Structure and Formation of Attitude in Hindi

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General studies paper – 4 notes 

Part – 23

Topic – अभिवृत्तिओं का अर्जन और गठन (Formation of attitude),


-अभिवृत्तिओं का अर्जन और गठन (Formation of attitude)

-अभिवृत्ति के स्वरूप के विवेचन से स्पष्ट होता है कि अभिवृत्ति मुख्य रूप से अर्जित होती है समाज मनोवैज्ञानिक यह जानने का प्रयास करता है कि अभिवृत्तिओं का निर्माण कैसे होता है यह अभी अभिवृत्ति कैसे अर्जित की जाती है इनके अर्जन में कौन-कौन से प्रक्रम कार्य करते हैं इनको समझना आवश्यक है अभिवृत्ति निर्माण में कुछ मनोवैज्ञानिक संचार करता के गुण संचार की विशेषताओं और दर्शकों पर विशेष बल देते हैं जबकि अन्य मनोवैज्ञानिक अभिवृत्ति निर्माण में मनोवैज्ञानिक प्रकरणों को अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं अभिवृतियो के बहुत से सिद्धांत इन प्रकरणों पर आधारित है जो सूचित करते हैं कि भिन्न-भिन्न अभिवृत्तिया विभिन्न उपक्रमों से उत्पन्न होती है और विभिन्न प्रकार्यो को संपन्न करती है अभिवृत्ति निर्माण संबंधी अध्ययन यह प्रदर्शित करते हैं की अभिवृत्ति निर्माण में विकासात्मक व्यवहारआत्मक संरचनात्मक और प्रकार्यात्मक प्रक्रम कार्य करते हैं इस भाग में अभिवृत्ति निर्माण के संदर्भ में इन प्रकरणों की भूमिका का वर्णन किया गया है ऊपर यह बताया जा चुका है कि अभिवृतियो के निर्माण में मनोवैज्ञानिक प्रकरणों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है जिनका विवेचन किया जा रहा है। Structure and Formation of Attitude in Hindi

1- विकासात्मक (Developmental) 

जन्म के पश्चात शीघ्र ही बच्चा विभिन्न तरह के उदीपको के साथ अंतः क्रिया करना प्रारंभ कर देता है वह अपने माता-पिता परिवार के अन्य सदस्य संप्रेषण के साधन दोस्त मित्र शिक्षक और अन्य प्रमुख व्यक्तियों से विभिन्न वस्तुओं व्यक्तियों या मुद्दों के बारे में भी ज्ञान अर्जित करता है वह उन उद्दीपक  के प्रति बच्चे में धीरे-धीरे विश्वास और मूल्य विकसित होने लगते हैं इसलिए बच्चा कुछ उद्दीपको के प्रति सामाजिकरण की भूमिका महत्वपूर्ण होती है जीवन के प्रारंभ काल से ही भेड़ियों द्वारा पाली गई कमला की अभिवृत्तिओं का विकास निश्चित रूप से सामान्य ढंग से पाले गए बच्चों से अलग रहा होगा दूसरी ओर एक ही वातावरण में विकसित दो व्यक्तियों की अभिवृतिओं में भिन्नता देखने को मिलती है इस भिन्नता का कारण अनुवांशिकता (Heredity) की भूमिका शारीरिक विशेषताओं या बुद्धि के रूप में हो सकती है परंतु पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव के कारण इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता अभिवृति विकास में  बाहरी कारकों का उल्लेख आवश्यक है । Structure and Formation of Attitude in Hindi

A-माता पिता

बच्चे की अभिवृत्ति विकास को माता-पिता प्रत्यक्ष और सक्रिय रूप से प्रभावित करते हैं वे दो तरीके से बच्चे पर सीधा नियंत्रण रखते हैं बच्चे को दिए जाने वाले पुरस्कार और दंड पर माता-पिता का नियंत्रण रहता है

1 – बच्चे को उसी कार्य को करने के लिए स्वीकृति मिलती है जिन्हें माता-पिता उचित समझते हैं बच्चे व्यवहारों के प्रति जिन्हें करने के लिए अनुमोदन प्राप्त करते हैं उनके प्रति विधेयात्मक और जिन व्यवहारों को करने पर दंड मिलता है उनके प्रति निषेधात्मक अभिव्यक्ति विकसित करते हैं

2- बच्चा विभिन्न वस्तुओं के बारे में सूचना प्राप्त करने के लिए माता-पिता पर मुख्य रूप से निर्भर होता है उनसे प्राप्त जानकारियों के आधार पर विभिन्न समाजिक उद्योगों के प्रति संज्ञानो की आरंभिक श्रेणी अर्जित करता है यह आरंभिक श्रेणियां इतनी अधिक प्रभावी होती है कि इनके आधार पर विकसित अभिवृत्ति के बाद की सूचनाओं के आधार पर संशोधन मात्र ही होता है परंतु उन्हें पूर्णतया परिवर्तित करना कठिन हो जाता है । Structure and Formation of Attitude in Hindi

B -द्वितीयक समूह

बच्चों की आयु में वृद्धि के साथ अंतः क्रिया को क्षेत्र व्यापक होने लगता है द्वितीय समूह की भूमिका अभिवृत्ति विकास महत्वपूर्ण होती है वह द्वितीयक समूह से अध्यापक मित्र अन्य महत्वपूर्ण लोग विभिन्न वस्तुओं या व्यक्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त करता है और अपनी अभिव्यक्ति में आवश्यकतानुसार सुधार करता है इसलिए द्वितीयक समूह शसक्त ढंग से अभिवृत्ति निर्माण को प्रभावित करता है ।

C -व्यक्ति के अनुरूप

 

व्यक्तित्व का प्रभाव बच्चे की अभिवृति विकास पर पड़ता है अधिकारवादी तरीके से पाले गए बच्चों की अभिव्यक्ति लोकतंत्रात्मक ढंग से बच्चों की अभिवृत्ति से अलग होती है एडोर्नि व  सहयोगी 1950 में अभिवृत्ति और व्यक्तित्व के गुणों के संबंध का अध्ययन किया उन्होंने प्रयोज्य को यहूदी विरोधी अभिवृत्ति मापनी और जातिवादिता मापनियों को देकर उन पर अपनी अनुक्रिया देने को कहा इन दोनों ही मामलों के प्राप्तांक में उच्च संबंध 80 पाया गया इन प्रयोज्य को दो समूहों में अर्थात उच्च और निम्न अंक प्राप्त करने के वाले समय में बांटा गया तत्पश्चात इन प्रयोज्य के व्यक्तित्व का विस्तृत अध्ययन व्यक्तित्व मापने और नैदानिक साक्षात्कार द्वारा किया गया परिणाम में यह पाया गया कि जातिवादिता मापने पर उच्च अंक प्राप्त करने वाले बच्चों ने अपनी इच्छाओं को जो समाज द्वारा स्वीकृति थी स्वयं स्वीकार न करके दूसरों पर प्रक्षेपित किया यह परंपरावादी मूल्य पर अपरिवर्तनशील व्यक्तित्व वाले थे इनका पालन-पोषण कठोर अनुशासन में हुआ था माता-पिता से प्रेम परिस्थिति जन्य रीति से प्राप्त करते थे और परिवार द्वारा अनुमोदित व्यवहार करने पर ही माता-पिता से प्रेम मिलता था इसके विपरीत कम रूढ़िवादी प्रयोज्य ने अपने माता-पिता के व्यवहारों का उल्लेख करते समय मानव सुलभ कमियों को भी व्यक्त किया उनके व्यक्तित्व का संगठन लचीला था इनका पालन-पोषण प्रेम पूर्ण ढंग से हुआ था और माता पिता से बिना शर्त प्रेम प्राप्त होता था यद्यपि एडोर्नि और सहयोगियों के अध्ययन की आलोचना हुई परंतु इस अध्ययन के आधार पर स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि व्यक्ति की अभिवृत्ति या उसके व्यक्तित्व गुण से प्रभावित होती है अन्य अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि भिन्न-भिन्न तरीकों से समाजीकरण और पालन-पोषण के कारण व्यक्तियों का अलग अलग व्यक्तित्व निर्मित होता है जिसे विभिन्न प्रकार की अभिवृतिया विकसित होती है। Structure and Formation of Attitude in Hindi

2- व्यवहारात्मक प्रक्रम

अभिवृतियो का निर्माण समाजिक जगत में उपस्थित अनुक्रिया संबंधों के परिणाम स्वरुप होता है अभिवृत्ति अधिगम से संबंधित प्रमुख अधिगम प्रकरणों का उल्लेख किया जा रहा है ।

A-प्रत्यक्ष अनुभव

किसी उद्दीपक के संदर्भ में बहुत सी जानकारी प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा प्राप्त होती है इसकी व्याख्या स्वयं प्रत्यक्षीकरण सिद्धांत द्वारा होती है हम अपने व्यवहारों को अवलोकन करके अपनी आंतरिक दशाओं जैसे भाव या अभिवृत्ति के बारे में अनुमान लगाते हैं यदि आप मद्य निषेध  के संदर्भ में आयोजित रैली में भाग लेते हैं और घर वापस आने पर जब अपने व्यवहार का विश्लेषण करते हैं तो ऐसा अनुभव करते हैं कि आप स्वयं मध्य निषेध के पक्ष में अभिवृत्ति रखते हैं क्योंकि प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुभव से व्यक्ति के संज्ञान उस उसके बारे में अधिक स्पष्ट हो जाते हैं जो अभिवृत्ति निर्माण को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं । Structure and Formation of Attitude in Hindi

B-उदीपक पुनरावृति तथा परिचितता

यदि किसी उद्दीपक को बार बार प्रस्तुत किया जाए तो उस पुनरावृत्ति के कारण उस उद्दीपक के प्रति परिचितता विकसित हो जाती है जिससे उस उद्दीपक के प्रति धनात्मक अभिवृत्ति विकसित हो जाती है इस प्रकरण को उद्दीपक पुनरावृति प्रभाव की संज्ञा दी जाती है अर्थात अभिवृत्ति वस्तु को बार बार प्रदर्शित किया जाए तो उसका प्रभाव उस वस्तु के मूल्यांकन पर पड़ता है। Structure and Formation of Attitude in Hindi


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