शेरशाह की शासन व्यवस्था और प्रशासन Notes

-Shershah: Administration and Rreformer शेरशाह प्रशासक और सुधारक Sher shah carpet administration or sher shahs governance and administration

  1. – मध्यकालीन भारत के इतिहास में शेरशाह को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, जिसने मात्र 5 वर्षों के 1540 से 45 अपने कार्य और अभियानों से एक विशाल और मजबूत साम्राज्य की स्थापना की।
  2. – कन्नौज के युद्ध में हुमायूं को पराजित करने के बाद 10 जून 1540 को उसने आगरा में अपना राज्य अभिषेक करवाया तथा द्वितीय अफगन साम्राज्य की स्थापना की।
  3. -शासक बनने के पश्चात शेरशाह के समक्ष कई समस्याएं थी, जैसे मुगल पुनः स्थापित होने के प्रयास में थे, कई राजपूत राज्यस्वतंत्र हो चुके थे तथा लोधीओं का भी कई क्षेत्रों में आधिपत्य बना हुआ था।
  4. – शेरशाह ने न केवल उन समस्याओं का समाधान किया, बल्कि आर्थिक और प्रशासनिक सुधार कर इतिहास में अपना नाम स्थान बनाया।
  5. -शेरशाह का जन्म सन 1486 में पंजाब के होशियारपुर शहर में बजवाड़ा नामक स्थान पर हुआ था। उसका बचपन का नाम फरीद था। शेरशाह का दादा इब्राहीम सूर थे और हसन खां का पुत्र था।
  6. -शेर सिंह का पिता जौनपुर का एक छोटा जागीरदार था। दक्षिण बिहार की सुखकर बहार खान लोहानी ने उसे एक शेर मारने के उपलक्ष में शेर खान की उपाधि दी तथा अपने पुत्र जलाल खान का संरक्षक नियुक्त किया।
  7. -शेरखान घाघरा के युद्ध में मुगलों के विरुद्ध महमूद लोदी की ओर से युद्ध में भाग लिया था।
  8. -सन 1529 ईस्वी में शेरशाह ने बंगाल के शासक नुसरत शाह को पराजित किया “हजरते आला” की उपाधि धारण की।
  9. -सन 1534 ईस्वी में शेर खां ने सूरजगढ़ के युद्ध में बंगाल के अयोग्य शासक महमूद शाह को पराजित किया इस प्रकार उसने बिहार और बंगाल में अपनी स्थिति मजबूत कर ली।
  10. -सन 1539 ईस्वी को चौसा के युद्ध में हुमायूं को पराजित कर शेरशाह की उपाधि धारण की तथा 1540 ईस्वी के कन्नौज की युद्ध में हुमायूं को पराजित कर मुगलों को भारतीय राजनीति से बाहर कर दिया।
  11. – दिल्ली में सत्ता स्थापित करने के साथ ही उसने शुर वंश की स्थापना की और अपने विजय अभियान की शुरुआत की।
  12. – शेरशाह ने अपनी उत्तर-पश्चिमी सीमा को सुरक्षित करने के लिए रोहतासगढ़ नामक एक सुदृढ़ किला बनवाया और हेबात खां तथा रखवाल खां के नेतृत्व में एक शक्तिशाली सेना को रखा।
  13. – सन 1542 ईस्वी में शेरशाह ने मालवा और 1543 ईस्वी में रायसिंह पर आक्रमण कर राजपूत शासन पूरणमल को विश्वासघात करके मार डाला।
  14. -सन 1544 ईस्वी में शेरशाह ने मारवाड़ के शासक मालदेव पर आक्रमण किया और एक कठिन युद्ध में उसे पराजित किया।
  15. – सन 1545 में शेरशाह ने अपना अंतिम अभियान कालिंजर के कीतर सिंह के विरुद्ध किया था इस अभियान के दौरान जब वह  उक्ता नामक अग्निअस्त्र चला रहा था तभी बारूद फटने से उसकी मृत्यु हो गई।
  16. -शेरशाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र इस्लाम शाह सुर शासक बना, परंतु उसने ना तो साम्राज्य का विस्तार किया और ना ही उसका सुदृढ़ीकरण किया बल्कि आंतरिक विद्रोह को दबाने में लगा रहा जिसमें हुमायूं को पुनः साम्राज्य प्राप्त करने का मौका मिल गया।
  17. – शेरशाह एक महान विजेता और सेनानायक होने के साथ-साथ कुशल और योग्य प्रशासक भी था। उसने जो नागरिक और प्रशासनिक सरंचना बनाई वह आगे जाकर मुगल बादशाह अकबर द्वारा इस्तेमाल और विकसित की गई।
  18. -ऐसा करने के लिए उसने एक ओर कई पुरानी प्रशासनिक संरचनाओं को बने रहने दिया, वहीं दूसरी और नवीन संस्थाओं का निर्माण किया।
  19. – इस प्रकार शेरशाह के प्रशासन में पुनर्निर्माण और परिवर्तन दोनों के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। शेरशाह का प्रशासनिक संगठन एक केंद्रीकृत प्रशासन था, जिसमें सुल्तान या शासक ही सभी का केंद्र बिंदु था। शासन का सुचारू रूप से संचालन के लिए निश्चय ही मंत्रियों को नियुक्त किया गया था, किंतु वे मुगलकालीन मंत्रियों की तरह विस्तृत अधिकार संपन्न नहीं होते थे। sher shah carpet administration or sher shahs governance and administration


-शेरशाह का केंद्रीय प्रशासन

केंद्रीय प्रशासन के अंतर्गत सुल्तान या शासक सभी शक्तियों का केंद्र बिंदु था और एक निरंकुश शासक के रूप में राज्य करता था, किंतु शेरशाह की निरंकुशता प्रबुद्ध निरंकुशता थी, जिसमें जनता के हितों का ध्यान रखा गया था।

  • प्रांतीय प्रशासन शेरशाह के शासनकाल में प्रांतीय प्रशासन की जानकारी अस्पष्ट है, अब्बास खान शेरवानी के अनुसार शेरशाह ने अपने साम्राज्य को 47 सरकार में विभाजित किया।
  • -प्रत्येक सरकार में दो प्रमुख अधिकारी : शिकदार-ए-शिकदारान तथा मुंसिफ-ए-मुंसिफ़ान होते थे। शिकदार जहां सैनिक अधिकारी होता था तथा उसका कार्य सरकार में शांति व्यवस्था स्थापित करना होता था, वही मुंसिफ-ए-मुंसिफ़ान एक न्यायिक अधिकारी होता था, जो दीवानी मामलों की सुनवाई करता था।
  • -सरकार का विभाजन परगनों में किया गया था इसके अंतर्गत तीन प्रमुख अधिकारी होते थे शिकदार – कानून व्यवस्था के लिए, अमीन – लगान वसूली के लिए, मुंसिफ दीवानी – मुकदमों की देखरेख के लिए।
  • -शेरशाह ने गांव की परंपरागत व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं किया गांव प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी, जहां ग्राम प्रधान, चौकीदार, पटवारी के द्वारा प्रशासन चला जाता था।

सैनिक सुधार शेरशाह ने एक स्थाई सेना का गठन और सैनिकों को नगद वेतन देने की परंपरा प्रारंभ की तथा घोड़ों को दागने और सैनिकों का हुलिया रखने की प्रथा प्रारंभ की जिससे सेना की कार्य क्षमता में वृद्धि हुई और सैनिकों की राज्य के साथ धोखेबाजी की संभावना समाप्त हुई। sher shah carpet administration or sher shahs governance and administration

-शेरशाह का राजस्व संबंधी सुधार

शेरशाह भू राजस्व का निर्धारण फसल बंटवारे अनुमान के आधार पर करने का हिमायती ना था, वह चाहता था कि मध्यस्थ किसानों का शोषण न करें और राज्य की आय में निरंतरता बनी रहे इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखकर शेरशाह ने निम्न कदम उठाए –

  • – भूमि को उत्पादकता के आधार पर तीन श्रेणियों में बांटा गया – उत्तम, मध्यम और निम्न।
  • -प्रत्येक श्रेणी में भू राजस्व सुधार उपज का 1/ 3 भाग निर्धारित की गई। राजस्व निर्धारण के लिए भूमि माप को आधार बनाया गया। इसके लिए शेरशाह ने जब्ती व्यवस्था को प्रारंभ किया भूमि माप के क्रम में किसानों को जरीबाना (सर्वेक्षण शुल्क) और महासिलाना कर (कर संग्रह शुल्क) नामक कर की अदायगी करनी होती थी।
  • – राजस्व की अदायगी के लिए किसानों से करार किया जाता था इसमें पट्टा और कबूलियत नामक दो प्रक्रिया संपन्न होती थी।
  • -राजस्व की अदायगी  नकद या अनाज किसी भी रूप में देने की छूट थी।
  • – लगान के निर्धारण के समय अत्यंत ही नरमी बरती जाती थी, लेकिन वसूली के समय सख्ती से पेश आया जाता था।
  • – अकाल से निपटने के लिए अलग से कर लिया जाता था। सुल्तान इस राजस्व व्यवस्था का अपवाद था, वहां करो कि दर उपज का 1/4 भाग हुआ करती थी।
  • -शेरशाह के राजस्व संबंधी सुधारों से किसानों को राहत मिली। राज्य को आर्थिक लाभ हुआ तथा जागीरदार और जमीदारों के प्रभाव में कमी आई।

आर्थिक सुधार शेरशाह ने आर्थिक सुधार से संबंधित कई कार्य किये। उसने राज्य में एक ही समान मुद्रा प्रणाली और माप तोल के उपकरणों को लागू किया उसने घटिया सिक्कों की जगह पर शुद्ध सोने चांदी के सिक्के जारी किया और रुपए के छोटे हिस्सों के लिए भी सिक्के बनवाए।

– उसने व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए चुंगीयों की दर निर्धारित की तथा शहदारी जैसे करो को समाप्त करके केवल दो स्थानों पर चुंगी लेने का प्रबंध किया।

– पहला उत्पादन या आपात केंद्र पर और दूसरा विक्रय स्थल पर व्यापार की उन्नति के लिए सड़कों का निर्माण और यात्रियों के आवास और सुरक्षा का पूरा-पूरा प्रबंध किया गया।

जनकल्याणकारी कार्य सत्ता के सुदृढ़ीकरण में संचार क्षेत्र में उसके द्वारा कई कार्यों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। शेरशाह ने विभिन्न राजमार्गों का निर्माण करवाया इसमें ना केवल सैनिकों की आवाजाही शुरू हुई बल्कि वाणिज्य व्यापार का भी विकास हुआ।

-प्रत्येक 2 कोस पर सराय (धर्मशाला) का निर्माण करवाया धीरे-धीरे यह सराय मंडी के तौर पर विकसित हो गए। इसके आसपास वाणिज्यिक गतिविधियां संपन्न हुई इस समय की शासन व्यवस्था में हिंदू-मुस्लिम प्रजा के मध्य कोई भेदभाव नहीं किया गया था। उसके द्वारा 1700 सराय बनवाई गई थी।

-शेरशाह का काल सांस्कृतिक उपलब्धियों के लिए उल्लेखनीय है। सासाराम स्थित उस का मकबरा स्थापत्य कला का शानदार नमूना प्रस्तुत करता है। इसे सल्तनत कालीन स्थापत्य की पराकाष्ठा तथा मुगल शैली का प्रारंभ माना जाता है शेरशाह ने दिल्ली के निकट एक शहर भी बसाया था जिसमें सिर्फ पुराना किला के कुछ भाग अवशेष है।

– शेर शाह ने भूमि माप के लिए ‘सिकंदरी गज’ और ‘सन की डंडी’ का प्रयोग करवाया।

– लगान के अलावा किसानों को जरीबाना (सर्वेक्षण शुल्क) और महासिलाना (कर संग्रहण शुल्क) कर भी देने पड़ते थे, जो भू राजस्व का 2.5% और 5% होता था।

-शेरशाह ने ‘सुल्तान-उल-अदल‘ की उपाधि धारण कर रखी थी उसकी न्याय व्यवस्था बहुत निष्पक्ष और कठोर थी।

– काजी असैनिक मुकदमों का निर्णय करते थे। गांव के मुकदमे ग्राम पंचायतों द्वारा निर्णित होते थे।

– शेरशाह ने अपने साम्राज्य कि उत्तर-पश्चिम सीमा की सुरक्षा के लिए रोहतासगढ़ नामक किला बनवाया इसके अतिरिक्त उसने दिल्ली के पुराने किले का भी निर्माण करवाया।

-शेरशाह ने कन्नौज नगर को नष्ट करके शेर सूर नामक नगर बसाया।

– कवि मलिक मोहम्मद जायसी शेरशाह के समकालीन थे ।

-शेरशाह द्वारा बनाई गई प्रसिद्ध सड़के-

ग्रांड ट्रंक रोड बंगाल में सोनार गांव से शुरू होकर, दिल्ली लाहौर होती हुई पंजाब में अटक जाती थी।

-आगरा से बुरहानपुर तक।

– आगरा से जोधपुर होती हुए चित्तौड़ तक।

-लाहौर से मुल्तान तक।

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