Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इस से पहले हमने आपको सिकंदर लोदी के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आपको बाबर के बारे में बतायेगे जिससे आपको मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂
babur mughal empire hindi notes
बाबर का इतिहास || मुगल साम्राज्य के नोट्स
बाबर का प्रारम्भिक जीवन
जहीरुद्दीन बाबर चगताई तुर्क था। उसकी नसों में एशिया के दो महापराक्रमी तथा खूखार विजेताओं का रक्त बहता था। पित पक्ष में उसका सम्बन्ध तैमूर से था और मातृ पक्ष में चंगेज खाँ से। बाबर का जन्म 1483 ई. में फरगाना में हआ था। उसका पिता उमरशेख, फरगाना का शासक था। तैमूर ने एशिया के अनेक देशों को जीतकर एक वृहद साम्राज्य की स्थापना की थी किन्तु उसके उत्तराधिकारियों के हाथ से बहुत से प्रदेश निकल गये थें। बचे हुए राज्य के टुकड़े हो गये थे। इन्हीं में से मध्य एशिया में फरगाना का छोटा-सा राज्य था जिसकी राजधानी अन्दिजान थी। फरगाना के शासक उमरशेख मिर्जा के 1483 ई. में एक पुत्र उत्पन्न हआ। वह इतिहास में बाबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ और उसने भारत में एक विशाल तथा वैभवशाली साम्राज्य की नींव डाली।
बाबर का बाल्यकाल सुख और बेफिक्री में नही बीता। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा दुःख तथा कठिनाईयों की पाठशाला में हुई। उसकी अवस्था 11 वर्ष की ही थी कि उसके पिता की मृत्यु (8 जून, 1494 ई.) में हो गयी और उसे फरगाना का राज्यभार सँभालना पड़ा। फरगाना की स्थिति इस समय अच्छी न थी। एक ओर उजबेग जाति के लोग शक्तिशाली हो रहे थे। उनका नेता शैवानी खाँ था। दूसरी ओर बाबर के सम्बन्धी उससे ईर्ष्या करते थे। बाबर ने इन कठिनाईयों का अत्यन्त धैर्य और साहस से सामना किया। बाबर की यह महत्वाकांक्षा थी कि समरकन्द पर अधिकार करे और अपने पूर्वज तैमूर के सिंहासन पर बैठे। babur mughal empire hindi notes
समरकन्द पर आक्रमण – 1497 ई. में समरकन्द का शासक जो उसका सम्बन्धी था, मर गया। अवसर पाकर उसने समरकन्द जीत लिया और तैमूर की गद्दी पर बैठा। किन्तु इसी बीच उसके एक मंत्री ने उसके छोटे भाई जहाँगीर को फरगाना की गद्दी पर बैठा दिया। जैसे ही वह फरगाना की ओर बढ़ा तो समरकन्द भी उसके हाथ से निकल गया। इस प्रकार वह बे-घरवार हो गया और सवा वर्ष तक इधर-उधर घूमता फिरा। babur mughal empire hindi notes
फरगाना पर अधिकार – 1499 ई. में उसने फरगाना और दसरे वर्ष समरकन्द जीत लिया। दो वर्ष बाद फरगाना और समरकन्द दोनों राज्य फिर उसके हाथ से निकल गये। इस प्रकार उसे अपने पैतृक राज्य से भी हाथ धोना पड़ा। अन्त में 1502 ई. में उसने अपनी जन्मभूमि छोड़ दी और अपने भाग्य की परीक्षा करने के लिए हिन्दु कुश को पार करके काबुल की ओर बढ़ा।
काबुल पर अधिकार – इधर काबुल का शासक (बाबर का चाचा) मर चुका था। उसके उत्तराधिकारियों की कमजोरी के कारण काबुल राज्य में अराजकता छायी हुई थी। इसलिए 1505 ई. में बिना किसी कठिनाई के काबुल पर बाबर का अधिकार हो गया।
समरकन्द पर विजय – काबुल का स्वामी होने पर भी बाबर ने समरकन्द के सिंहासन पर बैठने का स्वप्न नहीं छोड़ा। 1513 ई. में उसके पुराने शत्रु शैवानी खाँ की मृत्यु हो जाने से उसे समरकन्द जीतने का फिर अवसर मिला। ईरान के शाह की सहायता से उसे समरकन्द पर अधिकार करने में सफलता प्राप्त हुई। किन्तु उसके भाग्य में तैमूर के सिंहासन पर बैठना न लिखा था। ईरान के शाह ने बाबर को इस शर्त पर सहायता दी थी कि वह शिया सम्प्रदाय का प्रचार करेगा। इस कारण वह समरकन्द की प्रजा की सहानुभूति और समर्थन प्राप्त न कर सका। 1415 ई. में उजबेगों ने उसे फिर हराया और समरकन्द से मारकर निकाल दिया। अन्त में उसे काबुल लौटना पड़ा और फिर उसने कभी समरकन्द जीतने का प्रयत्न नहीं किया।
बाबर के भारत पर प्रारम्भिक आक्रमण –
जब बाबर को यह विश्वास हो गया कि वह मध्य एशिया के प्रदेशों पर कभी अधिकार न कर सकेगा तब उसने भारत ओर ध्यान दिया। भारत पर आक्रमण करने से पहले बाबार सामरिक शिक्षा तथा अनुभव प्राप्त कर चुका था। ईरानियों से उसने तोप का प्रयोग तथा अपने शत्रु उजबेग सरदार शैवानी से तुलगमा नाम की नयी समर नीति सीखी थी, जिसका उसने आगे चलकर पानीपत तथा खानवा के युद्धों में बड़ी सफलता से प्रयोग किया। शत्रु सेना के दोनों पासों को तोड़ना, फिर आगे तथा पीछे से साथ साथ तेजी से आक्रमण करना, यही तुलुगमा नीति थी।
1519 ई. में बाबर का भारत पर पहला आक्रमण बाजौर पर हुआ। बाजौर को चारों ओर से घेर लिया गया। तीव्र संघर्ष के बाद बाजौर के सीमान्त किले पर बाबर का अधिकार हो गया। इसके बाद बाबर ने झेलम के किनारे पर स्थित भीर नामक शहर पर अधिकर कर लिया। बाबर, भीर नगर हिन्दु वेग को सौंपकर काबुल लौट आया। भीर के लोगों ने हिन्दु को मार भगाया।
सितम्बर 1519 ई. में उसने खैबर के पर्वतीय मार्ग से प्रस्थान किया। उसके उद्देश्य युसुफजाइयों का दमन करना था। परन्तु थोड़े समय बाद उसे वापस लौटना पड़ा।
1520 ई. में आक्रमण कर बाबर ने सियालकोट और अधिकार कर लिया। इसी समय उसे काबुल पर कन्धार के शासक शाह अरगुन के आक्रमण की सूचना मिली। बाबर काबुल वापस लौट आया।
दिल्ली राज्य की दशा इस समय अत्यन्त शोचनीय थी। इब्राहिम लोदी अयोग्य तथा घमण्डी था। सभी अफगान सरदार उससे घृणा करते थे। उसके दुर्व्यवहार से तंग आकर पंजाब के गर्वनर दौलतखाँ लोदी ने पंजाब में विद्रोह कर दिया और पंजाब का स्वतंत्र शासक बनने की लालसा से उसने बाबर को इब्राहिम लोदी पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित किया। दूसरी ओर इब्राहिम के चाचा आलमखाँ तथा मेवाड़ के राणा संग्रामसिंह (राणा सांगा) ने भी बाबर को आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित किया। बाबर ने इन निमन्त्रणों को स्वीकार कर लिया। उसने अपने राज्यों की स्थिति को सुरक्षित बनाकर 1524 ई. में भारत पर आक्रमण कर दिया। यह बाबर का भारत पर चौथा आक्रमण था। उसने लाहौर पर अधिकार कर लिया। किन्तु दौलतखाँ तथा आलमखाँ ने बाबर का ईमानदारी से साथ नहीं दिया। इसलिए वह काबुल लौट गया और सैनिक तैयारी में जुट गया।
दूसरे वर्ष 1525 ई. में वह काबुल से रवाना हुआ और समस्त पंजाब को अपने अधीन कर लिया। दौलतखाँ को बन्दी बना लिया गया। लेकिन मार्ग में ले जाते समय उसकी मृत्यु हो गयी। आलमखाँ ने बाबर के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। इस प्रकार दिल्ली पर आक्रमण करने का उसका रास्ता साफ हो गया। babur mughal empire hindi notes
यह तो थी बाबर के इतिहास की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको पानीपत के युद्ध बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂
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