18 वीं शताब्दी में भारत की राजनैतिक स्थिति और उपनिवेशवादी आक्रमण

Hello दोस्तों, एक बार फिर से स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .Com वेबसाइट पर पिछली सीरीज में हमने आपसे मध्यकालीन भारत और प्राचीन भारत के नोट्स को विस्तार पूर्वक आपके साथ साझा किया था और अपने उसे बहुत सराहा उसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज से हम एक नई सीरीज शुरू कर रहे हैं जिसमें हम आपको आधुनिक भारत के नोट्स लेकर आए हैं जिससे आपको UPSC और PSC की परीक्षाओं मैं बहुत मदद मिलेगी आज की पोस्ट में हम आपको 18 वीं शताब्दी में भारत की राजनीतिक स्थिति और उपनिवेशवाद आक्रमण के बारे में बताएंगे, तो चलिए शुरू करते हैं आज की पोस्ट

18 वीं शताब्दी में भारत की राजनैतिक स्थिति और उपनिवेशवादी आक्रमण –


18 वीं शताब्दी में भारत – औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही भारत के इतिहास में एक नये युग का पदार्पण हुआ साम्राज्य शक्तिहीन हो गया और अंत में उसका पतन हो गया। इस राजनैतिक अस्थिरता में विभिन्न क्षेत्रीय शक्तियों ने अपने आप स्वतन्त्र घोषित कर दिया और यूरोपीयों को भारत में अपने पैर जमाने का मौका मिल गया। indian politics of the mid 18th century
मुगल – औरंगजेब के पश्चात इसके उत्तराधिकारी सामान्यत: अयोग्य, कमजोर, सत्ता लोलुप और विलासी थे। मुगल दरबार ईरानी, तुरानी, भारतीय अमीरों में बँटा हुआ था। इन्होंने स्पष्ट उत्तराधिकारी नियम के अभाव में सम्राट पद को कठपुतली बना दिया। भारतीय अमीरों में सैयद बन्धुओं ने दरबार को षडयंत्रों का घर बना दिया। 1739 में नादिरशाह के आक्रमण तथा 1761 में अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण के बाद मुगल साम्राज्य लगभग समाप्त हो गया। 1857 तक बहादुर शाह जफर नाम मात्र का सम्राट था। indian politics of the mid 18th century


1750 ई. मे प्रमुख भारतीय राज्य

मराठा – 18 वीं शताब्दी में मराठों ने पेशवाओं के नेतृत्व में अपनी शक्ति का विस्तार उत्तर भारत में भी किया। उन्होनें मुगल साम्राज्य की सुरक्षा का दायित्व ले रखा था, इस कारण पानीपत का तृतीय युद्ध (14 जनवरी 1761) मराठों व अहमदशाह अब्दाली के मध्य लड़ा गया। इस युद्ध में मराठे पराजित हुए अगर इस युद्ध में मराठे पराजित नहीं होते तो उनका प्रभुत्व जम जाता और अंग्रेज मराठों, से लोहा लेने का साहस नहीं करते। इस समय केवल मराठों में शक्ति, साहस, शौर्य, कूटनीति आदि गुण थे जो देश की रक्षा में सहायक होते। लेकिन अंग्रेजों की कूटनीति के कारण आगे चलकर उनमें फूट पैदा हो गई और वे विभाजित हो गये जिन्हें अंग्रेजों ने एक एक करके पराजित कर दिया।


अवध – 1728 ई. में अवध के सूबेदार सादत खाँ (मीर मुहम्मद आमीन) ने मुगल साम्राज्य के नियंत्रण से मुक्त हो अपने स्वतन्त्र राज्य की स्थापना कर ली, लेकिन मुगल दरबार से सम्बन्ध समाप्त नहीं किये। सादत खाँ ने मुगल दरबार में निजाम के प्रभाव को कम करने के लिए ईरान के शासक नादिर शाह से सम्पर्क स्थापित किए। लेकिन दांव उल्टा पड़ने के कारण उसे 1739 में आत्म हत्या करनी पड़ी। सादत खाँ के बाद उसका भतीजा सफदर जंग नवाब बना। वह मुगल साम्राज्य का वजीर बना। सफदर जंग की मृत्यु के बाद उसका पुत्र शुजाउद्दौला अवध का नवाब बना। 1764 में बक्सर के युद्ध में अंग्रजों के विरूद्ध संघर्ष किया, लेकिन हारने के बाद इलाहाबाद की सन्धि कर ली, जिससे अवध कम्पनी का आश्रित राज्य बन गया। 1801 में वेलेजली ने अवध के साथ सहायक सन्धि की और 1856 में डलहौजी ने इसे ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया।


बंगाल – बंगाल मुगल साम्राज्य का सबसे महत्वपूर्ण और समृद्ध प्रदेश था। मुर्शीद कुली खाँ ने बंगाल में स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की। 1727 में उसकी मृत्यु के बाद उसका दामाद शुजाउद्दीन सूबेदार बना। 1739 में शुजाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात सरफराज खाँ नवाब बना। उसके एक अधिकारी अलवर्दी खाँ ने सरफराज को हरा स्वयं को नवाब घोषित कर, मुगल सम्राट से फरमान जारी करवा लिया। अलीवर्दी खाँ के अंग्रेजों से अच्छे सम्बंधो के बावजूद बंगाल में उन्हें किलेबन्दी नहीं करने दी।अलीवर्दी खाँ के बाद सिराजुद्दौला नवाब बना। जून 1757 को अंग्रेजों और सिराजुद्दोला के मध्य प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दोला पराजित हुआ। बंगाल से ही भारत में अंग्रेजी सत्ता की स्थापना हुई।


मैसूर – 1761 ई. में हैदर अली ने मैसुर की सत्ता पर अपना प्रभाव स्थापित कर लिया और 1766 में राजा की मृत्यु के बाद वह मैसूर का शासक बन गया। उसने सेना का पुर्नगठन व राज्य का विस्तार किया। हैदर अली की मृत्यु के बाद उसका पुत्र टीपू सुल्तान शासक बना। दोनों ने अंग्रजों से कड़ा संघर्ष किया।


जाट राज्य – जाटों में औरंगजेब की धार्मिक और दमनात्मक नीति के विरोध का नेतृत्व राजाराम और चूड़ामन ने सम्भाला। चूड़ामन की मृत्यु के बाद उसके भतीजे बदन सिंह ने जाटों का नेतत्व सम्भाला। बदन सिंह ने डीग, कुम्हेर, भरतपुर में सुदृण दुर्गा का निर्माण करवाया। बदन सिंह भरतपुर का प्रथम शासक था उसकी मृत्यु के बाद सूरजमल जाट राज्य का शासक बना। उसने अपनी रियासत में शांति एवं समृद्धि प्रदान की। indian politics of the mid 18th century

1732 ई. में सूरजमल ने सोगर के जागीर डॉ. खेमकरण सिंह को पराजित किया। इसी वर्ष भरतपुर में किले का निर्माण शुरु किया। 1745 ई. में मुगल सम्राट मुहम्मदशाह व रूहेलों को हराया। 1756 ई. में राजा सूरजमल ने अलवर को अधीन कर लिया। सूरजमल ने अपनी कूटनीति से 1754 ई. मुगल व मराठों की संयुक्त सेना को कुम्हेर से लौटा दिया।


पानीपत के तीसरे युद्ध के समय सदाशिवराव भाऊ की सेना के लिए खाद्य सामग्री व अन्य सामान की व्यवस्था की। पानीपत की पराजय के बाद लगभग एक लाख मराठे भरतपुर आये। महराजा सूरजमल ने उनके लिए भोजन व वस्त्रों की व्यवस्था की। अपनी तटस्थ नीति के कारण अब्दाली के प्रकोप से अपने राज्य को बचाया।


25 दिसम्बर 1763 ई. में हिण्डन नदी के किनारे 6 हजार धुड़सवारो के साथ मुगलों पर आक्रमण किया। मुगल सेना को भागकर जंगल में छिपना पड़ा। महाराज सूरजमल वीर साहसी, कुशाग्र बुद्धिमान व जाट राज्य का सर्वाधिक योग्य शासक था। अपनी वीरता साहस और चतुराई से अपनी दो जागीरों से राज्य को पूर्व में आगरा, एटा, दक्षिण में धौलपुर, चम्बल, उत्तर में मथुरा, अलीगढ़, लक्ष्मणगढ़, पंजाब व हरियाणा तक विस्तृत था। बुद्धिमता और राजनैतिक कुशलता के कारण उसे जाट जाति का “प्लेटो’ कहा जाता है। महाराजा सूरजमल के समय जाट राज्य अपने चर्मोत्कर्ष पर था। 1763 में सूरजमल की मृत्यु के बाद जाट राज्य की शक्ति कमजोर होने लगी। indian politics of the mid 18th century


सिक्ख राज्य – मुगलकाल में केन्द्रीय शक्ति के रूप में पंजाब में सिक्ख राज्य का उदय हो चुका था। अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण के समय सिक्खों ने पंजाब में उसे टिकने नहीं दिया। समस्त पंजाब को सिक्ख सरदारों ने 12 मिसलों में बाँट दिया। आगे चल कर रणजीत सिंह ने इन मिसलों को मिला कर एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।


राजपूत राज्य – मुगलकाल में केन्द्रीय शक्ति के कमजोर होने पर कुछ राजपूत राज्यों ने स्वतंत्र होने के प्रयास किए। औरंगजेब की मृत्यु के बाद अजीत सिंह ने पूरे मारवाड़ पर अपना अधिकार कर लिया। उधर आमेर दूसरा महत्वपूर्ण राज्य था जिसके शासक सवाई जयसिंह के मुगल और मराठों से घनिष्ठ संबंध थे। जयसिंह और बाजीराव दोनो ही मालवा में हिन्दू प्रभाव स्थापित करने को उत्सुक थे। लेकिन आगे चल कर बूंदी के उत्तराधिकारी के प्रश्न को लेकर राजपूत व मराठा सबंध खराब हो गए।

रूहेलखंड – अली मुहम्मद खान ने नादिर शाह के आक्रमण पश्चात फैली अव्यवस्था का लाभ उठाकर रूहेलखंड में अपनी सत्ता स्थापित कर ली। यह उपजाऊ प्रदेश गंगा तट से कुमायुं की पहाड़ियों तक फैला हुआ था। ‌ आन्दला (बरेली) को अपनी राजधानी बनाया। रूहेलों का जाटों, मराठों से लगातार संघर्ष होता रहता था।

यह तो थी 18 वीं शताब्दी में भारत की राजनीतिक स्थिति और उपनिवेशवाद आक्रमण की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको पानीपत का तृतीय युद्ध के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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