नासिरुद्दीन महमूद तुगलक का इतिहास Notes

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इस से पहले हमने आपको फिरोज शाह तुगलक की गृह-नीति : शासन-प्रबन्ध के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आपको नासिरुद्दीन महमूद तुगलक का इतिहास के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

नासिरुद्दीन महमूद तुगलक का इतिहास Nasiruddin mahmud tughlaq history in hindi 

सिकन्दर शाह के मृत्य के बाद उसका छोटा भाई नासिरुद्दीन महमूद गद्दी पर बैठा। यह तुगलक वंश का अंतिम शासक था। इसके समय में दिल्ली सल्तनत की सत्ता संकचित होने लगी थी तथा विभिन्न राज्यों ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दीं उसने अपने वजीर मलिक सरवर उर्फ ख्वाजाजहाँ को मलिक-उस-शर्क (पूर्व का स्वामी) की उपाधि देकर जौनपर का प्रमुख बना दिया। उसने जौनपुर में शर्की वंश के नाम से एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। इसके अतिरिक्त दक्षिण भारत, खानदेश, बंगाल, बिहार, मालवा, राजस्थान, बुंदेलखंड राज्य दिल्ली सल्तनत की अधीनता से निकल कर स्वतंत्र हो गए। दिल्ली सल्तनत की सत्ता सिमट गयी थी कि लोग व्यंग्य पूर्वक कहा करते थे| Nasiruddin mahmud tughlaq history in hindi

“शहंशाह की सल्तनत दिल्ली से पालम तक फैली हुई है। दीपालपुर के सूबेदार सारंगखाँ ने समस्त पश्चिमोत्तर सीमा को अपने कब्जे मे कर लिया। फतेह खाँ का पुत्र नासिरुद्दीन नसरत शाह ने फिरोजाबाद का सुल्तान घोषित कर दिल्ली पर आक्रमण करने की योजना बनाने लगा तथा अपनी शासन पुनर्गठित किया। उसने तातार खाँ को वजीर नियुक्त किया। इस प्रकार तुगलक वंश के दो शासक एक साथ दिल्ली पर शासन करने लगे।

नासिरुद्दीन महमूद दिल्ली का शासक था और नुसरत शाह फिरोजबाद का। स्थिति का लाभ उठा कर पंजाब का सुबेदार खिज्र खाँ भी स्वतंत्र होकर दिल्ली की सत्ता प्राप्त करने की योजना बनाने लगा। उसी बीच 1398 ई. में तैमूर लंग का भारत पर आक्रमण हुआ। फलस्वरूप । सुल्तनत की बची हुयी प्रतिष्ठा पूरी तरह नष्ट हो गयी। तैमूर के वापस जाने के बाद वजीर मल्लू इकबाल की सहायता से नासिरुद्दान पुनः दिल्ली की गद्दी प्राप्त की। किन्तु सत्ता की पूरी शक्ति वजीर मल्लू इकबाल के हाथों में केन्द्रित थी। मल्लू इकबाल की बढ़ती हुयी शक्ति की भय से सुल्तान नासिरुद्दीन कन्नौज भाग गया। खिज्र खाँ जिसे तैमूर ने मुल्तान, लाहौर, और दिपालपुर का सुबेदार नियुक्त किया था, एक युद्ध में मल्लू इकबाल को पराजित कर मार डाला। Nasiruddin mahmud tughlaq history in hindi

तैमूर का भारत पर आक्रमण (1398 ई0) –

अमीर तैमूर को भाग्यशाली भविष्य का स्वामी कहा जाता है। एक युद्ध में उसकी एक टांग घायल हो गयी थी, जिसके कारण वह जीवन भर लंगड़ाता रहा, इसलिए उसे तैमूर लंग कहा जाता था। उसका जन्म 1336 ई. में ट्रांस आक्सियान के कैच नामक स्थान पर हुआ था। वह तुर्कों की बरसाल नस्ल का था। उसके पिता अमीर तुर्गई एक छोटी सी जागीर के स्वामी थे। 1369 ई. में तैमूर अपने पिता के मृत्यु के बाद समरकन्द की गद्दी पर बैठा। तैमूर एक महान सैनिक तथा कुशल रानीतिज्ञ था। अपनी विजयों के फलस्वरूप उसने ईरान, अफगानिस्तान, सीरिया, कुर्दिस्तान आदि अनेक क्षेत्रों को विजित कर एक विशाल साम्राज्य का स्वामी बना। तैमूर के विजयों का मुख्य कारण धनलिप्सा थी।

भारत पर उसके आक्रमण के उद्देश्य भी धन की प्राप्ति थी। मार्च अप्रैल, 1398 ई. में तैमूर अपनी राजधानी समरकंद से भारत पर आक्रमण के लिए रवाना हुआ। वह झेलम नदी पर कर तलम्बा अथवा तालमी नामक स्थान पार अधिकार कर लिया। व्यास नदी के नट पर उसके पोते और काबल के सबेदार पीर मोहम्मद उससे आ मिला। उसने भटनेर पर आक्रमण किया। यहाँ का किलेदार दूलचांद ने आत्म समर्पण कर दिया। 11 दिसम्बर, 1398 ई को तैमर दिल्ली पहँचा। उस समय दिल्ली का शासक नासिरुद्दीन महमूद था। 18 दिसम्बर, 1398 ई. को तैमर व दिल्ली की शाही सेना के मध्य युद्ध हुआ। नासिरुद्दीन महमूद व मल्लू इकबाल पराजित हुए। तैमूर ने दिल्ली में कत्लेआम का आदेश दिया जो 15 दिन तक चलता रहा। अतुल्य सम्पत्ति लूटने के बाद 1399 ई. में तैमूर फिरोजाबाद, मेरठ, हरिद्वार, कांगडा और जाम होते हुए वापस समरकन्द लौट गया। जाने से पहले उसने खिज्र खाँ को मुल्तान, लाहौर और दीपालपुर का सुबेदार नियुक्त किया। Nasiruddin mahmud tughlaq history in hindi

यह तो थी नासिरुद्दीन महमूद तुगलक का इतिहास की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको सैय्यद वंश का पूरा इतिहास के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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