विजयनगर साम्राज्य का शासन-प्रबन्ध Notes

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इससे पहले हमने आपको विजयनगर साम्राज्य की उत्पत्ति के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आपको विजय नगर का शासन प्रबन्ध के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

विजयनगर साम्राज्य का शासन-प्रबन्ध

विजयनगर साम्राज्य लगभग दो शताब्दियों तक शक्तिशाली रूप में चलता रहा, इसके साथ ही शासन वयवस्था भी विकासत हाती गयी। विजयनगर के राजाओं ने शासन व्यवस्था के विकास में काफी रुचि ली। विजयनगरकालीन अभिलेख, साहित्य स्त्रोत एवं विदेशी यात्रियों के विवरण से समकालीन शासन के अच्छे प्रमाण मिलते हैं। विजयनगर की शासन व्यवस्था की विवेचना इस प्रकार की जा सकती है Vijayanagara administration notes in hindi

केन्द्रीय शासन-धर्म सापेक्ष राज्य – विजयनगर का शासन धर्म सापेक्ष था। इसका उद्देश्य मुसलमानों के खिलाफ, हिन्दु संस्कृति, हिन्दु धर्म तथा हिन्दु जनता की रक्षा करना था। राज्य की राजनीति में ब्राह्मणों के ही पास अपूर्ण पद थे। शासकों में धर्मान्धता तथा असहिष्णुता न थी। मुसलमानों पर किसी प्रकार का अत्याचार नहीं किया जाता था। उनको राज्य में सब सुविधाएँ प्राप्त थीं। कुछ राजाओं ने मुस्लिम सैनिकों को भी अपनी सेना में भर्ती किया और उनके लिए मस्जिदों के बनवाने की व्यवस्था की।

राजा की स्थिति – विजयनगर काल में राजा को राय कहा जाता था। शासन की सम्पूर्ण शक्ति राजा में निहित होती थी। उसकी इच्छा ही कानून होती थी। किन्तु वह अत्याचारी नहीं होता था। वह धर्म के अनुसार जनता के हितों को ध्यान में रखकर शासन करता था। प्राचीन भारत की राज्याभिषेक पद्धति के अनुसार इस काल में राजाओं का राज्याभिषेक किया जाता था। राजाओं के चयन में मन्त्रियों और नायकों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती थी।

राज्याभिषेक के समय राजा को टिकराजाओं की भाँति प्रजा-पालन, निष्ठा की शपथ लेनी पड़ती थी। राज्य के सारे युद्ध, शान्ति सम्बन्धी आदेशों की घोषणा दान की व्यवस्था, अधिकारियों की नियुक्तियाँ आदि सभी कार्य राजा द्वारा ही किये जाते थे। राजा के बाद युवराज का पद होता था जो राजा का ज्येष्ठ पुत्र होता था। पुत्र न होने पर राजपरिवार के किसी भी योग्यतम पुरूष को युवराज नियुक कर दिया जाता था। युवराज ही राजा का उत्तराधिकारी होता था। इसी कारण विजयनगर काल में उत्तराधिकार सम्बन्धी संघर्ष की सम्भावना बहुत कम रहती थी।

मन्त्रिपरिषद् – राजा को शासन में सहायता तथा परामर्श देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होती थी जिसकी नियक्ति राजा स्वयं करता था। राजा राज्य के मामलों एवं नीतियों के सम्बन्ध में मन्त्रिपरिषद् की सलाह लेता था, किन्तु राजा उनकी सलाह मानने का बाध्य नहीं था। मन्त्रिपरिषद् का प्रमुख अधिकारी प्रधानमन्त्री होता था। इसके अलावा मन्त्री उपमन्त्री विभागों के अध्यक्ष और राजा के कुछ निकट के सम्बन्धी भी सम्मिलित होते थे। मन्त्रिपरिषद् में सम्भवतः 20 सदस्य होते थे।

विजयनगर प्रान्तीय शासन –

विजयनगर जैसे विशाल साम्राज्य पर प्रशासन के लिए उसे अनेक प्रान्तों में विभाजित किया गया था, ये प्रान्त राज्य या मण्डल कहलाते थे। कुछ इतिहासकारों का मत है कि विजयनगर साम्राज्य 6 प्रान्तों में विभाजित था किन्तु प्रान्तो की यह संख्या लगातार परिवर्तित होती रही। कृष्णदेवराय के शासनकाल में प्रान्तों की संख्या सबसे अधिक थी। प्रत्येक प्रान्त से राज परिवार के व्यक्तियों को ही गवर्नर के रूप में नियक्त किया जाता था। राज परिवार के अलावा भी कुछ कुशल तथा योग्य अधिकारियों को भी शासक नियुक्त कर दिया जाता था।

स्थानीय शासन – प्रान्तों को अनेक मण्डलों में विभाजित किया गया था। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि मण्डल, प्रान्त से बड़ी इकाई थे, किन्तु इस तथ्य की सत्यता की जाँच के लिए कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। जिसे ‘कोट्टम’ या ‘वलनाड़’ कहलाते थे। जिलों को अनेक परगनों में विभाजित किया गया था, जिसको नाडु कहा जाता था। इन नाडुओं को ‘मेला ग्रामों’ में विभाजित किया जाता था। प्रत्येक मेला ग्राम में 50 ग्राम होते थे। प्रशासन की सबसे छोटी इकाई उर (ग्राम) थे। प्रत्येक गाँव को अनेक वार्डो या मुहल्लों में बाँटा जाता था। गाँवों में एक ग्राम पंचायत होती थी जो कि गाँवों में न्याय तथा शान्ति व्यवस्था कायम रखने का काम करती थी। गाँव का मुख्य अधिकारी महानाकाचार्य होता था। गाँवों में लेखक, तौला, चौकीदार आदि कर्मचारी भी होते थे। गाँव की इन संस्थाओं को सम्पत्ति अर्जित करने तथा सार्वजनिक भूमि को बेचने का अधिकार था। यह सभाएँ गामीणों की ओर से सामूहिक ऋण भी ले सकती थीं और गाँव की प्रतिनिधि होने के नाते गाँव की जमीन को दान भी दे सकती थीं। इस प्रकार इन ग्राम सभाओं की स्थिति परिवार के मुखिया की भाँति होती। थी। ये ग्राम सभाएँ राज्य के करों को भी इकट्ठा करती थी। यदि कोई व्यक्ति लगान अदा नहीं करता था तो ये ग्राम सभाएँ उनकी भूमि को जब्त भी कर सकती थीं। Vijayanagara administration notes in hindi
नायकार व्यवस्था –

विजयनगर की शासन व्यवस्था की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता उनकी नायकार व्यवस्था थी। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि विजयनगरकालीन सेनानायकों को नायक कहा जाता था। किन्तु कुछ लोग सहमत नहीं हैं। कुछ अन्य इतिहासकारों का मत है कि नायक भू-सामन्त थे, जिनको राजा वेतन के बदले भूमि देता था, जिससे वे अपनी सेना का खर्च चलाते थे। इनको ‘अमरन’ भी कहा जाता था। भूमि का उपयोग करने के कारण इनको ‘अमर नायक’ भी कहा जाता है। तमिलनाडु में नायकों को सबसे अधिक नियुक्त किया जाता था। ‘नायक’ भूमि की आय का एक भाग सरकारी खजाने में भी जमा करते थे। उनको इसी भमि की आय से राजा की सहायता के लिए सेना भी रखनी पड़ती थी, जिसकी संख्या राजा स्वयं निश्चित करता था। नायकों को अपने क्षेत्र में शान्ति सुरक्षा तथा न्याय की भी व्यवस्था करनी पड़ती थी। उनके क्षेत्र में कहीं चोरी हो जाती थी तो उसकी क्षतिपूर्ति भी उन्हें करनी पड़ती थी।

नायकों को राजधानी में अपने दो सम्पर्क अधिकारी भी पड़ते थे। इनमें से एक नायक की सेना का सेनापति होता था और दूसरा प्रशासनिक एजेण्ट। प्रशासनिक एजेण्ट को ‘स्थान पति’ कहा जाता था। विजयनगर की नायंकार व्यवस्था यूरोप की सामन्ती व्यवस्था के समान थी। यह व्यवस्था कुछ सीमा तक विजयगर साम्राज्य के लिए उपयोगी सिद्ध हुई। किन्तु कालान्तर में इस व्यवस्था में अनेक दोष आ गये थे। अनेक नायक स्वयतंत्र शासक भी बन बैठे थे और उन्होंने आपस में भी युद्ध किये। विजयनगर के निर्बल शासकों के काल में इस प्रकार की घटनाओं के प्रमाण मिलते हैं। परिणामस्वरूप यह व्यवस्था विजयनगर साम्राज्य के पतन का भी कारण बनी।

आयंगार व्यवस्था


विजयनगर शासन की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता आयंगार व्यवस्था थी। इस व्यवस्था के अनुसार एक स्वतंत्र इकाई के रूप में प्रत्येक ग्राम को संगठित किया जाता था और इस ग्रामीण शासकीय इकाई पर शासन के लिए बारह व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता था। इन बारह शासकीय अधिकारियों के समूह को आयंगार कहा जाता था। इन अधिकारियों की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती थी। आयगारों के पद आनुवंशिक हुआ करते थे। वे अपने पदों को बेच तथा गिरवी रख सकते थे। आयगारों को अपने क्षेत्र में शान्ति तथा व्यवस्था बनाये रखने का उत्तरदायित्व सौंपा गया था। इनकी जानकारी के बिना उस क्षेत्र की भूमि को किसी भी व्यक्ति को बेचने तथा दान देने का अधिकार नहीं था। आयंगार के पास एक कर्णिक (लेखाकार) होता था जो भूमि के दस्तावेज तैयार करता था। Vijayanagara administration notes in hindi

यह तो थी विजयनगर साम्राज्य का शासन-प्रबन्ध की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको बहमनी साम्राज्य के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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