21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

योग दिवस 2020 की थीम –  Yoga at Home and Yoga with Family

-योग की महिमा को रेखांकित करते हुए भृतहरि अपने ग्रंथ वाक्यपदीय के प्रारंभ में श्लोक प्रस्तुत करते हैं

योगेन चित्तस्य पदेन वाचां, मलं शरीरस्य च वैद्यकेन।

योऽपाकरोत् तं प्रवरं मुनीनां, पतंजलि प्रांजलिरानतोऽस्मि।।

अर्थात योग से चित्त का पद व्याकरण से वाणी का और वैद्य से शरीर का मल जिन्होंने दूर किया उन श्रेष्ठ पतंजलि को मैं अंजली बद्ध होकर नमस्कार करता हूं स्पष्ट है कि योग मानव की उत्कर्ष का वह माध्यम है जिससे भारत ने विश्व को सौंपा है, सुखद है कि योग सभी मानव के उत्कर्ष का जो माध्यम भारतीय मनास  ने विश्व को सौंपा उसकी सुरभि से आधुनिक विश्व के सुरभित होने की शुरुआत हो चुकी है। भारतीय दर्शन और प्राचीन परंपरा के लिए वह एक असाधारण क्षण था जब 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली द्वारा 21 जून को प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाने की घोषणा की गई इसका काफी कुछ श्रेय भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है । 21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

 जिन्होंने 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली में दिए गए अपने भाषण में वैश्विक स्तर पर योग दिवस मनाए जाने की जबरदस्त पैरवी कार्य करते हुए यह कहा था कि योग भारत की प्राचीन परंपरा की एक अमूल्य भेंट है यह मन और शरीर विचार और कार्य और मानसिक आनंद के बीच में एकरूपता लाने वाली सौगात तो है ही मनुष्य और प्रकृति के मध्य अनुकूलन को भी बढ़ाती है। स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए योग को हितकर बताते हुए उन्होंने अपने संबोधन में यह भी कहा था कि योग की मदद से हम जलवायु परिवर्तन से खतरे से भी निपट सकते हैं प्रधानमंत्री की यह पहल रंग लाई और 27 सितंबर 2014 को उनके संबोधन के बाद ही 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया इस कदम की सराहना भी हुई।

जिस समय विश्व के अनेक राष्ट्र सभ्यता का क, ख, ग सीख रहे थे उस समय विश्व गुरु के रूप में और सुसंस्कृत भारत की वैजयंती समुचित विश्व में लहरा रही थी इसी भारत की तपस्या ने विश्व कल्याण के लिए योग जैसी अमूल्य भेंट विश्व को दी लगभग 6000 से भी अधिक वर्षों पूर्व भारत में योग का उद्गम हुआ और हमने इसे अपनी शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अपनाया योग के आदि गुरु जहां भगवान शिव माने जाते हैं वही द्वापर युग के कल्याणकारी स्वरूप को रेखांकित करने के कारण श्री कृष्ण योगेश्वर कहलाए। 21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

योग का अर्थ

अत्यंत व्यापक और उसका फलक बहुत विस्तृत श्रीमद भगवत गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने योग की विभिन्न रूपों की चर्चा करते हुए प्रतिपादित किया कि योग जीवन की परेशानियों का समाधान है इसलिए वह मोह कृष्ण अर्जुन को योग की शरण में जाने का उपदेश देते हैं योग की सार्थकता और इसकी महत्ता का पता इसी से चलता है कि श्रीमद्भगवद्गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अपने उपदेशों में 100 से अधिक बार योग शब्द का प्रयोग किया। योग की समझ रखने वाले पश्चिमी देशों में योग को लेकर जो धारणा बनाई गई उसके अनुसार योग को शारीरिक क्रियाओं और मुद्राओं से जोड़कर देखा जाता है यह धारणा योग की वास्तविक अर्थ के विपरीत है योग का अर्थ और स्वरूप अत्यंत व्यापक है यह तो वह अनुशासन की आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है। योग का सबन्ध तो आत्मा और परमात्मा के योग या एकत्व और परमात्मा को प्राप्त करने के नियमो और उपायो से है। 21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

भारत की प्राचीन परंपरा के अनुसार दर्शन के दो भाग गए वैदिक और अवैदिक। योग वैदिक दर्शन के अंतर्गत आता है भारतीय वैदिक दर्शन के छह घटकों में से योग भी एक है भारतीय दर्शन के छह घटकों न्याय वैशेषिक संख्या योग मिमांसा और वेदांत में से योग का विशेष महत्व है क्योंकि भारतीय मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार जीवन को कृतार्थ बनाने के लिए मनुष्य को जीवन में क्षण प्रतिक्षण योग का आधार लेना ही पड़ता है योग का एक मवे चित्तवृत्ति निरोध की अवस्था को प्राप्त करना है यानी मनुष्य के मन को विषयों की ओर होने वाले दौड़ को रोक कर उसको अंतर मुक्त करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के दौरान साधक के सम्मुख उपस्थित होने वाली आपत्तियां उनकी मन की  बाहरी और प्रवृति क्यों होती है आदि विषयों के स्पष्टीकरण के लिए जीव और जगत का सत्य स्वरूप ईश्वर का स्वरूप आदि विषयों का विवेचन आवश्यक होने के कारण उनका समावेश योग दर्शन में किया गया है।

महर्षि पतंजलि को योग दर्शन को व्यवस्थित स्वरूप देने का श्रेय जाता है उनके द्वारा सृजित योग सूत्र योग दर्शन का मूल ग्रंथ है जिसमें उन्होंने योग को चित्त की वृत्तियों का निरोध के रूप में परिभाषित किया है योग सूत्र ना तो कोई धार्मिक ग्रंथ है और ना ही किसी देवी देवता पर आधारित है यह शारीरिक योग मुद्राओं का शास्त्र भी नहीं है इसमें चित्त वृत्ति निरोध को मन कि प्रभावती एकाग्रता के रूप में रेखांकित किया गया है जो कि योग दर्शन का प्रमुख उद्देश्य भी है।

पतंजलि का योग सूत्र अष्टांग योग के नाम से भी जाना जाता है यह नाम इसके 8 अंगों के नाम पर पड़ा यह आठ अंग है यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि यह आठ अंग लौकिक और अलौकिक लाभ का पथ प्रशस्त करते हैं अहिंसा, सत्य, असत्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह 5 यम होते हैं शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और इश्वर प्राणीधान की पांच नियम है यम का सर्वाधिक महत्व है क्योंकि उनके आचरण के लिए देशकाल या परिस्थितियों का कोई बंधन नहीं होता है यह तो वे पांच महाव्रत है जो कि मनुष्य और समाज दोनों का कल्याण करते हैं जीवन को विकास के पथ पर ले जाते हैं तो सामाजिक शुचिता को भी बनाए रखते हैं ।

एक स्वाभाविक सी बात है कि यमो का पालन न करने वाला अर्थात हिंसक असत्यभाषी चोर कामसख्त और अत्यंत लोभी मनुष्य सदैव सामाजिक स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध होता है स्पष्ट है कि यमो के पालन से एक सुसंस्कृत समाज का निर्माण होता है । 21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

शौच आदि नियम व्यक्ति विकास का पथ प्रशस्त करते हैं शौच संतोष तप स्वाध्याय तथा ईश्वर प्राणीधान इन 5 नियमों की अवज्ञा करने वाला अर्थात मलिन असंतुष्ट  अभ्यासी और नास्तिक मनुष्य भले ही प्रत्यक्ष समाज को पथभ्रष्ट या अस्त व्यस्त नहीं करता है किंतु वह प्रत्यक्ष रूप से अपने जीवन को नष्ट कर लेता है ऐसा नहीं है कि समाज पूर्णता अप्रभावित रह जाता है वस्तुतः स्वच्छता और असंतुष्टता के कारण समाज ना सिर्फ प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है बल्कि अव्यवस्थित भी होता है किंतु सर्वाधिक प्रभावित व्यक्तिगत जीवन होता है जो कि अप्रत्यक्ष रूप से समाज पर भी प्रभाव डालता है इस तरह हम देखते हैं कि यम और नियम दोनों व्यक्ति को तो सामाजिक स्तर पर विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यम और नियम के अलावा योग प्रशिक्षण, आसन, प्राणायाम प्रत्याहार, धारणा ध्यान और समाधि व्यक्तिगत उत्कर्ष के माध्यम से आसन में जहां योगासनों द्वारा शारीरिक नियंत्रण प्राप्त किया जाता है वही प्राणायाम प्राण पर नियंत्रण की विधि है। प्रत्याहार के अंतर्गत जहां इंद्रियों को अंतर्मुखी बनाया जाता है वही धारणा का संबंध एकाग्र चित्त होने से है ध्यानस्थ होने की क्रिया ध्यान है तो समाधि शब्दों से परे परम चैतन्य की अवस्था है। स्पष्ट है कि 8 आयाम वाला योग का मार्ग अत्यंत कल्याणकारी और लाभप्रद है योग व्यक्तिगत सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति और उत्थान के मार्ग को प्रशस्त करता है आधुनिक विश्व में आतंकवाद, अशांति, युद्ध, हिंसा, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से समस्याओं ने सिर उठाया है इनमें समूचा विश्व जल रहा है इन चुनौतियों से निपटने में योग भूमिका निभा सकता है। 21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

क्योंकि यह सभी समस्या जो बड़ी चुनौती बनकर हमारे सामने खड़ी है सभी अनियंत्रित चित्तवृत्तियों की ही देन है जिन का विरोध करना ही योग का मूल आधार है, यह अकारण नहीं है कि हमारे वैदिक वांग्मय विशेषता उपनिषदों में अनेक बार योग की उपयोगिता को स्वीकृति प्रदान की गई है ऐसा इसकी महत्ता को ही दर्शाने के लिए ही किया गया वर्तमान काल खंड की विसंगतियों और विडंबना को देखते हुए योग की विशेषता और महत्वता बढ़ी है जिसे योग दिवस जैसे अंतरराष्ट्रीय आयोजन में और मजबूती प्रदान की है। भारतीय संस्कृति लोक कल्याण की रही है तथा इसमें सार्वभौमिकता और सर्वांगीणता पर विशेष बल दिया गया है विश्व के कल्याण की कामना करने वालीै यह संस्कृति लोक कल्याण की भावना से प्रेरित है योग के विचार से भारतीय संस्कृति के मूल्य और अधिक श्रेष्ठ को प्राप्त करेंगे और समूचा विश्व हमारी सांस्कृतिक श्रेष्ठता का कुछ इस प्रकार कायल बनेगा । 21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्चित् दुख भाग भवेत् 

अर्थात सभी सुखी विघ्न रहित हो कल्याण का दर्शन करें तथा किसी को कोई दुख प्राप्त ना हो।


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