भारत पर तुर्क आक्रमण (तुर्क विजय) Notes

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इस से पहले हमने आपको सिंध विजय के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आप को भारत पर तुर्क आक्रमण (तुर्क विजय) के बारे में बतायेगे जिससे आपको मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आप की तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

भारत पर तुर्क आक्रमण (तुर्क विजय) Turk Invasion of India in Hindi

इस्लाम धर्म के अनुयायियों में से भारत में सर्वप्रथम प्रवेश करने वाले अरब थे। अरब सिन्ध पर अधिकार करने में सफल रहे। किन्तु उनकी सत्ता अस्थायी थी। वे इस्लाम व भारत के बीच आरम्भिक सम्पर्क अवश्य स्थापित कर पाये। किन्तु भारत में मुस्लिम सत्ता की स्थापना का श्रेय तुर्कों को जाता है। तुर्क, अरब व ईरानियों से भिन्न थे। इस्लाम के नवीन अनुयायी होने के कारण वे अत्यधिक धर्मान्ध थे। नस्ल की श्रेष्ठता के विश्वास ने उनके हथियार को और अधिक तीक्ष्ण कर दिया था। Turk Invasion of India in Hindi

8वीं शताब्दी में तुर्को ने मध्य एशिया से हटना आरम्भ किए। सल्लूक, गिज, खिताई, कर्लंग व इल्बारी आदि विभिन्न जातियां एक के बाद एक करके इस्लामी प्रदेशों में प्रवेश करती चली गयी तथा अपने-अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए। गुर्जर-प्रतिहार राज्य के विघटन के कारण भारत में राजनीतिक अनिश्चितता तथा प्रभुत्व के लिए एक नए दौर का प्रारम्भ हआ। फलस्वरूप भारत की उत्तरी पश्चिमी सीमा पर पश्चिमी एशिया के आक्रमण और प्रसारवादी तुर्क राज्यों के उदय की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। 9वीं शताब्दी के अंत में ट्रॉस-ओक्सियान, खुरासान तथा ईरान के कुछ भागों पर समानी शासकों का राज्य था। जिन्हें उत्तरी व पूर्वी सीमाओं पर तुर्कों से हमेशा संघर्ष करना पड़ता था। इसी संघर्ष के कारण एक नए प्रकार के सैनिक गाजी का उदय हुआ। दसवी शताब्दी के मुस्लिम साम्राज्य में एक बड़ी उथल-पुथल हई। बगदाद के खलीफा निर्बल हो गए। समानी साम्राज्य के पतन के बाद उनका समाप्ति के बाद मध्य एशिया के कबीलों से इस्लामी क्षेत्रों की रक्षा का भार गजनवियों ने संभाल लिया। Turk Invasion of India in Hindi


अल्पतगीन (933-963 ई.) –

अल्पतगीन बुखारा के समानी शासक अब्दुल मलिक का एक तुर्क दास था। वह असाधारण योग्यता और साहस का स्वामी था। अपनी साहस व परिश्रम के बल पर हजीब-उल-हज्जाब के पद पर नियुक्त हुआ। 956 ई. में वह खुरासान का राज्यपाल नियुक्त हुआ। 962 ई. में अब्दुल मलिक की मृत्यु के बाद उसके भाई और चाचा में | उत्तराधिकार के लिए युद्ध आरम्भ हो गया। अल्पतगीन ने चाचा का समर्थन किया परन्तु अब्दुल मलिक का भाई मंसूर सिंहासन प्राप्त करने में सफल हुआ। अल्पतगीन ने उत्तराधिकार के इस युद्ध में गलत पक्ष का समर्थन किया। भावी दण्ड के भय से उसने गजनी की ओर प्रस्थान किया तथा वहीं अपनी स्थिति सुदृढ़ कर गजनवी वंश की स्थापना की।

गजनी वंश ईरान की एक शाखा थी। अरब आक्रमण के समय इस वंश में शासक तुर्किस्तान चले गए। वहाँ वे तुर्कों के साथ इतना घुल मिल गए कि उनके वंशज तुर्क कहलाने लगे। अल्पतगीन ने गजनी को अपनी राजधानी बनाया। गजनीवंश का अन्य नाम यामीनी वंश भी है। इस समय भारत के उत्तरपश्चिमी में हिन्दशाही राजवंश का राज्य था। इसका विस्तार हिन्दकुश पर्वत माला तक था। काबुल भी उसके अधिकार में था। अतः गजनी और हिन्दुशाही राजवंश की सीमाएं एक दूसरे से टकराने लगी। फलस्वरूप युद्ध होना अवश्यम्भावी था। 963 ई. में अल्पतगीन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र इस्हाक उसका उत्तराधिकारी बना। Turk Invasion of India in Hindi


सुबुक्तगीन (977-999 ई.) –

सुबुक्तगीन अल्पतगीन का एक दास था परन्तु बाद में उसका दामाद बना। नासिर-हाजी नामक एक व्यापारी उसे तुर्किस्तान से बुखारा लाया, जिससे अल्पतगीन ने खरीदा था। वह बुद्धिमान व परिश्रमी था। अपने परिश्रम के बल पर एक के बाद एक उच्च पदों को प्राप्त किया। अल्पतगीन ने उसे अमीर-उल-उमरा की उपाधि दी थी। 977 ई. में गद्दी पर बैठने के बाद उसने आक्रमणों से अपने जीवन का आरम्भ किया। वस्त, दवार, कसदार, बामियान, तर्किस्तान और गोर का जीत लिया।

सुबुक्तगीन के समय में गजनी और हिन्दु शाही राज्य का लम्बा संघर्ष आरम्भ हुआ जो सल्तान महमूद के समय तक चल रहा और अन्ततः हिन्दुशाही राज्य का अन्त हो गया। शक्ति ग्रहण करने के बाद सुबुक्तगीन ने उत्तर भारत की ओर कदम बढ़ाया। समय शाही वंश के राजा जयपाल के राज्य की सीमाएँ सरहिन्द से लगमान (जलालाबाद) तथा कश्मीर से मुल्तान तक विस्तृत थी। शाही शासकों की राजधानियां क्रमश: ओड, लाहौर, और भाटिण्डा थीं। 987 ई. में सुबुक्तगीन ने प्रथम बार भारत की सीमा पर आक्रमण किया तथा हिन्दुशाही राज्य के कई किलों और नगरों पर विजय कर लिया। Turk Invasion of India in Hindi

जयपाल यह सहन न कर सका। उसने युद्ध करने का निश्चय किया। गजनी और लगमान के पास दोनों सेनाओं का मुकाबला हुआ। उत्बी के अनुसार दोनों दलों के बीच होने वाले मुठभेड़ में युद्ध-स्थल लहू-लुहान हो गया किन्तु किलों पर यामनियों का अधिकार न हो सका। इस बीच एक भयानक हिमवर्षा ने जयपाल की सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया। और अन्ततः उसे संधि करने के लिए बाध्य होना पड़ा। जयपाल ने संधि में 10 लाख दरहम, 50 हाथी, कुछ नगरें और किले देना स्वीकार किया। उसने अपने दो प्रतिनिधियों को अपने वचन का पालन करने का विश्वास दिलाने के लिए सुबुक्तगीन के पास भेजने के लिए वचनबद्ध होना पड़ा। किन्तु कुछ दिनों बाद उसने संधि को समाप्त करने का निश्चय किया। इस कारण सुबुक्तगीन ने उसकी सीमाओं पर आक्रमण किया तथा लगमान तक के क्षेत्र पर विजय कर लिया।

जयपाल ने सुबुक्तगीन को पराजित करने के लिए एक बड़ी सेना एकत्र की। उसने 991 ई. में अजमेर, कालिंजर और कन्नौज के शासकों का संघ बनाया। फरिश्ता लिखता है कि दिल्ली, अजमेर, कालिंजर और कन्नौज के राजाओं ने धन और सैनिकों द्वारा उसकी सहायता की। लगमान के निकट दोनों के मध्य युद्ध हुआ। किन्तु अपने शत्रु की कुशल रणनीति और मोर्चाबन्दी के सामने वह विफल रहा तथा पराजय उसके हाथ लगी। लगमान और पेशावर के मध्य समस्त क्षेत्रों पर सुबुक्तगीन का अधिकार हो गया। काबुल और जलालाबाद के सूबों को गजनी में मिला लिया गया। एक शहजादे के रूप में महमूद गजनवी ने इस युद्ध में भाग लिया था। अपनी मृत्यु से पूर्व सुबुक्तगीन ने पूरा अफगानिस्तान, खुरासान, बल्ख तथा भारत के पश्चिमोत्तर सीमा को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था। 997 ई. में सुबुक्तगीन की मृत्यु हो गयी। Turk Invasion of India in Hindi

यह तो थी तुर्क विजय की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको महमूद गजनवी और उसके बाद के इतिहास के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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