हड़प्पा सभ्यता के धार्मिक जीवन और कला संस्कृति Notes

हेलो दोस्तों स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .Com वेबसाइट पर आज हम आपको हड़प्पा सभ्यता के धार्मिक जीवन और कला संस्कृति, हड़प्पा सभ्यता का उद्भव और उत्पत्ति के सिद्धांतों से संबंधित नोट्स इस पोस्ट में प्रस्तुत कर रहे हैं यह यूपीएससी, एमपीपीएससी, एसएससी और अन्य सभी महत्वपूर्ण प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए उपयोगी हैं

धार्मिक जीवन

हड़प्पा सभ्यता मुख्यतः लौकिक सभ्यता थी, जिसमें धार्मिक तत्व उपस्थित था, परंतु वर्चस्व नहीं। इस सभ्यता से मंदिर के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं। जल पूजा प्रचलित थी। मोहनजोदड़ो से विहुद स्नानागार तथा पुरोहित आवास के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। इससे स्न्यान के महत्व का पता चलता है। इस सभ्यता में मात्रू देवी की पूजा  भी प्रचलित थी।

हड़प्पा से प्राप्त मुहर में एक स्त्री के गर्भ से पौधा प्रस्फुटित होता दिखाया गया है, जो संभवत पृथ्वी पूजा(उर्वरता की देवी ) का प्रमाण है। मोहनजोदड़ो से हमें पशुपति शिव की पूजा का भी साक्ष्य प्राप्त होता है। उसी प्रकार हड़प्पा सभ्यता में लिंग पूजा, पशु पूजा, नाग पूजा, पीपल, नीम व बबूल की पूजा भी की जाती थी। साथ ही अग्नि पूजा भी प्रचलित थी। कालीबंगा तथा लोथल से अग्नि वेदिका के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। इस सभ्यता के धर्म में प्रेत वाद का भाव भी दिखाई देता है। प्रेत वाद वह धार्मिक अवधारणा है, जिसमें प्रेतों की पूजा बुरी आत्मा के भय से की जाती थी। इस सभ्यता में हमें भक्ति तथा पुनर्जन्म के भी साक्ष्य प्राप्त होते हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हड़प्पा सभ्यता के धर्म की विशेषताएं वर्तमान के धर्म में भी दिखाई देती है। इस रूप में वर्तमान कालीन धर्म, हड़प्पा कालीन धर्म से प्रेरणा ले रहा है। संस्कृति या कलाहड़प्पा कालीन लोगों ने मूर्ति कला, स्थापत्य कला, मृदभांड कला तथा चित्र कला के क्षेत्र में समुचित विकास कर लिया था। Sindhu ghaatee sabhyata ka dhaarmik jeevan

खुदाई में प्राप्त विभिन्न मानव एवं पशु चित्रों की मोहरे अपने में अनूठी है।

1) स्थापत्य कला– हड़प्पा, मोहनजोदड़ो एवं अन्य नगरों की खुदाई से प्राप्त सुनियोजित भवन एवं नगर निर्माण उनकी उन्नत स्थापत्य कला का प्रमाण है। ये लोग पक्की इटो, प्लास्टर, चूना आदि का प्रयोग करना जानते थे। निजी महत्त्व के भवनों के अतिरिक्त उनके सार्वजनिक महत्व के भवन जैसे  स्नानागार , अन्ना गार आदि भी प्राप्त हुए हैं। नगरों में गरी के अवशेष भी मिलते है। मकानों में पानी आदि के निकास हेतु नालियों की व्यवस्था उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण को दर्शाती है।

2) मूर्ति कला– खुदाई के दौरान मिट्टी ,पत्थर एवं धातु की अनेक मूर्तियां मिली है, जो ना केवल अपने कलात्मक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि हड़प्पा सभ्यता का इतिहास जानने का महत्वपूर्ण  भी स्त्रोत है। हड़प्पा से प्राप्त साल ओरहे हुए एक पुरोहित की प्रस्तर मूर्ति में ललाट छोटा और पीछे की ओर ढलवा है। आंखे लम्बी, कम चौरी और अधखुली है। संभवत यह किसी योगी की मूर्ति है, जिसकी दृष्टि नासाग्र पर टिकी है, अर्थात हड़प्पा लोगों में योग विद्या का प्रसार था। उसी प्रकार मोहनजोदड़ो से प्राप्त कांसे की नर्तकी की मूर्ति धातु कला का अनुपम उदाहरण है। यह अर्धनग्न मूर्ति है, जिसके गले में हार तथा बाएं हाथ में चूड़ियां है। मूर्ति का दायां हाथ कूल्हे पर रखा है तथा दूसरा पर नाचने की मुद्रा में दिखाया गया है। इनके अतिरिक्त लाल रंग की पकाई हुई मिट्टी की असंख्य मूर्तियां मिली है। ये मूर्तियां स्त्री ,पुरुषों के अतिरिक्त पशु -पक्षियों की है। इनमें मातु देवी के बाद कुबड़ वाला बैल विशेष उल्लेखनीय है। Sindhu ghaatee sabhyata ka dhaarmik jeevan

3) मुंहरे– हड़प्पा सभ्यता के कला में मुहरो का विशिष्ट स्थान है। यहां से 2,000 से अधिक मुहरे मिली है, जिनमें अधिकांश सैलखरी की बनी है, कुछ मोहरे कांचली , मिटटी, चर्ट आदि की भी बनी है। इन मोहरो पर मनुष्य, पशु पक्षियों व वृक्षों की आकृति उत्कीर्ण है। इनमें एक सींग वाला पशु, वृषभ, गैंडा, बाघ, भैंसा, हिरण, हाथी, बकड़ा, खरगोन आदि पशु है। पशुपति ,शिव की मुहर मोहनजोदड़ो से मिली है तथा लोथल से नाव का चित्र वाली मोहर मिली है। कुछ मोहरा पर स्वास्तिक व पीपल के वृक्ष के चित्र खुदे हुए हैं। यहां से प्राप्त कुछ तांबे की पट्टी कावो पर भी मुहरो जैसी आकृतियां उत्कीर्ण है।

4) मृदभांड – हड़प्पा काल में बर्तन हाथ व चाक दोनों से बनाए जाते थे। खुदाई में कुम्हारों का भी अवशेष मिला है। कुछ बर्तनों को लाल रंग से पोत कर उन पर काली रेखाओं से चित्र बनाए गए हैं। बर्तन आवे (भट्ठा)मैं पकाए जाते थे। इन बर्तनों पर विविध पशु- पक्षियों व वृक्षों का सुंदरता से अंकन किया गया है । लोथल से प्राप्त मृदभांड मैं कुत्ते को हिरण का पीछा करते हुए दिखाया गया है, जिसे पंचतंत्र में उल्लेखित चालाक लोमड़ी की कथा के सदृश्य माना जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न स्थलों से प्राप्त सोने, चांदी व परिसर के मनके व आभूषण मिले हैं, जो जोहोरियो  की कला विकसित होने का प्रमाण है। इस प्रकार समग्र रूप में  सैंदोव सभ्यता की कला बड़ी प्रशंसनीय है। हड़प्पा सभ्यता का उद्भव1921 ईस्वी से लेकर आज तक हड़प्पा सभ्यता के लगभग 1500  स्थलों की खोज हो चुकी है, किंतु इतिहासकारों के मध्य आज भी इस सभ्यता के उद्भव का प्रश्न विवादास्पद बना हुआ है। इस विवाद के पीछे निम्नलिखित कारण है। Sindhu ghaatee sabhyata ka dhaarmik jeevan

1) साहित्यिक स्त्रोत की अनुपलब्धता तथा पुरातात्विक स्त्रोत  की अपर्याप्त।

2) आर्य उत्पत्ति का सिद्धांत।

3) देसी कर्मिक उत्पत्ति का सिद्धांत। विदेशी/आकस्मिक/मेसोपोटामिया/सुमेरियन उत्पत्ति का सिद्धांत।गार्डन चाइल्ड, माटी मर व्हीलर, क्रेमर डीडी कोसांबी आदि इतिहासकार हड़प्पा सभ्यता के जनक एक ही मूल के लोग थे। चुकी मेसोपोटामिया सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता से प्राचीन है। अतः मेसोपोटामिया से एक जनसमूह मित्र होते हुए भारत आया तथा यहां के परिस्थितियों के अनुरूप एक नवीन नगरीकृत सभ्यता की नींव डाली। इस सिद्धांत के समर्थकों ने अपने मत के पक्ष में कुछ तर्क भी दिए हैं।

1) दोनों ही नगरीकृत सभ्यता थी।

2) दोनों ही सभ्यता के लोग ईट,मुहर, चाक निर्मित मृदभांड, अन्ना गार, व लिपि का प्रयोग करते थे।

3) दोनों ही सभ्यता से प्राप्त गरी में समान सरंचना की शहतीर का प्रयोग किया जाता था।

4) बलूचिस्तान से प्राप्त टीलो की संरचना  मेसोपोटामिया से प्राप्त जीगियेट(मंदिर) के समान थी, किंतु सूक्ष्म अवलोकन के पश्चात उपयुक्त तर्कों की सीमाएं स्पष्ट हो जाती है, जिसे निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है।

 a) दोनों ही सभ्यता के नगरीकरण में पर्याप्त अंतर था। हड़प्पा सभ्यता के नगर अधिक विकसित व व्यवस्थित थे।

b) हड़प्पा सभ्यता के भवनों में प्रायः पक्की ईंटों का, जबकि मेसोपोटामिया की सभ्यता के भवनों में प्रायः कच्ची ईंटों का प्रयोग किया गया था।

C) हड़प्पा सभ्यता में मुख्यतः वर्गाकार या आयताकार मुहरो का, जबकि मेसोपोटामिया की सभ्यता में मुख्यतः बेलनाकार मुहरो का प्रयोग किया जाता था ।

d) दोनों ही सभ्यता से प्राप्त मृदभांड एवं अन्ना गारो के आकार – प्रकार एव संरचना में पर्याप्त अंतर है।

e) हड़प्पा सभ्यता के में चित्रा छर लिपि का , जबकि मेसोपोटामिया सभ्यता में किलनुमा लिपि का प्रयोग किया जाता था।

हड़प्पा सभ्यता से मंदिरों के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते , जबकि मेसोपोटामिया सभ्यता से मंदिरों के साक्ष्य मिले हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता के उद्भव में मेसोपोटामिया उत्पत्ति का सिद्धांत तरकत स्वीकार नहीं किया जा सकता और ना ही हड़प्पा सभ्यता को मेसोपोटामिया सभ्यता के उपनिवेश के रूप में देखा जा सकता हैं।आर्य उत्पत्ति का सिद्धांत बी बी लाल , एस आर राव , जगपति जोशी, टी एन रामचंद्रन आदि इतिहासकार हड़प्पा सभ्यता के उद्भव में आर्य उत्पत्ति के सिद्धांत को स्वीकार करते हैं। इस मत के समर्थकों के अनुसार वैदिक आर्यों के द्वारा ही नगरीकृत हरपा सभ्यता का विकास किया गया। इस सिद्धांत के समर्थकों ने अपने मत  के पक्ष में कुछ तर्क भी दिए – 

1) दोनो ही सभ्यता का केंद्रीय क्षेत्र एक समान था।

2) दोनों ही सभ्यता में प्रकृति पूजा प्रचलित थी।

3) दोनों ही सभ्यता घोड़ा एवं अग्नि वेदिका के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

4) ऋग्वेद में प्रयुक्त हरि युपिया  शब्द की साम्यता हड़प्पा से मानी गई है।

5) आर्यों के देवता इंद्र दुर्गों के देवता थे, हड़प्पा में भी दुर्गों का महत्त्व था । हड़प्पा सभ्यता एवं वैदिक संस्कृति के बीच कुछ समानताएं दिखाई देती है, परंतु दोनों के मध्य अनेक भिन्नता भी थी

-1) नवीन शोध से यह स्पष्ट हो गया है कि हड़प्पा सभ्यता का केंद्रीय क्षेत्र एक समान था।

2) हड़प्पा सभ्यता एक नगरीकृत सभ्यता थी, जबकि वैदिक सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी।

3) हड़प्पा समाज मातृसत्तात्मक , जबकि वही देख समाज पितृसत्तात्मक था।

4) वेदों में इंद्र को पुरंदर, अर्थात दुर्गोंको तोड़ने वाला कहा गया है ना की दुर्गों का निर्माता ।

5) वैदिक काल में लोहे के साक्ष्य प्राप्त होते हैं, जबकि हड़प्पा सभ्यता में लोहे के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते।

6) आर्यों को लिपि का ज्ञान नहीं था, जबकि हड़प्पा सभ्यता में लिपि प्रचिलित थी ।उपयुक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि वैदिक आर्यों को हड़प्पा सभ्यता का निर्माता नहीं माना जा सकता है।देसी/क्रमिक  उत्पत्ति का सिद्धांत। फेयर सर्विस, रोमिला, थापुर, अमलानंद घोष, डी पी अग्रवाल आदि इतिहासकारों ने यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि  हड़प्पा सभ्यता एक स्वदेशी सभ्यता ही थी तथा इसका विकाश 3000 वर्षों से भी अधिक समय तक चली एक क्रमिक प्रक्रिया के फलस्वरूप हुआ था। इन इतिहासकारों के अनुसार बलूचिस्तान स्थित मेहरगढ़ सिंधु स्थित आमारी व कोतदिची तथा राजस्थान स्थित साथी जैसी प्रक -हड़प्पा संस्कृतियों के क्रिमिक विकाश से ही हड़प्पा सभ्यता का नगरिया स्वरूप अस्तित्व में आया है। वास्तव में हड़प्पा सभ्यता के उद्भव में देसी उत्पत्ति का सिद्धांत ही अधिक तार्किक प्रतीत होता है। पुरातात्विक खोजों से यह स्पष्ट हो गया है कि हड़प्पा सभ्यता से पूर्व अफगानिस्तान, ब्लू चिस्तन व सिंध में कई ग्रामीण संस्कृति अस्तित्व में थी। चुकी ये संस्कृतियों सिंधु नदी के घाटी के मैदानों में स्थित थी , अत यहां कृषि का निरंतर विकाश होता गया आगे चलकर यहां के निवसियों ने प्रस्तर व तांबे के उपकरणों का भी उपयोग कृषि क्षेत्र में आरंभ कर दिया होगा, जिससे कृषि अधिशेष प्राप्त हुआ होगा। अब चुकी इस क्षेत्र में कई खानाबदोश जातियों भी निवास करती थी, जिनका संपर्क पश्चिमी एशिया के लोगों के साथ रहा होगा। अतः इन खानाबदोश जातियों के द्वारा कृषि अधिशेष का वाहा व्यापार किया गया होगा , जिससे आर्थिक लाभ प्राप्त हुआ होगा। इस आर्थिक लाभ  ने ही इन ग्रामीण  संस्कृतियों के नगरिया विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया होगा यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जब ये प्राक- हड़प्पा ग्रामीण संस्कृतियों हड़प्पा पाई संस्कृतियों मैं विकसित हो रही होगी तो संभव है कि मेसोपोटामिया तत्वों ने भी इसके स्वरूप में अपनी भूमिका निभाई हो , परंतु मेसोपोटामिया तत्वों का प्रभाव व्यापारिक एवं सांस्कृतिक आदन प्रदान के द्वारा ही संभव हुआ होगा इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता के उद्भव से संबंधित विभिन्न विचारों में सर्वाधिक तार्किक विचार देसी उत्पत्ति का सिद्धांत प्रतीत होता है। हालांकि इस संबंध में किसी निश्चित निष्कर्ष तक पहुंचने हेतु अभी और भी पुरातात्विक खोजों एवं अनुसंधान की आश्यकता है। Sindhu ghaatee sabhyata ka dhaarmik jeevan

दोस्तों अगली पोस्ट में हम हड़प्पा सभ्यता के हड़प्पा सभ्यता का पतन के सिद्धांतों के बारे में भी जानकारी देंगे

error: Content is protected !!
Don`t copy text!