अकबर की राजपूत नीति,कारण, उद्देश्य, विशेषताएँ || मुगल साम्राज्य Notes

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इससे पहले हमने आपको अकबर की धार्मिक नीति के परिणाम (प्रभाव) के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आपको अकबर की राजपूत नीति के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

अकबर की राजपूत नीति (Rajput Policy of Akbar)


अकबर ने जिस विशाल साम्राज्य का निर्माण किया वह बहुत सुदृढ़ सिद्ध हुआ। वह लगभग डेढ़ सौ वर्ष बड़े गौरव के साथ चला और उसके बाद भी पचास वर्ष तक लड़खड़ाता हुआ चलता रहा। इसका मुख्य कारण अकबर की राजपूतों के प्रति नीति थी। राजपतों के प्रति अकबर का व्यवहार किसी अविचारशील भावना का ही परिणाम नहीं था और न राजपूतों की धीरता, वीरता, स्वदेश भक्ति और उदारता के प्रति सम्मान का ही परिणाम था। उसका यह व्यवहार एक सुनिर्धारित नीति का परिणाम था और यह नीति स्वलाभ, योग्यता की स्वीकृति तथा न्याय-नीति के सिद्धांतों पर आधारित थी। Akbar ki rajput neeti in hindi

अकबर की राजपूत नीति के कारण –

अकबर द्वारा राजपूतों के प्रति उदार नीति अपनाने के निम्नलिखित कारण (उद्देश्य) थे

  1. मुगल साम्राज्य को स्थायी बनाना – अकबर जानना था कि हिन्दुओं के बिना सहयोग तथा सहायता के स्थायी तथा शांतिपूर्ण शासन स्थापित करना कठिन है। हिन्दु समाज में राजपूतों का राजनैतिक तथा सैनिक दृष्टिकोण से जो महत्व था उसे वह समझता था। वह जानता था । अपना अस्त्र बनाकर राज्य विस्तार का कार्य आसानी से किया जा सकता है।
  2. राजपूतों के गुण – अकबर राजपूतों के आन्तरिक गुणों से भी प्रभावित हुआ। वह जानता था कि राजपूत वीर तथा साहसी सेनानी थे। वे मृत्यु से भयभीत नहीं होते थे। अपने वचन के पक्के होते और कभी भी विश्वासघात नहीं करते। राजपूत अपनी मर्यादा तथा प्रतिष्ठा का सदैव ध्यान रखते थे। वह जानता था कि ऐसी जाति से ही मित्रता करना साम्राज्य के लिए हितकर होगा।
  3. विदेशी सैनिकों की समस्या – मुगल शासकों को अभी भी युद्धों में विदेशी शासकों पर निर्भर रहना पड़ता था। भारतीयों के साथ इन विदेशी सैनिकों की बिल्कुल सहानुभूति नहीं थी। वे कभी-कभी सम्राट के प्रति मर्यादापूर्ण व्यवहार नहीं करते और विद्रोह कर देते थे। अब धीरे-धीरे इन मुगल शासकों को उत्तर-पश्चिम से सैनिक सहायता मिलना बन्द हो गयी था। इसकी पूर्ती अब राजपूतों द्वारा की जा सकती थी।
  4. राजस्थान की भौगोलिक स्थिति – राजस्थान दिल्ली तथा आगरा के समीप था। राजधानी की सुरक्षा के लिए यह आवश्यक था कि या तो राजपूतों पर विजय प्राप्त की जाये अथवा उन्हें मित्र बना लिया जाये। उन पर बिना विजय प्राप्त किये दक्षिण भारत पर आक्रमण करना खतरे से खाली न था। यदि अकबर राजपूतों से युद्ध में उलझ जाता तो शायद अन्य राज्यों पर विजय प्राप्त करना सुगम न होता। वह जानता था कि राजपूतों से मित्रता स्थापित कर उनसे सहयोग प्राप्त करने में ही साम्राज्य की भलाई है। इसलिए उसने अपने दृष्टिकोण में परिवर्तित किया।
  5. विदेशी दल का दरबार में प्रभाव – मुगल दरबार में विदेशी मुसलमानों का दल बहुत प्रभावशाली था। सम्राट पर उसके प्रभाव की स्थापना हो जाने की सम्भावना थी। ऐसी दशा में अकबर स्वतंत्र निर्णय नही ले सकता था। इसलिए उसे सन्तुलित करने के लिए एक देशी दल के गठन की आवश्यकता थी। Akbar ki rajput neeti in hindi
  6. राजपूतों के प्रति धार्मिक सहिष्णुता तथा उदारता की नीति अपनाना – अकबर ने राजपूतों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर, उन्हें राज्य के ऊँचे पद देकर तथा पूर्ण धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान करके राजपूतों के हृदय पर विजय प्राप्त की। इससे उसने राजपूतों को अपने साम्राज्य का स्तम्भ बना लिया। Akbar ki rajput neeti in hindi
  7. व्यक्तिगत कारण – कुछ विद्वानों के अनुसार अमरकोट में एक राजपूत शासक की छत्रछाया में जन्म लेने से भी अकबर पर प्रभाव पड़ा। अपने वंश से प्रभावित होकर उसने राजपूतों के प्रति उदारता की नीति अपनायी। इस नीति में अकबर की राजपूत नीति का आधार थे।

अकबर की राजपूत नीति की विशेषताएँ –

अकबर की राजपूत-नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं

1. विवाह सम्बन्ध – राजपूतो को अपना मित्र बनाने के लिए अकबर ने अनेक राजपूत राजाओं से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये। अकबर ने जयपुर के राजा भारमल की पुत्री के साथ विवाह कर लिया। इस विवाह का ऐतिहासिक महत्व है। डॉ बेनी प्रसाद ने अपने जहाँगीर नामक ग्रन्थ में लिखा है, “इस विवाह से भारतवर्ष के इतिहास में एक नये युग का आरम्भ हुआ, देश को कुछ महान शासक प्राप्त हुए और मुगल सम्राटों की चार पीढ़ियों को मध्यकाल के कुछ महान् सेनानायकों तथा कूटनीतिज्ञों की सेवाएँ प्राप्त हुई।” अकबर ने जैसलमेर तथा बीकानेर के राजघरानों के साथ भी वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये। उसने जिन राजपूत लड़कियों के साथ विवाह कर लिया था, उनके धर्म में उसने हस्तक्षेप नहीं किया। उसने उन्हें अपने धर्म के अनुसार चलने की पूरी छूट दे रखी थी। वे महलों में अपने हिन्दु देवी-देवताओं की पूजा कर सकती थी और हिन्दुओं के तीज-त्यौहार भी मना सकती थीं इसका प्रभाव बहुत अच्छा हुआ। अकबर की इस नीति से राजपूत बहुत प्रसन्न रहे।

2. राजपूतों को उच्च पदों पर नियुक्त करना – अकबर के पूर्व सम्राटों ने उच्च पदों पर अपनी जाति के लागों को ही नियुक्त किया। लेकिन अकबर ने राजपूतों को उच्च पदों पर प्रतिष्ठित किया। जो सम्मान मुसलमान अधिकारियों का था वही राजपूत पदाधिकारियों का था, इसमें अकबर ने कोई भेदभाव नहीं किया। जयपुर से वैवाहिक सम्बन्धों की स्थापना के बाद भारमल के पुत्र भगवानदास तथा उसके नाती मानसिंह को उच्च पदों पर नियुक्त किया। इनके अलावा बीकानेर के रासिंह, जैसलमेर के भीमसेन तथा जोधपुर के उदयसिंह को भी अकबर ने मनसबदार नियुक्त किया। राजपूत पदाधिकारी मुसलमान अधिकारियों से भी अधिक स्वामिभक्त सिद्ध हुए। उन्होंने अपनी सारी शक्ति लगाकर साम्राज्य की सेवा की। अकबर की सफलता का बहुत कुछ श्रेय हिन्दु पदाधिकारियों को दिया जा सकता है। Akbar ki rajput neeti in hindi

3. उदार व्यवहार तथा धार्मिक भावनाओं का आदर – अकबर राजपूतों की चारित्रिक विशेषताओं से पूर्णरूप से परिचित था। राजपूत स्वाभिमानी हैं, वे अपना अपमान कभी भी सहन नहीं कर सकते। अत: अकबर ने कभी उनमें स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने का प्रयास नहीं किया। उसने अपने अधीन राजपूत राजाओं तथा राजपूत अधिकारियों के साथ उदार व्यवहार किया। अकबर ने राजपूतों की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचायी। उसने उनमें मन्दिर और मूर्तियाँ नहीं तोड़ीं। यद्यपि उसने नया धर्म दीन-ए-इलाही चलाया, किन्तु उसने किसी राजपूत अथवा अन्य हिन्दुओं को दीन-ए-इलाही स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया। यहाँ तक कि उसने मानसिंह आदि अपने सम्बन्धियों को भी दीन-ए-इलाही स्वीकार करने के लिये नहीं कहा। इससे राजपूतों को बड़ा संतोष हुआ। Akbar ki rajput neeti in hindi

4. अकबर एक राष्ट्रीय सम्राट था – राष्ट्रीय सम्राट उस सम्राट को कहा जाता है जो राष्ट्र के सर्वागीण विकास के लिए प्रयत्नशील रहे। राष्ट्र की आत्मा, मूल्य और मान्यताओं के अनुकूल कार्य करे और विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों तथा जातियों में एकता तथा सद्भावना पैदा करने का प्रयत्न करे। इस दृष्टि से अकबर को राष्ट्रीय सम्राट कहा जा सकता है। अकबर के पूर्वज विदेशी होते हए भी उसने अपने आपकों पूर्वत: भारतीय बना लिया था। उसने भारत के सर्वागीण विकास में उसी प्रकार भाग लिया था जैसे वह भारतीय वंश तथा परम्परा का अनुयायी हो। उसने सारे राष्ट्र को एक करने का प्रयास किया। उसने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में समानता तथा एकता की स्थापना करके राष्ट्र को एक करने का प्रयास किया। “अकबर भारतीय राष्ट्रवाद का पिता था।” उसकी राष्ट्रीय सम्राट के रूप में विवेचना निम्न प्रकार की जा सकती हैं

(i) राजनीतिक एकता की स्थापना – अकबर ने देश के अधिकांश भाग को जीतकर एक राजनीतिक सूत्र में बाँधा। सम्पूर्ण साम्राज्य में उसने एक ही शासन-व्यवस्था कायम की। अकबर ने समस्त प्रान्तों में एक-सी शासन-प्रणाली लाग की, कर्मचारीगण, लगान तथा सिक्कों की एक-सी व्यवस्था कायम की। सभी प्रान्तों में कर्मचारियों के पद एक से होते थे, अतः उनका स्थानान्तरण एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त में आसानी से किया जा सकता था। सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान किये गये थे। इससे हिन्दू भी राज्य के हितैशी बन गये। इन्हीं प्रयासों से अकबर के समय में उच्चकोटि की राजनीतिक एकता की स्थापना हो गयी थी।

(ii) हिन्दू तथा मुसलमानों में एकता की स्थापना – अकबर ने अपने आपकों हिन्दुओं तथा मुसलमानों सबका शासक समझा। उसने सबके लिए सुख और समृद्धि का प्रयत्न किया। और सबके प्रति अपने कर्तव्य को निभाया। सरकारी नौकरियाँ देने में अकबर ने धर्म का भेद-भाव नहीं किया। योग्यता के अनुसार सभी धर्मों के लोगों को ऊँचे-ऊँचे पदों पर नियुक्त किया। टोडरमल प्रधानमन्त्री के पद पर पहुँच गये थे। भगवानदास, मानसिंह, बीरबल आदि ने भी ऊँचे-ऊँचे पद प्राप्त कर लिये थे। उसने सब धर्मों के अच्छे-अच्छे सिद्धान्तों को समझने का प्रयास किया। और सब धर्मों की बहुत-सी-बातों को अपना लिया। उसने सब धर्मों के अच्छे सिद्धांतों को मिलाकर दीन-ए-इलाही नाम का धर्म चलाया। अकबर के इन प्रयत्नों से हिन्दू तथा मुसलमानों के बीच युग-युग से चला आ रहा पारस्परिक विद्वेष कम हो गया। Akbar ki rajput neeti in hindi

(iii) धार्मिक स्वतन्त्रता तथा सहनशीलता – जैसा हम पहले लिख चुके हैं कि अकबर की धार्मिक नीति सहिष्णुतापूर्ण‌थी। उसने किसी धर्म में हस्तक्षेप नहीं किया। उसने न मन्दिर और मूर्तियाँ तोड़ी और न किसी को जबरदस्ती मुसलमान बनाने का प्रयत्न किया। सबके साथ समानता का बर्ताव किया। प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का प्रचार करने, उपासना करने धर्म परिवर्तन करने की पूर्ण स्वतन्त्रता थी। अकबर की यह नीति भारत की राष्ट्रीय परम्पराओं के अनुकूल थी। प्राचीनकाल से हिन्दु राजा इस नीति पर चलते आये थे।

(iv) सांस्कृतिक एकता की स्थापना – अकबर ने हिन्दू तथा मुस्लिम संस्कृतियों में समन्वय करके एकता की स्थापना करने का प्रयत्न किया। उसने कला और साहित्य के क्षेत्र में हिन्दुओं और मुसलमानों के आदर्शों, भावनाओं, शैलियों को मिलाने की कोशिश की। उसके द्वारा बनवायी गयी फतेहपुर सीकरी की इमारतों में समन्वय की भावना विशेष रूप
से देखने को मिलती है। उसने हिन्दु तथा मुस्लिम त्यौहारों को सामूहिक रूप से मनाने पर बल दिया। Akbar ki rajput neeti in hindi

(v) आर्थिक एकता – अकबर के समय में देश धीरे-धीरे आर्थिक रूप से सम्पन्न होने लगा। इससे देश की जनता को समृद्धि मिली। आर्थिक रूप से सम्पन्न होने के कारण छोटे-छोटे कारणों से द्वेष नहीं रखती थी। देश में एक समान कर व्यवस्था थी। इससे जनता में राष्ट्रीयता की भावनाओं का जन्म हुआ। Akbar ki rajput neeti in hindi

5. कला तथा साहित्य का संरक्षक – अकबर के समय में स्थापत्य कला को बहुत प्रोत्साहन मिला। वास्तव में देखा जाय तो इस कला का प्रारम्भ ही अकबर के जमाने से होता है। उसकी धार्मिक सहिष्णुता से भारतीय और फारसी कलाएँ समान रूप से विकसित हई। किन्तु उसके समय के भवनों को देखने से ज्ञात होता है कि राज्य में भारतीय कला का बोलबाला था।

यह तो थी अकबर की राजपूत नीति की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको नूरुददीन मोहम्मद जहांगीर का इतिहास के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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