बौद्ध धर्म संक्षिप्त का विवरण||बौद्ध धर्म की शिक्षा, सिद्धांत एवं पतन

बौद्ध धर्म संक्षिप्त का विवरण || बौद्ध धर्म की शिक्षा, सिद्धांत एवं पतन के कारण| Notes on buddhism teaching of buddha buddhist council causes of decline

बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे, जिनका जन्म 563 ई.पू. में कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी नामा का स्थान पर हुआ था। गौतम बुद्ध का बचपन का नाम – सिद्धार्थ, पिता- शुद्धोधन, माता- महामाया, पत्नी- यशोदा, पुत्र- राहुल था।

गौतम बुद्ध ने निम्नलिखित 4 दृश्य देखे, जिसके फलस्वरूप उनके मन में वैराग्य की भावना उठी –
1) वृद्ध व्यक्ति ।
2) बीमार व्यक्ति।
3 )मृत व्यक्ति।  
4) प्रसन्न मुद्रा में सन्यासी।
बुध ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग किया। बौद्ध ग्रंथों में इस घटना को महाभिनिष्क्रमण कहां गया है। बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति  उरुवेला (बोधगया) में निरंजना नदी के किनारे पीपल वृक्ष के नीचे हुई थी। इस घटना को बौद्ध ग्रंथों में निर्वाण कहा गया है। ज्ञान प्राप्ति के उपरांत बुद्ध गया से सारनाथ पहुंचे, जहां बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश दिया। इस घटना को धर्मचक्रप्रवर्तन कहां गया।
बुद्ध जीवन प्रर्यात एक स्थान से दूसरे स्थान अपने धर्म का प्रचार -प्रसार करते रहे। उन्होंने सबसे अधिक समय कौशल  (श्रावस्ती) में बताया। जीवन के अंतिम वर्ष में बुद्ध कुशीनगर गए और वहीं पर सुभद्र को अंतिम उपदेश दिया। 80 वर्ष की अवस्था में 483 ई. पू. में कुशीनगर में ही इनकी मृत्यु हो गई, जिस बौद्ध ग्रंथों में महापरिनिर्वाण कहां गया है। Notes on buddhism teaching of buddha buddhist council causes of decline

बौद्ध धर्म के सिद्धांत

     • चार आर्य सत्य
बौद्ध धर्म का मूल आधार चार आर्य सत्य है जो हैं
1)दुखः – बुध के अनुसार जगत में सार्वत्र दुखःहै।
2)दुखः समुदाय – दुखः समुदाय, अर्थात – दुखः उत्पन्न होने के कारण है। बौद्ध धर्म में दुखः के कारणों को  प्रतीत्य समुत्पाद (कारनता सिद्धांत) नामक बौद्ध सिद्धांत में द्वादश निदान के अंतर्गत समझाया गया है। द्वदश निदान के अंतर्गत दुखः हेतू 12 तत्वों को क्रमिक रूप से उत्तरदाई माना गया है, जिनमें से पूर्ववर्ती तत्व अपने परवर्ती तत्व  का कारण है। यह 12 तत्व है- अविद्या, संस्कार, विज्ञान, नाम- रूप,षडायतन, स्पर्श, वेदना, तृष्णा, उपादान, भव, जाति, जरा -मरण। इसी प्रकार दुख का मूल कारण अविद्या है। Notes on buddhism teaching of buddha buddhist council causes of decline
प्रतीतय समुत्पाद बौद्ध दर्शन का मूल तत्व है। क्षणिकवाद नामक बौद्ध सिद्धांत भी प्रतीत्यसमुत्पाद से ही उत्पन्न हुआ है, जिसके अनुसार संसार की प्रत्येक वस्तु क्षण भंगुर है। चूंकि वस्तुओं की उत्पत्ति, स्थिति का विनाश तीनों एक ही क्षण में होते हैं, जिसके कारण ही सांसारिक पदार्थ,जो क्षणिक है, में स्थायित्व दिखाई देता है।
3) दुखः निरोध-दुखः के निरोध या निवारण के लिए अविद्या का उन्मूलन आवश्यक है।
4) दुःख निरोधगामिनी प्रतिपदा – अष्टांगिक मार्ग ही दुख निरोधगामिनी प्रतिपदा है।

• अष्टांगिक मार्ग 

अष्टांगिक मार्ग के अंतर्गत निम्नलिखित 8 आचरणों के पालन पर बल दिया गया है –
  1. सम्यक् दृष्टि – अर्थात् सत्य और असत्य, सदाचार दुराचार के विवेक द्वारा चार आर्य सत्यों की परख
  2. सम्यक् संकल्प – अर्थात् आसक्ति, द्वेष, हिंसा से मुक्त विचार रखना।
  3. सम्यक् वाणी – अर्थात् सदा सत्य तथा मृदुवाणी का प्रयोग करना जो धर्म सम्म्त हो।
  4. सम्यक् कर्म – अर्थात् अच्छे कर्मों में संलग्र होना।
  5. सम्यक् आजीव- अर्थात् विशुद्ध रूप से सदाचार पालन करके, जीवन, निर्वाह करना।
  6. सम्यक् व्यायाम – अर्थात् नैतिक मासिक आध्यात्मिक उन्नति के विवेकपूर्ण प्रयत्न।
  7. सम्यक् स्मृति – अर्थात् अपने कर्मों के प्रति विवेक तथा सावधान निरन्तर स्मरण रखना।
  8. सम्यक् समाधि- अर्थात् चित्त की समुचित एकाग्रता।
अष्टांगिक मार्ग के अनुशीलन से व्यक्ति निर्वाण की ओर अग्रसर होता हैं। अष्टांगिक मार्ग के अंतर्गत अधिक सुखपूर्ण जीवन व्यतीत करना या अत्यधिक काया -क्लेश में संलग्न होना दोनों को वर्जित किया है। उन्होंने इस संबंध में माध्य प्रतिपदा (मध्य मार्ग) को अपनाया। Notes on buddhism teaching of buddha buddhist council causes of decline
   • मोक्ष
 बौद्ध धर्म के अनुसार जीवन का चरम लक्ष्य निर्वाण प्राप्ति है। निर्वाण का अर्थ है- दीपक का भूझ जाना, अर्थात जीवन -मरण के चक्र से मुक्त हो जाना। बौद्ध धर्म में मोक्ष प्राप्ति हेतु चार आर्य सत्य का ज्ञान, अष्टांगिक मार्ग ,त्रिरत्न (बुद्ध ,धम्म व संघ) एवं 10 शीलव्रत के पालन को जरूरी माना गया है। बौद्ध धर्म के अनुसार निर्वाण इसी जीवन में प्राप्त हो सकता है, परंतु महापरिनिर्वाण मृत्यु के बाद ही संभव है।
 • बौद्ध संघ
बुद्ध ने बुद्ध धर्म के प्रचार – प्रसार हेतु बौद्ध संघ का गठन किया था प्रारंभ में संघ में स्त्रियों को शामिल नहीं किया जाता था, किंतु आगे अपने शिष्य आनंद के निवेदन पर बुद्ध ने प्रजापति गौतमी को प्रथम महिला के रूप में संघ में शामिल कर लिया।

बौद्ध संगीति/ सम्मेलन

  बौद्ध धर्म में 4 बौद्ध संगीतियों का आयोजन बौद्ध साहित्य की रचना एवं संकलन के लिए किया गया था।
बौद्ध धर्म महासम्मेलन या संगीतियाँ
संगीति (समय) स्थल संगीति अध्यक्ष शासनकाल परिणाम
प्रथम बौद्ध संगीति (483 ई.पू.) सप्तपर्णि गुफा, राजगीर (बिहार) महाकस्सप अजात शत्रु (हर्यक वंश) बौद्व धर्म के सिद्धान्तों और संघ के नियमों को निर्धारित करना और लिपिबद्ध करना। बुद्ध के शिष्य आनन्द और उपालि क्रमश धर्म व विनय के प्रमाण माने गये।
द्वितीय बौद्ध संगीति (383 ई.पू.) (बुद्ध के निर्वाण के 100 वर्ष बाद) तृतीय बौद्ध संगीति (1250 ई.पू.) चुल्लबग्गा, वैशाली (बिहार) महाकद्यायन कालाशोक (शिशुनाग वंश) इस सभा में भिक्षुकों के दो स्पष्ट वर्ग बन गए: (1) स्थविर (2) महासांघिक।
तृतीय बौद्ध संगीति (1250 ई.पू.) पाटलिपुत्र (बिहार) मोग्गलिपुत्र तिस्स अशोक (मौर्य वंश) इस सभा में पिटकों के दार्शनिक और आध्यात्मिक तत्वों का निरूपण हुआ। विदेशों में धर्म प्रचारक भेजे गये।
चतुर्थ बौद्ध संगीति (प्रथम शताब्दी ई.पू.) कुण्डलवन (कश्मीर) वसुमित्र कनिष्क (कुषाण शासक) बौद्ध धर्म ‘हीनयान’ एवं ‘महायान’ नामक दो स्पष्ट व स्वतंत्र सम्प्रदायों में विभक्त हो गया।

 

हनीयान एवं महायान में अंतर

 हनीयान का शाब्दिक अर्थ है-  निम्न मार्ग। यह लोग बौद्ध धर्म के प्राचीन आदर्शों को मूल रूप में बनाए रखना चाहते थे। हनीयान में बुध को एक महापुरुष माना जाता था। हनीयान का आदर्श अर्हत् पद को प्राप्त करना था, जो व्यक्ति अपनी साधना से निर्वाण प्राप्त करते हैं, उन्हें  अर्हत् कहां जाता है। हनीयान व्यक्तिवादी धर्म है, जिसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने प्रयत्नों से ही मोक्ष प्राप्त करना चाहिए। हनीयान में मांस खाना वर्जित है।  हनीयान कोई तीर्थ नहीं मानते। हनीयायी  मूर्तिपूजक नहीं थे। हनियान के ग्रंथ सामान्यताः पालीभाषा में है। हिनयानियों का प्रचार-  प्रसार प्रमुख: दक्षिण भारत, लंका, वर्मा, और थाईलैंड में हुआ। Notes on buddhism teaching of buddha buddhist council causes of decline
महायान का शाब्दिक अर्थ है- उत्कृष्ट मार्ग। इसे बोधिसत्वयान भी कहते हैं। यह लोग बौद्ध धर्म के प्राचीन आदर्शों के समय के साथ परिवर्तन या सुधार चाहते थे। महायान में बौद्ध को देवता माना जाता था। महायान का आदर्श बोधिसत्व है। बोधिसत्व मोक्ष प्राप्ति के बाद भी दूसरे परंतु प्राणियों की मुक्ति का निरंतर प्रयास करते हैं। महायान में मांस खाने पर कोई प्रतिबंध नहीं था। महायान चार तीर्थ को मानते हैं-  लुंबिनी, बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर। महायानी मूर्तिपूजाक थे। बुद्ध की मूर्तियों को निर्मित करने का प्रथम श्रेय पहली शताब्दी ई. में मथुरा कला को दिया जाता है। महायान के ग्रंथ सामान्यतः भाषा में है। महायानियों का प्रचार- प्रसार मुख्यतः उत्तर भारत, चीन, तिब्बत, जापान, कोरिया में हुआ। Notes on buddhism teaching of buddha buddhist council causes of decline
आगे हीनयान वैभाषिक सम्प्रदाय (बाह्यार्थ प्रत्यक्षवाद) एवं सौत्रान्तिक सम्प्रदाय (बाह्यार्थानुमेयवाद) नामक उप- संप्रदायों में, जबकि महायान माध्यमिक शून्यवाद एवं योगचार, विज्ञानवाद में विभाजित हो गया। कालांतर में बौद्ध धर्म के कुछ नवीन संप्रदाय भी स्थापित हुए, जैसे- वज्रयान सहजयान आदि। 

बौद्ध साहित्य

• पाली भाषा में
1) सुप्तपिटक– आनंद द्वारा लिखित इस  पिटक में बौद्ध भिक्षु के उपदेश संगृहित है।
2) विनयपिटक– उपलि द्वारा लिखित इस पिटक में भिक्षुओं हेतु आचार – विचार एवं नियम संगृहित है।
3) अभिधम्मपिटक पिटक -मोगलिपुत्ततिस्य द्वारा लिखित इस पिटक में बौद्ध धर्म के दर्शनिक सिद्धांतों का वर्णन है।
4) जातक कथाएं – इनकी संख्या 549 है, जिनमें बुद्ध के पूर्वजन्म की कथाएं हैं।
5) दीपवंश एवं महावंश – इनमें सिंहल द्वीप (श्रीलंका) का इतिहास उल्लेखित है।
6) मिलिंदपन्ह्यो – नागसेन द्वारा लिखित इस ग्रंथ में यूनानी राजा मिनाण्डर (मिलिंद) व बौद्ध भिक्षु नागसेन के मध्य वर्ता का वर्णन है।
• संस्कृत भाषा में 
1) बुद्धचरित – अश्वघोष द्वारा लिखित महाकाव्य।
2) सौंदरानंद – अशोक घोष द्वारा लिखित महाकाव्य।
3) सारिपुत्र प्रकरण –  अश्वघोष द्वारा लिखित नाटक।

बौद्ध धर्म का पतन

7 वीं शताब्दी तक बौद्ध धर्म की निरंतर प्रगति होती रही, किंतु इसके पश्चात इसका क्रमिक ह्वास प्रारंभ हुआ तथा अन्तोगत्व 12वीं शताब्दी तक यह धर्म अपने मूल भूमि से विलुप्त हो गया। बौद्ध धर्म के पतन हेतु विभिन्न कारणों को उत्तरदाई माना गया है, जैसे –
1) बौद्ध संघ में विभेद एवं विभाजन – कनिष्क के समय में बौद्ध धर्म हनीयान एवं महायान संप्रदाय में बंट गया था तत्पश्चात इन दोनों संप्रदायों के अनेक संप्रदाय बन गए
2) ब्रह्मणवादी धर्म से समझौता – कालांतर में बौद्ध धर्म ने परिस्थितियों से समझौता करते हुए हिंदू धर्म की पूजा पद्धति एवं संस्कारों को अपना लिया, जिससे बौद्ध धर्म भी हिंदू धर्म के समान कर्मकांडी एवं अंधविश्वासी बन गया। उदाहरणार्थ – महाज्ञानियों में बुध एवं बोधिसत्वों की मूर्ति पूजा करना प्रारंभ कर दिया।
3) बौद्ध संघ में महिलाओं का प्रवेश – बौद्ध संघ में महिलाओं के प्रवेश से वृक्षों का चारित्रिक पतन हुआ। बौद्ध धर्म की लोकप्रियता कम हो गई।
4) वज्रयान संप्रदाय – बौद्ध धर्म का एक समुदाय वज्रयान  कहलाया, जिसमें तांत्रिक साधना द्वारा लोगों अपनी और आकर्षित किया जाता था। इस संप्रदाय में साधना हेतु मांस सुरा एवं सुंदरियों का उपभोग किया जाने लगा, जिससे बौद्ध धर्म का मूल स्वरूप ही नष्ट हो गया।
5) बौद्ध धर्म में सुधार ना होना – महात्मा बुध की मृत्यु के उपरांत बौद्ध धर्म में किसी ऐसे महापुरुष का जन्म नहीं हुआ, जो उस में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त कर बौद्ध धर्म को सही दिशा दे सकता।
6) हिंदू धर्म में सुधार – कालांतर में हिंदू धर्म में शंकराचार्य,रामानुजाचार्य जैसे महान आचार्य हुए, जिन्होंने हिंदू धर्म की व्याख्या नए सिरे से कर इसे अधिकाधिक लोगों के करीब लाया। यहां तक कि खुद को भी विष्णु का एक अवतार मानकर हिंदू धर्म में शामिल कर लिया गया। इसके परिणाम स्वरूप बहुसंख्यक बौद्धों ने हिंदू धर्म ग्रहण कर लिया।
7) तुर्क आक्रमण – जब बौद्ध धर्म की लोकप्रियता दिन – प्रतिदिन कम होती जा रही थी, उसी समय तुर्कों ने भारत पर आक्रमण कर बौद्ध मठों एवं स्मारकों आदि को खंडित कर बहु संख्या के बौद्ध भिक्षु की हत्या कर दी। आक्रमण के उपरांत अधिकांश बौद्ध भिक्षु तिब्बत भाग गए, जबकि बचे हुए में से कुछ ने हिंदू या इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। इस प्रकार ऊपर उल्लेखित समस्त कारणों से बौद्ध धर्म, जिस भूमि में जन्मा था, उसी भूमि में विलुप्त हो गया।

दोस्तों यह तो थी बौद्ध धर्म संक्षिप्त का विवरण, बौद्ध धर्म के सिद्धांत, अष्टांगिक मार्ग, बौद्ध संगीति/ सम्मेलन, हनीयान एवं महायान में अंतर तथा बौद्ध धर्म का पतन से सम्बंधित जानकारी भारतीय संस्कृति में जैन और बौद्ध धर्म का योगदान तथा बौद्ध एवं महावीर का तुलनात्मक विवेचन करेंगे। तो बने रहिए यूपीएससी आईईएस गुरु के साथ 🙂  

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