संगति Essay
संगति का प्रभाव मानव जीवन पर अवश्य पड़ता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसलिए वह समाज के बिना नहीं रह सकता। समाज में रहने के कारण वह किसी न किसी की संगत जरूर करेगा। यदि संगत अच्छी है तो वह गुणवान होगा और यदि कुसंगत है तो उसमें कई बुराइयां होंगी। संगति दो प्रकार की होती है। इनमें पहली है सत्संगत अर्थात् अच्छे लोगों की संगत तथा दूसरी है। कुसंगत अर्थात् बुरे लोगों की संगत। अच्छे लोगों की संगत से जहां मान सम्मान में बढ़ोत्तरी होती है वहीं वह उन्नति दिलाती है।
कोई भी व्यक्ति जन्म से बुरा भला नहीं होता ।वह समाज में रहकर ही भला या बुरा बनता है। जन्म के बाद से बच्चा तीन-चार वर्ष की आयु तक ज्यादातर समय घर में ही रहता है इसलिए इस दौरान वह अपने माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों से काफी कुछ सीखता है। उसके माता-पिता के जैसे संस्कार होंगे वह वैसे ग्रहण करेगा। इसके बाद से वह घर से बाहर निकलने लगता है और समाज से काफी कुछ सीखता है। अच्छी संगत सच्चरित्रता का निर्माण करने में महत्पूर्ण भूमिका निभाती है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि
–सठसुधरहि सत्संगति पाई। पारस परसि कुधातु सुहाई॥ Sangati ka asar par nibandh essay
अर्थात् पारस के संपर्क में आने से जैसे लोहा सोना बन जाता है उसी प्रकार सत्संगतिक से बुरा आदमी भी सुधर जाता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है उस पर समाज का अच्छा और बुरा दोनों प्रकार का पड़ता7 है। कुछ लोग बचपन से ही अच्छी संगति के कारण अच्छाई की तरफ मुड़ते हैं। कुछ बी संगति के कारण अवगुणों की तरफ जाते हैं। अच्छी संगति वाला व्यक्ति सदा सत्यवादी, ईमानदार तथा विश्वास के योग्य होता है। वह सत्य-असत्य, पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म तथा अच्छाई-बुराई को समझता है। इन गुण-अवगुणों में से वह केवल गुण ग्रहण करता है। सत्संगति का महत्व बताते हुए गुरु गोविन्द सिंह जी ने कहा है कि –
जो साधुन सारणी परे तिनके कथन विचार दंत जीभ जिमी राखि है, दुष्ट अरिष्ट संहार
अर्थात् जो लोग सज्जनों की छत्रछाया में रहते हैं उन्हें किसी प्रकार की चिंता करने की आवरना उन्हान उदाहरण देते हुए कहा है कि जैसे दांतों से घिरी जीभ सरक्षित रहती है उसी प्रकार गुरुभक्त लोग भी दुष्टों और दुर्भाग्य से काफी दूर रहते हैं। Sangati ka asar par nibandh essay
अवगुणाकार वह कभी नहीं मुड़ता है। सत्संगति वाला व्यक्ति चरित्रवान होता है। चरित्र की श्रेष्ठता हा उस श्रष्ठता प्रदान करती है। सत्संगति पाकर वह अपने जीवन को आदर्श बना लेता है तथा सुख,शाति आर सतोष से जीता है। संसार का सारा सुख और वैभव उसे प्राप्त होता है। उसके सम्पर्क में आकर बुरा भी अच्छा बनने का प्रयत्न करता है। सत्संगति वाले व्यक्ति का जीवन चंदन के वृक्ष के समान होता है। इस वृक्ष की सुगन्ध में साँप या विषधर उससे लिपटे रहते हैं लेकिन चंदन का वृक्ष अपनी सुगन्ध नहीं छोड़ता है। इसी पकार कुसंगति वाले व्यक्ति सत्संगति वाले का कुछ भी नुकसान नहीं कर सकते हैं। सत्संगति वाला व्यक्ति स्वयं अपने परिवार, समाज तथा राष्ट्र की एक मूल्यवान सम्पत्ति होता है। वह सभी को लाभ पहुंचाता है। कहा भी गया है कि सत्संग पाप, ताप और दैत्य का तत्काल नाश कर देता है। Sangati ka asar par nibandh essay
सत्संगति साधु तथा सज्जनों की संगति है। जो हर प्रकार वंदनीय तथा गुणों की खान होते हैं, जो अवगुणों को सद्गुणों में बदलते हैं। वे समाज के उत्तम प्रकृति के व्यक्ति होते हैं जिन पर संत-समाज श्रद्धा रखता है। हमें सत्संगति दो प्रकार से मिल सकती है। प्रथम, सज्जन तथा साधु पुरुषों के सम्पर्क से तथा दूसरी अच्छी पुस्तकों से। दोनों प्रकार की संगति से कोई भी मनुष्य विवेकी, ज्ञानी तथा चरित्रवान बन सकता है।
बुरी संगति का असर किसी भी व्यक्ति पर बड़ी आसानी से पड़ जाता है। यदि आप कुसंगति वाले के साथ थोड़ी देर के लिए खड़े भी हो गये तो जिन लोगों ने आपको उनके साथ खड़े देखा
है। उनकी नजरों में आप कुसंगति वाले हो गये। इसके लिए आप लाख सफाई देते रहें कि मैं तो वैसे ही खड़ा था या मुझे उन्होंने रोक लिया था। अच्छी संगत के साथ उठने बैठने पर कोई कुछ नहीं कहता। Sangati ka asar par nibandh essay
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