दीन-ए इलाही धर्म की स्थापना, सिद्धान्त, असफलता के कारण || मुगल साम्राज्य Notes

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इससे पहले हमने आपको अकबर की धार्मिक नीति के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आपको अकबर की धार्मिक नीति 1582 ई. के बाद का काल (दीन-ए इलाही धर्म) के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

दीन-ए इलाही धर्म की स्थापना – din-e-ilahi-hindi-notes-akbar

अकबर ने यह यह अनुभव किया कि साम्राज्य में रहने वाली विभिन्न जातियों तथा सम्प्रदायों के बीच एकता कायम रखने के लिए आवश्यक है कि उन्हें एक धार्मिक सूत्र में बाँधे जाए। इस उद्देश्य से उसने सब धर्मों के अच्छे-अच्छे नियमों को मिलाकर एक नया धर्म चलाने का विचार किया। नये धर्म का नाम दीन-ए-इलाही रखा गया। इतिहासकार बदायूँनी और जैसुईट लेखक बारटोली के अनुसार, 1582 ई. में काबुल अभियान से लौटने के बाद अकबर ने अपने प्रमुख दरबारियों और अधिकारियों का एक सम्मेलन बुलाया और इनके सामने दीन-ए-इलाही का स्वरूप प्रस्तुत किया। उसने विभिन्न मत सम्प्रदायों के पारस्परिक विद्वेष का हवाला दिया और इस बात की आवश्यकता पर जोर दिया कि “इन्हे एकता में इस तरह समन्वित करना चाहिए कि विभिन्न रहते हुए भी वे एक रहें। साथ ही, सम्प्रदाय में जो अच्छाई है उसके लाभ से वंचित न हों तथा दूसरे सम्प्रदायों में जो अच्छाईया है, उन्हें भी ग्रहण करें।”

राजा भगवानदास के अलावा सभी दरबारी सम्राट की राय से सहमत हो गये। कुछ दरबारी दीन-ए-इलाही के सदस्य बन गये। इस सम्प्रदाय में वे ही लोग सम्मिलित हो सकते थे जो स्वेच्छा से इसके सदस्य बनना चाहते थे और जिन्हें सम्राट इसका सदस्य बनने के योग्य समझता था। किसी को भी जोर-जबरदस्ती से इसका सदस्य बनाने का प्रयत्न नहीं किया। बिना सम्राट का स्वीकृति के कोई भी इसका सदस्य नहीं बन सकता था। बन्धनों के होते हुए भी कई हजार लोग इसके सदस्य बन गये।

दीन-ए-इलाही का सिद्धान्त —

ईश्वर एक है। din-e-ilahi-hindi-notes-akbar

इसके अनुयायी सम्राट को सजदा करेंगे।

सूर्य तथा अग्नि की पूजा करेंगे।

रविवार धर्म परिवर्तन का दिन होगा।

धर्म के समर्थक बहेलियों, मछुआरों तथा कसाईयों के साथ भोजन नहीं करेंगे।

दीन-ए-इलाही के सदस्य आपस में मिलने पर “अल्ला हो अकबर” कहकर प्रणाम करते थे और “जल्ला जलाल जलाला हूं‌‌ कहकर उस प्रमाण का उत्तर देते थे। अकबर का अर्थ होता है. ‘महान’। अत: अल्ला हो अकबर का अर्थ हुआ ईश्वर महान है। जल्ला जलाल हू अर्थ होता है बड़ा है या उसका बड़प्पन।

किसी मरने वाले के सम्मान में दावत देने की प्रचलित प्रथा के प्रतिकूल दीन-ए-इलाही के सदस्यों का अपने जीवन में ही दावत देना अनिवार्य होता था।

अपने जन्म दिन के अवसर पर भी प्रत्येक सदस्य को दावत देनी पड़ती थी।

दीन-ए-इलाही के सदस्यों को माँस भक्षण की आज्ञा नहीं थी।

वृद्ध स्त्रियों तथा कम उम्र ही कन्याओं के साथ ये लोग शादी नहीं कर सकते थे।

दीन-ए-इलाही के सदस्यों से यह आशा की जाती थी कि बादशाह की सेवा के लिए धन-सम्पत्ति, मान-सम्मान तथा धर्म का बलिदान करने के लिए सदैव तैयार हों। din-e-ilahi-hindi-notes-akbar

दीन-ए-इलाही की असफलता के कारण –

अकबर की मृत्यु से दीन-ए-इलाही को आघात लगा और वह समाप्त हो गया।

कट्टर मुसलमान इसके विरोधी थे।

भारत जैसे देश में नये धर्म की स्थापना बहुत कठिन थी।

सम्राट में धर्म प्रचार की प्रतिभा न थी।

अबुल फजल की मृत्यु से धर्म को आघात लगा। din-e-ilahi-hindi-notes-akbar

यह तो थी अकबर की धार्मिक नीति 1582 ई. के बाद का काल (दीन-ए इलाही धर्म) की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको अकबर की धार्मिक नीति के परिणाम के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

Leave a Reply

error: Content is protected !!
Don`t copy text!