प्लासी का युद्ध – कारण, महत्त्व और परिणाम Notes

Hello दोस्तों, एक बार फिर से स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .Com वेबसाइट पर आज की पोस्ट में हम आपको 18 वीं शताब्दी में भारत की राजनीतिक स्थिति और उपनिवेशवाद आक्रमण- 3 (प्लासी का युद्ध – कारण, महत्त्व और परिणाम) के बारे में बताएंगे, तो चलिए शुरू करते हैं आज की पोस्ट

प्लासी के युद्ध के कारण – Plasi ka yuddh

राजनीतिक – नवाब के विरोधी घसीटी बेगम, राज बल्लभ, शौकत जंग आदि उसको हटाने का षडयंत्र रच रहे थे। दूसरी तरफ अंग्रेजों का यह विश्वास था नवाब भावी संघर्ष में हार जायेगा। इसलिए इन्होंने विरोधियों का साथ दिया और नवाब के किलेबंदी न करने के आदेश की अवहेलना की ताकि भविष्य में उन्हें अधिक सविधाएँ उपलब्ध हो सके।

नवाब के प्रति अशिष्टता – भारत में प्रायः राज्याभिषेक के अवसर पर शासक के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए महत्वपूर्ण व्यक्ति मूल्यवान भेंट प्रदान करते थे। जब सिराजद्दौला का सिंहासनारोहण हुआ तो अंग्रेजो ने न तो भेंट दी और न ही उपस्थित हुए। नवाब ने अंग्रेजों की कासिम बाजार फैक्ट्री को देखने की इच्छा व्यक्त की तो अंग्रेजो ने दिखाने से मना
कर दिया। उनकी यह कार्यवाही एक प्रकार से नवाब के प्रति अशिष्टता थी।

व्यापारिक झगड़ा – 1717 ई. में मिले अपने अधिकारों का अंग्रेज दुरूपयोग कर रहे थे। वे अपने दस्तक (Free Pass) को भारतीय व्यापारियों को बेच देते थे। इससे नवाब को आर्थिक नुकसान हो रहा था।

किलेबन्दी करना और आज्ञा का पालन न करना – आंग्ल फ्रांसिसी प्रतिस्पर्धा के कारण अपनी बस्तियों में किले बन्दी कर रहे थे। नवाब के किलेबंदी न करने के आदेश को फ्रांसिसीयों ने मान लिया। नवाब ने अंग्रेजों को लिखा भी “तुम व्यापारी हो, तुम्हें किले की क्या आवश्यकता है, मेरी सुरक्षा में रहते हुए तुम्हें किसी शत्रु का भय नहीं होना चाहिये’ लेकिन अंग्रेजों ने किलेबंदी जारी रखी। Plasi ka yuddh


नवाब के शत्रुओं को संरक्षण देना – अंग्रेजों की बस्ती नवाब के शत्रुओं के लिए आश्रय स्थल बनी हुई थी। जिनमें दीवान राजवल्लभ और उसका पुत्र कृष्ण वल्लभ प्रमुख थे। जब नवाब ने अंग्रेजों से इन्हें माँगा तो अंग्रेजों ने ऐसा करने से मना कर दिया।


इस प्रकार सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के मध्य संघर्ष आरम्भ होने के कारण बन गये। 4 जून 1756 को नवाब ने अंग्रेजों की कासिम बाजार कोठी पर आक्रमण कर कब्जा कर लिया। 15 जून को नवाब की सेना ने फोर्ट विलियम पर घेरा डाला। पराजय और मृत्यु को सामने देख गवर्नर डेक व अन्य अंग्रेज अधिकारी फुल्टा टापू चले गए।


ब्लैक हॉल दुर्घटना– (कलकत्ता की काल कोठरी घटना)


विद्वानों के अनुसार कलकत्ता के एक छोटे कक्ष जो 18 फुट लम्बे और 14 फुट 10 इंच चौडे छोटे कक्ष में सिराजद्दौला द्वारा 146 अंग्रेज बन्दियों को 20 जून को रात्रि को बन्द कर दिया गया तथा उनमें से अगले दिन प्रातः मात्र 23 व्यक्ति ही बचे। 123 व्याक्ति दम घुटने से मारे गये। जे. जैड. हॉलवेल जो शेष जीवित में से एक था। उसे इसे कथा का रचयिता माना जाता है, जो काल्पनिक प्रतीत होती है, क्योकि इतने छोटे कक्ष में 146 व्यक्तियों को एकसाथ बन्द करना सम्भव नहीं था। कहा जाता है कि ब्लैक हॉल की कहानी केवल इसलिए गढ़ी गई ताकि भारत स्थित अंग्रेजों के क्रोध को भड़काया जा सके।

अंग्रेजों ने छल व कूटनाति के द्वारा अमीचन्द, जगत सेठ, सेनापति सादिक खाँ, राजा मानक चन्द व मीर जाफर के सहयोग से एडमिरल वॉटसन व रावट क्लाइव के नेतृत्व मे 2 फरवरी 1757 को कलकत्ता पर पुनः नियन्त्रण कर लिया। 9 फरवरी 1757 को नवाब को अंग्रेजों से अलीनगर की संधि करनी पड़ी जिससे अंग्रेजों को कलकत्ता की किलेबन्दी, सिक्के ढालने का अधिकार व पुनः व्यापारिक सविधाएँ बहाल की गई। क्षतिपूर्ति के रूप में नवाब ने कम्पनी को 3 लाख रूपये देना स्वीकारा, बदले में कम्पनी ने नवाब की सुरक्षा का आश्वासन दिया। सप्त वर्षीय युद्ध छिड़ने के कारण अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों से चन्द्रनगर छीन लिया। रॉबर्ट क्लाइव कुटिल व घूर्त था उसने दिखावे के तौर पर सिराजुद्दौला से समझौता किया परन्तु उसके अस्तित्व को समाप्त करने के लिए षडयंत्र रचना आरम्भ कर दिए।


अलीनगर की संधि के पालन को लेकर दोनों में मतभेद बढ़ गए। क्लाइव ने नवाब के प्रधान सेनापति मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाने का आश्वासन, प्रभावशाली साहकार जगत सेठ, राय दुर्लभ व अमीरचन्द को धन का लालच देकर अपनी ओर मिला लिया। क्लाइव ने अमीरचन्द को तीन लाख रूपये देने का एक संधि पत्र जिस पर 30.000 पाउण्ड एडमिनरल वॉटसन के जाली हस्ताक्षर थे, तैयार किया। Plasi ka yuddh


प्लासी का युद्ध की घटना –

मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील की दूरी पर प्लासी के मैदान में 23 जून 1757 को यह युद्ध नाम मात्र का लड़ा गया। नवाब के पास 50,000 सैनिक थे जबकि क्लाइव के पास 950 पैदल, 100 तोपची, 50 नाविक तथा 2100 भारतीय सैनिक थे। मोहनलाल व मीरमदान ने नवाब की ओर से वीरतापर्वक अंग्रजों का सामना किया तो दूसरी तरफ षड़यन्त्र के अनुरूप मीर जाफर व दुर्लभ राय के नेतृत्व वाला नवाब की सेना का दल निष्क्रिय रहा। नवाब को युद्ध के मैदान से भागना पड़ा। लेकिन पकड़ा गया और मीरजाफर के पुत्र मीरन के हाथों मारा गया।


प्लासी के यद्ध के परिणाम –


यद्यपि सैनिक दृष्टि से प्लासी का युद्ध बड़ा युद्ध नही था। मेलीसन ने इस युद्ध को निर्णायक युद्ध बताया है, लेकिन यह एक सैनिक झड़प से अधिक कुछ नहीं था। के. एम. पन्निकर के अनुसार “यह एक सौदा था जिसमें बंगाल के धनी सेठों तथा मीर जाफर ने नवाब को अंग्रेजों के हाथ बेच डाला।’

• बंगाल अंग्रेजों के अधीन हो गया व फिर स्वतंत्र नहीं हो सका।

• बंगाल का नवाब मीर जाफर को बनाया गया जो अंग्रेजों की कठपुतली था।

• 24 परगनों का प्रदेश अंग्रेजों को जागीर के रूप में प्राप्त हुआ तथा कम्पनी के कर्मचारियों को बिना कर चुकाए व्यापार की
सुविधा प्राप्त हुई।

• कलकत्ता में स्वतंत्र टकसाल की शुरूआत हुई और अगस्त 1757 कम्पनी ने प्रथम सिक्का जारी किया।


• कम्पनी के बड़े बड़े अधिकारियों व स्वयं क्लाईव को भेंट स्वरूप नवाब द्वारा बहुमूल्य उपहार दिए गए। प्लासी की विजय वीरता का नहीं बल्कि विश्वासघात एवं षड़यन्त्र का परिणाम थी।

मीर जाफर व बंगाल की द्वितीय क्रांति – 1757-60 तक मीर जाफर बंगाल का कठपुतली नवाब बना रहा इस दौरान वास्तविक शक्ति क्लाइव के हाथों में रही। नवाब ने अपने समय 3 करोड़ रूपये अंग्रेजों को दिये लेकिन अंग्रेजों की माँग बढ़ती गई। खजाना खाली हो गया, राज्य में कई स्थानों पर विद्रोह आरम्भ हो गये। 1760 में क्लाइव इंग्लैण्ड लौट गया। कार्यवाहक गवर्नर हौलवेल के बाद वेन्सीटार्ट गर्वनर बन कर आया। उसने मीर जाफर द्वारा धन की पूर्ति न किये जाने के कारण बंगाल का नया नवाब मीर कासिम को बना दिया। Plasi ka yuddh

वेन्सीटार्ट सन्धि- (27 सितम्बर 1760)


मीर कासिम को भावी नवाब बनाने के लिए वेन्सीटार्ट की यह एक गुप्त संधि थी जिसकी प्रमुख शर्ते निम्न थी:

• कम्पनी को बर्द्धमान मिदनापुर व चटगांव के जिले मिले सैनिक व्यय के रूप में देगा।

• तीन वर्ष तक सिल्हट के चूने के व्यापार में आधा भाग कम्पनी का होगा।

• मीर कासिम कम्पनी के मित्र अथवा शत्रुओं को अपना मित्र अथवा शत्रु मानेगा।

• कम्पनी के दक्षिण अभियान के लिए मीर कासिम 50 लाख रूपये देगा।

• मीर कासिम वंन्सीटार्ट को 50,000 पोण्ड हालवेल को 27000 पोण्ड, तथा कलकत्ता कोन्सिल के अन्य सदस्यों को 25000 पोण्ड प्रति सदस्य देना स्वीकार किया।


सुरक्षा एवं मशन (निर्वाह भत्ता) का आश्वासन के बाद मीर जाफर ने मीर कासिम के लिए गद्दी छोड दी और कलकत्ता चला गया।

यह तो थी 18 वीं शताब्दी में भारत की राजनीतिक स्थिति और उपनिवेशवाद आक्रमण- 2 (प्लासी का युद्ध – कारण, महत्त्व और परिणाम) की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको बक्सर का युद्ध – कारण, महत्त्व और परिणाम के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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