Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इस से पहले हमने आपको नासिरुद्दीन महमूद तुगलक का इतिहास के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आप को सैय्यद वंश के बारे में बतायेगे जिससे आपको मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂
सैय्यद वंश (1414-1451 ई.) Saiyad vansh notes in hindi
सुल्तनत कालीन समस्त राजवंशों मे खिलजियों के बाद सैय्यदों का शासन काल (1414-1451 ई.) सबसे कम अर्थात – 27 वर्ष तक रहा। सैय्यद वंश के समय दिल्ली सल्तनत की सीमा 200 मील के क्षेत्र तक ही सीमित रही। इस वंश का संस्थापक खिज्र खाँ था।
सैय्यद वंश के कुल चार शासक हुए
1. खिज्र खाँ (1414-1421 ई.)
2. मुबारक शाह (1421-1433 ई.)
3. मुहम्मद शाह (1434-1443 ई.)
4. अलाउद्दीन हसन शाह (1443-1451 ई.)।
इस वंश का अंतिम शासक अलाउदीन हसन शाह था।
उपाधि – सैय्यद वंश के शासक रैय्यत-ए-आला की उपाधि से ही अपने आपको संतुष्ट रखे।
स्त्रोत – सैय्सद वंश के विषय में जानकारी का एकमात्र स्त्रोत याहिया बिन अहमद सरहिन्दी की पुस्तक तारीख-एमुबारकशाही है। Saiyad vansh notes in hindi
खिज्र खाँ (1414-1421 ई.)
उपाधि – रैय्यत-ए-आला। खिज्र खाँ ने सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की। उसने रैय्यत-ए-आला की उपाधि से अपने को संतुष्ट रखा। अपने सिक्कों पर उसने तैमूर तथा उसके पुत्र शाहरुख का नाम अंकित करवाया। वह खुत्बे में भी शाहरुख के नाम का उल्लेख किया जाता था।
प्रारम्भिक जीवन – खिज्र खाँ सैय्यद वंश का संस्थापक था। उसके पिता का नाम मलिक सुलेमान था जो फिरोजशाह तुगलक के अमीर मलिक मर्दान दौलत का दत्तक पुत्र था) सुलेमान मुल्तान का गर्वनर था। उसकी मृत्यु के बाद फिरोज तुगलक ने उसके पुत्र खिज्र खाँ को वहाँ का गर्वनर बनाया। 1395-96 ई., में दीपालपुर के राज्यपाल सारंग खाँ ने खिज्र खाँ को मुल्तान से अपदस्थ कर दिया। खिज्र खाँ भाग कर मेवात के मुक्ता बहादुर नाहर के पास शरण ली। इसी समय 1398 ई. में तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया। खिज्र खाँ ने उसकी सहायता की तथा अधीनता स्वीकार कर ली। इससे प्रसन्न होकर तैमूर भारत से वापस जाते समय खिज्र खाँ को मुल्तान और दीपालपुर की सुबेदारी सौंप दी। अत: खिज्र खाँ को पुनः अपनी राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने का अवसर मिल गया। Saiyad vansh notes in hindi
सत्ता ग्रहण – जून, 1414 ई. में खिज्र खाँ गद्दी पर बैठा। उस समय परिस्थितियं विकट थी। तैमूर के आक्रमण के बाद दिल्ली तथा अन्य स्थानों की व्यवस्था पूरी तरह नष्ट हो गयी थी। सल्तनत अनेक छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्यों में विभक्त हो गया था। कटेहर, बदायँ, इटावा, पटियाली, ग्वालियर, बयाना, कम्पिल, चंदावर, नागौर और मेवात अत्यन्त अशांत क्षेत्र थे। सर्वप्रथम खिज्र ने सरदारों व अपने समर्थकों को विभिन्न पदों व उपाधियों को देकर उन्हें संतुष्ट करने की नीति अपनायी। मलिक-उस-शर्क मलिक तोफा को वजीर नियुक्त कर उसे ताल-उल-मुक्त की उपाधि दी गयी। सैय्यद सलीम को सहारनपुर की इक्ता प्रदान की गई। वह सुल्तान का प्रमुख परामर्शदाता बना। मुल्तान व फतेहपुर की जागीर अब्दुर्रहीम को दी गई। दोआब का क्षेत्र इख्तियार खाँ को दिय। मलिक सरवर को शहर का शहना व नायब दीवान नियुक्त किया गया। इसके अतिरिक्त सुल्तान की अनुपस्थिति में उसे राजपद सम्भालने का दायित्व भी दिया गया। मलिक दाउद को राज्य का सचिव तथा मलिक खैरुद्दीन को आरिज-ए-ममालिक नियुक्त किया गया। Saiyad vansh notes in hindi
मुबारक शाह (1421-1423 ई.)
खिज्र खाँ के बाद उसका पुत्र मुबारक शाह गद्दी पर बैठा। उसने स्वयं को सुल्तान घोषित किया तथा खुत्बे में तैमूर के वंशजों का नाम हटा कर अपने नाम के खुत्बे पढ़वाए। उसने विदेशी स्वामित्व को स्वीकार नहीं किया बल्कि मात्र खलीफा के प्रति निष्ठावान था। सैय्यद वंश के शासकों में मुबारक शाह योग्यतम शासक था। उसके शासन काल के विषय की विस्तृत जानकारी याहिया बिन अहमद सरहिन्दी की पुस्तक तारीख-ए-मुबारकशाही में मिलती है। उपाधि- शाह, नायब-ए-अमीरुल मोमिनीन खिज्र खाँ के समय में सिक्के पर तुगलक वंश के शासकों का नाम अंकित होता था। किन्तु मुबारक शाह ने अपने सिक्कों से तुगलक वंश के शासकों का नाम हटा दिया तथा स्वयं को नायब-अमीरुलमोमिनीन घोषित किया। 1428 ई. में मुबारक शाह ने अपना नया सिक्का चलवाया तथा सैय्यदों के राजत्व के सभी प्रतीकों का उपयोग आरम्भ किया। Saiyad vansh notes in hindi
यह तो थी सैय्यद वंश की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको लोदी वंश के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂
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