अशोक के प्रमुख अभिलेख Notes

स्वागत है आपका फिर से Upsc Ias Guru .Com पर पिछली पोस्ट में हमने आपको मौर्य काल के प्रारंभिक जानकारी और उनके स्रोत के बारे में बताया था।  इस पोस्ट में हम आपको सम्राट अशोक से संबंधित सभी लेखों के बारे में जानकारी देंगे जोकि किसी भी परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है

प्राचीन भारत के प्रमुख अभिलेख (Archives of ancient India)

अभिलेख

शासक

महास्थान अभिलेख चंद्रगुप्त मौर्य
गिरनार अभिलेख रुद्रदामन
प्रयाग प्रशस्ति समुद्रगुप्त
उदयगिरि अभिलेख चंद्रगुप्त द्वितीय
भितरी स्तंभलेख स्कंदगुप्त
एरण अभिलेख भानुगुप्त
ग्वालियर प्रशस्ति राजा भोज
हाथीगुम्फा अभिलेख खारवेल
नासिक गौतमी बलश्री
देवपाडा विजय सेन
ऐहोल पुलकेशिन द्वितीय

अशोक के प्रमुख अभिलेख | Major Inscriptions of Ashoka |

अशोक का इतिहास मुख्यता उसके अभिलेखों से ही ज्ञात होता है। अभी तक उसके 47 से अधिक अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं। इतिहासकार डी.आर. भंडारकर महोदय ने केवल अभिलेखों के आधार पर ही अशोक का इतिहास लिखने का प्रयास किया है।
सर्वप्रथम 1750 ई. में टिफिन टेलर ने दिल्ली – मरेठ अभिलेख खोजा था, जबकि सर्वप्रथम 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप ने अशोक के दिल्ली टोपरा अभिलेख (ब्राह्मी लिपि) को पढ़ने में सफलता प्राप्त की थी। हालांकि जेम्स प्रिंसेप ने इस अभिलेख में उल्लेखित देवानामपिदससी की पहचान श्रीलंका के शासक तिस्स से की थी, किंतु सर्वप्रथम 1915 ई. विलियम जोंस ने मास्की अभिलेख में उल्लेखित अशोक नाम प्राप्त होने से इन अभिलेखों को मौर्य साम्राज्य के तृतीय शासक अशोक से संबंधित बताया।  Major Inscriptions of Ashoka notes
अशोक के अभिलेखों का विभाजन निम्नलिखित वर्गों ने किया जा सकता है – 
1) शिलालेख – इसे वृहद् शिलालेख एवं लघु शिलालेख दो वर्गों में बांटा जा सकता है।
2)  स्तंभलेख – इसे भी दीर्घा स्तंभ लेख एवं लघु स्तंभ लेख में बांटा जा सकता है।
3) गृह – आलेख यह गुफाओं में उत्कीर्ण लेख है।
4) धातु लेख यह ताम्र पट्टिका (Copper Sheet) में उत्कीर्ण लेख है।
इन सभी अभिलेखों का भाषा प्राकृत है, जबकि लिपि, ब्राह्मी, खरोष्ठी,आरमेइक, एवं यूनानी है। लघु शिलालेख, दीर्घ एवं लघु स्तंभलेख तथा गुहालेखों की लिपियां केवल ब्रह्मी हैं। भारत के बाहर पाए गए कुछ वृहद् शिलालेखों की लिपिया ही खरोष्ठी,आरमेइक एवं यूनानी है। उदाहरणार्थ – शाहबाजगढ़ी (पाकिस्तान) एवं मानसेहरा (पाकिस्तान) से प्राप्त अभिलेख खरोष्ठी लिपि में, तक्षशिला (पाकिस्तान) एवं लघमान (पाकिस्तान) से प्राप्त अभिलेख आरमेइक लिपि में कंधार (पाकिस्तान) से प्राप्त अभिलेख आरमेइक व यूनानी लिपि में है। Major Inscriptions of Ashoka notes

 • शिलालेख

इसे दीर्घ शिलालेख एवं लघु शिलालेख दो वर्गों में बांटा जाता है –
1) दीर्घ शिलालेख – यह 14 विभिन्न लाखों में एक समूह है, जो 8 भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त हुए हैं। इन शिलालेखों में प्रशासनिक एवं धम्म से संबंधित अनेक बातों का उल्लेख है यह निम्नलिखित 8 स्थानों से प्राप्त हुए हैं – 
a)  शाहबाजगढ़ी (पाकिस्तान)
b)  मानसेहरा (पाकिस्तान)
c)  कालसी (उत्तराखंड)
d)  सोपारा (महाराष्ट्र)
e)  गिरनार (गुजरात)
f)  एरंगुडि  (आंध्र प्रदेश)
g)  धौली (उड़ीसा)
h) जौगाढ़ (उड़ीसा)
अशोक के दीर्घ शिलालेखों पर कुल 1 से 14 लेख खुदे हुए हैं, जो निम्नलिखित है – 
 प्रथम लेख – इस लेख में जीव हत्या पर निषेध के बारे में लिखा गया है। इस अभिलेख के लिखे जाने समय तक केवल तीन पशु प्रतिदिन मारे जाते हैं – दो मोर एवं एक मृग, इसमें भी मिलेगा हमेशा नहीं मारा जाता। यह तीनों भी भविष्य में नहीं मारे जाएंगे।
 दूसरा लेख – इस लेख में उल्लेखित है कि प्रियदर्शी राजा के विजित  राज्य व अन्य सीमांत प्रदेश, जैसे – चोल, पांडय,  सातियपुत्त,  केरलपुत्त (चेर) व  ताम्रपर्णी (श्रीलंका) तथा यवनराजा (एंटीयोक) व चार अन्य पड़ोसी राजाओं के प्रदेश में प्रियदर्शी ने मनुष्य एवं पशुओं की चिकित्सा का प्रबंध किया।
तीसरा लेख – इस लेख में उल्लेखित है कि प्रियदर्शी राजा ने आज्ञा जारी की कि  मेरे साम्राज्य में सभी जगह प्रादेशिक, रज्जुक और युक्त प्रति पांचवे वर्ष राजा का दौरा करें, ताकि वे प्रजा को धर्म तथा कार्यों की शिक्षा दे सके। माता -पिता की आज्ञा मानना, मित्रों, संबंधियों, ब्राह्मणों एवं श्रमणों के प्रति उदार भाव रखना, जीवो की हत्या ना करना, अल्पव्यय और अल्प संचय अच्छी बात है।
चौथा लेख – इस लेख में उल्लेखित है कि प्रियदर्शी के धर्म आचरण से भेरी घोष, धम्म गोस में बदल गया। प्रजा में  धम्म की शिक्षा दोबारा जीवित प्राणियों के हत्या का त्याग, ब्राह्मणों व श्रमणों का आदर, माता-पिता का आज्ञा पालन इतना बढ़ गया है, जितना पहले कई सौ वर्षों तक नहीं हुआ। Major Inscriptions of Ashoka notes
पांचवां लेख – इस लेख में उल्लेखित है कि प्रियदर्शी ने अपने राज्याभिषेक के 14 वर्ष में धम्महामात्र नामक अधिकारियों की युक्ति की, जो धम्म के प्रचार तथा जनता के कल्याण व सुख के कार्य करते थे।
छठां लेख – चुस्त प्रशासन हेतु इस लेख में अशोक कहता है कि हर समय, चाहे मैं भोजन करता रहूं या अंतःपुर में रहूं या शयन कक्ष मे, चाहे बाग में रहूं या सवारी पर। सब जगह प्रतिवेदक मुझे प्रजा के हाल से परिचित रखें ।
सातवां लेख –  इसमें अशोक कहता है – सभी संप्रदाय के लोग सब जगह निवास करें, सभी धर्म संयम व चित्त की शुद्धि चाहते हैं।
आठवां लेख – इस में उल्लेखित है कि अशोक ने अपने राज्य विशेष के 10वें वर्ष में अरवेटक यात्रा की जगह धर्म यात्रा का प्रारंभ बोधगया से किया।
नवां लेख – इसमें अशोक कहता है कि लोग विविध मंगलाचार करते हैं, लेकिन उनका फल अल्प होता है, जबकि धम्म रूपी मंगलाचार अधिक महत्वपूर्ण है। इसमें दासों एवं सेवकों के प्रति शिष्ट व्यवहार, गुरुजनों का आदर, प्राणियों के प्रति संयमपूर्ण व्यवहार और ब्राह्मणों व श्रमणों को दान देना आदि  शामिल है।
दसवां लेख इसमें अशोक ने यश और कीर्ति की जगह धम्म का पालन करने पर बल दिया है।
ग्यारहवां लेख – इसमें अशोक कहता है कि धम्म जैसा कोई दान नहीं, धम्म जैसी कोई प्रशंसा नहीं, धम्म जैसा कोई बंटवारा नहीं और धम्म जैसी कोई मित्रता नहीं।  Major Inscriptions of Ashoka notes
बारहवां लेख – इसमें अशोक धार्मिक सहिष्णुता व धम्मसार पर बल देते हुए कहता है कि सभी धम्म का सार संयम है, लोग अपने संप्रदाय की प्रशंसा और दूसरे संप्रदाय की निंदा न करें।
तैरहवां लेख – इसमें उल्लेखित है कि देवताओं के प्रिय राजा प्रियदर्शी ने अपने राज्याभिषेक के  9वें वर्ष कलिंग पर विजय प्राप्त की, क्योंकि व्यापारिक दृष्टिकोण से दक्षिण की ओर जाने वाले सभी मार्ग यहीं से होकर जाते थे। किंतु यहां हुई हिंसा से उसका मन द्रवित हो उठा तथा उसने भेरीघोष (युद्ध विजय) की जगह धम्मघोष (धम्मविजय) की नीति अपनाई। अशोक ने अपने राज्य में तथा 600 योजना दूर तक अन्य सीमांत प्रदेशों में धम्म का प्रचार किया। धम्म का प्रचार दक्षिण में चोल, पांड्य, सातियपुत्र, केरलपुत्र (चेल) व ताम्रपर्णी प्रदेश में तथा यवन (सीरिया) के राजा  अंतियोक या (एंटीओकस), मिस्र के राजा तुलामाया (टॉलमी द्वितीय फिलाडेल्फस), मकदुनिया के राजा अंतेकिन  ( ऐण्टीगोनसरा गोनेटरा), साइरीन के राजा मक (मगस)  व एपिरस के राजा  सुंदर (अलेक्जेंडर) के यहां भी किया।
चौदहवां लेख – इस में उल्लेखित है कि कई बार लापरवाही या  लिपिकार की भूल से लेखों में कुछ गलतियां हो जाती है।
नोट – धौली तथा जोगढ़ के शिलालेखों पर 11वें, 12वें 13वें शिलालेख उत्कीर्ण नहीं किए गए हैं। उनके स्थान पर दो अन्य लेख खुदे हुए हैं ,जिन्हें पृथक कलिंग लेख कहा गया है।
प्रथम पृथक लेख – इसमें अशोक कहता है कि सारी प्रजा मेरी संतान है। अशोक ने कलिंग के समीप के  महामात्यों तथा नगर के न्याय अधिकारियों को निष्पक्ष न्याय करने को कहा है। अशोक कहता है कि मनुष्य को कभी भी आ करण कैद या यातना न दी जाए। मैं निष्पक्ष न्याय हेतु सभी प्रांतों में प्रति पांचवें वर्ष (उज्जैन व तक्षशिला में प्रति तीसरे वर्ष) महामात्य नामक अधिकारी भेजूंगा।
 द्वितीय पृथक लेख – इसमें भी अशोक कहता है कि सारी प्रजा मेरा संतान है।
2) लघु शिलालेख – लघु शिलालेख में अशोक के व्यक्तिगत जीवन की जानकारी मिलती है। यह निम्नलिखित स्थानों से प्राप्त हुए है –  रूपनाथ (जबलपुर), गुर्जरा (दतिया), सारोमारी (शहडोल), पनगुडरिया (सिहोर) आदि। 
 अन्य महत्वपूर्ण लघु शिलालेख
a) मास्की अभिलेख (कर्नाटक) – इसमें अशोक ने स्वयं को बुद्ध  शाक्य कहां है। इसी अभिलेख में उसका नाम अशोक मिलता है इसके अतिरिक्त नेत्तूर,  उडेगोलम (बेलारी, कर्नाटक), सन्नाती (गुलबर्गा, कर्नाटक) तथा गुर्जर (दतिया) से प्राप्त अभिलेखों में अशोक नाम मिलता है।
b)भाब्रू/ वैराट अभिलेख (राजस्थान) – इसमें अशोक ने स्वयं को मगधाधिराज कहां है तथा बौद्ध धर्म के त्रिरत्न ( बुद्ध, धम्म के संघ) के प्रति आस्था प्रकट की है।
c) एर्रगुड़ी (आंध्र प्रदेश) – इस अभिलेख में लेखन शैली अन्य अभिलेखों के विपरीत बाएं से दाएं एवं दाएं से बाएं (बूस्ट्रोफेन) हैं। Major Inscriptions of Ashoka notes
प्राप्त प्रमुख शिलालेखों की वर्ष वार स्थिति निम्नानुसार है-
क्र. शिलालेख         लिपि           खोज वर्ष     स्थिति
1. शाहबाज गढ़ी    खरोष्ठी         1836         पेशावर(पाकिस्तान)
2. मानसेहरा        खरोष्ठी          1889         हजारा (पाकिस्तान)
3. गिरिनार         धम्म लिपि      1822         जुनागढ (काठियावाड़)
4. एर्रगुड़ी            धम्मलिपि     1916         कर्नूल(आ. प्र. )
5. कालसी           धम्मलिपि     1837         चक्रत (देहरादून)
6. जौगढ़             धम्मलिपि     1850        गंजाम(उड़ीसा)
7. सोपारा            धम्मलिपि     1882        थाना(मुंबई)
8.  धौली              धम्मलिपि     1837        उड़ीसा(भुवनेश्वर)
दोस्तों यह तो थी अशोक के लेखों के बारे में संपूर्ण जानकारी अगले पोस्ट में हम आपको अशोक के स्तंभ लेख और मौर्यकालीन जानकारी के स्रोत के रूप में अभिलेखों का महत्व के बारे में चर्चा करेंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂 

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