द्वितीय विश्व युद्ध का इतिहास, कारण और परिणाम की पूरी जानकारी

द्वितीय विश्व युद्ध :-

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-1 सितंबर 1939 की प्रातकाल जर्मन सेना पोलैंड में प्रविष्ट हो गई और इसके साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध का श्री गणेश हो गया इंग्लैंड और फ्रांस ने भी इसके तत्काल बाद जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी 11 जून 1940 को इटली जर्मनी की ओर से युद्ध में शामिल हो गया 22 जून 1941 को जर्मनी ने सोवियत संघ पर आक्रमण कर दिया सोवियत संघ मित्र राष्ट्रों ने इंग्लैंड के साथ मिलकर युद्ध करने लगा दिसंबर 1941 में जापान के विरुद्ध युद्ध में संलग्न हो गए ।इस युद्ध में शीघ्र विश्वव्यापी रूप धारण कर लिया प्रारंभ में इस में जर्मनी और जापान को सफलताएं मिली परंतुअतः  मई 1945 में जर्मनी और अगस्त 1945 में जापान परास्त हो गया और इसी के साथ द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति हो गई । second world war notes in Hindi

-द्वितीय विश्व युद्ध के कारण

  1. – वर्साय की अन्याय पूर्ण संधि
  2. – राष्ट्र संघ की अकर्मण्यता
  3. – निशस्त्रीकरण की असफलता
  4. – हिटलर का उदय

परजातन्त्रीय तथा एकतंत्रीय विचारधाराओं में संघर्ष –

द्वितीय महायुद्ध से पूर्व विश्व में दो प्रमुख विचारधाराएं विद्यमान थी इंग्लैंड फ्रांस अमेरिका आदि प्रजातंत्र की विचारधारा के समर्थक थे तो इटली जर्मनी जापान आदि एकतंत्रीय विचारधारा के समर्थक थे इंग्लैंड फ्रांस अमेरिका आदि देश प्रथम महायुद्ध के पश्चात की व्यवस्थाओं को बनाए रखना चाहते थे तो दूसरी और इटली जर्मनी तथा जापान महायुद्ध के पश्चात की व्यवस्थाओं से असंतुष्ट थे ।और अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार करना चाहते थे अतः दोनों विचारधाराओं में संघर्ष होना अनिवार्य था। second world war notes in Hindi

आर्थिक संकट –

1929-1930 के आर्थिक संकट का जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर घातक प्रभाव पड़ा इससे जर्मन लोगों की आर्थिक दशा बड़ी दयनीय हो गई आर्थिक संकट के कारण जर्मनी में नाजी दल की शक्ति में वृद्धि हुई तथा हिटलर का उत्कर्ष हुआ। आर्थिक संकट के कारण जापान की आर्थिक दशा भी शोचनीय हो गई आर्थिक मंदी से परेशान होकर जापान ने मंचूरिया पर आक्रमण कर दिया और उस पर एक अधिकार कर लिया इटली में भी आर्थिक संकट से परेशान होकर एबीसीनिया पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया। आर्थिक संकट ने विश्व का वातावरण अशान्त बम विस्फोटक बना दिया। second world war notes in Hindi

उग्र राष्ट्रवाद –

जर्मनी इटली जापान आदि देशों में उग्र राष्ट्रवाद का प्रसार हो चुका था हिटलर ने जर्मन जाति को सर्वश्रेष्ठ जाति घोषित किया और वर्साय की संधि को निरस्त करने का वचन दिया उसने जर्मनी के निर्माण का निश्चय किया और शीघ्र ही ऑस्ट्रिया तथा चेको स्लाविया पर अधिकार कर लिया इसी प्रकार मुसोलिनी इटली को विश्व की प्रमुख शक्ति बनाने के लिए कटिबद्ध था जापान में उग्र राष्ट्रवाद की भावना पनप चुकी थी तथा उग्र राष्ट्रवाद की भावना के कारण शस्त्रीकण दौड़ को प्रोत्साहन मिला। second world war notes in Hindi

स्पेन का गृहयुद्ध –

1936 में स्पेन में गणतंत्र वादियों तथा जनरल फ्रेंको के समर्थकों में ग्रह युद्ध छिड़ गया इटली और जर्मनी की सैनिक सहायता से 1939 में जनरल फ्रेंको की विजय हुई और स्पेन में तानाशाही सरकार की स्थापना हुई इसके स्वरूप इटली और जर्मनी की साम्राज्यवादी नीति को प्रोत्साहन मिला था। उन्होंने भी छोटे-छोटे देशों को हड़पना शुरू कर दिया अनेक विद्वान स्पेन के गृहयुद्ध को द्वितीय महायुद्ध का पूर्वाभ्यास मानते हैं। second world war notes in Hindi

साम्राज्यवाद –

वर्साय संधि के दौरान जर्मनी की समस्त उपनिवेश छीन लिए गए थे और जापान के पास कोई उपनिवेश नहीं थे इटली भी अधिक उपनिवेश प्राप्त करना चाहता था दूसरी और इंग्लैंड फ्रांस और छोटे राज्यो हॉलैंड बेल्जियम और पुर्तगाल के पास बड़े-बड़े उपनिवेश थे ऐसी स्थिति में जर्मनी जापान और इटली का असंतुष्ट होना स्वाभाविक था। इसी कारण जब इटली और जापान ने उपनिवेश प्राप्त करने के प्रयत्न किए तो इंग्लैंड और फ्रांस उनका पूर्ण रूप से विरोध नहीं कर सके क्योंकि उनका स्वयं का आचरण और अंतःकरण निर्दोष नहीं था जापान ने साम्राज्यवादी नीति अपनाते हुए मंचूरिया पर आक्रमण किया और 1932 में संपूर्ण अधिकार कर लिया इटली ने एबीसीनिया तथा जर्मनी ने ऑस्ट्रीया और चेकोस्लोवाकिया  पर अधिकार कर लिया इस प्रकार जापान इटली तथा जर्मनी की समाजवादी गतिविधियों ने समस्त संसार को द्वितीय विश्व युद्ध की ओर धकेल दिया। second world war notes in Hindi

तुष्टीकरण की नीति –

इंग्लैंड और फ्रांस की तुष्टीकरण की नीति को द्वितीय विश्व युद्ध के लिए बहुत समय तक उत्तरदाई समझा जाता है इस नीति को अपनाने का उनका क्या उद्देश्य था कि शांतिपूर्ण उपायों से जर्मनी की उचित शिकायतों को दूर किया जाए इंग्लैंड और फ्रांस के अनेक मंत्री और बड़ी संख्या में जनता यह अनुभव करती थी कि जर्मनी के साथ अन्याय हुआ है ।उनका साम्यवाद का भय नाजीवाद से भी अधिक था और हिटलर के साम्यवाद विरोधी प्रचार से वे बहुत प्रभावित हुए थे ।वह यह भी सोचते थे कि हिटलर सोवियत संघ से ही भिड़ेगा और इस युद्ध के अंत में लोकतंत्र को ही लाभ पहुंचेगा तुष्टिकरण की नीति इसलिए भी अपनाई गई थी क्योंकि इंग्लैंड और फ्रांस उस समय युद्ध के लिए तैयार नहीं थे तुष्टिकरण की नीति घातक के परिणाम निकले ।यदि शस्त्रीकरण राइनलैंड की किलेबंदी आदि के संबंध में हिटलर को समय पर रोक किया जाता तो द्वितीय विश्व युद्ध की संभवत नोबत नही आती।हिटलर तथा मुसोलिनी ने इंग्लैंड तथा फ्रांस की तुष्टीकरण की नीति का लाभ उठाते हुए अनेक छोटे छोटे राज्य और अधिकार कर लिया तो ब्रिटेन को अपनी तुष्टीकरण की नीति की विफलता स्वीकार करनी पड़ी और उसने भी युद्ध की तैयारी शुरू कर दी।

अन्य कारण –

इंग्लैंड और फ्रांस का रूस से समझौता किए बिना पोलैंड को गारंटी देना बहुत बड़ी गलती थी क्योंकि युद्ध होने पर वे पोलैंड की कोई सी भी सहायता नहीं कर सकते थे उधर पोलैंड भी इस बात पर अड़ा हुआ था कि वह रूसी सेना को अपने प्रदेशों में घुसने नहीं देगा इंग्लैंड और फ्रांस ने पोलैंड पर दबाव डालकर उसे नाजी सेना का शिकार होने दिया। रूस ने हिटलर से अनआक्रमण संधि कर हिटलर को युद्ध प्रारंभ करने के लिए प्रोत्साहित किया। क्योंकि हिटलर से अन आक्रमण संधि कर हिटलर को दो मोर्चों पर लड़ने का भय दूर हो गया और उसकी स्वार्थ पूर्ण और अदूरदर्शी नीति थी जिससे घातक परिणाम उसे शीघ्र ही भुगतने पड़े इसके अतिरिक्त अमेरिका ने ऐसे तनाव के समय तटस्थता की नीति अपना कर अप्रत्यक्ष रूप से युद्ध के लिए प्रोत्साहित किया। second world war notes in Hindi




तत्कालीन कारण –

जब हिटलर की मांग पर पोलैंड ने डेजिंग देने से इंकार कर दिया तो 1 सितंबर 1939 को उसने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया ।इस पर इंग्लैंड ने हिटलर को पोलैंड से हटाने की चेतावनी दी।पर हिटलर ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। फलस्वरूप इंग्लैंड ने 3 सितंबर 1939 को जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और कुछ ही घंटे पश्चात फ्रांस ने भी जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस प्रकार द्वितीय विश्व युद्ध का सूत्रपात हुआ निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि अपनी मौलिक नीति और कार्यक्रम के अनुसार हिटलर द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए उत्तरदाई था किंतु इंग्लैंड फ्रांस रूस अमेरिका आदि पूर्ण रूप से निर्दोष नहीं थे ।

द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम –

1939 से 1945 तक लड़ा गया यह युद्ध अपने परिणामों के अनुसार युगांतर माना जाता है फ्रांस की क्रांति के बाद जिन प्रवृत्तियों का उदय हुआ था वह अब पुरानी महसूस की जाने लगी और मानव सभ्यता उस दौर से निश्चित ही आगे बढ़ गई युद्ध केवल जान माल की अत्यधिक क्षति के कारण ही भयंकर सिद्ध नहीं हुआ बल्कि इस युद्ध में जिन प्रतीकों व हथियारों का सहारा लिया गया तथा युद्ध के दौरान ही जिस विचारधारा की टक्कर  का सूत्रपात हुआ उसने भावी राजनीति की दिशा और दशा ही बदल दी । second world war notes in Hindi

– प्रथम विश्व युद्ध के बाद जिस तरह पेरिस वर्साय जैसी सन्धिया अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के हल के लिए की गई थी वैसी व्यवस्था इस युद्ध के बाद नहीं की जा सकी इसका प्रमुख कारण था कि युद्ध के समय मित्र राष्ट्र के बाद शत्रु बन चुके थे इन परिस्थितियों से अलग अलग सन्धिया की गई जिसके तहत  second world war notes in Hindi

  • -इटली को अपने उपनिवेश को त्यागना पड़ा और उसके अन्य प्रभुत्व के क्षेत्र भी उसकी संप्रभुता बाहर आ गए।
  • – सोवियत संघ ने चेकोस्लोवाकिया के पूर्व की तरफ पूर्वी पोलैंड और बाल्टिक राज्य पर अपना अधिकार कर लिया। second world war notes in Hindi
  • -1951 के सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन में सबसे महत्वपूर्ण समर्पण के रूप में जापान ने अपने उन सारे जीते हुए क्षेत्रों को लौटाने की घोषणा की जो उसने पिछले 90 सालों के अथक प्रयास से हासिल किए थे जब कोई सामूहिक समझौते की बात ना हो सकी तो विवशता थी कि विश्व व्यवस्था को आगे ले जाने के लिए अलग-अलग देशों या छोटे समूह से ही संधि की जाए। इस युद्ध के बाद महत्वपूर्ण नेताओं ने यह जरूर सीख लिया था कि यदि धुरी राष्ट्रों के साथ प्रथम विश्वयुद्ध जैसा ही बर्ताव किया गया तो अगले युद्ध की संभावना को नकारा नहीं जा सकता अर्थात अब हारे हुए राष्ट्रों का युद्ध अपराधी घोषित कर उन्हें अपमानित नहीं किया गया ।इस तरह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप की भूगोल में पुनः परिवर्तन तो आया परंतु वह उतना क्रांतिकारी नहीं था जितना कि नेपोलियन की विजय के बाद या फिर प्रथम विश्व युद्ध के बाद की परिवर्तन थे ।

प्रथम विश्व युद्ध की तुलना में द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम अपने विस्तार व तीव्रता में अधिक व्यापक स्वरूप लिए हुए थे जन धन की हानि तो सभी युद्धों में होती है किंतु द्वितीय विश्व युद्ध में एटम हथियारों के प्रयोग ने मानव के अस्तित्व के संकट में डाल दिया इस युद्ध के पश्चात विश्व राजनीति के रंगमंच से यूरोप का पतन हो गया और उसकी जगह अमेरिका रंगमंच पर मुख्य नायक के तौर पर अवतरित हुआ इतना ही नहीं युद्ध के बाद विश्व की दो गुटों में विभाजित हो गया । शीत युद्ध की पृष्ठभूमि का निर्माण हुआ इस गुटबंदी ने से बचने के लिए नव स्वतंत्र तृतीय विश्व युद्ध के देशों ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन को जन्म दिया अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बनाए रखने हेतु राष्ट्र संघ की अपेक्षा कहीं अधिक व्यापक अधिकार वाले संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्था का निर्माण हुआ।

राजनीतिक परिणाम –

(1) यूरोप का पतन :-

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद राजनीतिक आर्थिक दृष्टि से यूरोप का महत्व कम हो गया युद्ध की पूर्व तक विश्व इतिहास में कभी इंग्लैंड तो कभी फ्रांस तो कभी आस्ट्रिया कभी जर्मनी इटली का प्रभुत्व कायम था किंतु युद्ध के बाद सभी राष्ट्रों की स्थिति कमजोर हो गई और उनका स्थान अमेरिका ने ले लिया इंग्लैंड की स्थिति दुर्बल हो गई और उसके तमाम उपनिवेश स्वाधीनता आंदोलन के माध्यम से स्वतंत्र हुए इसी प्रकार इटली से भी उसके सभी अफ्रीकी उपनिवेश चीन लिए गए और सैन्य शक्ति पर प्रतिबंध लगा दिया गया इस तरह जर्मनी का विभाजन हो गया और वह नष्ट हो गया।

(2) यूरोप के राजनीतिक मानचित्र में परिवर्तन :-

विश्व युद्ध के पश्चात जर्मनी का विभाजन कर उसे पूर्वी व पश्चिमी जर्मनी में बांट दिया गया जर्मनी में नाजी शासन को निष्क्रिय करने तथा जनतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना करने हेतु उसे चार भागों में विभक्त कर अमेरिका फ्रांस इंग्लैंड और रूस के अधीन कर दिया गया आगे सितंबर 1949 में अमेरिका इंग्लैंड व फ्रांस ने अपने अपने अधीन जर्मन क्षेत्रों के पश्चिमी जर्मन के नाम से एक पृथक राष्ट्र की स्थापना की और जर्मन संघीय गणराज्य की स्थापनाकी। अक्टूबर 1949 में सोवियत संघ ने अपने अधीन जर्मनी के पूर्वी क्षेत्र को मिलाकर पूर्वी जर्मनी नामक एक अलग देश बना दिया और उसे जर्मन जनतांत्रिक संघ नाम दिया। second world war notes in Hindi

(3)दो महा शक्तियों का उदय :-

युद्ध के पश्चात अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच पर अमेरिका और रूस नाम दो महाशक्तियों शक्तियों का उदय हुआ युद्ध काल में अमेरिकी औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि हुई थी और उसने विश्व के तमाम देशों को कर्ज दिया था उन्नत आर्थिक स्थिति के कारण उसकी सैन्य शक्ति में भी वृद्धि हुई थी और इसी क्रम में उसने परमाणु शस्त्र का भी विकास किया तथा विश्व के अनेक भागों में सुदृढ़ नौसैनिक अड्डे स्थापित किए इसी प्रकार सोवियत संघ भी विश्व की महाशक्ति के रूप में सामने आया सोवियत संघ ने भी स्टालिन के काल में आर्थिक व सैनीक सुधरता प्राप्त की थी तथा जर्मनी को पराजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और 1949 में परमाणु बम का विकास करके अपनी सुदृढ़ स्थिति का परिणाम प्रमाण दिया था ।साथ ही यूरोप के विभिन्न क्षेत्रों में साम्यवादी सरकार की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इस तरह सोवियत संघ भी महाशक्ति के रूप में विशव के सामने उदित हुआ। second world war notes in Hindi

(4) शीतयुद्ध का आरंभ :-

युद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच पर अमेरिका और रूस के रूप में जो 2 महशक्तियां पैदा हुई थी यह दोनों अलग-अलग विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करती थी अमेरिका जहां पूंजीवादी विचारों का पोषक था वही सोवियत संघ सांयवादी विचारों का दोनों देशों के बीच विभिन्न समस्याओं के संबंध में तीव्र मतभेद उत्पन्न हो गए इन मतभेदों ने इतना तनाव उत्पन्न कर दिया कि सशस्त्र संघर्ष ना होते हुए भी दोनों के बीच आरोपों और परस्पर विरोधी राजनीतिक प्रचार का युद्ध आरंभ होगया जिसे शीत युद्ध के नाम से जाना जाता है ।सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवाद के प्रसार को लेकर पूर्वी जर्मनी हंगरी रोमानिया लिथुआनिया लाटवियाआदि देशों का एक अलग गुट बन गया इस तरह समाजवादी प्रभावों में पूर्वी यूरोप 1 गुट बन गया ।जबकि पूंजीवादी व्यवस्था के समर्थक देश के रूप में पश्चिमी यूरोप का एक गुट बन गया इस तरह यूरोप दो गुटों में विभाजित हो गया और यह दोनों गुट रूस और अमेरिका जैसे महाशक्तियों से संचालित होने लगे । second world war notes in Hindi

(5) उपनिवेशवाद का पतन व तृतीय विश्व का उद्भव –

विश्व युद्ध में साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद शक्तियां कमजोर पड़ गई फल स्वरूप उनके उपनिवेश ओं में स्वतंत्रता आंदोलन में जोर पकड़ लिया विश्व युद्ध के खर्चे व तबाही ने साम्राज्यवादी शक्तियों को खोखला कर दिया था जिससे उपनिवेश ओं की जागृत राष्ट्रीय चेतना को दबाना उनके लिए असंभव था परिस्थितियों से विवश होकर महा युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार ने अपनी नीति में परिवर्तन किया जिससे भारत वर्मा श्री लंका मलाया मिस्त्र आदि देश स्पेन के आधिपत्य से मुक्त हो गए इस तरह संसार के सबसे बड़े साम्राज्यवादी ताकत का सूर्य अस्त हो गया । फ्रेंच हिंद चीन में फ्रांसीसी आधीपतय के अनेक देशों को भी स्वतंत्रता प्राप्त हुई कंबोडिया लाओस आदि स्वतंत्र हुए हॉलैंड के उपनिवेश जावा सुमात्रा बोर्नियो ने भी स्वतंत्रता प्राप्त की इस तरह यूरोप की औपनिवेशिक साम्राज्य का अंत हो गया सचमुच एक अभूतपूर्व घटना थी इस संदर्भ में यह कहना ठीक है कि ” एशिया  के पुनरुत्थान की यह घटना परमाणु बम से भी अधिक विस्फोटक थी ।” second world war notes in Hindi

 इन स्वतंत्र देश के रूप में तृतीय विश्व का उदय हुआ जिसने आगे चलकर वैश्विक राजनीति को अपने तरीके से प्रभावित किया और शीत युद्ध को वास्तविक युद्ध में तब्दील होने से रोका ।

(6) गुट निरपेक्ष आंदोलन का उद्भव :-

युद्ध के बाद नव स्वतंत्र राष्ट्रों ने शीत युद्ध की खींचतान से स्वयं को अलग रखते हुए गुटनिरपेक्षता की आवाज बुलंद की इस संदर्भ में भारत में मार्गदर्शक की भूमिका निभाई तृतीय विश्व के देशों ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन के माध्यम से राजनीतिक आर्थिक विकास का प्रयास किया और विश्व तीसरे महायुद्ध से दूर रखने का प्रयत्न किया इस प्रयत्न में वह आज तक सफल है । second world war notes in Hindi



(7) संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना :-

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात शांति स्थापना के क्रम में 1945 ईस्वी में सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन में मित्र राष्ट्रों ने संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की ।यह संस्था अपने छह अधिकरनो के माध्यम से विश्व शांति और मानव की सामाजिक आर्थिक सांस्कृतिक राजनीतिक अधिकारों की स्वतंत्रता और विकास के लिए कार्य करती है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकारों की घोषणा से मानवाधिकार के युग की शुरुआत होती है संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग व शांति के लिए राष्ट्र संघ की तुलना में अधिकार सफलता पूर्वक कार्य किया है। 

(8) प्रदेशिक संगठनों का विकास :-

शीत युद्ध की वजह से संयुक्त राष्ट्र भी महाशक्तियों के टकराव का अखाड़ा बन गया दोनों पक्ष अपनी भावी सुरक्षा के लिए प्रादेशिक निर्माण की और अग्रसर हुए साम्यवाद को रोकने के लिए पश्चिमी राष्ट्रों ने अमेरिका के नेतृत्व में नाटो, सेंटो,सीटों बगदाद पैक्ट जैसे सुरक्षा संगठनों की स्थापना की दूसरी तरफ साम्यवादी सरकारों की स्थापना करके उनकी सुरक्षा हेतु सोवियत संघ ने वारसा पैक्ट नामक सुरक्षा संगठन की स्थापना की प्रादेशिक संगठनों के निर्माण ने सैन्यवाद और शस्त्रीकरण को तो बढ़ावा दिया ही साथ ही तनाव और भय का माहौल भी बनाया ।

(9) शक्ति संतुलन के स्थान पर आतंक संतुलन की स्थापना :-

एटम बम के प्रयोग ने विश्व राजनीति को बुनियादी तौर पर बदल दिया सबसे पहली बात बड़ी ताकतों को पुरानी परिभाषा अब व्यर्थ हो गई एटमी हथियार से संपन्न शक्ति अब वास्तव में पारंपरिक बड़ी ताकतों से अधिक समर्थ महाशक्ति बन बैठे बहुत जल्द खुद एटमी हथियारों को हासिल कर सोवियत संघ भी इस श्रेणी में आ गया क्योंकि किसी भी परमाणु शक्ति धारी आक्रमणकारी के विरुद्ध शक्ति बाहुल्य स्थापित नहीं किया जा सकता था इस आतंक के संतुलन से शांति स्थापित हो गई क्योंकि अब राष्ट् झगड़ो को निपटाने के लिए युद्ध का सहारा लेने से डरने लगे इसे भारत-पाक संघर्ष के संदर्भ में समझा जा सकता है। परंतु यह आतंक संतुलन बड़ा भयानक और जोखिम भरा बना क्योंकि एक छोटी सी गलतफहमी या गलत निर्णय पूर्ण विनाश का कारण बन सकता है।

(10) भारत पर प्रभाव :-

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सेना ने दक्षिण पूर्वी एशिया में अंग्रेजी फ़ौज के जिन हिंदुस्तानी सिपाहियों को युद्ध बंदी बनाया था उन्हें प्रेरित प्रोत्साहित कर बोस ने आजाद हिंद फौज का गठन किया दिल्ली चलो और जय हिंद का नारा बुलंद कर फौज ने हिंदुस्तान की तरफ कूच किया और अंग्रेजो के लिए समस्या पैदा की द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन द्वारा भारत को जबरन शामिल किए जाने के विरोध में 1939 कांग्रेस की सरकारों ने त्यागपत्र दे दिया और आगे चलकर भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ हुआ ।आगे चलकर भारत को स्वतंत्रता हासिल हुई इस तरह स्पष्ट हो गया कि साम्राज्यवाद और संसार की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी ताकत का सूर्य अस्त हो चुका है। 

(11) चीन पर प्रभाव :-

द्वितीय विश्व युद्ध में चीन में राष्ट्रवादी और कम्युनिस्टों के संघर्ष को तेज कर दिया जैसे ही जापान ने आत्मसमर्पण किया कम्युनिस्टों ने उत्तरी और पूर्वी प्रांतों पर कब्जा कर लिया जापानियों द्वारा छोड़े गए सैनिक साजो समान की सहायता से समयवादियो ने राष्ट्रवादी कुओमितांग दल का सामना किया और उन्हें एक के बाद एक प्रांत छोड़ने के लिए बाध्य किया अंत में 1949 में चांग कई शेक को फार्मोसा में शरण लेनी पड़ी और पूरे चीन में साम्यवादी सरकार की स्थापना हो गई। second world war notes in Hindi

(12) पश्चिम एशिया पर प्रभाव :-

पश्चिम एशिया में इजराइल का निर्माण द्वितीय विश्वयुद्ध का महत्वपूर्ण परिणाम था प्रथम विश्व युद्ध के बाद यहूदियों ने फिलिस्तीन में बसना शुरू किया इसे लेकर अरबो और यहूदियों के बीच निरंतर दंगे होते रहे ब्रिटेन और अमेरिका के प्रोत्साहन से 1940 में इसराइल नाम से फिलिस्तीन में यहूदियों का राज्य कायम हो गया इस समय से इजरायल और अरबों के बीच तनाव और युद्ध का सिलसिला शुरू हुआ जो अभी तक कायम है।

द्वितीय विश्व युद्ध में सांस्कृतिक प्रभाव :-

द्वितीय विश्व युद्ध ने सांस्कृतिक ज्वार को उभारा उसके दूरगामी सामाजिक व राजनीतिक परिणाम हुए महायुद्ध की बाद वर्ष निराशा हताशा को विश्वव्यापी कुंठा का युग था।क्रिकेगार्ड जैसे दार्शनिक का अस्तित्व भी चिंतन यूरोप तथा अमेरिका में लोकप्रिय बना ब्रह्मांड में मनुष्य के अस्तित्व की नगण्यता और अर्थहीन ता कि अनुभूति में धार्मिक नैतिक मूल्यों में तेजी से ह्रास किया और सामाजिक उच्च श्रृंखला को बढ़ावा दिया। उसने जहां एक और पश्चिमी पूंजीवादी समाज में और बाद में हिप्पियों को प्रतिष्ठा दिलवाई तो दूसरी और साहित्य और कला के क्षेत्र में अमूर्त सुखाय तथा निरंकुश उद्गारो की अभिव्यक्ति वाली कलाकृतियों के संयोजन को प्रोत्साहन दिया ।पॉप आर्ट रॉक म्यूजिक आदि इसी के उदाहरण है कलाओं में पिकासो की प्रसिद्धि कलाकृति गोयरनीका व लोयका की कविताएं स्पेनी गृहयुद्ध से प्रेरित थी कामु का उपन्यास भी इसी कोटि में आते हैं युद्ध की विभीषिका महानगरीय अलगाववादी की अनुभूति जो आधुनिक साहित्य कला जगत का अभिन्न अंग बन चुकी है द्वितीय विश्व युद्ध की देन है। 

परमाणु युग की शुरुआत :-

इस युद्ध का अंत अमेरिका द्वारा हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराने से हुआ किंतु वास्तव में इसे घटना ने मानव जीवन को और आशंकाओं से युक्त कर दिया अमेरिका के बाद शीघ्र ही सोवियत संघ रूस ने शीग्रह यह ही क्षमता हासिल कर ली जिसके कारण समाज आतंकित होने लगा अन्य देशों ने भी इस क्षमता को हासिल करने का प्रयास किया कम्युनिस्टों ने उतरी वह पूर्वी प्रातों पर कब्जा कर लिया जिसके कारण विश्व को यह सोचना पड़ा कि इन डब्ल्यूएमडी से भय मुक्ति कैसे दिलाई जाए और इसी संदर्भ में एनपीटी व सीटीबीटी जैसे महत्वपूर्ण सिंधिया की गई इसका प्रत्यक्ष लाभ यह भी देखा गया कि लोग युद्ध से बचने लगे इसलिए कुछ विद्वान शक्ति संतुलन के युग की समाप्ति और आतंक संतुलन के युग की शुरुआत बताते हैं। इसके अतिरिक्त युद्ध में अन्य वैज्ञानिक उपकरणों ने भी निर्णायक भूमिका निभाई थी जिसमें सबसे प्रमुख लड़ाकू विमान सिद्ध हुए थे अतः इसी के बाद रडार मिसाइलों का प्रयोग भी शुरू हो गया अर्थात् अब विज्ञान व तकनीक के विकास में युद्ध का स्वरूप ही बदल दिया और इसी समय से यह चर्चा शुरू हुई कि विज्ञान अभिशाप है या वरदान वास्तव में मनुष्य में परमाणु बम बना कर अति मानवीय शक्ति तो हासिल कर ली परंतु उसकी बुद्धि अतिमानव तक उन्नत नहीं हुई और इसलिए यह संकट की स्थिति बन गई। second world war notes in Hindi




द्वितीय विश्व युद्ध का विज्ञान पर प्रभाव :-

  • 1. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सामरिक प्राथमिकताओं ने वैज्ञानिक तकनीकी शोध को तीव्र बनाया रडार जेट विमान रेडियो टेलीविजन जैसे साधनों पर बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश की गई यह बात परमाणु विज्ञान में भी लागू होती है मित्र और धुरी राष्ट्रों को इस बात का अच्छी तरहआभास था कि जो खेमा विज्ञानिक व तकनीकी आविष्कारों के दौर में पिछड़ेगया वही पराजित होगा इतना ही नहीं युद्ध मोर्चे की व्यापक जरूरतों के लिए औद्योगिक उत्पादन की वैज्ञानिक प्रणालियां खोजी गई।
  • 2. युद्ध कालीन प्रचार तंगी व राशनिग वाली अर्थव्यवस्था ने युद्ध उत्तर काल में वैज्ञानिक तकनीकी विकास को अन्य समस्त आर्थिक क्रियाकलापों के साथ केंद्रित और नियोजित करना सहज बनाया। second world war notes in Hindi
  • 3. युद्ध के दबाव में रबड़ खनिजों को थोड़े अधिक समय के लिए अनुपलब्ध बनाकर कृत्रिम विकल्पों का आविष्कार किया प्लास्टिक रेयान हल्की मिश्र धातु चमत्कारिक औषधि आदि बहुत बड़ी सीमा तक द्वितीय विश्व युद्ध की देन है। 
  • 4.सामरिक जरूरतों के अनुसार जर्मन के विज्ञानिक के v-2 प्रक्षेपास्त्र का आविष्कार किया। यह इन रॉकेट के पूर्वज थे जो आज हमें अंतरिक्ष में विजय दिला रहे हैं। second world war notes in Hindi 

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