सूफीवाद : भारत में सूफी पंथ की शुरूआत

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इससे पहले हमने आपको बहमनी साम्राज्य के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आपको सूफीवाद के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

सूफीवाद

‘सूफी’ शब्द इस्लाम के रहस्यमय धार्मिक विचारों को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त होता है। यह 11वीं शताब्दी तक एक पूर्ण विकसित आंदोलन का रूप ले चुका था। सूफी संत, सूफियों द्वारा कठिन मार्ग को अपनाकर ईश्वर के साथ प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित करने पर जोर देते थे। सूफीवाद अथवा रहस्यवाद 8वीं शताब्दी में उदय हुआ तथा शुरूआती सूफियों में राबिया-अल- अदवई, अलजुनैद तथा बयाजिद बस्तमी का नाम उभर कर आता है। सूफीवाद का मूल आधार ईश्वर, मनुष्य तथा उन दोनों के मध्य जो संबंध, है, वह है प्रेम। उनका मानना है कि इंसान का उदय रूह (आत्मा) कुरबत (दैवी निकटता) तथा हलूल (दैवी रूप में मिलाप) के सिद्धांतों से हुआ है और इंसान और खुदा के रिश्तों से ही प्रेम (पवित्र प्रेम) तथा फना (खुद का समर्पण) अस्तित्व में आए। Sufi movement in india

ऐसे लोगों को सुफी कहा जाता था जिनका हृदय पवित्र होता था, तथा जो अपनी तपस्या तथा खुदा को पाने के लिए प्रेम के सिद्धांतों के द्वारा खुदा से वार्तालाप करते थे। मुरीद (शिष्य) को ईश्वर के साथ यह वार्तालाप करने के लिए प्रक्रिया के लिए मकामात (विभिन्न चरणों) से होकर गुजरना पड़ता था।खानकाह (धर्मशाला) सूफियों के विभिन्न वर्गों की गतिविधियों का केन्द्र होती थी। खानकाह शेख, पीर, या मुरशिद (शिक्षक) द्वारा संचालित होती थी जो अपने मुरीदों के साथ रहा करते थे। समय के साथ खानकाह शिक्षा के महत्वपूर्ण केन्द्रों में तब्दील होती चली गई। बारहवीं शताब्दी तक सूफी विभिन्न रूपों में संगठित हो गए। इन रूपों (सिलसिला) का मतलब कड़ी था तथा यह पीर तथा मुरीद की निरंतर कड़ियों को बतलाता था। पीर की मृत्यु के पश्चात गुम्बद या मकबरा, दरगाह उसके मुरीदों तथा अनुयायियों के लिए केन्द्र बन जाता था।


10वीं शताब्दी में इस्लामी साम्राज्य के सभी समत्वपूर्ण क्षेत्रों में सूफी पंथ का विस्तार हुआ। ईरान, खुरासान, ट्रांसोक्सियाना, मिश्र, सीरिया तथा बगदाद प्रमुख सूफी केन्द्र थे। अल-गजली (1059-1111 ई) सर्वाधिक सम्मानित सूफी संतों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने सूफी रहस्यवाद को इस्लाम में उचित जगह दिलाने के लिए सूफी रहस्यवाद को इस्लामी परम्परा के अनुकूल बनाया। उन्होंने शिष्यों के लिए आध्यात्मिक गुरू के मार्ग दर्शन को अपनाने पर जोर दिया। साथ ही सर्वोच्च सत्ता पैगम्बर साहब के महत्व और उनके नियमों के पालन पर बल दिया।


भारत में सूफी पंथ की शुरूआत

11वीं शताब्दी में हुई। अल हुजवीरी, जिन्होंने उत्तरी भारत में स्वयं को स्थापित किया उन्हें लाहौर में दफनाया गया तथा उन्हें उपमहाद्वीप का सबसे पुराना सूफी संत होने का गौरव प्राप्त हुआ। भारतीय मध्यकालीन इतिहास में प्रमुख सूफी सिलसिले हैं-चिश्ती, सोहरावर्दिया, कादरिया तथा नक्षबंदिया।


सल्तनत काल मे चिश्ती तथा सोहरावर्दी सिलसिले लोकप्रिय थे। पंजाब तथा सिंध में जहा सोहरावर्दी सक्रिय थे, वहीं चिश्ती दिल्ली, राजस्थान तथा गंगा के पश्चिमी क्षेत्रों में प्रेम का संदेश फैला रहे थे। सल्तनत काल के अंत तक वे गंगा क्षेत्र के पूर्वी क्षेत्रों (बिहार तथा बंगाल) और दक्कन तक फैल चुके थे। मध्यकाल में सूफियों ने इस्लामी धर्मतत्व विषयक सिद्धान्तों, जैसे वहादुत-उल-वजूद (जीवन की एकता) का प्रचार-प्रसार करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की तथा जियारत (दरगाहों पर जाने की क्रिया) जैसी आदतों को विकसित करने को भी प्रोत्साहन दिया।

भारत में शुरू हुए सूफी मत की निम्न विशेषताएँ थी –


• सूफी विभिन्न सिलसिलों (क्रमों) में व्यवस्थित थे।

• इनमें से अधिकतर सिलसिलों की शुरूआत प्रसिद्ध सूफी संतों या पीरों ने की थी। उनके नाम पर ये चलते थे तथा शिष्य
उनका अनुसरण किया करते थे।

• सूफियों का मानना था कि खुदा की प्राप्ति के लिए आध्यात्मिक गुरू या पीर की आवश्यकता होती है।

• पीर अपने शिष्यों के साथ खानकाह में रहते थे।

• खानकाह (धर्मशाला) सूफी गतिविधियों का केन्द्र हुआ करती थी।

• खानकाह ज्ञान का एक प्रमुख केन्द्र बनकर उभरे, जो कि मदरसों से सर्वथा भिन्न थे।

• बहुत से सूफी संतों ने संगीतमय धार्मिक सभा अर्थात ‘सम’ का अपनी खानकाह में आनंद उठाया। इस काल के दौरान संगीत की नई विधा कव्वाली का विकास हुआ।

• जियारत या सूफी संतों की दरगाहों की तीर्थयात्रा भी एक महत्त्वपूर्ण रस्म बनकर उभरी।

• सभी सूफी संत चमत्कार में विश्वास करते थे। लगभग सभी पीर खुद के द्वारा किए गए चमत्कारों से जुड़े हुए थे।

• राजतंत्र तथा शासन के बारे में हर सूफी सिलसिले के मत अलग-अलग थे।

चिश्ती सिलसिला


भारत में चिश्ती विचारधारा की स्थापना मुईनुद्दीन चिश्ती ने की थी। प्रतीत होता है कि भारत में वह मुहम्मद गौरी के आक्रमण के समय आए तथा इसके बाद 1206 में अजमेर चले गए। ख्वाजा मुईनुद्दीन की प्रसिद्धि सन् 1235 में उनकी मृत्यु के पश्चात् हुई। मुहम्मद तुगलक ने उनकी कब्र की यात्रा की तथा उसके पश्चात 15वीं शताब्दी में मालवा के महमूद खिलजी द्वारा मस्जिद तथा गुम्बद का निर्माण करवाया गया। मुगल बादशाह अकबर के शासन के पश्चात् इस दरगाह का संरक्षण अपनी ऊंचाई पर पहुंच। चिश्तियों का मानना था –


• प्रेम इंसान तथा खुदा के बीच में एक बंधन है।


•विभिन्न पंथों को मानने वालों के बीच सहनशीलता हो।

• विभिन्न धार्मिक विश्वासों के अनुसरण के बावजूद शिष्यों की स्वीकार्यता हो।

• सबकी भलाई का रवैया हो।


• हिंदू तथा जैन योगियों के संपर्क में रहना।


• सामान्य भाषा का प्रयोग करना।


दिल्ली में चिश्तियों की उपस्थिति

कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के द्वार जानी जाती है जो अपने ग्रह क्षेत्र ट्रांसोक्सियाना से 1221 ई. में दिल्ली में बस गए थे। यह मंगोल आक्रमण का वह काल था जब मंगोलों से बचकर मध्य एशिया के लोग भाग रहे थे। विभिन्न प्रकार के आरोप लगाकर दिल्ली छोड़ने को विवश कर दिया। दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने हालांकि इन आरोपों को खारिज कर दिया, जिसमे सोहरावर्दियों के विरोध को हल्का कर दिया गया।

चिश्ती पीरों ने जिंदगी की सादगी, गरीबी, विनम्रता तथा खुदा के प्रति निस्वार्थ समर्पण पर बल दिया। भौतिक वस्तुओं के परित्याग को उन्होंने इन्द्रियों पर नियंत्रण के लिए आवश्यक बताया जो एक आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए जरूरी है। ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने जोर दिया कि खुदा को पाने का सर्वोच्च तरीका मुसीबत में पडे व्यक्ति की मदद करना, असहाय लोगों की जरूरतों को पूरा करना तथा भूखे को भोजन देना है। वे सल्तानों से किसी भी प्रकार की मदद से इंकार करते थे।

एक अन्य महत्वपूर्ण चिश्ती बाबा फरीदद्दीन गंज-ए-शकर ने मुल्तान तथा लाहौर के बीच रास्ते में हांसी (हरियाणा) में पड़ाव डाला। सल्तनत काल के सबसे विख्यात सूफी संत निजामुद्दीन औलिया थे। उनका समय 14वीं शताब्दी माना जाता है जो राजनीतिक परिवर्तनों तथा उथल-पुथल का काल था। अपने जीवन काल में उन्होंने बलवन की मृत्यु के पश्चात् खिलजी तथा खिलजी के पश्चात् तुगलकों का शासन देखा। निजामुद्दीन औलिया के जीवन के विषय में कई कहानियां प्रचलित है। कहा जाता है कि ख्वाजा ने सुल्तान के दरबार में विभिन्न संघों तथा पक्षों में से किसी से भी मतबल न रखने की कड़ी नीति अपनाई थी, जिससे वे लोगों की नजरों में आदर के पात्र थे। नसीरूद्दीन चिराग, दिल्ली के अन्य लोकप्रिय संत थे। उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिया भूमिका निभाई थी। इन सब खूबियों ने सूफियों को एक वफादर तथा समर्पित शिष्य समुदाय बनाने के योग्य किया। Sufi movement in india


दक्कन में 13वीं शताब्दी में चिश्ती सिलसिला शेख बुरहानुद्दीन गरीब द्वारा स्थापित हुआ। 14 से 16वीं शताब्दी के बीच कई सफी संत गुलवर्ग प्रस्थान कर गए। यहाँ एक परिवर्तन दिखाई देता है कि इस समय तक कुछ चिश्तों संत शासन से दान तथा संरक्षण प्राप्त करने लगे थे। मुहम्मद बंदा नवाज उस क्षेत्र के लोकप्रिय संतों में से एक थे। दक्कन क्षेत्र में बीजापुर शहर सूफी गतिविधियों का महत्वपूर्ण केन्द्र बनकर उभरा।

सोहरावर्दी सिलसिला


इस सिलसिले (पंथ) की स्थापना बगदाद में शियाबुद्दीन सोहरावर्दी ने की थी। यह भारत में बहाउद्दीन जकरिया द्वारा स्थापित हुआ। उसने मुल्तान में आधार बनाकर सोहरावर्दी वर्ग की नींव डाली, जो उस समय कुबाचा के अधीन था। वह कुबाचा के खिलाफ था तथा खुलेआम उसके विरोधी इल्तुतमिश की अच्छाईयों के गुण गाता था। उसके तरीके चिश्तियों से सर्वथा भिन्न थे। चिश्तियों के उलट सोहरावर्टी सुलतान शासकों से दान लेने में परहेज नहीं करते थे। उनका मानना था कि सूफियों को संपत्ति तथा ज्ञान, रहस्यात्मक ज्ञान को हासिल करना चाहिए। सोहरावर्दी संत मानते थे कि गरीबों की सेवा बेहतर ढंग से करने के लिए यह आवश्यक है। उन्होंने धार्मिक विश्वासों के बाहरी प्रकार के अनुसरण करने पर जोर दिया और इल्म (बुद्धि) तथा रहस्यवाद के समन्वय की वकालता की। शेखों के सामने सिर झुकाना आगन्तुकों को पानी पेश करना तथा पंथ में दीक्षा के समय सिर का मुंडन करवाना जैसी प्रथाए नकार दी गई जिनका अनुसरण चिश्ती किया करते थे, उनकी मृत्यु के पश्चात् भी इन सिलसिलों ने पंजाब तथा सिंध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना जारी रखा।

नक्षबंदी सिलसिला


भारत में इस वर्ग की शुरूआत ख्वाजा बहाउद्दीन नक्षबदी ने किया। इस सिलसिले के रहस्यवादियों ने प्रारम्भ में शरीयता के पालन पर जोर दिया तथा हर नवपरिवर्तन अर्थात् बिद्दत दर्शन कसार का सार्वजनिक निंदा की। ख्वाजा बहाउद्दीन नक्षबदईन का उत्तराधिकारी शेख बरकी बिल्लाह दिल्ली के नजदीक ही रहे तथा उनक उत्तराधिकारी शेख अहमद सिरहिन्दी मैं इस्लाम को सभी उदार तथा उनके अनुसार गैर इस्लामी पद्धतियों से परिष्कृत करने का प्रयत्न किया। उसने सम (धार्मिक संगीत) मनने का तथा मंतों की दरगाहों पर जाने का भी पुरजोर विरोध किया। उसने हिन्दु तथा शियाओ के साथ संबंधों का भी जमकर विरोध किया। उसने अकबर द्वारा कई गैर मस्लिमों को नया दर्जा देने की तथा जजिया हटान और गौवध पर प्रतिबंध की जमकर निंदा की। उसके अनुसार वह इस्लाम के स्वर्ण युग का मुजादि़द है। उसने इस सिद्धात को बनाए रखा कि खुदा और इंसान के बीच मालिक तथा गुलाम का संबंध है न कि प्रेमी और प्रेमिका का। उसने जोर दिया कि इंसान का खुदा के प्रति एकमात्र रिश्ता विश्वास तथा खुदा को सजन-कर्ता मानने की जिम्मेदारी का है। उसने रहस्यवादी सिद्धांत तथा रूढ़िवादी इस्लाम की शिक्षाओं में समन्वय लाने का प्रयत्न किया।

कादिरी सिलसिला


कादरिया सिलसिला पंजाब में लोकप्रिय था। शेख अब्दुल कादिर तथा उनके पुत्र अकबर के समय में मुगलों के समर्थक को इस वर्ग के पीरों ने वहादत-अल-वजूद की संकल्पना का समर्थन किया। इस वर्ग के प्रसिद्ध सूफी संत मियां मीर थे जिनके शिष्य जकमारी जहांआरा तथा उसका भाई दारा थे। शेख की शिक्षाओं का प्रभाव राजकुमार के कामों में मिलता। शाह बदक्षनी इस मिलसिले के एक और प्रसिद्ध संत है जिन्होंने कट्टरवादी तत्वों को नकारते हुए घोषणा की थी कि एक नास्तिक जिसने सच्चाई को माया लिया है तथा सत्य का ज्ञान पा लिया है वह एक आस्तिक है, तथा एक आस्तिक जिसे सच्चाई का भाव नहीं है वह नास्तिक है।


मध्यकाल में इस्लाम के कट्टर पंथी विचार तथा उदारवादी विचारों में लगातार संघर्ष देखने को मिलता है। सूफियों में दोनों ही प्रकार की विशेषता मिलती है। एक ओर जहाँ चिश्ती है जो उदार दृष्टिकोण वाले हैं तथा स्थानीय परम्पराओं के समावेश की बात करते हैं, और दूसरी ओर कादिरी पंथ के शेख अब्दुल हक जैसे भी लोग थे जो मानते थे कि इस्लाम की शुद्धता कमजोर रही है। इस्लाम के कट्टरपंथी विचार उलेमाओं द्वारा व्यक्त किए गए थे जिन्होंने शरीयता के अनुसार ही जीवन जीन पर जोर दिया। सूफियों की उदारवादी विचारधार ने कई समर्थक बनाए, जिन्होंने उलेमाओं द्वारा इस्लाम के नियमों की संकीर्ण व्याख्या के विरूद्ध कई तर्क दिए।

यह तो थी सूफीवाद की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको 18 वीं शताब्दी में भारत की राजनैतिक स्थिति और उपनिवेशवादी आक्रमण के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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