लोदी वंश का इतिहास Notes

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इससे पहले हमने आपको सैय्यद वंश के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आपको मध्यकालीन इतिहास के स्रोत के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

लोदी वंश (1451-1526 ई.) lodi dynasty in hindi

1451 ई. में बहलोल लोदी ने लोदी वंश के नाम से प्रथम अफगान राज्य की स्थापना की। बहलोल लोदी अफगान थे। इन्होंने दिल्ली में तुर्कों की सत्ता समाप्त कर अफगानों का राज्य स्थापित किया। लोदी राजवंश, अफगानों की गिलजई कबीले की शाखा लोदी के शाहूखेल कुटुंब से संबंधित थे। लोदी वंश का शासन काल 1451 से 1526 ई. अर्थात् 75 वर्ष तक रहा। इस 75 वर्षीय शासन काल में तीन शासकों ने शासन किया ​अंतिम शासक इब्राहिम लोदी को मुगल शासक बाबर ने 1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध में पराजित कर भारत में मुगल सत्ता की स्थापना की। भारत में अफगानों के इतिहास के संबंध में विद्वानों में मतभेद है। किन्तु सर्वप्रथम लोदियों का महत्व सुल्तान नासिरूद्दीन महमूद के (1246-66 ई.) शासन काल में बढ़ा। इसके समय में अफगान भारी संख्या में सेना में भर्ती किए गए। बलवन ने उनका उपयोग मंगोलों के विरूद्ध लड़ने के लिए तथा अप्रभावित क्षेत्रों को अपने अधीन करने के लिए किया था। lodi dynasty in hindi

​अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में इख्तियारूद्दीन यल अफगान और मलिक मख अफगान प्रमुख योद्धा थे जिन्होंने खिलजी और तुगलक कालों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई मलिक मख अफगान ने दौलताबाद में सुल्तान नासिरूद्दीन का खिताब धारण कर अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित की थी, किन्तु बाद में हसन गंगू के पक्ष में अपना दावा त्याग दिया। मोहम्मद तुगलक के काल में अफगानो की शक्ति अत्यन्त सुदृढ़ हो गयी और वे सामन्तों के रूप में पदासीन हुए। फिरोज तुगलक के समय में वे प्रान्तीय गवर्नरों के रूप में नियुक्त होने लगे। 15वीं शताब्दी में अफगान अत्यधिक शक्तिशाली हो गए थे। सैय्यदों के शासन काल में अफगानों ने महत्वपूर्ण पदों को प्राप्त किया। यही कारण था कि सत्ता हस्तान्तरित के समय बहलोल लोदी का कोई विरोध नहीं हुआ। lodi dynasty in hindi

बहलोल लोदी की उपलब्धियाँ –

लोदी वंश के शासकों में बहलोल लोदी एक योग्य शासक था। वह दिल्ली सल्तनत के सभी शासकों में सर्वाधिक समय तक (38 वर्ष) शासन किया अपने लम्बे शासनकाल में उसने दिल्ली सल्तनत की खोई हुयी प्रतिष्ठा को पुर्नस्थापित किया। मृत्यु के समय तक उसका राज्य पंजाब से लेकर बिहार तक विस्तृत था। बदायूँ, बरन, सम्भल, रपरी आदि, प्रमुख नगर उसके राज्य में उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी। उसने दिल्ली सल्तनत में राजत्व के नवीन स्वरूप को जन्म दिया। दिल्ली सल्तनत के तुर्क शासकों के निरंकुशता के विरूद्ध उसका राजत्व सिद्धांत अफगान सरदारों की समानता पर आधारित था। धार्मिक दृष्टि से बहलोल उदार था। उसने हिन्दुओं के प्रति उदारता की नीति अपनाई। उसके सरदारों में कई प्रमुख हिन्दु सरदार भी थे।


​जैसे-राय प्रतापसिंह, राय करनसिंह, राय नरसिंह, राय त्रिलोक चन्द्र व राय दाँदू। उसने युद्ध में प्राप्त लूट के माल मे से केवल पवित्र खलिफाओं द्वारा अनुमन्य एक भाग ही प्राप्त किया। मुद्रा व्यवस्था में भी बहलोल का महत्वपूर्ण योगदान है। उसने 1/4 टंके के मूल्य के बराबर बहलोली नामक चाँदी का सिक्का प्रचलित किया जो मुगल शासक अकबर के समय तक विनियमय का माध्यम रहा। lodi dynasty in hindi

यह तो थी लोदी वंश की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको सिकंदर लोदी के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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