजनिक क्षेत्र के 21 बैंकों में से मात्र 2 बैंक विजया बैंक तथा इंडियन बैंक को छोड़कर सभी बैंकों ने बड़े पैमाने पर हानि दर्ज की है।
– बढ़ती गैर निष्पादन कि आस्तियों की समस्या का समाधान
– रघुराम राजन के प्रयास भले ही निवेशकों के लिए यह अच्छी खबर नहीं है लेकिन बैंकों की सेहत को करने दिशा में उठाया गया यह महत्वपूर्ण कदम है इस के सूत्रधार रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन थे राजन ने बैंकों को साफ तौर पर कहा कि वे मार्च 2017 तक अपनी बैलेंस शीट की हालत दुरुस्त कर ले राजन के मुताबिक बैंकों को क्रेडिट ग्रोथ की जगह एनपीए कम करने की तरफ ध्यान देना चाहिए। राजन का मानना है कि बैंक बैलेंस शीट को साफ सुथरा करने के बाद ही क्रेडिट ग्रोथ बढ़ाने में सक्षम हो सकते हैं एनपीए पर काबू पाने के बाद बैंक अपनी आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेने में समर्थ हो सकते हैं ।
रिजर्व बैंक को मिली नई शक्तियों से सुधरेगी बैंकों की सेहत –
हाल ही केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश पारित कर बैंक अधिनियम 1949 में संशोधन किए हैं इन संशोधनों के अनुसार रिजर्व बैंक को नई शक्तियां देकर और अधिक सशक्त बनाया गया है अब रिजर्व बैंक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के डूबे हुए कार्यों को वसूलने के लिए संबंधित बैंक को कड़ी कार्यवाही के लिए निर्देशित कर सकेगा निश्चित रूप से एनपीए यानी फंसे हुए कर्ज से छुटकारा दिलाने के लिए अध्यादेश के तहत रिजर्व बैंक को दिए गए व्यापक अधिकारों से एनपीए के प्रभावी समाधान की राह आगे बढ़ेगी।
नए संशोधन ने आरबीआई को जो शक्तियां प्रदान की है उनके उपयोग से विजय माल्या नीरव मोदी जैसे बकायेदारों के खिलाफ शीघ्र कार्यवाही हो सकेगी। अधिनियम के दिशा निर्देशों के अनुसार बैंक द्वारा बकायेदारों की निजी परिसंपत्तियों की सार्वजनिक नीलामी की जा सकेगी यह अध्यादेश आरबीआई को सीधे बैंक व बाजार के मध्य कर्ज के समायोजन की मध्यस्थता का अधिकार देता है एनपीए के समाधान हेतु आरबीआई एक निगरानी समिति बनाएगा जिसमें आरबीआई के प्रतिनिधि भी होंगे यह समिति बैंकों को सलाह देगी आरबीआई विस्तृत फ्रेमवर्क आएगा। जिसमें एनपीए को तय समय में निपटाने का प्रावधान किया जाएगा बैंक और एनपीए कंपनी को निर्धारित समय में निर्णय के लिए कहा जाएगा ऐसा नहीं होने पर रिजर्व बैंक की समिति फैसला लेगी कार्यवाही दिवालिया कानून के तहत होगी। कमेटी सबसे अच्छा रास्ता अपनाने के लिए रेटिंग एजेंसियों की भी राय लेगी ।बैंक एनपीए के मामले इसी समिति को भेजेंगे यह समिति एक तरह से जांच एजेंसियों से बैंकरों को बचाएगी यह समिति तय करेगी कि किसी खास मामले में बैंक कितना कर्ज माफ कर सकते हैं निगरानी समिति प्रत्येक समझौते के बाद उसे लागू कर आएगी और जब समिति किसी कर्ज का मसला हल कर देगी तो बैंकों की डूबत ऋण संबंधी ऐसी पुरानी चिंता खत्म हो जाएगी कि भविष्य में बैंक की फैसले की जांच हो सकती है।
इंद्रधनुष्य योजना –
देश के सरकारी बैंकों की हालत सुधारने के लिए सरकार ने वर्ष 2015 में 7 सूत्रीय इंद्रधनुष योजना बनाई थी इंद्रधनुष योजना का उद्देश्य चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना एनपीए में कमी करना और बैंकों का प्रदर्शन सुधारना है इंद्रधनुष योजना के अंतर्गत पुनः पंजीकरण के उपाय किए गए और गैर निष्पादित परिसंपत्तियों को कम करने में मदद की जा रही है इंद्रधनुष के सात सूत्र इस प्रकार है
1.नियुक्तियां
2.बैंक बोर्ड ब्यूरो
3.पूंजीकरण
3.सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर दबाव हटाना
4.सशक्तिकरण
5.जवाबदेही की योजना बनाना
6. प्रशासनिक सुधार।
पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री पीसीआर-
हाल ही में पीसीआर बनाने को लेकर आरबीआई ने एक कार्य दल का गठन किया था दरअसल पीसीआर क्रेडिट से संबंधित जानकारियों का एक विस्तृत डेटाबेस होगा जो सभी हित धारकों के लिए उपलब्ध रहेगा पीसीआर में ऋण की मांग करने वाले व्यक्ति से संबंधित सभी जानकारियां जैसे उसने पहले कितना ऋण लिया है उसने समय अनुसार ऋण चुका दिया है या नहीं आदि एकत्र कर रखी जाएगी।
आमतौर पर पीसीआर का प्रबंधन केंद्रीय बैंक या बैंकिंग पर्यवेक्षक की हाथ में होता है और कानूनी तौर पर कर्जदाता या कर्जदार के लिए ऋण विवरणों की सूचना पीसीआर को देना अनिवार्य बना दिया जाता है ।पीसीआर के संभावित लाभ है
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- -लोन डिफॉल्ट घटाना
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- -ऋण लेने और देने की प्रक्रिया को बेहतर बनाना
- -वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहित करना
भारत में पारदर्शी और व्यापक पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री बनाना समय की मांग भी है क्योंकि आज बैंकों का एनपीए उल्लेखनीय रूप से बढ़ा हुआ है।
NPA रोकने के लिए सरकार द्वारा उठाए कदम
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- 1.SARFAESI अधिनियम 2002 इस अधिनियम का उद्देश्य जानबूझकर ऋण का भुगतान न करने वालों पर नियंत्रण लगाना है यह अधिनियम बैंकों को यह अधिकार प्रदान करता है कि भुगतान प्राप्त ना होने की स्थिति में गिरवी रखी प्रतिभूति को बैंक जब्त कर ले या संपत्ति को एसेट कंस्ट्रक्शन कंपनी को बेच दे या इकाई का प्रबंधन अपने हाथों में ले ले ।
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- 2.ऐसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी ऐसी कंपनी है जो कि एनपीए को बैंकों से खरीद की कुल राशि से कम दाम पर लेती है और फिर इस एनपीए को उस व्यक्ति से वसूल करने की डील करती है जिनके नाम पर उधार होता है ।
- 3.डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल इस ट्रिब्यूनल की स्थापना 1993 में की गई थी यह ट्रिब्यूनल लोगों से ऋण वसूलने का काम करती थी लेकिन यह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकी थी ।
उपाय जो सरकार ने किये:-
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के एनपीए के मामले को सुलझाने के लिए सरकार निरंतर अपने प्रयास जारी रखे हुए हैं दो तरह के कर्जदार होते हैं पहले वे जो घरेलू और वैश्विक मंदी या अन्य कारणों से बकाया का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं और दूसरे वे जो बैंकों को बिना सोचे समझे दिए गए कर्ज का जानबूझकर भुगतान नहीं कर रहे हैं ।सरकार ने इन दोनों श्रेणियों के बकायेदारों से निपटने के लिए कई उपाय किए हैं
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- -आर्थिक मंदी के कारण जिन कर्ज़ों का भुगतान नहीं हो पा रहा है उनके लिए सरकार ने कई योजनाएं बनाई है
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- -स्टील वस्त्र ऊर्जा तथा अवसरंचना क्षेत्र के अलावा अन्य दबाव वाले क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने के कई उपाय किए गए हैं।
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- – केंद्र सरकार सरकारी बैंकों को 3 वर्षों में 70 हजार करोड़ की पूंजी उपलब्ध करा रही है तथा आवश्यकता पड़ने पर और पूंजी दी जाएगी
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- -सार्वजनिक बैंकों के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशकों सहित प्रबंधन की नियुक्ति में पारदर्शिता और बिना किसी तरह के हस्तक्षेप के व्यवसायिक निर्णय लेने के लिए सरकार ने बैंक प्रबंधन पेशेवरों को पूरी स्वायत्तता देने की कई उपाय किए हैं ।
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- -वसूली कार्यवाही को और अधिक कारगर तथा तीव्र बनाने के लिए तथा ऋण वसूली न्यायाधिकरण अधिनियम में संशोधन किया गया है बकाया वसूली के लिए बैंकों द्वारा जमानत देने वालों के खिलाफ सरकार ने सुझाव दिया है कि विभिन्न कानूनों के तहत कार्यवाही करें पारदर्शिता लाने के लिए बैंकों से उन कर्जदार ओं की सूची जारी करने के लिए कहा गया है जिन के कर्ज माफ किए गए हैं।
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- – जानबूझकर कर्ज वापसी ना करने वाले कर्जदार के खिलाफ कठोर कार्यवाही की जानी चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं ना हो ।
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- -किसानों की मदद के लिए उनके कर्ज़ों को पुनर गठित किया गया है और कुछ किसानों के कर्ज माफ भी किए गए हैं
- -सरकार ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि कुछ उद्योगपतियों द्वारा जानबूझकर कर्ज न चुकाने का खामियाजा अन्य उद्योग पतियों को ना भुगतना पड़े।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा NPA को लेकर किए गए प्रयास
-पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों के वसूल नहीं हो रहे कर्जकी राशि बढ़ने पर गहरी चिंता जताते हुए भारतीय रिजर्व बैंक को उन कंपनियों की सूची उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है जिन पर 500 करोड़ से अधिक का बैंक कर्ज बकाया है और वह उसे नहीं चुका रही है ।शीर्ष अदालत ने आरबीआई से 6 सप्ताह के भीतर ऐसी कंपनियों की सूची भी पेश करने को कहा है जिनके कर्ज को कंपनी ऋण पुनर्गठन योजना के तहत पुनःगठित किया गया है पीठ ने जानना चाहा है कि बैंक और वित्तीय संस्थान किस प्रकार से उचित दिशा निर्देशों का पालन किए बिना इतनी बड़ी राशि कर्ज में दी और क्या इस राशि को वसूलने के लिए उपयुक्त प्रणाली बनी हुई है पीठ ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि जिन लोगों ने कर्ज लेकर उसे नहीं लौटाया उनसे वसूली के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया सुनवाई के दौरान पीठ ने पूछा आपके पास उन लोगों की सूची होगी जो कि बड़ा साम्राज्य चला रहे हैं फिर भी कर्ज नहीं चुका रहे हैं पीठ ने रिजर्व बैंक को आदेश देते समय फंसे कर्ज यानी गैर निष्पादित परिसंपत्तियों और वसूली में बैंकों की अक्षमता में प्रकाशित रिपोर्ट पर भी गौर किया ।
एनपीए की समस्या से निपटने के लिए परियोजना सशक्त –
देश में सरकारी बैंकों के एनपीए की समस्या को दूर करने के लिए सशक्त नामक एक समग्र नीति लागू करने की घोषणा की गई है यह समग्र नीति सुनील मेहता की अध्यक्षता में गठित समिति की रिपोर्ट के आधार पर तैयार की गई है शक्ति योजना के अंतर्गत 5 सूत्री फार्मूले को लागू किया जाएगा जिसकी सिफारिश मेहता समिति द्वारा की गई है उल्लेखनीय है कि लगभग 200 बैंक खाते हैं जिनमें फंसा कर 500 करोड़ से अधिक है
-प्रमुख बिंदु 500 करोड़ तक की राशि के लोन का एसएमइ रिजर्वेशन अप्रोच के अंतर्गत लिया जाएगा और 90 दिनों के भीतर इसका निपटारा किया जाएगा समिति 90 दिनों के अंदर इन सभी खातों के बारे में फैसला करेगी कि उन्हें और अधिक ऋण देने की आवश्यकता है या बंद करने की ।
-50 करोड़ से 500 करोड़ तक के एनपीए खातों में फंसे कर्ज के निपटारे का फैसला अग्रणी बैंक की अगुवाई में किया जाएगा 500 करोड़ से अधिक की राशि वाले अन्य एनपीए खातों को निपटान यदि एएमसी के माध्यम से भी सम्भव ना हो तो ऐसे खातों का निपटान दिवालिया कानून के अंतर्गत किया जाएगा बैंक विशेषज्ञों की एक समिति बनाकर प्रस्ताव तैयार करेगा और अगर उसे 180 दिनों के भीतर नहीं निपटा पाता तो उसका समाधान दिवालियापन कानून के अंतर्गत किया जाएगा ।इस पर योजना को लागू करने के लिए बैंकों की एक समिति का गठन किया जाएगा जो इस बात की निगरानी करेगी नियमों का अनुपालन पारदर्शी तरीके से किया जा सकता है कि नहीं ।
-500 करोड़ से अधिक फंसे कर्ज के लिए एसेट मैनेजमेंट कंपनी ए एम सी की स्थापना की जाएगी एएमसी बैंकों द्वारा एनपीए घोषित किए हुए ऋण को खरीदेगा जिससे इस ऋण का बोझ भारतीय बैंकों पर नहीं पड़ेगा ।यह कंपनी पूरी तरह से स्वतंत्र होगी इसमें सरकार कोई दखल नहीं होगा एएमसी सरकारी और प्राइवेट क्षेत्रों के निवेशकों से धन जुटाएगी ।
सुनील मेहता समिति सुनील मेहता समिति का गठन जून 2018 में किया गया था जिसकी अध्यक्षता सुनील मेहता को सौंपी गई इस समिति से बेड की व्यवहारिकता परखने और संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी के गठन के लिए सिफारिश किए जाने हेतु कहा गया था इस समिति ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन रजनीश कुमार बैंक ऑफ बड़ौदा के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी जय कुमार तथा एसबीआई के प्रबंध निदेशक श्री वेंकटेश्वर शामिल थे।
निष्कर्ष-
बैंक जब ऋण देते हैं तो उसकी वसूली का तंत्र भी उनके पास होता है कह सकते हैं कि वसूली बिना कोई ऋण नहीं दिया जा सकता लेकिन लेकिन आज बैंक एन पी ए में वृद्धि की समस्या का सामना कर रहे हैं इसे प्राथमिकता के आधार पर दूर करने की जरूरत है बैंकों के एनपीए से निपटना सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण कार्य है जोरदार तेजी के दौर 2003-2008 में औद्योगिक क्षेत्रों ने अपनी क्षमता काफी बढ़ा ली थी लेकिन विश्व वित्तीय संकट और इसके बाद छाई मंदी का सामना करना पड़ा यही कारण था कि ऐसे उद्योग बैंकों से लिया कर्ज चुकाने में असमर्थ रहे सरकारी बैंकों का बढ़ता एनपीए दीर्घ अवधि के ऋण को प्रभावित करता है और इसका प्रभाव कम होते रोजगार के रूप में दिखाई दे रहा है सरकारी बैंकों को ऐसी फंसी हुई परिसंपत्ति से निजात पाने में मदद की आवश्यकता है। रिजर्व बैंक का मानना है कि बैलेंस शीट को संतुलित करने के बाद ही उधार देने की रफ्तार बढ़ाने में सक्षम हो सकते हैं क्योंकि एनपीए पर काबू पाने के बाद बैंक अपनी स्थिति को ध्यान में रखते हुए निर्णय कर सकते हैं एनपीए का स्तर आठ लाख करोड़ से अधिक होने के कारण इतनी बड़ी राशि आज किसी काम की नहीं है यदि किस राशि की वसूली हो जाती है तो सरकारी बैंकों की लाभ में इजाफा लोगों को रोजगार ब्याज दरों में कटौती का लाभ लोगों तक पहुंचाना कृषि का निर्माण अवसरंचना की बेहतरी अर्थव्यवस्था को मजबूती विकास को गति देना संभव हो सकेगा। नियामक ढाँचे में कुछ कमियां है एक ही व्यक्ति अलग अलग बैंको से कई बार ऋण लेता है ।बैंक एक दूसरे के संपर्क में नहीं रहते इन सभी बातों पर गौर किया बिना रिकेपिटलाइजेशन से ही एन पी ए समस्या का समाधान नहीं होने वाला है ।
समय समय पर पुनःपूंजीकरण के साथ सरकारी बैंकों के कामकाज और पारदर्शी बनाने के प्रयास सरकारी बैंकों के अतिरिक्त कैग के निर्देशानुसार और संरक्षण में होनी चाहिए सरकार और आरबीआई की सहभागिता से समता अंश योगदान के जरिए एक संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी का गठन हो जो बैंकिंग क्षेत्र से एनपीए को खत्म कर सके किसी कंपनी को ऋण स्वीकृत करने से पहले उसकी वित्तीय स्थिति और परियोजना की व्यावहारिकता की स्पष्ट तथा निष्पक्ष जांच हो ।बगैर पर्याप्त सुरक्षा के कोई ऋण स्वीकृत ना हो बैंकों को पीपीपी मॉडल पर विकसित करने के प्रयास किए जाने चाहिए सरकार को यह पुनर्विचार करना चाहिए कि क्या सरकारी बैंकों में 70% स्वामित्व जरूरी है जब 51% के स्वामित्व के साथ पीपीपी मॉडल पर बैंकों को विकसित कर उनकी क्षमताओं को बढ़ाया जा सकता है।
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