पानीपत का प्रथम युद्ध – कारण, महत्त्व और परिणाम Notes

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इस से पहले हमने आपको बाबर के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आपको पानीपत का प्रथम युद्ध – कारण , महत्त्व और परिणाम के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂 Panipat ka pratham yuddh

पानीपत का प्रथम युद्ध – कारण , महत्त्व और परिणाम Notes

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पंजाब पर अधिकार करने के पश्चात बाबर ने एक विशाल सेना तथा साज-सामान के साथ दिल्ली की ओर प्रस्थान किय। इब्राहिम लोदी सचेत था। अत: बाबर का सामना करने के लिए वह पंजाब की ओर बढ़ा। अप्रैल सन् 1526 ई. में पानीपत के मैदान में दोनों सेनाएँ आ डटीं। बाबर ने अपने 25 हजार सैनिकों को रणक्षेत्र में व्यूह-रचना के तारतम्य में खड़ा किया। उसने सात सौ गतिशील गाडियों (अराबा) को खाल की रस्सियों से बाँधधकर फौज के आगे खड़ा कर दिया। उसके दाहिनी तथा बायीं ओर तोपखाना स्थित था, जो क्रमशः उस्ताद अली तथा मस्तफा के नियन्त्रण में था। उनके सामने बचाब स्थान (दुरा) खडे कर रखे थे। तापखाने के पीछे आगामी रक्षक थे। इसके पीछे सेना का केन्द्र स्थल था जहाँ बाबर स्वयं संचालक के रूप में उपस्थित था। इसका दाहिना भाग कटे हुए पेड़ों तथा मिट्टी की दीवारों तथा खाइयों से सुरक्षित था। इसकी कुछ दूरी पर तुलुगमा सैनिक थे। इनके पीछे अब्दुल अजीज की अध्यक्षता में अनुभवी घुड़सवारों की सेना थी।

बाबर के अनुसार इब्राहिम की सेना में एक लाख सैनिक तथा एक हजार हाथी थे। किन्तु दिल्ली की सेना में शिक्षा तथा अनुशासन की कमी थी। दोनों की सैन्य शक्ति की तुलना करते हए डॉ. एस. आर. शर्मा ने लिखा है, “एक और निराशाजनित साहस और वैज्ञानिक युद्ध प्रणाली के कुछ शासक थे, दसरी ओर मध्कालीन ढंग के सैनिकों की भीड़ थी। जो भालों और धनुष-बाणों से सुसज्जित थी और जो मूर्खतापूर्ण तथा अव्यवस्थित ढंग से जमा हो गयी थी।”

दोनों सेनाएँ आठ दिन तक आमने-सामने डटी रहीं लेकिन किसी ओर से भी आक्रमण नहीं हआ। 19 अप्रैल की रात्रि को बाबर ने अचानक हमला कर दिया। किन्तु इसमें उसे सफलता प्राप्त हुई 21 अप्रैल, 1526 को दौनों सेनाओं में भीषण युद्ध प्रारम्भ हो गया। प्रात:काल से दोपहर तक युद्ध चलता रहा। बाबर की तुलुगमा रणनीति तथा तोपखाने की अन्धाधुन्ध गोलाबारी के सामने इब्राहिम की सेना के पैर उखड़ गये। मुगलों की सेना ने भारतीय सेना को चारों ओर से घेर लिया और भयंकर मारकाट मचा दी। इस प्रकार 5 – 6 घण्टों के अन्दर दिल्ली सेना का सफाया हो गया। इब्राहिम लोदी बहादूरी के साथ लड़ता हुआ मारा बया। इस युद्ध में इब्राहिम के 15 हजार सैनिक मारे गये।

बाबर ने लिखा है, “जिस समय संग्राम आरम्भ हुआ सूर्य आकाश में चढ़ चुका था और मध्याह्न तक लड़ाई चलती रहीं अन्त में शत्रु दल छिन्न-भिन्न हो गया और खदेड़ दिया गया और मेरे योद्धा विजयी हुए। ईश्वर के प्रताप तथा अनुकम्पा से कठिन कार्य मेरे लिए सरल हो गया और आधे ही दिन में वह शक्तिशाली सेना घूल में मिल गयी।” Panipat ka pratham yuddh

पानीपत के युद्ध का परिणाम –

अफगानों की शक्ति का विनाश – पानीपत का प्रथम युद्ध भारतीय इतिहास की रोमांचकारी घटना है। इस युद्ध के फलस्वरूप लोदी वंश का अन्त हो गया। हजारों भारतीय सैनिक मारे गये। लेनपूल ने लिखा है कि “पानीपत का युद्ध दिल्ली के अफगानों के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ। इससे अफगानों की शक्ति नष्ट-भ्रष्ट हो गयी।” Panipat ka pratham yuddh

मुगल वंश की स्थापना – पानीपत की विजय के फलस्वरूप भारत में मुस्लिम साम्राज्य की जड़ें जम गयीं। एस. एम. जाफर ने लिखा है कि इस युद्ध से हमारे इतिहास में एक नये युग का आरम्भ होता है। लोदी वंश के स्थान पर मुगल वंश की स्थापना हुई जिसने ऐसे बुद्धिमान तथा गौरवशाली बादशाहों को जन्म दिया जिनके अधीन भारत ने असाधारण उन्नति की।

बाबर की भारतीय विजय की दूसरी कोटि का अन्त – पानीपत के युद्ध के साथ बाबर की भारत विजय की दूसरी मन्जिल तय हो गयी। उसका दिल्ली, आगरा, कन्नौज, धौलपुर, जौनपुर, तथा ग्वालियर पर अधिकार हो गया। रशब्रुक विलियम्स ने लिखा है, “इस विजय के बाद बाबर के इधर-उधर भटकने के दिन बीत गये और उसे अब प्राणों की रक्षा के लिए अथवा सिंहासन को सुरक्षित रखने के लिए चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं रही थी, उसे तो अब राज्य-विस्तार के लिए युद्ध-योजनाओं में शक्ति लगानी थी।” Panipat ka pratham yuddh

हिन्दओं को निराशा – राजपूतों का दिल्ली को जीतकर हिन्दु-साम्राज्य की स्थापना करने का स्वप्न धूल में मिल गया और लड़खड़ाता हुआ मुस्लिम साम्राज्य स्थायी हो गया।

नयी स्फूर्ति का संचार – डॉ. आशीर्वादी लाल के अनुसार, पानीपत में बाबर की विजय के फलस्वरूप तुर्क अफगान शासक वर्ग में नया रक्त और उत्साह संचारित हुआ। इस प्रकार मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई और इसके द्वारा देश को श्रेष्ठ सुयोग्य एवं सफल शासक प्राप्त हुए जिनके अधिकार में देश को एक यौगिक संस्कृति के विकास के नवीन प्रयोग प्रारम्भ करने का अवसर मिला। Panipat ka pratham yuddh

बाबर की सफलता के कारण –

इब्राहिम लोदी की नीति – इब्राहिम लोदी अयोग्य तथा घमण्डी था। अफगान सरदारों को वह सन्देह की दृष्टि से देखता था। इस कारण सभी अफगान सरदार उससे घृणा करते थे। उसके दवर्यवहार से तंग आकर दौलतखाँ लोदी तथा आलमखाँ ने इब्राहिम के विरुद्ध विद्रोह करके बाबर को दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित किया और अफगान सरदारों तथा आम जनता ने भी इब्राहिम लोदी का बिलकुल भी साथ नहीं दिया और इब्राहिम लोदी को अकेले ही बाबर का सामना करना पड़ा। Panipat ka pratham yuddh

इब्राहिम की सैनिक दर्बलता – इब्राहिम लोदी की सेना में अनुभवहीन तथा अशिक्षित सैनिक थे। उनमें राष्ट्र-प्रेम तथा धार्मिक उत्साह नहीं था। लोदी की सेना में अधिकतर भाड़े के टट्टू थे जिनकों देश के हितों की अपेक्षा अपने जीवन तथा धन की चिन्ता थी। उसकी सेना में विभिन्न जातियों की बेमेल खिचड़ी थी। अतः उनमें एकता एवं अनुशासन की कमी थी। यद्यपि भारतीय सैनिक बहादुर थे लेकिन युद्ध -कुशलता उनमें नही थी। बाबर ने अपने आत्मचरित्र में ठीक ही लिखा है कि भारतीय सैनिक मरना चाहते हैं, लड़ना नहीं। किन्तु दूसरी ओर बाबर की सेना सुशिक्षित, अनुशासित तथा सुव्यवस्थित थी। उसके सैनिक अनुभवी थे। उनमें धार्मिक उत्साह था।

इब्राहिम की अनुभवहीनता – इब्राहिम अनुभवहीन युवक था और उसकी गतिविधि सावधानीपूर्ण नहीं थी, वह अव्यवस्थित ढंग से कूच करता, बिना योजना के ठहर जाता अथवा पीछे मुड़ जाता और बिना दूरदर्शिता के शत्रु से भिड़ जाता था लेकिन बाबर एक अनुभवी सैनिक तथा महान सेनानायक था। उसे निरन्तर तीस वर्ष तक युद्ध करना पड़ा जिससे उसमें सैनिक प्रतिभा का विकास हआ। बाबर को वैज्ञानिक ढंग से युद्ध लड़ने की कला का अच्छा ज्ञान था। अतः इब्राहिम लोदी निपुण सेनानायक बाबर का तनिक भी सामना न कर सका ओर युद्ध को हार गया।

बाबर का तोपखाना – बाबर का तोपखाना भी उसकी विजय का प्रमुख कारण बना। इब्राहिम के पास तोपखाना तथा गोलाबारी करने का कोई साधन नहीं था। उसके सैनिक तोपों के प्रयोग से अनभिज्ञ थे। लेकिन दूसरी ओर बाबर के पास विशाल तोपखाना था, जो कि उस्ताद अली तथा मुस्तफा जैसे अनुभवी एवं योग्य व्यक्तियों के नियन्त्रण में था। बाबर की तोपों की गोलाबारी के सामने इब्राहिम की सेना टिक न सकी। Panipat ka pratham yuddh

तुलुगमा रणनीति का प्रयोग – बाबर की युद्ध-कला वैज्ञानिक थी। उसने पानीपत के मैदान में जो मोर्चेबन्दी की वह अभेद्य थी। तुलुगमा रणनीति का उसने सफल प्रयोग किया। लेकिन इब्राहिम पुरानी और दकियानूसी युद्ध प्रणाली से लड़ा, परिणामस्वरूप वह पराजित हुआ।

इब्राहिम में कूटनीतिज्ञता का अभाव – इब्राहिम चतुर कूटनीतिज्ञ न था। संकटकाल में वह दौलतखाँ लोदी मुहम्मदशाह तथा राणा सांगा की सहायता प्राप्त न कर सका। यदि वह ऐसा करता तो बाबर भारत में सफल न हो पाता। Panipat ka pratham yuddh

बाबर की सेना को विश्राम की प्राप्ति – 12 अप्रैल को बाबर की सेना शत्रु की सेना से युद्ध करने को तैयार थी परन्तु युद्ध 21 अप्रैल को आरम्भ हुआ। इससे बाबर की सेना को पर्याप्त विश्राम मिल गया। इसके विपरीत दिल्ली की सेना तेज गति से आयी थी और उसने रास्ते में विश्राम नहीं किया था। वह थकी हुई थी।

पानीपत की सफलता के बाद बाबर की समस्याएँ –

पानीपत के युद्ध के बाद बाबर ने दिल्ली, आगरा तथा ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। वहाँ से प्राप्त अपार धन-सम्पत्ति को अपनी सेना तथा काबुल के लोगों में उदारतापूर्वक बाँटा। उसी समय बाबर के बहुत से सैनिक काबुल लौट जाने के इच्छक थे, लेकिन बाबर ने सैनिकों के सामने प्रभावशाली भाषण दिया, जिसने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। इसके परिणामस्वरूप सैनिकों ने काबुल जाने का निश्चय त्याग दिया।

बाबर ने दोआब के अफगान सरदारों पर आक्रमण करने का आदेश दिया। बाबर की रण-कुशल सेना ने अफगानों को पूरब की ओर खदेड दिया और दोआब पर अधिकार कर लिया। बिहार के शक्तिशाली अफगान सरदार नासिरखाँ लौहानी और फरमली के विरुद्ध हुमायूँ को भेजा। जिस समय हुमायूँ कानुपर के निकट पहुँचा उसी समय दोनों अफगान सरदार भयभीत होकर भाग खड़े हुए। इस प्रकार कन्नौज पर मुगलों का अधिकार हो गया। रापरी तथा इटावा पर पहले ही अधिकार हो चुका था। इस प्रकार उत्तर में दोआब के राज्यों पर तथा दक्षिण में कालपी, धौलपुर, बयाना तथा ग्वालियर पर बाबर का आधिपत्य स्थापित हो गया। Panipat ka pratham yuddh

बाबर द्वारा दिल्ली पर अधिकार किये जाने के कारण बहुत से लोग इन प्रदेशों को छोड़कर दूसरे स्थान पर चले गये। इससे बाबर के आदमियों को न तो भोजन मिल सका और न चारा।

बाबर के सामने राजपूतों की समस्या थी। राणा सांगा दिल्ली पर अधिकार करना चाहता था इसलिए बाबर के साथ संघर्ष अनिवार्य था।

खानवा का युद्ध –

समस्त हिन्दुस्तान का स्वामी होने से पहले बाबर को एक अत्यन्त पराक्रमी तथा भंयकर शत्रु का सामना करना था। मेवाड़ का शासक राणा सांगा उत्तरी भारत का सबसे अधिक शक्तिशाली हिन्दू शासक था। वह महत्वाकांक्षी व्यक्ति था और उत्तरी भारत में हिन्दु सत्ता को पुनः स्थापित करना उसका स्वप्न था। Panipat ka pratham yuddh

खानवा के युद्ध के निम्न कारण थे –

बाबर ने राणा सांगा पर यह आरोप लगाया कि यदि वह इब्राहिम पर आक्रमण करता है तो राणा सांगा बाबर का साथ देगा परन्तु ऐसा नहीं किया।

राणा सांगा यह सोचता था कि बाबर अपने पूर्वजों की भाँति लूट-पाट कर भारत से चला जायेगा। जब उसने देखा कि बाबर भारत में ही रहना चाहता है तो उससे युद्ध अनिवार्य हो गया, क्योंकि राणा सांगा भी दिल्ली पर अधिकार करना चाहता था।

बाबर जानता था कि बिना राणा सांगा को पराजित किये भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना करना कठिन कार्य है।

राणा ने बयाना के शासक निजाम खाँ पर आक्रमण कर दिया जो बाबर के अधीन था।

चन्देरी पर आक्रमण –

चन्देरी भोपाल के निकट बुन्देलखण्ड में स्थित राजपूतों का एक गढ़ था। उस समय चन्देरी पर राणा का एक सशक्त सामन्त मेदिनीराय शासन कर रहा था। सर्वप्रथम बाबर ने मेदिनीराय के पास अधीनता स्वीकार करने के लिए सन्धि प्रस्ताव भेज। चन्देरी के बदले शमशाबाद का दुर्ग देने का भी वचन दिया लेकिन मेदिनीराय ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। तत्पश्चात् 10 जनवरी, 1528 ई. को बाबर ने चन्देरी पर आक्रमण कर दिया और दुर्ग को चारों ओर से घेर लिया। राजपूतों ने तीव्रगति से मुगल सेना पर भयंकर प्रहार किया और मारकाट मचा दी लेकिन जिस कार्य को राणा सांगा नहीं कर सका उसको मेदिनीराय कैसे कर सकता था? उसे विवश होकर जौहर का रास्ता अपनाना पड़ा। स्त्रियाँ चिता में जलकर भस्म हो गयीं और राजपूत वीर योद्धा नंगी तलवार लेकर शत्रु पर टूट पड़े और लड़ते-लड़ते अपने प्राणों की आहुति दे दी। दुर्ग पर बाबर का अधिकार हो गया।

घाघरा का युद्ध –

राजपूतों की शक्ति का दमन करने के पश्चात बाबर ने अफगानों की ओर ध्यान दिया। इब्राहिम के भाई महमूद लोदी ने बिहार तथा अवध पर अधिकार करके अपनी शक्ति को दृढ बना लिया था। उसने कन्नौज से शाही दुर्ग रक्षकों को मार भगाया था। महमूद लोदी बाबर की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए प्रयत्नशील था। महमूद लोदी को बंगाल का शासक नसरतशाह सहायता कर रहा था। बाबर ने नसरतशाह के साथ सन्धि की बातचीत प्रारम्भ कर दी लेकिन उसने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। तत्पश्चात बाबर ने नसरतशाह को चेतावनी देते हए मार्ग देने को कहा और मना करने पर परिणामों का उत्तरदायित्व उसी पर डाला। इस परिणामस्वरूप 6 मई, 1529 ई. में घाघरा के मैदान में बाबर तथा अफगानों की सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ। बाबर की तोपों ने अफगानों की सेना पर जबरदस्त गोलाबारी की जिससे उनकी सेना छिन्न-भिन्न हो गयी और भाग खड़ी हुई। इस प्रकार अफगानों की पराजय हुई। बंगाल के साथ बाबर की सन्धि हो गयी जिसमें दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की सत्ता को स्वीकार करने का वचन दिया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप अफगानों की बची हुई शक्ति समाप्त हो गयी और बिहार पर बाबर का अधिकार हो गया।

बाबर की मृत्यु –

कहा जाता है कि 1530 ई. बाबर का प्रिय पुत्र हुमायूँ बीमार पड़ा और उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं रही। कुछ विद्वानों ने बाबर को यह परामर्श दिया कि यदि कोई बहुमूल्य वस्तु दान कर दी जाये तो हुमायूँ के प्राणों की रक्षा हो सकती है। बाबर ने कहा मेरे प्राणों से बड़ी कोई अन्य वस्तु नहीं। अत: बाबर ने हुमायूँ की चारपाई के तीन चक्कर लगाये और उसके निरोग होने और उसका रोग मुझे (बाबर) लगने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। इसके पश्चात हुमायूँ ठीक हो गया और बाबर बीमार पड़ गया। 26 दिसम्बर, 1530 ई. को उसका देहान्त हो गया। लेकिन यह कथा सही प्रतीत नहीं होती, क्योंकि एक तो बाबर की मृत्यु हुमायूँ के अच्छा होने के छ: महीने बाद हुई। दूसरे, यह वैज्ञानिक दृष्टि से गलत है कि हुमायूँ का रोग उसे लग गया और इस कारण हुमायूँ ठीक हो गया। कुछ विद्वानों का यह मत है कि बाबर की मृत्यु इब्राहिम लोदी की माँ के द्वारा विश दिये जाने के कारण हुई थी। उसका शव पहले आगरा बाग में रखा गया परन्तु बाद में काबुल ले जाया गया और एक सुन्दर बाग में दफना दिया गया। Panipat ka pratham yuddh

यह तो थी पानीपत का प्रथम युद्ध – कारण , महत्त्व और परिणाम की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको हुमायूँ के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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