जैन धर्म | सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में

पिछली पोस्ट में हमने आपको जैन और बौद्ध धर्म के उदय के कारण के बारे में बताया था कि जैन धर्म की उत्पत्ति किन कारणों से हुई इस पोस्ट में हम आपको जैन धर्म की सभी जानकारी देंगे जो कि सभी प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है – 

जैन धर्म | सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में

 जैन शब्द संस्कृत के जीन शब्द से बना है, जिसका अर्थ है- विजेता (जितेंद्रिय)।
जैन महात्माओं को नीग्रंथ (बंधन रहित) तथा जैन संस्थापकों को तीर्थकर (भवसागर से पार उतारने वाला) जैन धर्म में 24 तीर्थंकर तथा 63 शलाका पुरुष (महान पुरुष) की मान्यता है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ जी थे। जिन्‍हें ऋषभदेव जी भी कहा जाता है। 24 तीर्थकरो में से अंतिम दो तीर्थकर (23वें व 24 वें) को ही ऐतिहासिक रूप से सत्य माना जाता है। jain dharm notes for upsc uppsc ssc in hindi
23वें तीर्थकर पार्श्वनाथ थे, जबकि 24वें एवं अंतिम तीर्थंकर महावीर थे। महावीर का जन्म 540 ई. पू. में वैशाली के निकट कुंडग्राम में हुआ था, जब की मृत्यु 72 वर्ष की आयु में 468 ई. पू. में पावापुरी में हुई थी। महावीर का बचपन का नाम- वर्धमान, पिता – सिद्धार्थ, माता -त्रिशला,पत्नी -यशोदा, पुत्री -प्रियदर्शना, दमाद /जमाता -जामली था।
 पिता की मृत्यु के बाद महावीर ने 30 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग दिया। 12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद स्थान जाम्भीकग्राम के समीप रिजु पालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति के बाद महावीर को केवल जिन, अर्हत, आदि नामों से जाना जाने लगा। ज्ञान प्राप्ति के उपरांत महावीर ने अपना प्रथम उपदेश राजगृह में विपुलाचल पहाड़ी पर दिया। इनका प्रथम शिष्य जमाली तथा प्रथम शिष्य चंदना बनी।

जैन धर्म के सिद्धांत

    • सृष्टि की व्याख्या
 जैन धर्म के अनुसार सृष्टि  का वास्तविक कारण ईश्वर नहीं  है, बल्कि सृष्टि की रचना व पालन पोषण -सार्वभौमिक विधान में हुई है। यह सृष्टि अनादि तथा वास्तविक है, जिसमें प्रलय का कोई अस्थान नहीं है। सृष्टि/ संसार की रचना जीव तथा अजीव से मिलकर हुई है। जीव चेतन तत्व है, जबकि अजीव और चेतन (जड़) तत्व है। अजीव का विभाजन पांच भागों में किया गया है- पुद्ग़ल (पदार्थ), काल (समय), आकाश (स्थान), धर्म (गति) तथा अधर्म (अगति)।इनमें से काल को अनास्तिकाय का द्रव्यमान आ गया है। jain dharm notes for upsc uppsc ssc in hindi
जैन धर्म में संसार को दुखःमूलक माना गया है। संसार के सभी प्राणी अपने -अपने संचित कर्मों के अनुसार ही कर्म फल भोगते हैं। कर्मफल ही जन्म तथा मृत्यु का कारण है। कर्मफल से छुटकारा पाकर ही व्यक्ति निर्वाण की ओर अग्रसर होता है। इसके लिए आवश्यक है कि पूर्वजन्म के संचित कर्म को समाप्त किया जाए और वर्तमान जीवन में कर्म फल से विमुख रहे। जैन धर्म में पूर्णजन्म व कर्म सिद्धांत की मान्यता है।
• आस्रव, बंधन, संवर तथा निर्जरा की व्याख्या
 जैन धर्म के अनुसार कर्म, बंधन का कारण है। अज्ञानता के कारण कर्म जीव की और आकर्षित होने लगता है, इसे आस्रव कहते हैं। कर्म का जीव के साथ संयुक्त हो जाना बंधन है। त्रिरत्नों का अनुसरण करने से कर्मों का जीव की ओर बहाव रुक जाता है, जिसे संवर कहते है। इसके बाद पहले से व्याप्त कर्म समाप्त होने लगते हैं इस अवस्था को निर्जरा कहा गया है। जब जीव से कर्म का अवशेष बिल्कुल समाप्त हो जाता है तब वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार कर्म का जीव से वियोग मुक्ति है। मोक्ष के पश्चात जीव आवागमन के चक्र से छुटकारा पा लेता है तथा सिद्धिशिला नामक कल्पित स्थान में अनंत चतुष्टय- अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत वीर्य, व अनंत  सुख, को प्राप्त करता है। jain dharm notes for upsc uppsc ssc in hindi
त्रिरत्न
जैन धर्म के अनुसार मोक्ष निर्माण की प्राप्ति हेतु त्रिरत्नों का पालन करना आवश्यक है जैन धर्म के त्रिरत्न है सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन, सम्यक आचरण को माना गया है। इनमें से आचरण पर सर्वाधिक बल दिया गया है तथा इस संबंध में भिक्षुओं के लिए पंच महाव्रत तथा ग्रहस्थों के लिए पंच अनुव्रत के पालन का विधान है –
• पंच महाव्रत तथा पंच अणुव्रत
पंच महाव्रत के अंतर्गत सत्य,अहिंसा ,अस्तेय, अपरिग्रह तथा ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी माना गया है। इनमें से प्रारंभ के 4 व्रत पार्श्वनाथ के समय से ही प्रचलित थे, जबकि 5वां  व्रत ब्रह्मचार्य को महावीर ने जोड़ा था। पंच अणुव्रत के अंतर्गत भी इन्हीं के पालन की बात की गई है, किंतु इनकी कठोरता में पर्याप्त कमी की गई है।
• सप्तभंगीनय/ स्याद्वाद / अनेकांतवाद
 स्याद्वाद, जिसे  सप्तभंगीनय भी कहा जाता है, ज्ञान की सापेक्षाता का सिद्धांत है। जैनियों के अनुसार सांसारिक विषयों के संबंध में हमारे सभी निर्णय सापेक्ष एवं सीमित होते हैं। किसी वस्तु के संबंध में हम अपने ज्ञान को न तो पूर्णतः सत्य और न ही तो पूर्णतः असत्य मान सकते हैं। अतः अपने ज्ञान को त्रुटि से बचाने हेतु कथनों से पूर्व स्यात् (शायद) शब्द का प्रयोग किया जाता चाहिए। चूंकि किसी भी वस्तु या सत्ता के संदर्भ में स्यात् शब्द का प्रयोग 7 तरीकों से किया जा सकता है, इसलिए इस सिद्धांत को सप्तभंगी नय तथा अनेकान्तवाद भी कहा जाता है। दृष्टिकोण की भिन्नता के कारण हर ज्ञान 7 विभिन्न रूपों में व्यक्त किया जा सकता है-
1)स्यात्-अस्ति – शायद है।
2)स्यात्-नास्ति –  शायद नहीं है।
3)स्यात् अस्ति च नास्ति च – शायद है और नहीं है।
4)स्यात् अवक्तव्यम् – शायद कहा नहीं जा सकता।
5)स्यात् अस्ति च अवक्तव्यम् च – शायद है और कहा नहीं जा सकता।
6)स्यात् नास्ति च अवक्तव्यम् च – शायद नहीं है और कहा भ नहीं जा सकता।
7)स्यात् अस्ति च नास्ति च अवक्तव्यम् च – शायद है ,नहीं है और कहा नहीं जा सकता।

जैन संगति /सम्मेलन सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में

   • प्रथम जैन संगति
    प्रथम जैन संगति चतुर्थ शताब्दी ई.पू. में पाटलिपुत्र में हुई, जिसके अध्यक्ष स्थूलभद्र थे। इस संगति में जैन धर्म के ग्रंथ 12 अंगों का संकलन किया गया। इसी संगति में जैन धर्म का विभाजन दिगम्बर और श्वेतांबर नामक 2 संप्रदायों में हो गया। स्थूलभद्र  के अनुयायी श्वेतांबर कहलाए ,जबकि भद्रबाहु के अनुयायी  दिगंबर कहलाए।
   • द्वितीय जैन संगति
  द्वितीय जैन संगति छठी शताब्दी ई. पू. में वल्लभी में हुई, जिसकी अध्यक्ष देवर्धिगन या  क्षमाश्रमण थे। इस संगति में जैन साहित्य (आगम ग्रंथ) 12 अंग, 12 उमंग, 10 प्रकीर्ण, 6 छेद सूत्र, 4 मूल सूत्र एवं अनुयोग सूत्र का संकलन हुआ । jain dharm notes for upsc uppsc ssc in hindi

जैन तीर्थकर एवं उनके प्रतीक (Jain Tirthankars and their symbols)

प्रथम ऋषभदेव सांड
द्वितीय अजीत नाथ हाथी
इक्कीसवें नेमिनाथ शंख
तेइसवें पार्शवनाथ सांप
चौबीसवें महावीर सिंह

जैन धर्म से संबंधित पर्वत (Mountains related to Jainism)

कैलाश पर्वत ऋषभदेव का शरीर त्याग
सम्मेद पर्वत पार्शवनाथ का शरीर त्याग
वितुलांचल पर्वत महावीर का प्रथम उपदेश
माउंट आबू पर्वत दिलवाड़ा जैन मंदिर
शत्रुंजय पहाड़ी अनेक जैन मंदिर

श्वेतांबर एवं दिगंबर संप्रदाय में अंतर

 चंद्रगुप्त मौर्य के समय मगध क्षेत्र में अकाल पड़ा। इस समय जैन संप्रदाय के प्रमुख भद्रबाहु अनुयायी के साथ दक्षिण भारत चले गए, जबकि स्थूलभद्र अनुयायियों के साथ मगध में ही रुके रहे और उन्होंने श्वेत वस्त्र धारण करना प्रारंभ कर दिया। इसी कारण वे श्वेतांबर कहलाए, जबकि भद्रबाहु के अनुयायी दिगंबर कहलाए।
 श्वेतांबर अनुयायी  ज्ञान प्राप्ति के उपरांत भी भोजन आवश्यक समझते थे, जबकि दिगंबर नहीं। श्वेतांबर मत के अनुसार महावीर स्वामी का विवाह हुआ और पुत्री भी उत्पन्न हुई, जबकि दिगंबरो को मानना था कि व अविवाहित थे। श्वेतांबर मानते थे कि  19वें तीर्थकर मल्लीनाथ स्त्री थे, जबकि दिगंबरो के अनुसार वे पुरुष थे। श्वेतांबर अनुयायी स्त्रियों को मोक्ष प्राप्ति का अधिकार देते हैं, जबकि दिगंबर नहीं। श्वेतांबर संप्रदाय प्राचीन जैन ग्रंथों को प्रमाणिक मानते हैं, किंतु दिगंबर नहीं मानते। jain dharm notes for upsc uppsc ssc in hindi
 जैन साहित्य
जैन साहित्य अत्यंत विशाल है, यह अधिकतर अपभ्रंश, प्राकृत और संस्कृत भाषा में लिखा गया है। महावीर स्वामी की गतिविधियों का प्रमुख केंद्र मगध रहा, इसलिए उन्होंने उपदेश भी लोक भाषा आर्धमागधी में दिए। महावीर स्वामी के उपदेश जैन आगमों में सुरक्षित हैं। जैन धर्म के श्वेताम्बर समुदाय द्वारा आगमों को प्रमाणिक माना जाता है, परन्तु दिगंबर समुदाय इन्हें प्रमाणिक नहीं मानता।
दिगंबर सम्प्रदाय का प्राचीन साहित्य शौरसेनी भाषा में है, बाद में अपभ्रंश तथा अन्य स्थानीय भाषाओँ में साहित्य की रचना की गयी। प्राचीन जैन साहित्य के ग्रन्थ संख्या में सर्वाधिक और काफी प्रमाणिक भी माने जाते हैं। इन ग्रंथों को पूर्व कहा जाता है। 14 पूर्वों में महावीर के सिद्धांतों का संकलन है। ऐसा कहा जाता है की इन ग्रंथों की जानकारी केवल भद्रबाहु को ही थी। जब भद्रबाहु दक्षिण की ओर चले गए तो स्थलबाहु की अध्यक्षता में एक सभा आयोजित की गयी, इस सभा में 14 पूर्वों का स्थान 12 अंग ने ले लिया। जैन रचनाकारों ने पुराण काव्य, चरित काव्य, कथा काव्य तथा रास काव्य इत्यादि ग्रंथों की रचना की। प्रमुख जैन कवी स्वयंभू, पुष्प दन्त, हेम चन्द्र और सोमप्रभ सूरी हैं।
जैन साहित्य आगम में पूर्व के स्थान पर 12 अंग, 12 उपनग, 10 प्रकीर्ण, 6 छेद सूत्र, 4 मूल सूत्र तथा २ मिश्रित ग्रन्थ शामिल हैं। दूसरे जैन सम्मेलन में सभी अगम साहित्य को लिपिबद्ध किया गया, जिसमे 11 अंगो को लिपिबद्ध किया गया। jain dharm notes for upsc uppsc ssc in hindi

यह तो थी जैन धर्म | सम्पूर्ण जानकारी अगली पोस्ट में हम आपको बौद्ध धर्म का संक्षिप्त विवरण , बौद्ध धर्म के सिद्धांत ,अष्टांगिक मार्ग और सम्मेलनों के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए  यूपीएससी आईएएस गुरु के साथ 🙂 

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