पानीपत का तृतीय युद्ध कारण, घटनाएं, परिणाम Notes

Hello दोस्तों, एक बार फिर से स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .Com वेबसाइट पर आज की पोस्ट में हम आपको 18 वीं शताब्दी में भारत की राजनीतिक स्थिति और उपनिवेशवाद आक्रमण- 2 (पानीपत का तृतीय युद्ध) के बारे में बताएंगे, तो चलिए शुरू करते हैं आज की पोस्ट Panipat ke teesre yuddh ke karan aur parinam

पानीपत का तृतीय युद्ध


मुगल साम्राज्य के पतन ने उत्तरी भारत को शक्ति शून्य कर दिया था। उधर अफगानिस्तान के शासक अहमद शान अब्दाली अपने पूर्व में नादिरशाह द्वारा अधिकृत भारतीय प्रदेशों पर अपना अधिकार मानता था। कुछ रूहेल और अफगान पर भी अब्दाली को भारत पर आक्रमण के लिए प्ररित कर रहे थे। दूसरी ओर मराठा शक्ति का उत्तर भारत में विस्तार हो चुका था। उन्होनें मुगलों से 1752 में सन्धि कर सुरक्षा व सहायता का वायदा किया। 1757 में अब्दाली ने दिल्ली पर आक्रमण किया और बिना प्रतिरोध प्रचुर धन सम्पदा लेकर वह पुनः अफगानिस्तान लौट गया। लेकिन लाहौर और पश्चिमोत्तर क्षेत्र को अपने अधिकार में ले लिया। पेशवा बालाजी बाजीराव ने रघुनाथ राव को उत्तर, भारत में भेजा। रघुनाथ राव ने दिल्ली में अब्दाली के प्रतिनिधि नजीबुद्दौला को अपदस्थ कर 1758 में पंजाब की ओर बढा और अब्दाली के पुत्र को निकाल कर साबाजी सिन्धिया को पंजाब का गवर्नर बनाया गया। लाहौर भी अब इनके अधिकार में आ गया।


1759 के अन्तिम दिनों में अब्दाली पंजाब में मराठा प्रतिनिधि को खदेड़ कर दिल्ली के निकट पहुँच गया। पेशवा ने अपने चचेरे भाई सदाशिव राव भाऊ व पुत्र विश्वास राव के नेतृत्व में विशाल सेना अब्दाली के विरूद्ध भेजी, जिसने दिल्ली को अपने नियन्त्रण में ले, पानीपत के मैदान में पहुँच गई। 14 जनवरी 1761 दोनों के मध्य पानीपत का तृतीय युद्ध हुआ। प्रारम्भिक सफलता के बाद मराठों की अन्त में पराजय हुई। सदाशिव राव भाऊ और विश्वास राव वीर गति को प्राप्त हुए। पेशवा इस घटना को अधिक समय तक सहन नहीं कर सका और कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई।

पानीपत के तृतीय युद्ध मराठों की पराजय के कारण –

राठों की दोषपूर्ण सैन्य संगठन व अनुशासन- मराठों की दोषपूर्ण सैन्य संगठन व अनुशासन की कमी तथा भारतीय राजाओं और सरदारों में एकता का अभाव हार का प्रमुख कारण था। मराठों को जाट, राजपूत आदि भारतीय शक्तियों से आपसी तालमेल के अभाव में उनके सहयोग से वंचित होना पड़ा और कुछ देशद्रोही शासकों के अब्दाली को सहयोग करने के कारण मराठों को अकेले संघर्ष करना पड़ा। इस युद्ध से उत्तरी भारत में मराठा शक्ति को गहरा आघात लगा। मुगल और कमजोर हो गये। ऐसे में पंजाब में सिक्ख शक्ति का विकास हुआ और भारत में अंग्रेजों की सत्ता स्थापना का मार्ग प्रषस्त हुआ।

भारत में उपनिवेशवादी आक्रमण – 18वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में भिन्न भिन्न यूरोपीय शक्तियां पतनोन्मुख मुगल साम्राज्य का स्थान लेने एवं भारतीय व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त करने हेतु संघर्षरत थी। धीरे-धीरे पूर्तगालियों और फ्रांसिसी ही मुख्य प्रतिद्वन्द्वी रह गये। दोनों शक्तियों ने भारत के देशी राज्यों के पारस्परिक झगड़ों तथा उनके उत्तराधिकार के मामलों ने हस्तक्षेप कर उन्हें सैनिक सहायता देना आरम्भ कर दिया। सहायता के बदले उन्होने भारतीय शासकों से भूमि, धन और व्यापारिक सविधा प्राप्त कर ली, धीरे-धीरे ये व्यापारी एक राजनैतिक शक्ति बन गये और भारत में राजनैतिक प्रभुत्व के लिए संघर्ष आरम्भ हो गया दक्षिण भारत में फ्रांसिसीयों और अंग्रेजों के मध्य तीन संघर्ष हुए जिन्हें कर्नाटक के युद्ध के नाम से जाना जाता है। प्रशासन 48 के मध्य. द्वितीय 1749-54 के मध्य और तृतीय 1758-63 के मध्य हुए इन युद्धो ने पूर्ण रूप से भारत में फ्रांसिसी स्थापना की सम्भावना नष्ट कर दी। अलफ्रेड लायल के कथनानुसार “भारत में व्यापारिक एवं सैनिक सफलता की दो प्रमुख शर्तें थी तटीय प्रदेशों में मजबूत मोर्चाबन्दी तथा ऐसी नौ सेना का होना जो यूरोप के साथ संचार का मार्ग खोल सकें। अंग्रेज़ समुद्र पर अपना गौरव बढ़ा चुके थे। फ्रांसिसी स्थल पर भी अपनी शक्ति खो रहे थे।” Panipat ke teesre yuddh ke karan aur parinam

बंगाल – मगल साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले प्रान्तों में बंगाल सर्वाधिक सम्पन्न प्रान्त था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी को 1717 ई. मे मुगल शासक फर्रुखसियर द्वारा दी गई सुविधाओं के परिणाम स्वरूप बंगाल से सीधा सम्पर्क हो गया और उनका हस्तक्षेप बढ़ गया। 1740 ई. में अलीवर्दी खान ने बंगाल में स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया। उसने अंग्रेज और फ्रांसिसीयों को बंगाल में किलेबन्दी की आज्ञा नहीं दी। 1756 ई. अलवर्दी खान की मृत्यु के पश्चात उसका पोता सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना। नवाब के राजनीतिक, आर्थिक व अन्य मामलों में अंग्रेजों से मतभेद बढ़ते चले गए जिसके परिणाम स्वरूप 1757 ईस्वी में प्लासी का युद्ध हुआ। Panipat ke teesre yuddh ke karan aur parinam

यह तो थी 18 वीं शताब्दी में भारत की राजनीतिक स्थिति और उपनिवेशवाद आक्रमण- 2 (पानीपत का तृतीय युद्ध) की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको प्लासी का युद्ध – कारण, महत्त्व और परिणाम के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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