सिकंदर लोदी का सम्पूर्ण इतिहास Notes

Complete history of sikandar lodi in hindi

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इस से पहले हमने आपको लोदी वंश का इतिहास के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आप को सिकंदर लोदी के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

सिकंदर लोदी का सम्पूर्ण इतिहास Complete history of sikandar lodi in hindi

 सिकन्दर लोदी का प्रारंभिक जीवन एवं राज्यारोहण –

सिकन्दर लोदी का मूल नाम निजाम खाँ था। उसकी माँ जैबन्द एक सुनार की पुत्री थी। बहलोल लोदी के नौ पत्रों में निजाम खाँ सबसे योग्य था। उसने अपने मृत्यु से पहले ही उसे अपना उत्तराधिकारी घोसित  कर दिया था। बहलोल लोदी के मुत्यु के बाद 16 जुलाई, 1489 ई. में निजाम खाँ, सिकन्दर लोदी के नाम से सिंहासनारूढ हुआ। गद्दी के दावेदारी के लिए सिकन्दर लोदी के दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वी थे- Complete history of sikandar lodi in hindi


बहलोल लोदी का ज्येष्ठ पुत्र बारबक शाह को गद्दी पर बैठाना चाहता था क्योंकि सिकन्दर लोदी की माँ एक सुनार की पुत्री थी | इसलिए ईसा खाँ उसका विरोधी था। किन्त सरदारों के सशक्त दल के सहयोग से सिकन्दर लोदी गद्दी प्राप्त करने में सफल हुआ।

विरोधियो का दमन –

गद्दी प्राप्त करने के पश्चात सिकन्दर लोदी ने सर्वप्रथम अपने प्रतिद्वंद्वियों का दमन करने का निश्चय किया जिसमें आलम खाँ, बारबक शाह, ईसा खाँ व हुमायूँ आजम प्रमुख थे।। वह सर्वप्रथम रापरी गया तथा वहां का दुर्ग घेर लिया। आलम खाँ ने पराजित होकर आत्मसमर्पण कर दिया। उसे क्षमा कर इटावा का सुबेदार बना दिया। ईसा खाँ भी एक युद्ध में पराजित होकर घायल हो गया और कुछ दिन बाद उसकी मृत्यु हो गयी। तत्पश्चात उसने अन्य दो प्रतिद्वन्द्वियों बारबक शाह और हुमायूँ आजम के विरूद्ध अभियान किया। बारबक शाह को उसने जौनपुर के निकट एक युद्ध में पराजित कर उसे आत्मसमर्पण के लिए बाध्य किया किन्तु अन्य में उसे क्षमा कर जौनपुर का शासक बनाया गया। तत्पश्चात् सिकन्दर लोदी ने आलम हुमायूँ के विरूद्ध अभियान किया। आजम हुमायूँ पराजित हुआ। सिकन्दर लोदी ने उसका क्षेत्र कालपी महमूद खाँ लोदी को सौंप दिया।

सैन्य अभियान –

शाही प्रतिद्वन्दियों को समाप्त करने के बाद सिकन्दर लोदी ने अन्य विरोधियों के विरूद्ध सैन्य अभियान किया तथा उन्हें पराजित कर उनके साम्राज्य को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। तैमूर के आक्रमण के पश्चात् दिल्ली सल्तनत की सीमा में अधिकतम वृद्धि सिकन्दर लोदी के समय में हुयी।

(1) बयाना अभियान

(2) हुसैन शाह अर्गी के विरूद्ध अभियान

(3) बंगाल अभियान

(4) मालवा अभियान

(5) ग्वालियर अभियान

अमीरों पर नियंत्रण –

अपने प्रतिद्वन्दियों को नियंत्रित करने के बाद सिकन्दर लोदी की दूसरी समस्या अफगान की विद्रोही प्रवत्ति पर अंकुश लगाना था। बहलोल लोदी के अफगान राजत्व सिद्धांत से भिन्न सिकन्दर लोदी ने इसे एक दिया। उसने अमीर वर्ग में सुल्तान के प्रति निष्ठा एवं आज्ञाकारिता सुनिश्चित करने का प्रयास किया। वह राजसिंहासन बार तथा दरबार से बाहर शाही फरमानों के स्वागत के लिए नियम बनाए। सभी सूबेदारों एवं जागीरदारों को आय और व्यय का विवरण देने की आज्ञा दी। हिसाब में गबन करने वालो को कठोर दण्ड दिया गया। जौनपुर का मुबारक खाँ लोदी हिसाब में गबन करने पर दण्डित किया गया तथा उस धन का राजकोष में जमा करने के लिए बाध्य किया। Complete history of sikandar lodi in hindi

सुल्तान के विरुद्ध षड्यंत्र –

सिकन्दर लोदी द्वारा अमीरों को नियंत्रित करने का उद्देश्य मात्र सुलतान की प्रतिष्ठा का था कि अफगान सरदार उसे अपना सुल्तान माने और अपने को सुलतान का पदाधिकारी।  किन्तु कुछ सरदार उसके इस नीति से असंतुष्ट थे तथा उसके विरूद्ध षड्यंत्र रचा। Complete history of sikandar lodi in hindi

सिकन्दर लोदी  की आर्थिक नीति –

सिकन्दर अपनी आन्तरिक स्थिति सुदृढ़ करने के बाद सिकन्दर लोदी ने आर्थिक बयान दिया। उसने कृषि और व्यापार की उन्नति का प्रयत्न किया। भूमि की माप के लिए गज-ए-सिकन्दर किया जिसमें 39 खाने थे और जो मुगल काल तक प्रचलित रही। भूमि की नाम करवाकर उपज के अनुसार लगान की राशि तय की गयी जिससे नियमित समय से लगान वसुलना आसान हो गया। सिकन्दर लोदी की लगान तालिका शेरशाह सूरी के शासनकाल में बनायी गयी सूची का आधार बनी। उसने आम जनता को वस्तुओं को कम मूल्य पर उपलब्ध कराने के लिए खाद्यान्न पर चुंगी कर हटा लिया। उसके समय में योग्य व्यक्तियों के नामों की सूची बनाकर प्रत्येक छः माह पश्चात उसके समक्ष प्रस्तुत किया जाता था जिसके अनुसार विभिन्न व्यक्तियों को उनकी योग्यतानुसार आर्थिक सहायता प्रदान की जाती थी। Complete history of sikandar lodi in hindi

 सिकन्दर लोदी की धार्मिक नीति –

धार्मिक दृष्टि से सिकन्दर लोदी असहिष्णु था। उलेमा वर्ग को संतुष्ट करने के लिए उसने हिन्दुओं के प्रति अनुदार नीति अपनाई। हिन्दुओं के धार्मिक संस्कारों पर प्रतिबंध लगा दिया तथा मंदिरों एवं मूर्तियों को नष्ट करवाया। नागरकोट के ज्वालामुखी मंदिर की मूर्ति तोड़कर उसके टुकड़ों को मांस तोलने के लिए कसाइयों को दे दिया। इसके अतिरिक्त उसने मथुरा, मन्दैल, नरवर तथा चन्देरी आदि स्थानों पर मन्दिरों एवं मूर्तियों को नष्ट किया। Complete history of sikandar lodi in hindi

इब्राहिम लोदी (1517-1526 ई.)

राज्यारोहण – सिकन्दर लोदी की मृत्यु के बाद उसका सबसे बड़ा पुत्र इब्राहिम लोदी 22 नवम्बर, 1517 ई. को बैठा। वह लोदी वंश का अंतिम शासक था। इसी के समय में 1526 ई. में पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ जिसमें बाबर ने इब्राहिम लोदी को पराजित कर भारत में नए राजवंश की स्थापना की। इब्राहिम लोदी के समय की मुख्य विशेषता उसका अपने अफगान सरदारों से संघर्ष था। सभी सरदारों की सर्वसम्मति से इब्राहिम लोदी गद्दी पर बैठा, किन्तु अमीरों ने राजनीतिक सत्ता एक हाथो में केंद्रित होना पसन्द नहीं किया। अत: उन्होंने साम्राज्य को दो भागों में विभाजित करने की योजना बनाई तथा उस को दो भागों में विभाजित कर दिया। इस विभाजन में दिल्ली, इब्राहिम लोदी के अधीन तथा जौनपुर का राज्य उसके छोटे भाई जलाल खाँ को मिला।

ग्वालियर विजय (1517-1518 ई.) –

इब्राहिम लोदी की सबसे बड़ी सफलता ग्वालियर विजय थी। इसी के समय ग्वालियर अंतिम रूप से साम्राज्य में शामिल हुआ। बहलोल लोदी तथा सिकन्दर लोदी दोनों ने ग्वालियर को जीतने का प्रयत्न किए किन्तु असफल रहे। सिकन्दर लोदी इसे जीत कर अपनी प्रतिष्ठा में वृद्धि करना चाहता था। राजकुमार जलाल खाँ ने भागकर ग्वालियर में शरण लिया था। इब्राहिम लोदी को ग्वालियर पर आक्रमण करने का एक बहाना मिल गया। इब्राहिम लोदी द्वारा ग्वालियर पर आक्रमण के समय वहां का शासक राजा मान सिंह का पुत्र विक्रमजीत था। इब्राहिम लोदी ने आजम खाँ सरवानी के नेतृत्व में अपनी सेना ग्वालियर पर आक्रमण के लिए भेजा। विक्रमजीत ने आत्मसमर्पण कर दिया। ग्वालियर पर इब्राहिम लोदी का अधिकार हो गया। अंत में अपनी उदारता से इब्राहिम ने विक्रमजीत को शमशाबाद की जागीर प्रदान की। विक्रमजीत अंत तक इब्राहिम लोदी के प्रति वफादर रहा। 1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी के तरफ से लड़ते हुए वह युद्ध भूमि में मारा गया।

मेवाड़ अभियान – सिसोदिया राजपूतों से लोदियों का संघर्ष सिकन्दर लोदी के काल में प्रारम्भ हुआ था। राजस्थान मेवाड़ सबसे शक्तिशाली राज्य था। यहाँ का शासक संग्राम सिंह (राणा सांगा) था। दिल्ली सल्तनत और मेवाड़ का झगडा मालव के अधिकार को लेकर था। उस समय मालवा का प्रधानमंत्री मेदनी राय था। अत्यधिक शक्तिशाली था और उसे राणा सांगा का समर्थन प्राप्त था। जलाल खाँ और इब्राहिम लोदी के मध्य चल रहे संघर्ष का लाभ उठाकर राणा सांगा ने दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों पर आक्रमण किया। इब्राहिम लोदी ने मिया मक्खन के नेतृत्व में सेना भेजी। ग्वालियर के निकट खतौली में 1517-18 ई. में युद्ध हुआ जिसमें किसी भी पक्ष को पूर्ण विजय नहीं मिली। बाद में राणा सांगा ने चंदेरी पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में कर लिया।

यह तो थी सिकंदर लोदी का सम्पूर्ण इतिहास की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको मुग़ल साम्राज्य के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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