जहाँगीर का इतिहास || मुगल साम्राज्य Notes

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इससे पहले हमने आपको अकबर की राजपूत नीति के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आपको जहाँगीर के इतिहास के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

जहाँगीर का प्रारम्भिक जीवन


जहाँगीर का जन्म 30 अगस्त, 1569 ई. में हुआ था। इसका बचपन का नाम सलीम था। अकबर उसको शेखा बाबा के नाम से पुकारता था। अकबर ने सलीम की शिक्षा-दीक्षा की अच्छी व्यवस्था की थी। अब्दुल रहीम खानखाना सलीम के शिक्षक थे। सलीम सलीम ने बचपन में ही सैनिक शिक्षा तथा राजनीति का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। सलीम का विवाह पन्द्रह वर्ष की अवस्था में आमेर के राजा भगवानदास की पुत्री मानबाई से हुआ। Jahangir History notes in Hindi

  1. खुसरों का विद्रोह – खुसरों जहाँगीर का सबसे बड़ा पुत्र था। वह अकबर को बहुत प्रिय था और अकबर के अन्तिम वर्षा में सलीम ने अकबर के खिलाफ विद्रोह किया तब खसरों अकबर के अधिक समीप आ गया था और गद्दी का दावेदार बन गया था। इसलिए जहाँगीर ने सिंहासन पर बैठने के उपरान्त भी खुसरों के मन में बादशाह बनने की इच्छा बनी रही और पिता-पुत्र में समझौते के बाद भी पुत्र की लालसा तथा पिता शंका बनी रही। अत: जहाँगीर ने खसरों को आगरा के किले में पहरा लगाकर कैदी की तरह रख दिया। Jahangir History notes in Hindi
    6 अप्रैल, 1606 ई. को खुसरों अपने दादा की कब्र पर जियारत पढ़ने के बहाने निकल भागा। मथुरा का कुसैन बेग लाहौर का दीवन अब्दरहीम भी खुसरो से मिल गया। तरनतारण नामक स्थान पर गुरु अर्जुन सिंह ने भी उसे आशीर्वाद दिया। परन्तु लाहौर के गवर्नर दिलावर खाँ ने खुसरों का साथ नहीं दिया और लाहौर में नहीं घुसने दिया। इसी बीच जहाँगीर विद्रोह का दबाने के लिए लाहौर पहुँच गया। भारोवल नामक स्थान पर खसरों पराजित हुआ। उसके समर्थक गिरफ्तार कर लिये गये और सख्त सजायें दी गयीं। खुसरों जेल में डाल दिया गया।
    गुरु अर्जुन सिंह को खुसरों की सहायता करने के कारण अर्थ-दण्ड देने को कहा गया और न देन पर मृत्यु दण्ड दे दिया गया। यह जहाँगीर का एक राजनीतिक भूल थी जिसके कारण धीरे-धीरे सिख और मुसलमान एक-दूसरे के शत्रु बन गये। Jahangir History notes in Hindi
    थोड़े समय के बाद जहाँगीर ने उसको माफ कर दिया और खुसरों के प्रति उसकी सहानुभूति बढ़ने लगी। नूरजहाँ के प्रभाव के कारण मुगल दरबार में गुटबाजी आरम्भ हो गयी जिसका परिणाम यह हुआ कि खुसरों को खुर्रम के अधीन कर दिया गया। खुर्रम ने खुसरों को बुरहानपुर में उसका गला घुटवा कर मरवा दिया।
  2. मेवाड़ के साथ संघर्ष – मेवाड़ का राज्य ऐसा था जिसने मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की थी। अकबर मेवाड़ को पूरी तरह जीतने में असफल रहा था। 1597 ई. में अपनी मृत्यु के पूर्व ही राणा प्रताप ने अपने खोये राज्य का अधिकांश भाग फिर से हथिया लिया था। महाराणा प्रताप के पुत्र अमरसिंह ने अपने पिता की मुगल आक्रमण विरोधी नीति को अपनाया। जहाँगीर ने मेवाड़ ने को पूर्णरूप से विजय करने का संकल्प किया। 1605 ई. में उसने 20,000 अश्वरोहियों की सेना राजकुमार परवेज तथा नूरजहाँ के भाई आसफखाँ के नेतृत्व में मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजी। देवार के दर्रे पर मुगलों तथा राजपूतों के बीच युद्ध हुआ जो अनिर्णीत रहा। Jahangir History notes in Hindi
  3. अहमदनगर विजय – जैसा हम पहले लिख चुके हैं कि अकबर ने उत्तर में सलीम के विद्रोह के कारण असीरगढ़ के घेरे के उपरान्त (1601 ई.) दक्षिण के युद्ध को बन्द कर दिया। अहमदनगर के प्रधानमन्त्री मलिक अम्बर ने राज्य की स्थिति को सुदृढ़ करने का प्रयत्न किया। उसमें सैनिक तथा प्रशासन की प्रतिभा विद्यमान थी। उसने टोडरमल के सिद्धान्तों के आधार पर राज्य की राजस्व व्यवस्था का पुनः संगठन किया। उसने मुगल अधिकृत प्रदेश को हस्तगत करने का प्रयत्न किया। अतः जहाँगीर के लिए अहमदनगर पर आक्रमण करना अनिवार्य हो गया। उसने 1608 ई. में खानखाना के नेतृत्व में 12,000 अश्वारोही सेना को दक्षिण विजय के लिए रवाना किया, किन्तु खानखाना को विशेष सफलता प्राप्त न हो सकी। अहमदनगर की सेना ने मुगल सेना के हौंसले पस्त कर दिये। इसके बाद जहाँगीर ने शाहजादा परवेज को एक विशाल सेना के साथ अहमदनगर भेजा। आसफखाँ को परवेज का संरक्षक नियुक्त किया गया। किन्तु शहजादे को भी अहमदनगर में अधिक सफलता प्राप्त नहीं हई। जहाँगीर ने खानजहाँ लोदी अब्दुल्लाखाँ आदि को भी अहमदनगर के विरुद्ध भेजा किन्तु वे भी अहमदनगर पर विजय प्राप्त नहीं कर सके। मलिक अम्बर ने छापामार युद्ध के द्वारा मुगलों को सफल नहीं होने दिया। 1612 ई. में खानखाना ने विजय प्राप्त कर ली किन्तु मुगल सेना की आपसी फूट के कारण इस विजय से कोई लाभ नही हुआ। Jahangir History notes in Hindi अन्त में 1616 ई. में जहाँगीर ने शाहजादा खुर्रम को शाह सुल्तान का पद देकर अहमदनगर पर आक्रमण करने के लिए भेजा। सम्राट स्वयं सेना लेकर माण्डू नामक स्थान पर जा बैठा । शाहजादा खुर्रम 1617 ई. में बुरहानपुर पहुंचा। मुगलों की विशाल शक्ति से भयभीत होकर मलिक अम्बर ने शाहजादा खुर्रम से समझौता कर लिया और बालाघाट का पूरा प्रान्त जो उसने कुछ काल पूर्व ही मुगलों से छीन लिया था, लौटा दिया। अहमदनगर का किला भी मुगलों को दे दिया। सोलह लाख रुपये के मूल्य का संपत्ति का उपहार लेकर अहमदनगर का बादशाह आदिलशाह स्वयं शाहजादा खुर्रम के सामने उपस्थित हुआ। 1617 ई. इस सन्धि का शर्तो को जहाँगीर ने भी स्वीकार कर लिया। खानखाना को वहाँ का सबेदार नियुक्त करके खुर्रम वहाँ से लौट आया। इस सफलता क कारण शाही दरबार में शाहजादा खुर्रम का प्रभाव बहुत बढ़ गया Jahangir History notes in Hindi
  4. कन्धार की पराजय – कन्धार का दुर्ग भारत तथा फारस के बीच कलह का कारण बना हुआ था। फारस का शाह जहाँगीरसे मिला भी रहना चाहता था और कन्धार पर अधिकार भी जमा लेने की फिराक में था। 1605 ई. में उन्होंने कन्धार पर अधिकार करने का प्रयत्न किया किन्तु उनको सफलता प्राप्त नहीं हुई। फारम के शाह ने अकबर की मृत्यु पर सम्वेदना सन्देश लेकर जहाँगीर के पास एक दूत भेजा। इसके पीछे फारस के शाह की कूटनीतिक चाल थी। वह जहाँगीर को कन्धार की तरफ से बेखबर रखना चाहता था। शाह को नूरजहाँ तथा शाहजहाँ के बीच बढ़ते हुए मतभेद का पता भी चल गया था। उसने इस स्थिति का लाभ उठाकर कन्धार पर आक्रमण कर दिया और 1622 ई. में उस पर अधिकार कर लिया। जहाँगीर को जब इस बात का पता चला तो उसने शाहजहाँ की रक्षा करने का आदेश दिया, किन्तु वह नूरजहाँ के पक्षपातपूर्ण व्यवहार के कारण असन्तुष्ट था। अतः उसने राजाज्ञा की अवहेलना करके विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह के परिणामस्वरूप कन्धार के दुर्ग पर फारस के शाह का अधिकार हो गया। जहाँगीर ने शाहजादे परवेज को दुर्ग को पुनः प्राप्त करने के लिए भेजा किन्तु वह असफल रहा। Jahangir History notes in Hindi जहांगीर की आत्मकथा – जहांगीर द्वारा शुरू की गई किताब “तुजुक-ए-जहांगीर” मौतबिंद खान द्धारा पूरा किया गया। यह तो थी जहाँगीर का इतिहास की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको नूरजहां की जीवनी के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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