सिन्धु घाटी सभ्यता में नगर-योजना Notes

हेलो दोस्तों स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .Com वेबसाइट पर आज हम आपको हड़प्पा सभ्यता का नगर नियोजन, राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक जीवन से संबंधित नोट्स इस पोस्ट में प्रस्तुत कर रहे हैं यह यूपीएससी, एमपीपीएससी, एसएससी और अन्य सभी महत्वपूर्ण प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए उपयोगी हैं

हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण

यद्यपि हड़प्पा सभ्यता के काल निर्धारण को लेकर विद्वान में मतभेद है, किन्तु सर्वधिक माण मत है कि सम्पूर्ण हड़प्पा सभ्यता का काल 3300 ईस्वी पूर्व से 1750 ईस्वी पूर्व तथा परिपक्व हड़प्पा सभ्यता का काल 2500 ईस्वी पूर्व से 1750 ईस्वी पूर्व तक रहा होगा।

 हड़प्पा सभ्यता का नगर नियोजन

हराप्पा सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण विशेष ता इसका नगर नियोजन थी। प्रत्यक नगर 2 भागो में विभक्त थे – पश्यमी टिले (दुर्ग टीला) तथा पूर्वी टिले (आवास छेत्र)। पूर्वी टिले में सामान्य नागरिक, व्यापारी, कारीगर और श्रमिक आदि रहते थे, जबकि दुर्ग के अंदर महत्वपूर्ण प्रशासनिक एवं सार्वजनिक भवन तथाअन्नागार स्थित थे। प्रायः पश्चिमी टिला एक रक्षा प्राचीर से घिरा होता था, जबकि पूर्वी टीला नही। हालाकि चाहुदारो में दुर्ग एवं निचला सहर दोनों को भी  रक्षा प्राचीर से नही घेरा गया था। इस सभ्यता के नगर सत्य रंज की बिसात की तरह व्यवस्थित थे। नगर का मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण तथा दूसरे मार्ग पूरब से पश्चिम परस्पर समकोण पर काटते थे। सड़क प्रायः कच्ची होती थी। नगरो में उत्तम जल प्रभंदन एवं साफ सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता था। सड़को के  किनारे ग्रिढ़ पा दती  पर नाली की व्यस्था थी, जिसमें कुरा करकट एकतित्र करने के लिए जगह- जगह ढक्कन युक्त मेन होल बने थे। इस सभ्यता के घरों के दरवाजे एवं खिरखियो प्रायः मुख्य सड़क की और ना खुल कर गलियों की और खुलते थे।

इस सभ्यता के भवन प्रायः द्वो मंजली होते थे। भवनों में प्राय:पक्की ईंटों का प्रयोग किया जाता था। ईटों का आकार 4:2:1 था स्तंभ प्रायःवर्गाकार होते थे। फर्श प्रायः कच्छा होता था। इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता उसका व्यवस्थित नगरीकरण था, जो वर्तमान भारत की स्मार्ट सिटी योजना के समक्ष आदर्श प्रस्तुत करता है। 

हड़प्पा सभ्यता का स्वरूप

राजनीतिक जीवनलगभग 13 लाखवर्ग किलोमीटर में फैली हुई हड़प्पा सभ्यता 600 वर्षों तक निरंतर कायम रही। यह तथ्य किसी केंद्रीय शासक वर्ग की ओर संकेत करते हैं। इस प्रकार यह तो स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता में कोई ना कोई शासक वर्ग अवश्य था, किंतु हड़प्पा सभ्यता में प्रशासन का स्वरूप क्या था? यह विद्वानों के बीच विवाद का विषय है। विद्वानों का एक वर्ग यह मानता है कि हड़प्पा सभ्यता के अलग-अलग नगरों में अलग अलग राजनीतिक संगठन रहा होगा। किंतु हमें हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नगरों के बसावट में, उनकी इमारतों, सड़को,  मुहरो, मिर्दभंडो एवं लिपि में प्रायः एकरूपता दिखाई देती है। अतः ऐसा प्रतीत होता है कि हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नगरों में अलग-अलग शासक वर्ग नहीं, बल्कि कोई एक ही केंद्रीय शासक वर्ग रहा होगा। विद्वानों का एक वर्ग या मानता है कि हड़प्पा सभ्यता में मेसोपोटामिया व मिस्र के समान ही पुरोहितों का शासन था। ए एल बासम ने इस मत के समर्थन में मोहनजोदड़ो से प्राप्त सभागार तथा बलूचिस्तान से प्राप्त टिलो की और संकेत किया है। यहां सभागार को पुरोहित आवास तथा टीलो को मंदिरों के रूप में बताने का प्रयास किया गया है। किंतु आधुनिक अनुसंधानों से यह स्पष्ट हो गई है कि हड़प्पा सभ्यता से मंदिरों के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते। अतः वर्तमान में इस मत को अधिक महत्व नहीं दिया जाता है।कुछ अन्य इतिहासकार जैसे हंटर के अनुसार हड़प्पा सभ्यता में जनतांत्रिक पद्धति रही होगी। वही मैखेके अनुसार हड़प्पा सभ्यता में जनप्रतिनिधि का शासन रहा होगा, किंतु इन मतों के समर्थन में भी कोई पुरातात्विक साक्ष्य प्राप्त नहीं होते है। ड्रा, आर एस शर्मा के अनुसार हड़प्पा सभ्यता अपने नगरीकरण के लिए प्रसिद्ध थी। चुकी यहां के नगरीकरण का प्रमुख आधार उन्नत वाणिज्य एवं व्यापार था। अतः हड़प्पा सभ्यता का शासन संभवत वणिक वर्ग के हाथों में रहा होगा। उपयुक्त सभी मतो में से यद्यपि डॉक्टर आर एस शर्मा का मत सर्वाधिक तार्किक प्रतीत होता है।  यद्यपि इस संबंध में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने हेतु अभी और भी पुरातात्विक खोजों एवं अनुसंधान ओं की आवश्यकता है।  town planning indus valley civilization hindi notes

सामाजिक जीवन

हड़प्पा इस समाज समतामूलक समाज था। समाज में छुआछूत एवं जाति प्रथा के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं। संपूर्ण समाज यदिपी 4 वर्णों- विद्वान, योद्धा ,व्यापारी, एवं श्रमिक में विभाजित था, किंतु वर्ण का निर्धारण संभवत जन्म के आधार पर नहीं, बल्कि योग्यता के आधार पर किया जाता था। हड़प्पा समाज एक बहु प्रजातीय समाज था, जिसमें प्रोटो ऑस्टे लयड , भूमध्यसागरीय, मंगोलयाद एवं अल्पाइन प्रजाति के लोग निवास करते थे। समाज में वर्गीय विभाजन के भी साक्ष्य प्राप्त होते है। प्रायः वर्ग पश्चिम दिशा में स्थित दुर्ग में, जबकि आम जनता पूर्व दिशा में स्थिति निचले शहर में निवास करती थी। लोथल से 13 कमरों का मकान प्राप्त हुआ है, जो कि संभवतः किसी धनी व्यापारी का रहा होगा। उसी प्रकार हड़प्पा से श्रमिक आवास के साक्ष्य प्राप्त होते हैं।

हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से प्राप्त स्त्री मुण्य मूर्तियां की अत्यधिक संख्या के आधार पर माना जाता है कि हरिपाई समाज मातृ सतात्मक समाज था। समाज में स्त्रियों की स्थिति बेहतर थी। इस काल में बाल विवाह एवं पर्दा प्रथा के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं। हड़पाई समाज उपयोगिता वादी समाज था। प्रदर्शन व दिखावे की बजाए जरूरत व उपयोगिता को अधिक महत्व दिया जाता था। हड़प्पा सभ्यता के भवनों के दरवाजों और दीवारों मैं किसी प्रकार की कलाकारी दिखाई नहीं देती थी। यदपीकुछ स्थानों से सौंदर्य प्रसाधन की वस्तुएं जैसे- चाहुंदरो से लिपिस्टिक, इत्र व काजल प्राप्त हुए हैं, किंतु यह तथ्य मेसोपोटामिया प्रभाव को ही दर्शाता है। हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त लिपि एवं मानक माप तोल की इकाई के साक्ष्य इस बात की ओर संकेत करते हैं कि हड़प्पा समाज सुशिक्षित समाज था। उसी प्रकार हड़प्पाई समाज को एक शांति प्रिय समाज के रूप में भी स्वीकार किया जाता है, क्योंकि इस सभ्यता से संबंधित स्थलों की खुदाई से आक्रमक अस्त्र शास्त्रों की प्राप्ति बहुत कम हुई है। साथ ही हड़प्पा सभ्यता में दुर्गा का अत्यधिक महत्त्व था। इससे भी यह प्रमाणित होता है कि इस सभ्यता के निवासी आक्रमण के बजाय सुरक्षा को अधिक महत्व देते थे।

हड़प्पा सभ्यता के निवासी शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों ही थे इस सभ्यता के निवासी शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों ही थे इस सभ्यता के लोगों के मनोरंजन के साधन शिकार करना, मछली पकड़ना, पशु पक्षियों को लड़ाना, चौपड़ व पाशा खेलना, ढोल व बीना बजाना आदि थे । इस प्रकार हम देखते हैं कि बहुबार्निए, बहू वर्गीय एवं बहू प्रजा तिए समाज होने के बावजूद भी हड़प्पाई समाज में वर्तमान समाज के समक्ष एक समतामूलक समाज का आदर्श प्रस्तुत करता है।

आर्थिक जीवन

सिंधु घाटी सभ्यता नदियों के आस-पास विकसित हुई थी। अत यहां की कृषि विकसित अवस्था में थी । कृषि अधिशेष को अन्ना गारो में सुरक्षित रखा जाता था, यह भी कृषि के विकसित होने का प्रमाण है। कृषि कार्य में पत्थर व कासे के उपकरणों का प्रयोग होता था। खेतों की जुताई प्रायः हल से की  जाती थी। कालीबंगा से जूते हुए खेत का साक्ष्य तथा बनाबली से मिट्टी के हल का साक्ष्य प्राप्त हुआ है। कृषि भूमि की सिंचाई हेतु नदियों एवं कुओं का जल का प्रयोग किया जाता था। हड़प्पा सभ्यता में सामान्यत: फसले नवंबर में बोई वो  में काटी जाती थी । फसलों में गेहूं की 3, जो की 2, वो मटर की 1 प्रजाति  के  साक्ष्य प्राप्त होते हैं। दाल के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं। चावल की खेती गुजरात तथा संभवत राजस्थान में होती थी। town planning indus valley civilization hindi notes

लोथल व रंगपुर से मुंमूर्ति में धान की भूसी लिपटी मिली है। रागी की फसल उत्तर भारत के किसी भी अस्थल से प्राप्त नहीं हुई है। हड़प्पा पाई स्थल मेहरगढ़ से कपास की कृषि के विश्व के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त होते हैं।इस सभ्यता में पशुपालन का भी महत्व था।

पशुओं में मुख्यतः कुबर वाला सांड तथा इसके अलावा बिना कूबड़ वाले बैल, भैस, गाय, भैर, बकरी, कुत्ते, गधे, खच्चर तथा सूअर आदि पालतू पशु थे। गुजरात के लोग हाथी पालते थे, परंतु हड़प्पा सभ्यता में घोड़ा, शेर, बाघ आदि को फालतू नहीं बनाया जाता था।

हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था मुख्यत वाणिज्य व्यापार पर आधारित थी। आंतरिक व्यापार हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नगरों एवं राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि के मध्य होता था, जबकि वाह व्यापार मुख्यतः मेसोपोटामिया, अफगानिस्तान, फारस की खाड़ी आदि से होता था। पुरातात्विक साक्ष्यों से भी वाहा व्यापार की पुष्टि होती है। उदाहरणार्थ- हड़प्पा कालीन मुहरे मेसोपोटामिया  तथा फारस की खाड़ी से प्राप्त हुई है। उसी प्रकार मेसोपोटामिया स्थित आकार के  प्रसिद्ध सम्राट सार गोन (2350 ईस्वी पूर्व ) के अभिलेख से भी वाह व्यापार की पुष्टि होती है। इस अभिलेख में उल्लेखित है कि मेसोपोटामिया का व्यापार दिलमन(बहरीन), माकन (मकरान अर्थात बलूचिस्तान) तथा मेलूहा(हड़प्पा सभ्यता )  से होता था वाह व्यापार में रोजनामचे वस्तुओं की जगह मुख्यतः समुद्र लोगों की विलासिता संबंधी वस्तुओं को शामिल किया जाता था। वाह व्यापार में आयात की प्रमुख मद्ये सोना , चांदी, टिन , शीशा आदि का आयात अफगानिस्तान व ईरान से किया जाता था। लाज वर्ड मनी का आयात अफगानिस्तान स्थित बंद कंसा नामक स्थान से होता था। हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नगरों से कुछ वस्तुओं का निर्यात भी किया जाता था, जैसे हाथी दांत व सिप की वस्तुएं मोती, अनाज, कपास आदि। व्यापार संतुलन हड़प्पा सभ्यता के पक्ष में था, इसका प्रमाण है उन्नत नगरिया केंद्रों का निर्माण हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत हमें कई नगरों के साक्ष्य प्राप्त होते हैं, जैसे  – मोहनजोदड़ो, हरप्पा,  धोला वीरा, राखीगढ़ी, लोथल, कालीबंगा आदि।

यातायात व संचार के साधनों के रूप में आंतरिक व्यापार में मुख्यतः ठेला गाड़ी व बैलगाड़ी , जबकि वाह व्यापार में नावों आदि का प्रयोग किया जाता था। हड़प्पा वो चाहून दरो से कांसे गाड़ी का साक्ष तथा लोथल से पक्की मिट्टी की नाव का साक्ष्य प्राप्त होता है। वह व्यापार में बंदरगाहों का प्रमुख स्थान था। सर्वाधिक महत्वपूर्ण बंदरगाह लोथल स्थित ज्वारीय बंदरगाह था। वाणिज्य व्यापार में मानक माप तोल के पैमानों का उपयोग किया जाता था मोहनजोदड़ो से च सिप का बना वाट तथा लोथल से हाथी दांत का स्केल प्राप्त हुआ है। गन्ना में मुख्यतः 16 की संख्या तथा उसके गुणक का प्रयोग किया जाता था। town planning indus valley civilization hindi notes

हड़प्पा सभ्यता में सिल्क एवं उद्योग भी विकसित अवस्था में थे। सर्वाधिक महत्वपूर्ण वस्त्र उद्योग था। मोहनजोदड़ो से सूती वस्त्र का साक्ष्य प्राप्त होता है। शिल्प उद्योग में संख, शीप, हाथी दांत, गोमेद, फिरोजा, सेलखड़ी,मिट्टी, धातु व प्रस्तर की वस्तुएं बनाई जाती थी।  इनसे न केवल बर्तन, बल्कि मनके व मूहरे  भी बनाई जाती थी। हड़प्पा सभ्यता का व्यापार वाणिज्य मुख्यतः वस्तु विनिमय प्रणाली पर आधारित था। हालांकि इस सभ्यता में हमें अत्यधिक संख्या में मूहरो के भी साक्ष्य प्राप्त होते हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि वस्तु विनिमय प्रणाली के अतिरिक्त छोटे  स्तर पर मुंहरो  का प्रयोग मुद्राओं के रूप में भी किया जाता रहा होगा। इस प्रकार हम देखते हैं कि भारत की प्रथम नगरिकृत सभ्यता का प्रमुख आधार उसकी आर्थिक संपनता थी। जबकि इस आर्थिक संपन्नता का आधार उन्नत कृषि, पशुपालन एवं विकसित वाणिज्य व्यापार था। 

दोस्तों अगली पोस्ट में हम हड़प्पा सभ्यता के धार्मिक जीवन और कला संस्कृति के बारे में पढ़ेंगे साथ ही साथ हड़प्पा सभ्यता का उद्भव और उत्पत्ति के सिद्धांतों के बारे में भी जानकारी देंगे

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