मोहम्मद बिन तुगलक को पागल सम्राट क्यों कहा जाता है?

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इस से पहले हमने आपको मुहम्मद बिन तुगलक की योजना असफलता के कारण के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आपको मोहम्मद बिन तुगलक को पागल सम्राट क्यों कहा जाता है? के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

मोहम्मद बिन तुगलक को पागल सम्राट क्यों कहा जाता है?

मुहम्मद की धार्मिक नीति –

सुल्तान ने अलाउद्दीन खिलजी तथा बलवन की तरह राजनीति को उलेमा लोगो के हस्तक्षेप से मुक्त कर लिया। यद्यपि वह कभी-कभी उलेमा से परामर्श लिया करता था लेकिन वह उनकी बात मानने के लिए बाध्य नहीं था, वह उनका उल्लंघन भी कर दिया करता था। इसके पूर्ववर्ती सम्राटों के समय में उलेमा का न्याय के क्षेत्र में एकाधिकार था। लेकिन सुल्तान ने उनका एकाधिकार समाप्त कर दिया, उनके अतिरिक्त अन्य लोगों को भी न्याय कार्य के लिए नियुक्त कर दिया। यदि उलेमा विद्रोह करते अथवा अन्य कोई अपराध करते थे तो सुल्तान उनके साथ किसी भी प्रकार की रियायत न करके उन्हें कठोरतम दण्ड देता था। वह सुल्तान के पद को ईश्वरीय समझता था, उसकी यह मान्यता थी कि जो व्यक्ति सम्राट की आज्ञा का पालन करता है वह वास्तव में ईश्वर की आज्ञा का पालन करता है। was muhammad bin tughlaq mad

सिक्कों पर उसने अपने को ईश्वर की छाया लिखवाया। सुल्तान की इस नीति से उलेमा का प्रभाव कम हो गया. इससे उलेमाओं में घोर असन्तोष छा गया। इस असन्तोष ने सुल्तान को अपनी धार्मिक नीति बदलने के लिए बाध्य कर दिया। उसने खलीफा से अपने पद की मान्यता प्राप्त करने के लिए प्रार्थना -पत्र दिया और सिक्कों से अपना नाम निकलवा कर खलीफा के नाम तथा उपाधि लिखवा दी। सुल्तान ने मिस्त्र के खलीफा को अपने दरबार में आमन्त्रित किया और उसे बहुमल्य भेंट देकर प्रसन्न करने का प्रयत्न किया। वह अपना प्रत्येक कार्य खलीफा नाम से ही करता था। इतना सब करने पर भी वह जन-असन्तोष को कम न कर सका।

क्या मुहम्मद तुगलक पागल था –

एलफिंस्टन तथा परिवती यूरोपीय इतिहासकारों ने मुहम्मद तुगलक को पागल बादशाह कहा है। एलफिंस्टन ने लिखा है, “मुहम्मद तुगलक अपने समय का एक योग्य शासक था किन्तु उसमें जो शासन करने के महान गुण थे, वे सब व्यर्थ थे क्योंकि उसमें कुछ ऐसी बातों का सम्मिश्रण था जिसके आधार पर सुल्तान ऐसे कार्य किये जिससे यह प्रतीत होता है कि सुल्तान पागलपन से प्रभावित था।” किन्तु सुल्तान के समकालीन इतिहासकार बरनी तथा इब्नबतूता के लेखों में सुल्तान को कहीं भी पागल नहीं बताया गया है।

सम्भवतः एलफिस्टन के मत का आधार बरनी का यह कथन है कि सुल्तान बड़ा निर्दयी था और उसे मुसलमानों का खून बहाने में आनन्द आता था। कोई दिन या सप्ताह ऐसा व्यतीत नहीं होता था जबकि अनेक मुसलमानों की हत्या न करायी जाती हो । उसके महल के द्वार के सामने सदैव लाशें पड़ी रहती थीं और रक्त की नदी बहती रहती थी। किन्तु इस आधार पर सुल्तान को पागल बताना न्यायसंगत नहीं है क्योंकि वह लोगों को मृत्युदण्ड इसलिए नहीं देता था कि वह पागल था। प्राय: मध्य युग के सभी सुल्तानों के समय में मृत्यु-दण्ड दिया जाता था। अलाउद्दीन खिलजी तथा बलवन ने मुहम्मद तुगलक की अपेक्षा कहीं अधिक कत्लेपात का जो बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया है उसको हम निष्पक्ष नहीं कह सकते, क्योंकि बरनी उलेमा वर्ग का व्यक्ति था और सुल्तान ने उलेमा को विशेषाधिकारों से वंचित कर दिया था। इसलिए बरनी ने सुल्तान की आलोचना की है और बरनी के इस द्वेषपूर्ण कथन को आधार मानकर जो विद्वान सुल्तान को पागल बतलाते हैं, वह बुद्धि और समझ का दिवालियापन ही कहा जायेगा। was muhammad bin tughlaq mad

सुल्तान पर दूसरा आरोप उसकी शासन सम्बन्धी योजनाओं की असफलता को लगाया जाता है। यह सही है कि उसकी शासन सम्बन्धी योजनाएँ असफल रहीं किन्तु यह कहना कि उसकी योजनाएँ पागलपन की द्योतक थीं, नितान्त ही गलत है। हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि उसकी कुछ चारित्रिक कमियाँ उसकी योजनाओं की असफलता का प्रमुख कारण थीं जिनका हम पहले उल्लेख कर चुके हैं। किन्तु इन कमियों के आधार पर उसे पागल नहीं कहा जा सकता। सुल्तान ने जो भी योजनाएँ बनायी वे उसकी महत्वाकांक्षा की द्योतक थीं और यदि वह पागल होता तो शासन के लिए ऐसी सुधार योजनाओं को नहीं बना सकता था उसकी सुधार योजनाएँ तर्कसंगत थी। उदाहरण के लिए, उसने दोआब में जो कर-वृद्धि की, उसमें यह व्यवस्था की गयी थी कि अमीरों से अधिक कर तथा गरीबों से कम कर लिया जाये जो कि न्यायपूर्ण था, किन्तु अकाल पड़ने के कारण उसकी यह योजना असफल हो गयी। इसमें सुल्तान का कोई दोष नहीं था। दूसरे, दिल्ली से देवगिरि को राजधानी बनाना सुल्तान की बुद्धिमत्ता का प्रतीक था क्योंकि देवगिरि उसके राज्य के बीचोबीच में पड़ती थी और वहाँ से दक्षिण के राज्यों पर नियन्त्रण रखा जा सकता था, किन्तु वहाँ लोगों का मन नहीं लगा ओर योजना असफल हो गयी। तीसरे, उस काल में अनेक देशों में सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन हो चुका था, इसका अनुकरण करते हए ही उसने सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन किया था। किन्तु सुल्तान इसको नियमित नहीं कर सका इसलिए वह असफल रहा।

चौथे, कृषि विभाग की स्थापना भी तर्कसंगत थी। तीसरा आरोप उसकी विजय योजनाओं का लगाया जाता है। यह तर्क दिया जाता है कि जब उसके साम्राज्य में चारों ओर के विद्रोह की आग भड़क रही थी, शांति-व्यवस्था का अभाव था, ऐसे समय में विदेशों को विजय करने की योजना बना था। किन्तु मध्य युग के सभी सुल्तान महत्वाकांक्षी रहे हैं, इसलिए दूसरे देशों को जीतने की योजना बनाना पागलपन का द्योतक नहीं कहा जा सकता। मुहम्मद तुगलक को विदेशी परिस्थितियों तथा वातावरण ने आक्रमण करने की प्रेरणा दी। दुसरे, उसकी सैनिक शक्ति भी कम नहीं थी। किन्तु परिस्थितियों के बदलने के कारण कुछ योजनाओं को त्यागना पड़ा (खुरासान विजय योजना) कराजल विजय में प्राकृतिक प्रकोप के कारण उसे असफलता मिली। किन्तु यह अभियान भी पूर्ण निरर्थक नहीं कहा जा सकता। उसकी विजय योजनाएँ गलत नहीं थी। इसके आधार पर सुल्तान को पागल कहना गलत है। वास्तव में वह परिस्थितियों का शिकार हो गया था।

पूर्वोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मुहम्मद तुगलक पागल नहीं था। वह एक बुद्धिमान तथा आदर्शवादी था। लेकिन इतना अवश्य मानना पडेगा कि उसमें यथार्थवादिता तथा व्यावहारिक कुशलता की कमी थी और उसका मानसिक सन्तुलन बिगडा हुआ था। was muhammad bin tughlaq mad

यह तो थी मोहम्मद बिन तुगलक को पागल सम्राट क्यों कहा जाता है? की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको फिरोजशाह तुगलक (1351-1388 ई.) के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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