मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351 ई.) का सम्पूर्ण इतिहास
प्रारम्भिक जीवन-
मुहम्मद अपने पिता का सबसे बड़ा पुत्र था। इसका बचपन का नाम जूनाखाँ था। गयासुद्दीन ने इसकी शिक्षा-दीक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया था। इसी का परिणाम था कि वह एक उच्चकोटि के विद्वान के रूप में जाना जाता है। वह बड़ा महत्वाकांक्षी तथा प्रतिभाशाली युवक था। खुसरो के शासनकाल में उसे घोड़ों का अध्यक्ष बना दिया गया था। 1320 ई. में जब उसका पिता गद्दी पर बैठा तो मुहम्मद को ‘युवराज’ घोषित कर दिया गया और उसे ‘उलुगखाँ’ की उपाधि प्रदान की गयी। अपने पिता के शासनकाल में उसने वारंगल के सम्राट को नतमस्तक किया। धीरे-धीरे उसने अपनी स्थिति दृढ़ बना ली और दिल्ली का सम्राट बनने का स्वप्न देखने लगा।
शासन सम्बन्धी योजनाएं (Administrative Plannings) –
(i) दोआब में कर-वृद्धि
सिंहासन पर बैठने के कुछ समय पश्चात सम्राट ने दोआब में कर-वृद्धि कर दी, किन्तु कर में कितनी वृद्धि की गयी थी, इस सम्बन्ध में स्पष्ट जानकारी नहीं है। बरनी ने ‘यके व देह’ शब्द का प्रयोग किया है जिसका अर्थ दस गुना होता है किन्तु ‘बदायूँनी ने यके व देह बिस्त’ शब्द का प्रयोग किया है, जिसका 10 से 20 के अनुपात में हुआ अर्थात् दुगुना हो गया। होदी वाला का विचार है कि सम्भवतः बरनी ने यके व देह बिस्त’ लिखा हो और उससे नकल करने वालों ने गलती से ‘यके व देह” लिख दिया हो। लेकिन कर-वृद्धि के सम्बन्ध में जो सामग्री उपलब्ध होती है उससे यही पता चलता है कि कर अत्यधिक बढ़ा दिया गया था। muhammad-bin-tughlaq-1325-51-ad
कर वृद्धि के कारण
बरनी ने लिखा है कि सुल्तान को खजाना खाली हो गया था। जिसकी पूर्ति के लिए कर-वृद्धि की थी। कर-वृद्धि योजना की अनेक इतिहासकारों ने कटु आलोचना की है। अनेक विद्वानों ने इसके लिए सुल्तान को दोषी माना है। किन्तु वास्तव में देखा जाये तो इसकी असफलता के लिए केवल सुल्तान ही दोषी नहीं था बल्कि वह परिस्थितियों का शिकार हो गया था। कर-वृद्धि करना अनुचित नहीं कहा जा सकता। muhammad-bin-tughlaq-1325-51-ad
ब्राउन का मत है, “दोआब साम्राज्य का सबसे अधिक धनी तथा समृद्धशाली भाग था। अत: इस भाग से साधारण दर से अधिक कर वसूल करना न्यायसंगत था।”
योजना की असफलता के कारण –
- जिस समय कर-वृद्धि की गयी उसी समय भयंकर अकाल पड़ने के कारण जनता की कमर टूट गयी और उसमें कर अदा करने की क्षमता नहीं रही।
- दोआब के लोग बढ़ी हुई दर पर कर देने को तैयार नहीं थे।
- कर की वसूलयाबी इतनी कठोरता से की गयी कि जनता कराह उठी और सुल्तान के प्रति भयंकर असन्तोष पैदा हो गया।
- इस योजना को कार्यान्वित करने के कारण हिन्दु अधिकारियों में असन्तोष बढ़ गया क्योंकि इस नीति के अन्तर्गत सरकारी रुपये को नहीं खाया जा सकता था और न जनता से ही अधिक वसूल किया जा सकता था इसलिए उन्होंने अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए कर-वृद्धि का विरोध किया और उन्होंने कर वसूल करने में सुल्तान को सहयोग नहीं दिया।
(ii) राजधानी परिवर्तन –
सन् 1326-27 ई. में मुहम्मद तुगलक ने दिल्ली को छोड़कर देवगिरि को राजधानी बनाने का निश्चय किया, जिसका नाम बदलकर दौलताबाद रख दिया था। अब प्रश्न यह है कि सुल्तान ने राजधानी परिवर्तन क्यों किया था?
राजधानी परिवर्तन के कारण –
- देवगिरि का केन्द्र में स्थित होना –
इसका सबसे पहला कारण देवगिरि का साम्राज्य के केंद्र में स्थित होना था। सुल्तान ऐसे स्थान को राजधानी बनाना चाहता था जो सामरिक महत्व का होने के साथ-साथ राज्य के केंद्र में स्थित हों इतिहासकार बरनी ने लिखा है कि देवगिरि को भौगोलिक महत्व के कारण ही राजधानी चुना गया था। वह स्थान सल्तनत के केन्द्र में स्थित है। दिल्ली, गुजरात, लखनौती, सातगाँव, सोनारगाँव, तैलांग, माबर, द्वार-समुद्र और कम्पिल यहाँ से बराबर दूरी पर हैं।
- दिल्ली के लोगों को सजा देना –
इब्नबतूता ने लिखा है कि दिल्ली के निवासियों ने सुल्तान के विरुद्ध निन्दनीय पत्र लिखे थे इसलिए उनको सजा देने के उद्देश्य से आज्ञा दी गयी कि सभी दिल्ली निवासी शहर छोड़कर 1120 किमी. दूर देवगिरि को प्रस्थान करें। किन्तु इब्नबतूता की यह बात सही प्रतीत नहीं होती क्योंकि जिस समय राजधानी परिवर्तन किया गया, उस समय वह भारत में नहीं आ पाया था। दूसरा, दिल्ली के सभी निवासी पढ़े-लिखे नहीं हो सकते थे जो ऐसे पत्र लिख सकें। यदि पत्र लिखे भी गये हों तो कुछ गिने-चुने व्यक्तियों के ही हो सकते थे, जिनकी पहुँच शाही महल तक थी। कुछ लोगों के लिए सारे शहर को सजा देना तर्कसंगत नहीं लगता। यदि सुल्तान का इरादा जनता को कष्ट देना ही होता तो वह जनता के आने-जाने तथा रहने की सुख-सुविधा के लिए प्रयत्न क्यों करता?
- मंगोल आक्रमण से दिल्ली की असुरक्षा –
इतिहास गार्डनर ब्राउन का मत है कि मंगोलों के आक्रमण के भय से राजधानी का परिवर्तन किया गया। उसने कहा कि मंगोलों के निरंतर आक्रमणों से साम्राज्य की राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र उत्तरी भारत से खिसक कर धीरे-धीरे दक्षिणी भारत बनता गया। किन्तु इस तर्क को भी नहीं माना जा सकता क्योंकि मुहम्मद तुगलक के राजगद्दी प्राप्त करने के समय तक मंगोलों के आक्रमण प्रायः समाप्त हो गये थे। muhammad-bin-tughlaq-1325-51-ad
- दक्षिण भारत के राज्यों पर नियन्त्रण रखने के लिए –
इतिहासकारों ने राजधानी परिवर्तन का एक कारण यह भी बताया है कि उत्तरी भारत पूर्णतया जीत लिया गया था और शान्त था, किन्तु दक्षिण भारत में निरन्तर विद्रोह होते रहते थे और उनके ऊपर दिल्ली सत्ता का पूर्णरूप से नियन्त्रण नहीं था। दक्षिण की स्थायी विजय तथा विद्रोहों का दमन वही सरकार कर सकती थी, जिसकी राजधानी दक्षिण में होती। इसी कारण सुल्तान ने देवगिरि को अपनी राजधानी बनाया और, सुल्तान ने यह अनुभव किया होगा कि दक्षिण भारत इतना धन-धान्य से परिपूर्ण है कि उनके निकट सम्पर्क में रहकर ही उसके साधनों का अधिक सरलता से उपयोग किया जा सकता हैं। muhammad-bin-tughlaq-1325-51-ad
- दक्षिण में इस्लाम धर्म का प्रचार करने के लिए –
मेहंदी हुसैन का मत है कि दक्षिण में इस्लाम का प्रचार करने के उद्देश्य से राजधानी परिवर्तन किया गया। सुल्तान यह भी समझता था कि दक्षिण को स्थायी रूप से अपने नियन्त्रण में रखने के लिए वहाँ मुस्लिम सभ्यता का प्रसार करना आवश्यक है और यह कार्य दिल्ली से होना असम्भव था। इसलिए उसने विद्वानों, धार्मिक व्यक्तियों तथा अमीरों को दौलताबाद पहुँचने का आदेश दिया। muhammad-bin-tughlaq-1325-51-ad