गुटनिरपेक्ष आंदोलन के बदलते आयाम
पूरा नाम (Full Form) | गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement) |
सदस्य देश | 120 (2019) सदस्य 17 (पर्यवेक्षक), इसमें गुटनिरपेक्ष आंदोलन में अफ्रीका से 53, एशिया से 39, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन से 26 और यूरोप (बेलारूस, अज़रबैजान) से 2 देश सदस्य हैं |
प्रमुख संस्थापक नेता | यूगोस्लाविया के जोसिप ब्रोज़ टीटो, मिस्र के जमाल अब्देल नासिर, भारत के जवाहरलाल नेहरू, घाना के क्वामे नक्रमा, इंडोनेशिया के सुकर्णो |
स्थापना वर्ष | 1 सितम्बर 1961 |
मुख्यालय | जकार्ता, इंडोनेशिया |
प्रथम अध्यक्ष | युगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप बरोज टीटो |
संगठन सदस्य | 10 अंतरराष्ट्रीय संगठन |
प्रथम चर्चा | 1955, बांडुंग सम्मेलन |
उत्तर शीत युद्ध काल में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की उपादेयता एक बार फिर चर्चा का विषय है गुटनिरपेक्ष देशों का 18वां शिखर सम्मेलन 25 से 26 अक्टूबर 2019 को अजरबैजान की राजधानी बाकू में संपन्न हुआ । {(19वां वर्ष 2023 के अंत में युगांडा)} गुटनिरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत 1960 के दशक में तीसरी दुनिया के देशों द्वारा तब की गई थी जब विश्व दो विरोधी गुटों अमेरिका के नेतृत्व में पूंजीवादी गुट तथा सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवादी गुट में बंटा हुआ था। शीत युद्ध के तनाव के माहौल में दोनों ही गुट एशिया, अफ्रीका तथा लेटिन अमेरिका के नवोदित तीसरी दुनिया के देशों को अपने प्रभाव में लेना चाहते थे।
दूसरी तरफ यह देश अपनी विदेश नीति की स्वतंत्रता के साथ ही अपने विकास को लेकर चिंतित थे इसलिए इन देशों ने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाकर शीत युद्ध काल के तनाव से दूर रहकर अपने हितों की पूर्ति का प्रयास किया। भारत के प्रधानमंत्री नेहरू, युगोस्लाविया के राष्ट्रपति मार्शल टीटो तथा मिस्र के राष्ट्रपति नासिर को गुटनिरपेक्ष आंदोलन का जनक माना जाता है। भारत के प्रयासों से 1955 में इंडोनेशिया की बांडुंग शहर में एशिया और अफ्रीका के नवोदित देशों का एक सम्मेलन हुआ था, जिसमें गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सिद्धांतों का निर्धारण किया गया था इस पृष्ठभूमि में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के देशों का पहला शिखर सम्मेलन 1961 में बेलग्रेड में संपन्न हुआ था ।
बाकू शिखर सम्मेलन बाकू में संपन्न 18 वे शिखर सम्मेलन में सभी 120 सदस्य देशों के प्रतिनिधियों सहित 30 देशों के शासन अध्यक्षों ने भाग लिया था इसके अलावा इस सम्मेलन में 17 पर्यवेक्षक देश तथा 10 पर्यवेक्षक संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था इस सम्मेलन की थीम थी अप होल्डिंग द बांडुंग प्रिंसिपल्स टू इंश्योर कॉन्सेर्टेड एंड एडेक्वेट रिस्पांस टू द चैलेंजिस ऑफ द कंटेंपरेरी वर्ल्ड सम्मेलन में समकालीन विषय तथा उनमें आंदोलन की उपादेयता पर विचार विमर्श कर चार घोषणा पत्र जारी किए गए हैं यह है बाकू फाइनल एक्ट, बाकू राजनीति घोषणा, फिलिस्तीन घोषणा तथा अजरबैजान की जनता और सरकार के प्रति समर्थन की घोषणा ।
बाकू राजनीतिक घोषणा 26 अक्टूबर 2019 इनमें सबसे प्रमुख बाकू राजनीति घोषणा है इसमें गुटनिरपेक्ष आंदोलन की उपादेयता के साथ ही समकालीन चुनौतियों के समाधान में उसकी भूमिका को रेखांकित किया गया है, इसके निम्न बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है
सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व करने तथा उनके हितों के संरक्षण के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रभावशीलता को बढ़ाना वर्तमान वैश्विक सामरिक परिदृश्य में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के आधारभूत सिद्धांतों के आधार पर इसकी भूमिका को मजबूत करना जिससे आंदोलन पूर्व की भांति अपनी सार्थकता को बनाए रख सकें।
अंतर्राष्ट्रीय शांति सुरक्षा तथा विकास के समकालीन खतरों का सामना करने के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्यों ने अपनी एकता को मजबूत बनाने का निश्चय किया।
सदस्य देशों ने विकासशील देशों के हितों की पूर्ति के लिए एक पारदर्शी समेकित न्यायोचित और प्रभावी विश्व व्यवस्था का समर्थन किया सदस्य देशों ने कहा कि वे विश्व मामलों के प्रबंधन में संयुक्त राष्ट्र की केंद्रीय भूमिका को स्वीकार करते हुए बहुपक्षीय व्यवस्था के पक्ष में है, सदस्यों का मानना था कि संयुक्त राष्ट्र की महासभा विश्व स्तर पर सबसे महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक और प्रतिनिधि संस्था है इसलिए विश्वशांति सहित अन्य मामले में भी इस संस्था की भूमिका को मजबूत बनाए जाने की आवश्यकता है।
सदस्यों ने इस बात पर जोर दिया कि संयुक्त राष्ट्र की व्यवस्था और नियमों के अंतर्गत आतंकवाद के प्रतिरूप का सामना करने के लिए सदस्य देशों के प्रयासों को भी मजबूत बनाए जाने की आवश्यकता है।
सदस्य देशों ने विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन की अत्याधिक नकारात्मक प्रभाव को लेकर चिंता व्यक्त की इससे उनका जीवन विकास प्रभावित हो रहा है, इस संबंध में विश्व समुदाय द्वारा प्रभावी कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
सदस्य देश ने मांग की कि संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन का संचालन पूरी तरह संयुक्त राष्ट्र के निर्धारित नियमों के अंतर्गत ही किया जाना चाहिए इसमें निष्पक्षता तथा बचाव को छोड़कर बल प्रयोग की मनाही की नियमों का पालन किया जाना आवश्यक है।
सदस्य देशों ने विभिन्न देशों में कतिपय देशों द्वारा बलात और धमकाने वाली कार्यवाही का विरोध किया इससे मानव अधिकारों के उल्लंघन के साथ-साथ इन देशों का विकास भी प्रभावित होता है अंतरराष्ट्रीय कानून तथा संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न प्रस्ताव के आलोक में 1967 से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन क्षेत्र पर कब्जे को समाप्त किया जाना चाहिए।
सदस्य ने माना कि दक्षिण सहयोग दक्षिण के देशों के मध्य सहयोग और भाईचारे की भावना की अभिव्यक्ति का प्रतीक है इसलिए दक्षिण सहयोग को मजबूत बनाने की आवश्यकता है।
सदस्यों ने माना कि प्रत्येक देश में मानव अधिकार तथा विकास के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए ताकि विश्व में स्थाई शांति और विकास का मार्ग प्रशस्त हो सके आंदोलन की घोषणा पत्र में स्वीकार किया गया है कि वे अपने आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की सुरक्षा तथा अधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित करें घोषणा में कहा गया कि सभी सदस्य देशों द्वारा अन्य देशों की राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता राष्ट्रीय समानता का सम्मान किया जाना चाहिए, साथ ही दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप से बचना चाहिए।
सदस्य देशों ने जोर देकर कहा कि दोहा विश्व व्यापार वार्ताओं में विकास के पहलू को केंद्र में रखे जाने की आवश्यकता है 2001 में प्रारंभ की गई दोहा वार्ताओं का समापन विकासशील देशों के हितों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
सदस्य देशों में इस बात पर भी अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की कि बाकू घोषणा को प्रभावी तरीके से क्रियान्वित किया जाए।
गुटनिरपेक्षता के प्रमुख सिद्धांत
गुटनिरपेक्ष आंदोलन उपनिवेशवादी शासन से मुक्त एशिया अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों का आंदोलन है इन देशों के आर्थिक और राजनीतिक विकास की समस्या लगभग एक जैसी है इन देशों को तीसरी दुनिया के देश भी कहा जाता है इसका कारण यह है कि जहां पहली दुनिया में अमेरिका सहित पश्चिम की पूंजीवादी देशों को शामिल किया जाता था वही सोवियत संघ के नेतृत्व में विकसित साम्यवादी देशों को दूसरी दुनिया के अंतर्गत माना जाता था। सोवियत संघ और उसके गुट के विघटन के बाद यह वर्गीकरण अब अधिक महत्वपूर्ण नहीं रह गया है गुटनिरपेक्ष देशों ने अपने व्यापक राष्ट्रीय हितों जैसे विकास और स्वतंत्रता तथा विश्व शांति की स्थापना की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर जोर दिया जो निम्न है
राष्ट्र की संप्रभुता समानता क्षेत्रीय अखंडता तथा राजनीतिक स्वतंत्रता में विश्वास
विश्व शांति, सुरक्षा तथा अंतरराष्ट्रीय कानून और इस उद्देश्य के लिए गठित बहुपक्षीय संस्थाओं में आस्था
उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद तथा नव उपनिवेशवाद के प्रत्येक रूप का विरोध
रंगभेद नीति तथा जातीय असमानता का विरोध
निशस्त्रीकरण का समर्थन तथा राष्ट्रों के मध्य शस्त्रों की दौड़ का विरोध विकासशील देशों के मध्य आपसी सहयोग को बढ़ावा देना, जिसे दूसरे शब्दों में दक्षिण सहयोग के रूप में जाना जाता है।
समानता न्याय तथा आपसी लाभ पर आधारित एक नई विश्व आर्थिक व्यवस्था की स्थापना का प्रयास जिसे नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के नाम से जाना जाता है ।
भारत और गुटनिरपेक्ष आंदोलन –
भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापकों में से एक है, नेहरू के नेतृत्व में भारत ने ही सबसे पहले गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनी विदेश नीति के रूप में क्रियान्वित किया था। नेहरू के अनुसार गुटनिरपेक्षता गुटों से अलग रहने की एक नकारात्मक धारणा न होकर एक सकारात्मक विचार है जिसका तात्पर्य विदेश नीति की स्वतंत्रता से है, वर्तमान में भारत की विदेश नीति में सामरिक स्वायत्तता का विचार भी गुटनिरपेक्षता से ही प्रेरित है भारत में शीत युद्ध काल में उपनिवेशवाद, रंगभेद की नीति की समाप्ति, विश्व शांति और निशस्त्रीकरण आदि के लिए काम किया था।
भारत शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भी गुटनिरपेक्ष आंदोलन की उपादेयता को स्वीकार करता है गुटनिरपेक्ष देशों के 18वें शिखर सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू तथा विदेश मंत्री एस जयशंकर ने किया वेंकैया नायडू ने अपने संबोधन में कहा कि आतंकवाद आज दुनिया का सबसे बड़ा खतरा है तथा यह निरंतर अपनी शाखाओं का विस्तार कर रहा है उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान में पाकिस्तान विश्व वैश्विक आतंकवाद का केंद्र है आतंकवाद के विरुद्ध प्रभावी लड़ाई का एकमात्र उपाय इसके विरुद्ध सभी वैश्विक उपायों को मजबूत किया जाना है ऐसे उपायों के द्वारा ही आतंकवाद तथा इसके समर्थकों से निपटा जा सकता है, उन्होंने अपने संबोधन में यह भी कहा कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन को प्रभावशाली समूह बने रहने के लिए अपने कार्यों पर पुनर्विचार की आवश्यकता है इसके लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन को विश्व की समकालीन चुनौतियों जैसे आतंकवाद, वैश्विक संस्थाओं में सुधार, जीवंत विकास तथा दक्षिण सहयोग आदि के लिए अपनी प्रभावशीलता दिखानी होगी उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण तथा तीव्र तकनीकी विकास के कारण 21वीं शताब्दी में अप्रत्याशित बदलाव हो रहे हैं जब हम जीवंत विकास तथा अपनी जनता के कल्याण को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं तो हमें यह सोचना होगा कि हमारा भविष्य एक दूसरे के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है फिर भी पिछले 2 शिखर सम्मेलनों से भारत की भागीदारी का स्तर प्रधानमंत्री के स्तर का नहीं रहा है 2016 के 17 वे सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री ने हिस्सा नहीं लिया था समीक्षकों का मानना है कि इतने बड़े गुट में प्रधानमंत्री की भागीदारी ना होने से भारत की दीर्घकालीन हित जैसे सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता में भारत को नुकसान हो सकता है इसके पहले केवल एक बार भारत के प्रधानमंत्री चरण सिंह ने देश में राजनीतिक अस्थिरता के चलते 1979 की हवाना सम्मेलन में भाग नहीं लिया था, भारत एक बार 1983 में सातवें शिखर सम्मेलन की मेजबानी भी कर चुका है ।
समकालीन विश्व में गुटनिरपेक्ष आंदोलन का औचित्य –
1991 में सोवियत संघ के विघटन तथा शीत युद्ध की समाप्ति के बाद कई समीक्षकों ने यह सवाल उठाया है कि वर्तमान परिवेश में गुटनिरपेक्ष आंदोलन औचित्य हीन हो गया है यह बात सच है कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन की उत्पत्ति 1960 के दशक में महा शक्तियों के 2 सैनिक गुटों में विभाजित शीतयुद्ध की प्रवेश में हुई थी, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन का उद्देश्य केवल गुटों से अलग रहने की नीति तक सीमित नहीं है बल्कि इसका अर्थ गुट बंदी से दूर रहकर सभी मुद्दों में अपनी मान्यताओं के आधार पर स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करना है स्वतंत्र विदेश नीति की आवश्यकता आज भी बनी हुई है वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिवेश में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के महत्व को हम निम्न बिंदुओं के माध्यम से रेखांकित कर सकते हैं
सोवियत संघ के विघटन के उपरांत शीत युद्ध का अंत हो गया 1992 में सोवियत के सैनिक गठबंधन वार्सा पैक्ट का विघटन हो गया परिणामस्वरूप विश्व राजनीति में एक ध्रुवीय व्यवस्था के लक्षण दिखाई देने लगे क्योंकि अमरीका और पश्चिमी देशों के सैनिक गठबंधन का अस्तित्व ज्यों का त्यों बना रहा इसके विपरीत नाटो का पूर्वी यूरोप के देशों में विस्तार किया गया वर्तमान में नाटो एक वैश्विक पुलिस मैन की तरह है इस एक ध्रुवीय व्यवस्था में विकासशील देशों की राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता के खतरे बढ़ रहे हैं इसलिए एक नैतिक संतुलन कार्य मंच के रूप में गुटनिरपेक्ष आंदोलन विकासशील देशों की विदेश नीति की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए आज भी आवश्यक है।
वर्तमान युग वैश्वीकरण का युग है जिसमें नव उदारवादी विचारधारा से समर्थित बाजारों प्रतियोगिता की उत्कृष्टता का सिद्धांत स्वीकार किया गया है वर्तमान व्यवस्था में वही देश आर्थिक रूप से सफल हो सकते हैं जो आर्थिक और तकनीकी दृष्टि से विश्व प्रतियोगिता का सामना करने में समर्थ है इसलिए वर्तमान असंतुलित विश्व अर्थव्यवस्था में विकासशील देशों के हितों की रक्षा के लिए इन्हें एक मंच की आवश्यकता है और गुटनिरपेक्ष आंदोलन सामूहिक रूप से इनके आर्थिक हितों की रक्षा के लिए आवश्यक है।
विश्व व्यापार वार्ताओं तथा जलवायु परिवर्तन वार्ता में विकासशील देशों के पक्ष को सशक्त रूप से प्रस्तुत करने के लिए भी दक्षिण की देशों को एक प्रभावी मंच की आवश्यकता है इस पुष्टि से गुट निरपेक्ष आंदोलन विकासशील देशों तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के बाद देशों का सबसे बड़ा संगठन है वर्तमान समय में विश्व की अनेक समस्याएं ऐसी हैं जिन पर विकसित और विकासशील देशों में मतभेद होते हुए भी उनकी मध्य आपसी सहयोग की आवश्यकता है। वर्तमान वैश्विक समस्याओं जैसे आतंकवाद, मानव अधिकारों का उल्लंघन, जलवायु परिवर्तन, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में सुधार आदि के समाधान में विकासशील देशों का सहयोग प्राप्त करने तथा उनके हितों की रक्षा के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन एक सशक्त माध्यम सिद्ध हो सकता है।
विकासशील देशों में सामूहिक आत्मनिर्भरता तथा विकास की प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए आपसी सहयोग की आवश्यकता है जिसे दक्षिण सहयोग के नाम से जाना जाता है वर्तमान में दक्षिण सहयोग की प्रबल संभावनाएं मौजूद हैं क्योंकि विकासशील देशों में ही कई देश है जैसे भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका आदि तकनीकी और आर्थिक दृष्टि से काफी आगे बढ़ चुके हैं इन तीनों देशों ने दक्षिण सहयोग को बढ़ाने के लिए 2003 में इब्सा नामक संगठन की स्थापना की है गुटनिरपेक्ष आंदोलन आज भी दक्षिण दक्षिण सहयोग के लिए प्रतिबंध है तथा इस को आगे बढ़ाने के लिए एक व्यापक माध्यम है।
गुट निरपेक्ष आंदोलन शिखर सम्मेलनों की सूची (1961 से अब तक):
क्रमांक | दिनांक | स्थान (शहर व देश) |
पहला | 01 से 06 सितम्बर 1961 | बेलग्रेड, यूगोस्लाविया |
दूसरा | 05 से 10 अक्टूबर 1964 | काइरो, संयुक्त अरब गणराज्य |
तीसरा | 08 से 10 सितम्बर 1970 | ल्यूसाका, जाम्बिया |
चौथा | 05 से 09 सितम्बर 1973 | आल्जियर्स, अल्जीरिया |
पाँचवा | 16 से 19 अगस्त 1976 | कोलंबो, श्री लंका |
छठा | 03 से 09 सितम्बर 1979 | हवाना, क्यूबा |
सातवाँ | 07 से 12 मार्च 1983 | नयी दिल्ली, भारत |
आठवाँ | 01 से 06 सितम्बर 1986 | हरारे, जिम्बाब्वे |
नौवाँ | 04 से 07 सितम्बर 1989 | बेलग्रेड, यूगोस्लाविया |
दसवां | 01 से 06 सितम्बर 1992 | जकार्ता, इंडोनेशिया |
ग्यारहवाँ | 18 से 20 अक्टूबर 1995 | कार्टेजीना दे इंडियास, कोलम्बिया |
बारहवाँ | 02 से 03 सितम्बर 1998 | डर्बन, दक्षिण अफ्रीका |
तेरहवाँ | 20 से 25 फरवरी 2003 | कुआला लंपुर, मलेशिया |
चौदहवाँ | 15 से 16 सितम्बर 2006 | हवाना, क्यूबा |
पंद्रहवाँ | 11 से 16 जुलाई 2009 | शर्म एल शीक, मिस्र |
सोलहवाँ | 26 से 31 अगस्त 2012 | तेहरान, ईरान |
सत्रहवाँ | 13 से 18 सितम्बर 2016 | कराकस, वेनेजुएला |
अठारहवाँ | 25 से 26 अक्टूबर 2019 | अज़रबैजान |
उन्नीसवाँ | वर्ष 2023 के अंत में | युगांडा |
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