ग्रामीण समाज की भागीदारी हेतु सशक्त बनाने की आवश्यकता
24 अप्रैल 1993 यानी आज से 29 साल पहले 73वां संविधान संशोधन लागू हुआ था। जिसके तहत संविधान के अनुच्छेद 243 में एक नया भाग और ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ी गई, उसी साल 1 जून से 74वां संविधान संशोधन भी लागू हो गया इनके साथ भारत की संघीय व्यवस्था में बुनियादी बदलाव आया मूल संविधान के तहत स्थापित दो स्तरों केंद्र और राज्यवाली इस व्यवस्था में पंचायती एवं शहरी निकाय संस्थाओं का एक नया रिश्ता जुड़ गया। यह भारत के संवैधानिक भावना के अनुरूप विकास की एक नई शुरुआत थी, भारत में पंचायतों की कल्पना नहीं थी भारत की ग्रामीण व्यवस्था में इनका वजूद सदियों से रहा है आजादी के बाद इसे अपनाने की कोशिश पहले भी हुई थी 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पंचायती राज व्यवस्था का उद्घाटन किया था।panchayati raj notes and rural development
इसे तब महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को साकार करने की दिशा में एक कदम बताया गया था लेकिन 73वां संविधान संशोधन पारित होने से पहले यह व्यवस्था कभी ठोस रूप नहीं ले सकी और अनुसूचित जातियों के लिए संसद या विधानसभा उनकी तरह उनकी आबादी के अनुपात में महिलाओं के लिए 33% अनिवार्य आरक्षण के साहसी प्रावधान इस संशोधन में शामिल किए गए। इनका क्या असर हुआ यह आज किसी गांव में जाकर देखा जा सकता है, यह प्रभाव कई जगहों पर वास्तविक और कहीं-कहीं प्रतिकात्मक है लेकिन सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव इसी तरह आगे बढ़ते हैं। पंचायती राज व्यवस्था ने ऐसे कई सकारात्मक परिवर्तनों को आगे बढ़ाया है लेकिन दूसरी सच्चाई यह है कि नयी व्यवस्था से स्थानीय विकास की योजना बनाने और उस पर अमल की जो उम्मीद बांध गई थी उस दिशा में कोई ज्यादा प्रगति नहीं हुई।
संवैधानिक प्रयास panchayati raj notes and rural development
ब्रिटिश शासन के समय से पंचायतें स्थानीय शासन के रूप में कार्य करती रही है परंतु यह कार्य सरकारी नियंत्रण में होता था। ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतों और शहरों में नगर पालिकाओं द्वारा स्थानीय स्वशासन का कार्य किया जाता था, स्वतंत्र भारत में इस पर विशेष रुप से ध्यान दिया गया और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 ने इसकी पुष्टि इस प्रकार से की है कि राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए कदम उठाएगा और उन्हें ऐसी शक्तियों और अधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हो। इस प्रयास में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के लोकतांत्रिक स्वरूप पर ध्यान नहीं दिया गया इन कमियों को राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में उजागर किया गया और पुनः इन के संवैधानिक समाधान के लिए प्रयास किया गया।
भारतीय संसद द्वारा पंचायतों तथा नगरपालिकाओं के लिए ऐतिहासिक कदम उठाते हुए भारतीय संविधान में 73वां तथा 74वां संशोधन 1992 किया गया संविधान का 73वां संशोधन अधिनियम 25 अप्रैल 1993 से तथा 74वां संशोधन अधिनियम 1 जून 1993 से लागू हो गया है 73 वें तथा 74 वें संविधान संशोधन में पंचायती राज तथा नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया है।
पंचायती राज का अधूरा सपना panchayati raj notes and rural development
भारत में पंचायती राज व्यवस्था लागू हुए 29 साल पूरे हो गए हैं भारत में पंचायतों का इतिहास पुराना है लेकिन समय के अनुसार उनको स्वरूप बदला पंचायतों को आजाद भारत के संविधान का हिस्सा बनाया जाए या नहीं इस पर संविधान सभा में तीखी बहस हुई थी, आजादी के पहले भी इस बारे में बहस चली महात्मा गांधी इसके पक्ष में थे लेकिन डॉक्टर बी आर अंबेडकर पंचायतों के पक्ष में नहीं थे उनका कहना था कि इससे गांव में दलितों और अन्य कमजोर वर्गों की समस्या बढ़ेगी यह बात संविधान सभा में भी चली अंततः पंचायती व्यवस्था को संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत रखा गया, लेकिन आजादी के तुरंत बाद पंचायतों को तवज्जो नहीं दी गई बाद में विकास कार्यों में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के मकसद से बलवंत राय मेहता समिति का संगठन हुआ।
समिति ने सुझाव दिया कि देश में तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था, ग्राम स्तर ब्लॉक स्तर एवं जिला स्तर शुरू की जाए तब राजस्थान के नागौर जिले में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पंचायती राज व्यवस्था की बुनियाद रखी। 1986 में एल एम सिंघवी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई उस ने सुझाव दिया कि पंचायतों को संविधान की नौवीं अनुसूची में रखा जाए और इनमें समाज के कमजोर तबकों की भागीदारी के साथ-साथ अधिकार एवं शक्तियां भी दी जाए। अंततः काफी विचार विमर्श के बाद 24 अप्रैल 1993 को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद 73वां संविधान संशोधन अधिनियम लागू हुआ लेकिन क्या बीते वर्षों में पंचायतें वैसे बन पाई है जैसा कि संविधान संशोधन की मंशा थी? panchayati raj notes and rural development
कुछ जगह पंचायतों में अच्छे कार्य भी हुए हैं लेकिन यह अपवाद ही है केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय ने 2015 -16 में विकेंद्रीकृत रिपोर्ट जारी की थी इस रिपोर्ट के अनुसार देश में कोई भी ऐसा राज्य नहीं है जिसकी पंचायतों को सशक्त करने के लिए 100 अंक दिए जाएं विकेंद्रीकृत रिपोर्ट बताती है कि बड़ी संख्या में ग्राम पंचायतों के पास अपने कार्यालय भवन नहीं है इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारें पंचायतों को सशक्त करने में कितनी रुचि रखती है, पंचायतों के पास पर्याप्त कर्मचारियों का भी अभाव है जाहिर है पंचायती राज व्यवस्था लागू करने का सपना आज भी अधूरा है ।
पंचायतों की संरचना panchayati raj notes and rural development
राज्य विधानमंडल को विधि द्वारा पंचायतों की संरचना के लिए उपबंध करने की शक्ति प्रदान की गई है परंतु किसी भी स्तर पर पंचायत के प्रादेशिक क्षेत्र की जनसंख्या और ऐसी पंचायत में निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की संख्या के बीच अनुपात समस्त राज्य में यथासंभव एक ही होगा। पंचायतों के सभी स्थान पंचायत राज्य क्षेत्र के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गए व्यक्तियों से भरे जायेंगे। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या और उसको आवंटित स्थानों की संख्या के बीच अनुपात समस्त पंचायत क्षेत्र के यथासाध्य एक ही हो प्रत्येक पंचायत का अध्यक्ष राज्य द्वारा पारित विधि के अनुसार निर्वाचित होगा इस विधि में यह बताया जाएगा कि ग्राम पंचायत और अंतर्वर्ती पंचायत के अध्यक्षों का जिला पंचायत में प्रतिनिधित्व किस प्रकार का होगा इस विधि में संघ और राज्य के विधान मंडलों के सदस्यों को सम्मिलित होने के बारे में उपबंध होगा किंतु या ग्रामीण स्तर से ऊपर के लिए ही होगा।
अनुच्छेद 243 घ के अंतर्गत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। आरक्षण उनकी जनसंख्या के अनुपात में होगा उदाहरण के लिए यदि अनुसूचित जातियों की जनसंख्या 30% और अनुसूचित जनजातियों की 21 प्रतिशत है तो उनके लिए क्रमशः 30% और 21% स्थान आरक्षित होंगे इस प्रकार आरक्षित स्थानों में से 1/3 स्थान अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे जाने वाले पुलिस थानों में से 1/3 स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे राज्य विधि द्वारा ग्राम और अन्य स्थलों पर पंचायत के अध्यक्ष के पदों के लिए आरक्षण कर सकेगा। अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए किए गए आरक्षण तब तक प्रवृत्त रहेंगे जब तक अनुच्छेद 334 में विनिर्दिष्ट अवधि समाप्त नहीं हो जाती है राज्य विधि द्वारा किसी भी स्तर की पंचायत में नागरिकों के पिछड़े वर्गों के पक्ष में स्थानों का आरक्षण कर सकेगा।panchayati raj notes and rural development
पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष होगा किसी पंचायत के गठन के लिए निर्वाचन 5 वर्ष के अवधि के पूर्व और विघटन की तिथि से 6 माह की अवधि के अवकाश से पूर्व करा लिया जाएगा।
इसमें कोई संदेह नहीं कि पंचायती राज में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया है लेकिन सशक्तिकरण की मात्रा क्षेत्र एवं परिस्थितियों के अनुसार भिन्न रही है इन पंचायती राज संस्थाओं में महिला प्रतिनिधि स्वयं मामलों को देखती हैं, निर्णय प्रक्रिया में पूर्ण सक्रियता से भाग लेती हैं और समुदाय के विकास कार्यों को बाहरी एजेंसियों से सक्रियता से करवा पाती हैं तो कहा जा सकता है कि महिला प्रतिनिधियों का पूर्ण सशक्तिकरण हुआ है, दूसरी और अगर महिला प्रतिनिधि अपने घर से स्वतंत्र रूप से बाहर नहीं आती घुंघट नहीं हटा पाती और अपने पति या संबंधी के कहने पर ही दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करती हैं तो कहा जा सकता है कि उन महिला प्रतिनिधियों का सशक्तिकरण नहीं हुआ है। भारत में पंचायती राज संस्थाओं में अभी भी यह दोनों स्थितियां देखने को मिलती है इस प्रकार सशक्तिकरण का परिणाम विभिन्न स्थानों एवं परिस्थितियों में भिन्न रहा है वर्तमान में यह प्रवृत्ति देखने को मिल रही है कि पंचायती राज की महिला प्रतिनिधि अकेले सार्वजनिक क्षेत्रों में एवं अपने कार्यालयों में जाने लगी है सार्वजनिक चर्चाओं में हिस्सा लेने लगी है और यह सभी कदम उनके सशक्तिकरण को बढ़ावा दे रहे हैं।
निकट भविष्य में पंचायती राज में महिलाओं की सहभागिता से ग्रामीण क्षेत्रों में महिला साक्षरता एवं शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा इसी प्रकार महिला शैक्षिक सशक्तिकरण होने से अगली पीढ़ी की महिला प्रतिनिधि बेहतर शिक्षित रहेगी और पंचायत के मामलों को सही से संभाल पाएगी अतः यह कहा जा सकता है कि धीरे धीरे ही सही पर महिला सशक्तिकरण हो रहा है सर्व प्रथम वर्ष 2005 में बिहार सरकार ने राज्य की पंचायत संस्था में महिलाओं को 50% आरक्षण प्रदान किया तत्पश्चात उत्तराखंड कर्नाटक एवं राजस्थान में स्थानीय निकायों में महिलाओं को 50% आरक्षण प्रदान करने की घोषणा की।panchayati raj notes and rural development
भारत में स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपराओं को स्थापित करने के लिए पंचायत व्यवस्था ठोस आधार प्रदान करती है इसके माध्यम से शासन सत्ता जनता के हाथों में चली जाती है, इस व्यवस्था द्वारा देश की ग्रामीण जनता में लोकतांत्रिक संगठनों के प्रति रुचि उत्पन्न होती है।
पंचायतों के कार्यकर्ता एवं पदाधिकारी स्थानीय समाज एवं राजनीतिक व्यवस्था के मध्य की कड़ी है इन स्थानीय पदाधिकारियों के बिना कार्य किए हुए राष्ट्र निर्माण के क्रियाकलापों का चलना दुश्वार हो जाता है।
पंचायती राज संस्थाएं विधायकों एवं मंत्रियों को राजनीतिक का प्राथमिक अनुभव एवं प्रशिक्षण प्रदान कर देश का भावी नेतृत्व तैयार करती है इससे राजनीतिज्ञ ग्रामीण भारत की समस्याओं से अवगत होते हैं, इस प्रकार ग्रामों में उचित नेतृत्व का निर्माण करने एवं विकास कार्यों में जनता की अभिरुचि बढ़ाने में पंचायतों का प्रभावी योगदान रहता है।
इन समस्याओं के माध्यम से जनता शासन के अत्यंत निकट पहुंच जाती है इसके फलस्वरुप जनता एवं प्रशासन के मध्य परस्पर सहयोग में वृद्धि होती है जो कि भारतीय शासन एवं समाज के उत्थान हेतु परम आवश्यक है।
पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से केंद्रीय एवं राज्य सरकारों के मध्य स्थानीय समस्याओं का विकेंद्रीकरण किया जा सकता है प्रजातांत्रिक विकेंद्रीकरण की इस प्रक्रिया में शासकीय सत्ता गिनी-चुनी संस्थाओं में अधिकत्तर गांव की पंचायत के कार्यकर्ताओं के हाथों में पहुंच जाती है।
t पंचायती लोकतंत्र की प्रयोगशाला है यह नागरिकों को अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रयोग की शिक्षा देती है साथ ही उनमें नागरिक गुणों का विकास करने में सहायता प्रदान करती है।
पंचायती राज व्यवस्था को अधिक प्रभावी एवं व्यवहारिक बनाने हेतु सुझाव
पंचायती राज व्यवस्था को और अधिक प्रभावी एवं व्यवहारिक बनाने तथा प्रोत्साहित करने हेतु यह आवश्यक है कि ग्राम सभा को कानूनी समस्या प्रदान की जाए तथा उसकी कार्यवाही का संचालन जन भावनाओं के अनुसार किया जाए ग्रामीण जीवन को प्रभावित करने वाले समस्त महत्वपूर्ण मुद्दों पर ग्राम सभा में विचार विमर्श होना चाहिए ग्राम सभा द्वारा विचार किए जाने योग्य विषयों के अंतर्गत पंचायत का बजट पंचायत के कार्य का विवरण योजनाओं की प्रगति एवं अनुदानों का उपयोग स्कूल एवं सरकार सहकारी समितियों की व्यवस्था लेखा परीक्षण की रिपोर्ट आदि सम्मिलित किए जाने चाहिए।
पंचायती राज के संस्थाओं को कर लगाने के कुछ व्यापक अधिकार दिए जाने चाहिए पंचायती राज संस्थाओं के पास अपने स्वयं के साधन विकसित किए जाने चाहिए ताकि वह अपने वित्तीय साधनों में वृद्धि करके अधिक स्वतंत्र पूर्वक अपने विवेकानुसार कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें।
राज्य सरकार द्वारा इन संस्थाओं को प्रदान किए जाने वाले अनुदानों में वृद्धि की जानी चाहिए राज्य सरकार को पंचायती राज संस्थाओं को ब्याज रहित भारी ऋण देखकर स्वयं के लिए लाभदायक व्यवसाय चलाने हेतु अनुप्रेरित किया जाना चाहिए कर वसूल करने वाली मशीनरी को और अधिक प्रभावशाली बनाया जाना चाहिए।
पंचायती राज संस्थाओं के निर्वाचन नियत समय पर संपन्न कराए जाने चाहिए।
पंचायती राज संस्थाओं को और अधिक कार्यपालिका अधिकार प्रदान किए जाने चाहिए।
नियम एवं कार्यवाहियों सुगम बनाई जानी चाहिए नियम इस प्रकार के होने चाहिए जिन्हें साधारण व्यक्ति सरलता पूर्वक समझ सके।
पंचायती राज संस्थाओं की कार्य प्रणाली में राजनीतिक दलों का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए तथा इन संस्थाओं के चुनाव सर्वसम्मति के आधार पर होने चाहिए।
पंचायती राज संस्थाओं को अकारण ही समय विधि से पूर्व भंग करने की राज्य सरकार की प्रवृति से बचाना चाहिए।
पुलिस एवं राजस्व सेवाओं का सहयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
साधारण जनता की समस्याओं के निवारणार्थ पंचायतों को अधिकार एवं साधन प्रदान किए जाने चाहिए पंचायतों के अधिकार क्षेत्र में लोगों की अधिकाधिक समस्याएं लाई जानी चाहिए ताकि लोग अपनी कठिनाइयों को दूर कर सके तथा समस्याओं का शीघ्र समाधान प्राप्त कर सके।
प्रशासन के प्रत्येक स्तर पर मितव्यता बरतनी चाहिए।
जिला परिषद के मुख्य कार्यपालक अधिकारी को कर्मचारियों में अनुशासन स्थापित करने तथा उन से काम लेने हेतु प्रभावपूर्ण शक्तियों प्रदान की जानी चाहिए। कर्मचारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट उसके ठीक ऊपर के उस अधिकारी द्वारा लिखी जानी चाहिए जिसके अधीन में कार्य कर रहे हैं इस रिपोर्ट को मुख्य कार्यपालक अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
जिला स्तर के अधिकारियों को समूह भाव अर्थात टीम भावना के साथ कार्य करना चाहिए उनका प्रमुख दायित्व जिला परिषद पंचायत से जुड़ी सरकारी नीतियों एवं निर्देशों को के अनुसार तकनीकी दृष्टि से सुव्यवस्थित योजनाएं बनाने तथा उनके क्रियान्वयन में सहायता प्रदान करना है।
जिला परिषद को कार्य एवं परियोजनाएं राज्य सरकार द्वारा जिला परिषद को सौंप दिए जाने चाहिए पंचायत समितियों सेवर परियोजनाएं वापस ले लेनी चाहिए जो जिला परिषद स्तर पर अधिक कुशलता पूर्वक क्रियान्वित की जा सकती है।
पंचायती राज की सफलता केवल ग्रामीण स्तर पर स्थानीय स्वशासन की सक्रियता के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है अपितु या देश में लोकतंत्र के विकास के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण प्रशिक्षण स्थल तथा राजनीतिक समाजीकरण के लिए भी उचित साधन के रूप में लगभग अनिवार्य है। panchayati raj notes and rural development
You must log in to post a comment.