बहमनी साम्राज्य (1346-1519 ई.) (Bahmani Kingdom) Notes

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इससे पहले हमने आपको विजय नगर का शासन प्रबन्ध के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आपको बहमनी साम्राज्य के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

बहमनी साम्राज्य (1346-1519 ई.) (Bahmani Kingdom)


मुहम्मद तुगलक ने दक्षिण के अधिकांश भाग पर अधिकार करने के बाद वहाँ पर सुदृढ़ शासन व्यवस्था स्थापित करने का प्रयत्न किया। उसके प्रशासनिक अंगो में अमीरान-ए-सदह (जो सम्भवतः सौ ग्रामों के समूह पर नियुक्त अधिकारी होता था) सबसे अधिक महत्वपूर्ण था। ये अधिकारी ‘सादी’ भी कहलाते थे। इनके अधिकार क्षेत्र में सेना तथा राजस्व दोनों थे। इसलिए ये बड़े शक्तिशाली हो गये। जब तुगलक शासन के विरुद्ध विद्रोह हो तो सादी अमीरों ने भी विद्राहियों का साथ दिया। इन विद्रोहों का दमन करने के लिए सुल्तान स्वयं भड़ौंच आया। उसने दक्षिण के अपने वायसराय अमीर-उल-मुल्क को दौलताबाद के अमीरान-ए-सदह के लोगों को पकड़कर भड़ौंच भेजने का आदेश दिया किन्तु वह सुल्तान की अवज्ञा करते हुए विद्रोहियों से जा मिला और दौलताबाद के वायसराय को मार भगाया। अमीरों ने मिलकर दौलताबाद के एक वरिष्ठ अमीर इस्माइल को अपना नेता चुना। इस्माइल ने अमीरों के एक प्रमुख व्यक्ति हसन को जफरखाँ की उपाधि प्रदान की। जब सुल्तान को इस विद्रोह की सूचना मिली तो उसने दौलताबाद का घेरा डाल दिया।

इस्माइल अपनी सेना सहित दुर्ग में बन्द हो गया। किन्तु गुजरात के विद्रोह के कारण मुहम्मद तुगलक वहाँ से चल पड़ा। इसी समय दौलताबाद में जफरखाँ अपनी सेना लेकर आ धमका। उसने तुगलक सुल्तान की सेना को पराजित कर इस्माइल को मुक्त कराया। इस विजय से जफरखाँ की प्रतिष्ठा बहुत बढ़ गयी। इस्माइल ने परिस्थितियों को देखते हुए अपनी सत्ता जफरखाँ के सुपुर्द कर दी। 1346 ई. में जफरखाँ ने अलाउद्दीन हसन बहमनशाह की उपाधि धारण की। इस प्रकार एक नये बहमनी साम्राज्य की स्थापना हुई।

1. अलाउद्दीन हसन बहमनशाह (1346-58) – अलाउद्दीन हसन बहमनशाह शक्तिशाली शासक सिद्ध हुआ। निरन्तर युद्धों के परिणामस्वरूप वह अपने साम्राज्य की सीमाओं को उत्तर में बानगंगा से लेकर दक्षिण में कृष्णा तक और पश्चिम में दौलताबाद से पूर्व में भोगिरी तक फैलाने में समर्थ हुआ। अपनी राजधानी गुलबर्गा में उसने सुयोग्य शासन व्यवस्था की नींव डाली। 11 फरवरी, 1358 ई. को हसन की मृत्यु हो गयी।

2. मुहम्मदशाह प्रथम (1358-77 ई.) – हसन का सबसे बड़ा पुत्र मुहम्मदशाह प्रथम उसका उत्तराधिकारी हुआ। इसने राज्य की शासन व्यवस्था को ठोस आधार प्रदान किया। उसका सम्पूर शासन काल विजयनगर तथा तेलंगाना में कपायनायक एवं उसके पुत्र विनायक देव से युद्ध करने में बीता। तेलंगाना के युद्ध में उसने वहाँ के शासक को पराजित कर दिया और उसको गोलकुण्डा के प्रदेश को मुहम्मद को समर्पित करना पडा। उसको अपना राज सिंहासन तख्त-ए-फिरोज भी बहमनी को देना पड़ा। इसके काल में बारूद का उपयोग पहली बार हुआ। इससे सैनिक संगठन में एक नयी क्रान्ति पैदा हुई। मुहम्मद ने अपने शासन के अन्तिम दस वर्ष प्रशासन को गठित करने और साम्राज्य को शक्तिशाली बनाने में बिताये। 1377 ई. में मुहम्मदशाह की मृत्यु हो गयी।

  1. मुजाहिदशाह – मुहम्मदशाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र मुजाहिदशाह द्वितीय गद्दी पर बैठा। उसने अपने पिता की विजयनगर के विरुद्ध युद्ध करने की नीति को जारी रखा। उसने विजयनगर को घेर लिया। किन्तु हस्तगत करने में सफल नहीं हुआ और राजा से सन्धि करके गुलबर्गा को लौट गया। उसके प्राण लेने के लिए षड्यन्त्र रचा गया, जिसके परिणामस्वरूप उसके एक सम्बन्धी दाऊदखाँ का सिंहासन पर अधिकार हो गया किन्तु दाऊद का भी मई 1378 ई. में वध कर दिया गया।
  2. अन्य राजा – उसका उत्तराधिकारी उसका छोटा पुत्र महमूदशाह हुआ जिसमें योग्यता तथा चरित्र का अभाव था दक्षिणी तथा विदेशी अमीरों में संघर्ष पूर्ववत् चलता रहा। प्रतिद्वन्द्वी अमीरों तथा सूबेदारों ने राज्य के हितों की अवहेलना करके अपने स्वार्थो की ओर अधिक ध्यान दिया। उन्होंने राजशक्ति पर अधिकार कर लिया और स्वतंत्र बन बैठे। राज्य का आकार कम हो गया और महमूद की सत्ता राजधानी के निकटवर्ती छोटे से प्रदेश तक ही सीमित रह गयी। महमूद की मृत्यु के उपरान्त एक के बाद एक तीन सुल्तान हुए किन्तु उसकी भाँति वह भी पहले कासिम बरीद-उल-मुमालिक और उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र अमीर अली बरीद के हाथों की कठपुतली बने रहे। इस वंश का अन्तिम सुल्तान कलमुल्लाशाह हुआ। 1527 ई. में उसकी मृत्यु के साथ बहमनी राज्य का भी अन्त हो गया और उसके भग्नावशेशों पर पाँच राज्य उठ खड़े हुए। वे इस प्रकार थे
    1. बीजापुर का आदिलशाही राज्य
    2. अहमदनगर का निजामशाही ने की थी।
    3. बरार का इमादशाही राज्य।।
    4. गोलकुण्डा का कुतुबशाही राज्य।
    5. बीदर का बरीदशाही राज्य।

1. बीजापुर – बीजापुर राज्य की स्थापना यूसूफ आदिलशाह ने की थी। अपने प्रारम्भिक जीवन में वह गुलाम था। इसको महमूद गवॉ ने खरीद लिया था। वह योग्य तथा प्रतिभाशाली था। इसलिए वह महमूद गवॉ के काल में उच्च पद पर पहुँच गया था। 1489-90 ई. में वह स्वतंत्र शासक बन बैठा था। वह शिया सम्प्रदाय का था किन्तु उसके काल में सभी को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। उसने अपने यहाँ हिन्दुओं को भी सरकारी नौकरियाँ दे रखी थीं। उसका शासन उदार तथा न्यायपूर्ण था। 1490 ई. में आदिलशाह की मृत्यु हो गयी। उसके उत्तराधिकारी निर्बल निकले। उनके शासनकाल में कुचक्र तथा युद्ध चलते रहे। बीजापुर का छठा सुल्तान इब्राहिम आदिलशाह द्वितीय (1579-1626 ई.) योग्य था। 1618-19 ई. में उसने बीदर को बीजापुर में मिला लिया था। इसके शासनकाल में बीजापुर और शाहजहाँ का संघर्ष हुआ। 1686 ई. में औरंगजेब ने इसको अपने साम्राज्य में मिला लिया था।

2. गोलकुण्डा – गोलकुण्डा का मुस्लिम राज्य वारंगल के पुराने हिन्दु राज्य के खण्डहरों पर स्थापित हुआ था। उसका संस्थापक बहमनी सल्तनत का कुतुबशाह नामक एक तुर्की का अफसर था। प्रारम्भ में वह अपने स्वामी के प्रति राजभक्त बना रहा किन्तु 1512 ई. अथवा 1518 ई. के लगभग उसने विद्रोह करके स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली। उसका शासन काल लम्बा तथा समृद्धशाली था। 1543 ई. में 90 वर्ष की उम्र में उसके पुत्र जमशेद ने उसकी हत्या कर दी। जमशेद ने सात वर्ष तक राज्य किया। तीसरे सुल्तान इब्राहिम के शासन काल में गोलकुण्डा का विजयनगर से संघर्ष हो गया। इब्राहिम की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारियों की दुर्बलता के कारण गोलकुण्डा की शासन व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयी। 1687 ई. में औरंगजेब ने उसे जीत कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था।

3. अहमदनगर – अहमदनगर राज्य का संस्थापक निजामुल मुल्क बहरी का पुत्र मलिक अहमद था। उसका पिता निजामुन मुल्क हिन्दू से मुसलमान हुआ था और बहमनी सुल्तान महमूद गवॉ के मरने के बाद वह बहमनी का प्रधानमंत्री बना था। 1490 ई. में उसने अपने को स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया। उसने अहमदनगर शहर को अपनी राजधानी बनाया। 1499 में उसने दौलताबाद पर अधिकार कर लिया जिससे उसे अपना राज्य संगठित करने में सहायता मिली और 1508 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। उसके बाद उसका पुत्र बुरहान निजामशाह आया, जिसने अपने पैंतालीस वर्षों के शासनकाल में पड़ोसी राज्य से युद्ध किये। इस वंश का तीसरा शासक हुसैनशाह 1565 ई. में विजयनगर के विरुद्ध मुस्लिम संघ में संभाला इस राज्य के परवर्ती शासक दुर्बल निकले। 1600 ई. में अकबर ने अहमदनगर को जीत लिया था और अपना सामन्त बना लिया। 1636 ई. में मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया।
4. बीदर – जब बहमनी राज्य के सदरवर्ती प्रान्तों ने अपने आपकों स्वतंत्र घोषित कर दिया तब इसका अवशिष्ट भाग बरीदो की प्रधानता में नाममात्र के लिए बचा रहा। 1526 अथवा 1527 ई. अमीर अली बरीद ने विधिवत कठपुतले बहमना शासक को हटाकर बीदर के बरीदशाही वंश की स्थापना की जो 1618-19 में बीजापुर द्वारा हड़पे जाने तक कायम था।

5. बरार – इस राज्य का संस्थापक फतेह उल्लाह इमादशाह था जिसने 1490 ई. अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया। उसी की उपाधि पर राज्य का नाम बरार का इमादशाही राज्य पड़ा। 1574 ई. में उसे अहमदनगर के सुल्तान ने जीत कर अपने राज्य में मिला लिया।

उपर्युक्त पाँचों राज्यों में बीजापुर तथा गोलकुण्डा दोनों में कुछ योग्य शासक हुए। पाँचों राज्यों का विजयनगर के हिन्दु राज्य से दीर्घकाल तक संघर्ष चलता रहा। अन्त में उन सबने सम्मिलित होकर 1565 ई. में तालीकोट (1565 ई.) के युद्ध में विजयनगर के शासक को पराजित किया। वे आपस में भी लड़ते रहे जिससे दक्षिण की शान्ति तथा समृद्धि में बाधा पड़ी।

यह तो थी बहमनी साम्राज्य की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको भारत में सूफीवाद का उदय के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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