अशोक के सप्त स्तंभ-लेख Notes

Hello दोस्तों, आपका फिर से स्वागत हैं Upsc Ias Guru .Com की वेबसाइट पर पिछली पोस्ट में हमने अशोक के अभिलेख के बारे में चर्चा की थी। इस पोस्ट में हम आपको अशोक के स्तंभ लेखऔर मौर्यकालीन जानकारी के स्रोत के रूप में अभिलेखों का महत्व के बारे में चर्चा करेंगे, तो चलिए शुरू करते हैं 

अशोक के सप्त स्तंभ-लेख (Seven Pillar-Edicts) Ashok ke sapt stambh lekh notes

• स्तंभ लेख
इसमें अशोककालीन प्रशासन तथा धम्म से संबंधित बातों का उल्लेख है। इसे भी दो वर्गों में बांटा जाता है-

1)  वृहद्स्तंभ लेख –

इन लेखों की संख्या 7 है, जो 6 भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त है –
a)  दिल्ली – मेरठ – यह पहले मरेठ में था, जिसके बाद में फिरोज तुगलक द्वारा दिल्ली लाया गया।
b)  दिल्ली – टोपरा – यह पहले हरियाणा के टोपरा में था, जिसे बाद में फिरोज तुगलक द्वारा दिल्ली लाया गया। यह एकमात्र ऐसा स्तंभ लेख है, जिस पर अशोक के सातों स्तंभ लेख उत्कीर्ण है, जबकि शेष स्थानों पर केवल 6 लेख ही उत्कीर्ण मिलते हैं। Ashok ke sapt stambh lekh notes
c) लौरिया –  अरराज (बिहार)।
d)   लौरिया – नंदगढ़ (  बिहार)।
e)  रामपुरवा (बिहार)।
f) कौशांबी/ प्रयाग स्तंभ लेख (उत्तर प्रदेश)-  इसमें अशोक की रानी कारूवाकी तथा पुत्र तीवर का उल्लेख है। इसे रानी का अभिलेख  भी कहा जाता है। यह पहले कौशांबी में था, जिसे अकबर के शासनकाल में जहांगीर द्वारा इलाहाबाद के किले में रखा गया।

2) लघु स्तंभ लेख – 

लघु स्तंभ लेखों पर अशोक की राज घोषणाएं खुद ही है। यह निम्नलिखित स्थानों में मिलते हैं – 
a)  साँची लघु स्तंभ लेख (रायसेन, मध्य प्रदेश) – इसमें अशोक अपने महामात्रों को संघ भेद रोकने का आदेश देता है।
b) सारनाथ लघु स्तंभ लेख (उत्तर प्रदेश) –  इसमें भी अशोक अपने महामात्रों को संघ भेद रोकने का आदेश देता है ।
c) रुम्मिनदेई स्तम्भ लेख (नेपाल) – इस अभिलेख से पता चलता है कि अशोक अपने राज्य विशेष के 20वें वर्ष में रुम्मिनदेई (लुम्बिनी ) आया और उसने यहां धार्मिक कर बलि को समाप्त कर दिया तथा भाग को घटाकर 1/8 कर दिया। Ashok ke sapt stambh lekh notes
d) निगालिसागर  स्तंभ लेख (नेपाल) – इस अभिलेख से पता चलता है कि अशोक अपने राज्याभिषेक के 12 वर्ष निगालीसागर तक आया तथा यहां कनक मुनि के स्तूप का संवर्धन किया।

  • गुहा लेख

  गुहा लेखो की भाषा प्रकृति एवं लिपि ब्रह्मी है। अशोक ने बिहार स्थित बराबर की पहाड़ी में आजीवक संप्रदाय के लिए सुदामा गुफा, कर्ण चौपार गुफा, लोमा ऋषि गुफा तथा विश्व झोपड़ी गुफा का निर्माण करवाया ।
  अशोक के पौत्र दशरथ ने भी बिहार स्थित नागार्जुनी पहाड़ी में आजीवक संप्रदाय के लिए गोपी गुफा, वडथिका गुफा तथा वापियका गुफा का निर्माण करवाया। Ashok ke sapt stambh lekh notes

   • धातु लेख

 1) महास्थान अभिलेख (पश्चिम बंगाल) – मौर्य काल में महास्थान क्षेत्र पुंड्रनगर क्षेत्र का  कहलाता था। इसी अभिलेख में इस क्षेत्र में महामत्यो द्वारा अकाल के समय लोगों की सहायता हेतु अनाज वितरण की व्यवस्था का वर्णन है।
2) सोहगौरा ताम्रलेख ( गोरखपुर, उत्तर प्रदेश) – इसमें भी अकाल के समय राज्य द्वारा अनाज वितरण का वर्णन है।
 मौर्यकालीन जानकारी के स्रोत के रूप में अशोक के अभिलेखों का महत्व
अशोक प्राचीन भारत का प्रथम ऐसा शासक था, जिसने अभिलेखों के माध्यम से जनता को संबोधित किया। उस काल में चूंकि आधुनिक प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का अभाव था, अतः अशोक ने अपने अभिलेखों के माध्यम से जनता के साथ संपर्क स्थापित किया। अभी तक अशोक के लगभग 50 अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं, जो कि मुख्यतः व्यापारिक – मार्गों एवं राजकीय – मार्गों में अवस्थित थे। इन अभिलेखों से मौर्य काल के संबंध में निम्नलिखित महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है –
 • राजनीतिक क्षेत्र – 
अशोक के अभिलेखों के प्राप्ति स्थान से उसके साम्राज्य विस्तार की जानकारी मिलती है। भाब्रू शिलालेख में अशोक को मगध का शासक कहा गया है। अभिलेखों में अशोक की उपाधि देवानामपिय खुदी हुई है, जिससे ज्ञात होता है कि इस समय  तक राजा के पद का अर्ध दैवीकरण हो चुका था। अशोक के अभिलेखों से प्रशासनिक अधिकारियों युक्त, रज्जुक, प्रादेशिक एवं धम्ममहामात्र की जानकारी भी मिलती है। अभिलेखों से ज्ञात होता है कि अशोक एक सुस्त प्रशासक था, निष्पक्ष न्याय पर बल देता था तथा प्रजा को अपनी संतान मानता था। अशोक के अभिलेखों से उसके पड़ोसी एवं विदेशी राज्यों को भी जानकारी मिलती है। साथ ही इन राज्यों के साथ अशोक के मैत्रीपूर्ण संबंध होने का बोध भी होता है। Ashok ke sapt stambh lekh notes
अशोक के अभिलेखों से जानकारी मिलती है कि राजनीतिक क्षेत्र में कल्याणकारी कार्यों को प्रोत्साहन दिया जाता था। उदाहरणार्थ दूसरे एवं तेरहवें शिलालेख में अशोक द्वारा करवाए गए कल्याणकारी कार्यों का उल्लेख मिलता है।
 • आर्थिक क्षेत्र – 
आर्थिक के अभिलेखों से जानकारी मिलती है कि अशोक ने कृषि को प्रोत्साहन देने हेतु पशु हत्या पर पाबंदी लगाई थी। हमें मौर्यकालीन कर व्यवस्था की जानकारी भी मिलती है। उदाहरणार्थ – रुम्मिनदेई अभिलेख में बली एवं भाग नामक कर का उल्लेख मिलता है। महा अस्थान एवं सौहगारा  ताम्र लेख से जानकारी मिलती है कि अकाल की स्थिति से बचने हेतु कर के रूप में प्राप्त अनाज का एक हिस्सा राज्य के गोदामों में सुरक्षित भी रखा जाता था।
 • सामाजिक क्षेत्र – 
अशोक के अभिलेखों से दासों, कर्मकारों  के प्रति उचित बर्ताव किए जाने का उल्लेख मिलता है तथा इसके विरुद्ध कठोर दंड की बात कही गई है। अशोक के शासनकाल में सामाजिक समरसता बनी रही, क्योंकि अभिलेखों में किसी भी प्रकार का समाधि के विद्रोह की जानकारी नहीं मिलती है। Ashok ke sapt stambh lekh notes
 • धार्मिक क्षेत्र –
 
अशोक के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि यद्यपि अशोक व्यक्तिगत रूप से बौद्ध धर्म का अनुयायी था, किंतु उसने ब्राह्मणों, श्रवणों आदि के प्रति उचित व्यवहार किए जाने की बात कही है तथा उसके अभिलेखों से आजीवक संप्रदाय के भिक्षुओं के लिए गुफाओं के निर्माण का उल्लेख भी मिलता है। अशोक के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि अशोक ने जनता को जिस धर्म के पालन पर बल दिया था, वह लोककल्याणकारी, अहिंसावादी, विश्व बंधुत्व एवं सर्वधर्म समभाव की भावना का आधारित था।
 •  सांस्कृतिक क्षेत्र – 
अशोक के अभिलेख मौर्योत्तरकालीन स्थापया कला के सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण है। अशोक के स्तंभ अभिलेखों के आधार पर कहा जा सकता है कि मौर्य काल में प्रस्तर कला अपने चरमोत्कर्ष में थी।
  •  अन्य जानकारी – 
अशोक के अभिलेखों से उसके व्यक्तिगत जीवन की जानकारी भी प्राप्त होती है। कौशांबी/ प्रयाग अभिलेख में अशोक की पत्नी कारूवाकी तथा पुत्र तीवर का उल्लेख मिलता है।
 इस प्रकार हम देखते हैं कि मौर्य कालीन इतिहास की जानकारी के स्रोत के रूप में अशोक के अभिलेखों का व्यापक महत्व है। यद्यपि अशोक के अभिलेखों की कुछ सीमाएं भी है, जैसे –
 प्रथम, यह अभिलेख मुख्यताः राज के दृष्टिकोण को ही अभिव्यक्त करते हैं।
 द्वितीय, अशोक के कुछ अभिलेखों, जैसे – दिल्ली टोपरा, दिल्ली – मेरठ तथा कौशांबी अभिलेख की मूल स्थान से हटा कर अन्य स्थानों पर प्रतिस्थापित कर दिया गया है। अतः इनके आधार पर प्राप्त जानकारी भ्रमक भी हो सकती है।
तृतीय, चीनी यात्रा फाह्मान तथा ह्मेनसांग ने क्रमशः पाटलिपुत्र व संकिसा तथा राजगृह व श्रावस्ती में अशोक के अभिलेखों की चर्चा की है, परंतु यह अभिलेख अभी तक प्राप्त नहीं हुए हैं। अतः अशोक के अभिलेखों के प्राप्ति स्थलों के आधार पर मौर्य साम्राज्य की भौगोलिक सीमाओं को पूर्णतः सत्य नहीं माना जा सकता है।
चतुर्थ, स्वयं अशोक ने भी 14 वे वृहद शिलालेख में यह उल्लेख किया है कि कई बार लापरवाही या लिपिकार की भूल से लेखों में कुछ गलतियां हो जाती है।
इस प्रकार यद्यपि मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी के स्रोतों के रूप में अशोक के अभिलेखों का व्यापक महत्व है, फिर भी  इनसे प्राप्त जानकारी को अन्य समकालीन साहित्यक स्रोतों एवं विदेशी यात्रियों के विवरणों से प्राप्त होने वाली जानकारी से परिपुष्ट करने की आवश्यकता है।
 इस प्रकार हम देखते हैं कि अशोक के अभिलेखों से मौर्यकालीन आंतरिक नीति, विदेश नीति, धार्मिक नीति एवं अशोक के व्यक्तिगत जीवन के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। वस्तुतः मौर्यकालीन जानकारी के स्रोत के रूप में अशोक के अभिलेखों का अत्यधिक महत्व है। इतिहास में पुरातात्विक स्रोतों से प्राप्त जानकारी साहित्यक स्रोतों की तुलना में अधिक प्रमाणिक एवं असंदिग्ध माना जाता है, क्योंकि  इनमें मानवीय फेरबदल की गुंजाइश बहुत कम होती है। Ashok ke sapt stambh lekh notes

दोस्तों यह तो थी सप्त स्तंभ-लेख (Seven Pillar-Edicts) के बारे में संपूर्ण जानकारी अगले पोस्ट में हम आपको  मौर्यकालीन सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था के बारे में चर्चा करेंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂 

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