अल्लाउद्दीन के आर्थिक और प्रशासनिक सुधार Notes

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इस से पहले हमने आपको अलाउद्दीन की दक्षिणी भारत की विजयें के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आप को अल्लाउद्दीन के आर्थिक और प्रशासनिक सुधार के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

अल्लाउद्दीन के आर्थिक और प्रशासनिक सुधारReforms of alauddin khilji notes

शासन का केन्द्रीयकरण – सुल्तान निरंकुशता में विश्वास करता था। उसने अपने विरोधियों का निर्ममतापूर्वक दमन करके सारी सत्ता अपने हाथ में केन्द्रित कर ली थी। यद्यपि अलाउद्दीन के केन्द्रीय शासन में मन्त्री भी थे, लेकिन उनकी स्थिति सचिवों तथा क्लर्कों की थीं। मन्त्रियों को सुल्तान की आज्ञाओं का पालन करना पड़ता था। वे स्वतंत्रतापूर्वक कार्य नहीं कर सकते थे। प्रान्तों के सूबेदार तथा गवर्नरों पर सुल्तान का कठोर नियन्त्रण था, उनको भी सम्राट के आदेशानुसार ही कार्य करना पड़ता था। अमीर तथा दरबारी सम्राट से भयभीत रहते थे। उसने अमीरों का दमन करके स्वामिभक्त साधारण लोगों को उच्च पद देकर सम्मानित किया। वह अपनी इच्छानुसार ही कार्य करता था। इस प्रकार उसका शासन पूर्ण निरंकुश था।

न्याय-व्यवस्था में सुधार – अलाउद्दीन ने अपने साम्राज्य में शान्ति और व्यवस्था की स्थापना करने के लिए न्याय व्यवस्था की ओर ध्यान दिया। उसकी न्याय-व्यवस्था धर्मग्रन्थों पर आधारित नहीं थी। उसने इसे लौकिक स्वरूप प्रदान किया। उसने परिस्थितियो के अनुसार जिन नियमों को उचित समझा उन्हें ही न्याय का आधार बनाया। सुल्तान ने न्याय के लिए चरित्रवान, नीति-निपुण तथा योग्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की। न्यायाधीशों की सहायता के लिए पुलिस तथा गुप्तचरों की भी नियुक्ति कर दी। Reforms of alauddin khilji notes

सैनिक व्यवस्था में सुधार –

(i) स्थायी सेना की व्यवस्था – अलाउद्दीन दिल्ली का पहला सुल्तान था जिसने स्थायी सेना की व्यवस्था की जो कि राजधानी में हर समय तैयार रहती थी। उसकी सेना में चार लाख 75 हजार सैनिक थे। इसके पूर्ववर्ती सुल्तान स्थायी सेना नहीं रखते थे। जब भी आवश्यकता पड़ती थी तो जागीरदारों की सेनाओं को एकत्रित किया जाता था लेकिन इस व्यवस्था में अनावश्यक देरी होने के कारण बड़ी हानि उठानी पड़ती थी।

(ii) सैनिकों की भर्ती में सुधार – सैनिकों की भर्ती के लिए जाने एक सेना मंत्री की नियुक्ति कर दी। इसके साथ ही वह स्वयं भी सैनिकों की भर्ती किया करता था। सैनिक योग्यता के आधार पर भर्ती किये जाते थे, न कि वंश तथा जाति के आधार पर। सैनिक की हुलिया भी लिखी जाती थी जिससे उनके स्थान पर कोई दूसरा सैनिक न आ जाए। इससे युद्ध में प्रतिनिधि भेजने की प्रथा का अन्त हो गया। Reforms of alauddin khilji notes

(iii) सैनिकों को नकद वेतन की व्यवस्था – अलाउद्दीन से पहले सैनिकों को जागीर देने की प्रथा थी जिससे सैनिकों का अपनी जागीर के प्रबन्ध में पर्याप्त समय बर्बाद होता था और वे सैनिक कार्यों की ओर से उदासीन हो जाते थे। इसलिए अलाउद्दीन ने इस प्रथा का अन्त कर दिया। और सैनिकों को राजकोष से सीधा वेतन दिया जाने लगा। एक सैनिक का वेतन 234 टंका प्रतिवर्ष था और एक अतिरिक्त घोड़ा रखने वाले को 78 टंका अधिक मिलते थे। सैनिकों को घोड़े, हथियार तथ अन्य सामग्री राज्य की ओर से दी जाती थी। Reforms of alauddin khilji notes

(iv) घोड़ों को दागने की प्रथा का प्रारम्भ – बहुधा सैनिक लोग अच्छे घोड़ों के स्थान पर घटिया घोड़े रख लिया करते थे जोकि युद्ध क्षेत्र में भाग खड़े होते थे। इस दोष को दूर करने के लिए उसने घोड़ो को दागने की प्रथा चलायी। उपर्युक्त सुधारों से सेना का संगठन अच्छा हो गया। सेना के बल पर ही वह अपनी निरंकुशता कायम रखने मे सफल रहा।

आर्थिक व्यवस्था में सुधार –

(i) व्यक्तिगत सम्पत्ति तथा जागीरों का अपहरण – अलाउद्दीन ने समझ लिया था कि जब लोगों के पास अधिक धन होता है तो उनमें विद्रोह की भावना पनपती है। इसलिए उसने इसको सीमित करने का निश्चय किया। उसने मुसलमान माफीदारों की भूमि तथा राज्य द्वारा दी गयी सम्पत्ति, इनाम, पेन्शन तथा दान में मिली हुई भूमि जब्त कर ली। किन्तु फिर भी कुछ लोग इस प्रकार की भूमियों का उपयोग करते रहे क्योंकि उसके शासनकाल में ऐसे लोगों का उल्लेख आता है। उसने जागीर प्रथा का अन्त कर दिया थ।

(ii) हिन्द पदाधिकारियों के विशेषाधिकारों की समाप्ति – पुरानी राजस्व व्यवस्था के अनुसार हिन्दू मुकद्दम, खुत तथा चौधरी भूमि-कर वसूल किया करते थे, इसलिए उन्हें कुछ विशेषाधिकार प्राप्त थे लेकिन अलाउद्दीन ने इन अधिकारियो को विशेषाधिकार से वंचित कर दिया किन्तु उन्हें वेतन बराबर मिलता रहा। साथ ही अन्य व्यक्तियों की भाँति उनकी भमि, मकान तथा चरागाहों पर कर लगा दिया। बरनी इन नियमों के परिणामों का सारांश इस प्रकार देता है- “चौधरी, खत और मुकद्दम इस योग्य न रह गये थे कि घोड़े पर चढ़ सकते, हथियार बाँध सकते, अच्छे वस्त्र पहन सकते अथवा पान का शौक कर सकते।” गरीबी के कारण उनकी स्त्रियों को पड़ोसी मुसलमानों के घरों में नौकरानियों की भाँति काम करना पड़ता था।

(iii) कर की वृद्धि तथा वसूली में कठोरता – सुल्तान ने करों में अत्यधिक वृद्धि कर दी। हिन्दुओं से भूमि कर के रूप में उपज का 50 प्रतिशत तथा मुसलमानों से एक-चौथाई लिया जाता था। हिन्दुओं को जजिया कर देना पड़ता था तथा अपनी सभी अचल सम्पत्ति पर कर देना पड़ता था। उसने कर वसूल करने के लिए कठोर नियम बनाये। उसने सभी प्रकार के कर वसूल करने का कार्य सेना को सौंप दिया। सैनिक अफसर शक्ति तथा निर्दयता के साथ कर वसूल करते थे। इससे राज्य की आय में बहुत वृद्धि हो गयी। Reforms of alauddin khilji notes

(iv) भूमि की नाप – अलाउद्दीन की आर्थिक व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण कार्य भूमि की नाप करवाना था। इसका उद्देश्य यह पता लगाना था कि कितनी भूमि पर खेती होती है और वास्तविक उपज क्या है? हिन्दु शासकों में भूमि की नाप करवाने की प्रथा प्रचलित थी लेकिन दिल्ली सल्तनत के अन्य सुल्तानों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। अलाउद्दीन पहला सुल्तान था, जिसने इसके महत्व को समझा और इसे व्यावहारिक रूप दिया। नाप करने से पहले उसने यह पता लगवाया कि किस गाँव में कितनी भूमि है? इस व्यवस्था को लागू कराने के लिए उसने योग्य और ईमानदार अधिकारी नियुक्त किये। लेकिन अलाउद्दीन ने अपने सम्पूर्ण राज्य में भूमि की नाप नहीं करवायी, यह कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित थी। Reforms of alauddin khilji notes

(v) बाजार पर नियन्त्रण – अलाउद्दीन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य बाजार पर नियन्त्रण था। विद्रोहियों का दमन, मंगोलों के आक्रमणों से सुरक्षा तथा भारत विजय के लिए इतनी बड़ी सेना रखना औचित्यपूर्ण था। किन्तु इतनी बड़ी सेना का व्यय घटाने के लिए उसने बाजार पर निम्न नियन्त्रण लगाये।

(अ) वस्तुओं के मूल्यों पर नियन्त्रण – अलाउद्दीन ने जीवन-निर्वाह की वस्तुओं के मूल्य को माँग तथा पूर्ति के नियमों के अनुसार घटने तथा बढ़ने नहीं दिया बल्कि उनका मूल्य स्थायी रूप से निश्चित कर दिया। उसने आवश्यक वस्तुओं का मूल्य इतना कम कर दिया कि एक सैनिक नाममात्र के वेतन में आराम से जीवन निर्वाह कर सकता था। उसने अनाज, कपड़ा तथा अन्य वस्तुओं का मूल्य साधारण बाजार की दर से बहुत कम निश्चित किया। सुल्तान ने यह भी नियम निश्चित कर दिया कि आवश्यक वस्तुओं का मूल्य वही होगा जो सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य सूची में दिया हुआ है। कोई भी वस्तु ऐसी नहीं थी जो मूल्य तालिका में सम्मिलित नहीं की गयी हो। सब्जी, फल, तेल, टोपी, जूते, सुइयाँ, गुलामों आदि छोटी से छोटी वस्तुओं का भी मूल्य निश्चित कर दिया गया।

(ब) वितरण की व्यवस्था – सामान के वितरण के लिए दिल्ली में तीन बाजारों की व्यवस्था की गयी। एक बाजार सराय-अदल कहलाता था। पंजीकृत व्यापारियों को सराय अदल में माल लाना और बेचना अनिवार्य था। दूसरा बाजार शहनाये मण्डी था। तीसरे बाजार का नाम उल्लेखित नहीं है। उपभोक्ताओं को आज्ञापत्र (आधुनिक राशन कार्ड के समान) दिये जाते थे, उसी के हिसाब से वस्तुएँ मिलती थीं। Reforms of alauddin khilji notes

(स) अनाज को एकत्रित करना (शासकीय अन्न भण्डार बनाना) – अलाउद्दीन इस बात को अच्छी प्रकार से जानता था कि केवल भावों पर नियन्त्रण लगाने से ही वस्तुएँ कम कीमत पर नहीं बिक सकतीं। अतः उसने अनाज को जमा करने का निश्चय किया। किसानों को यह स्वतंत्रता थी कि वे भूमि कर नकद अथवा अनाज के रूप में दे सकते थे। साथ ही खालसा भूमि से तथा अधीनस्थ सामन्तों की भमि से लगान अनाज के रूप में वसूल किया जाता था। इस प्रकार सुल्तान ने अपने पास विशाल अन्न भण्डार एकत्रित कर लिया था। बरनी ने लिखा है कि शायद ही ऐसा कोई मोहल्ला था, जहाँ खाद्यान्न से भरे दो या तीन सरकारी भण्डार नहीं थे। इन गोदामों का अनाज केवल आपातकालीन स्थितियों में निकाला जाता था। वर्षा की कमी या अन्य किसी कारण से यदि फसल नष्ट हो जाये या यातायात के किसी संकट के कारण राजधानी में अनाज न आ पाय तो इन गोदामों से अनाज निकाल कर व्यापारियों को अनाज मण्डी में बेचने के लिए दिया जाता था।

ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं कि अलाउद्दीन ने राशनिंग व्यवस्था भी लागू की थी। राशनिंग पद्धति अलाउद्दीन की नयी सुझ थी। बरनी ने लिखा है कि वर्षा की अनियमितता होने पर भी दिल्ली में अकाल नहीं पड़ा। किन्तु कोई राशन कार्ड आदि की व्यवस्था नहीं थी। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि जो व्यक्ति बाजार जाता था उसे निर्धारित मात्रा में अनाज दिया जाता था।

(द) व्यापारियों पर नियन्त्रण – व्यापारियों पर सरकार का कड़ा नियन्त्रण था। प्रत्येक व्यापारी को शहनाज-ए-मण्डी नामक पदाधिकारी के कार्यालय में अपना नाम लिखाना पड़ता था। व्यापारियों को निश्चित दर पर ही अपना सामान बेचना पड़ता था। चोरी छिपे माल बेचने तथा सट्टा खेलने वालों को कठोर दण्ड दिया जाता था। व्यापारियों को अपने पास अनाज तथा अन्य वस्तुएँ जमा करने का अधिकार नहीं था। बहुमूल्य वस्तुएँ खरीदने से पहले व्यापारियों को सरकारी अधिकारी से आज्ञा लेनी पड़ती थी। दलालों को बाजार में पृथक कर दिया गया। व्यापारियों को राजकीय कोष से अग्रिम धनराशि भी दी जाती थी, जिससे वे माल खरीदकर नियन्त्रित दरों पर बेच सकें। सुल्तान ने एक बार अल्तान के झापारियों को लगभग 20 लाख टंके दिये थे। किन्तु इसका कोई प्रमाण नहीं मिला कि वह धनराशि उनको लौटानी पड़ती थी या नहीं। Reforms of alauddin khilji notes

(य) बाजार के कर्मचारी – बाजार नियन्त्रण को सफल बनाने के लिए अलाउद्दीन ने योग्य, ईमानदार तथा अनुभवी पदाधिकारियों को नियुक्त किया। बाजार का सबसे बड़ा पदाधिकारी ‘दीवान-ए-रियासत’ कहलाता था, जिसकी नियुक्ति सम्राट स्वयं करता था। इसके नीचे तीन पदाधिकारी नियुक्त किये गये- 1. शाहनाज (निरीक्षक), 2. बरीद (लेखक), 3. मुहीमान।

शाहनाज बाजार के सामान्य कार्यों की देखभाल करता था। बरीद बाजार में घूम-घूम कर यह देखता था कि बाजार का कार्य ठीक चल रहा है अथवा नहीं। वह बाजार के समस्त कार्यों की सूचना शाहनाज के पास भेजता था। शाहनाज उसको दीवानए-रियासत के पास भेज देता था और दीवान-ए-रियासत सुल्तान को सूचना देता था। मुहीमान बाजार की गुप्त रिपोर्ट भेजता था। वह वेश बदलकर घूमा करता था। और यदि कोई अनियमित कार्य करता हुआ मिलता था तो गुप्त रूप से उसकी सूचना उच्च अधिकारी के पास पहुँचा देता था। Reforms of alauddin khilji notes

यह तो थी अल्लाउद्दीन के आर्थिक और प्रशासनिक सुधार की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको तुगलक वंश का इतिहास : दिल्ली सल्तनत के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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