ब्रिटिश शासनकाल में ग्रामीण ऋणग्रस्तता Notes

Hello दोस्तों, एक बार फिर से स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .Com वेबसाइट पर पिछली पोस्ट में हमने आपको ब्रिटिश शासनकाल में कृषि का व्यवसायीकरण के बारे में बताया था, आज की पोस्ट में हम आपको ब्रिटिश शासनकाल में ग्रामीण ऋणग्रस्तता के बारे में बताएंगे, तो चलिए शुरू करते हैं आज की पोस्ट

ग्रामीण ऋणग्रस्तता (Rural Indebtendness)


जैसा कि हम पहले लिख चुके हैं कि छोटे किसानों को खेती में लगाने के लिए महाजनों या जमींदारों से ऋण लेना पड़ता था। इसके अतिरिक्त, भू-राजस्व की दर बहुत ऊँची होने के कारण फसल से उसका पूरा भुगतान नहीं हो पाता था। इस कारण से भी किसानों को ऋण लेना पड़ता था। तीसरें, किसान महामारी तथा अकाल के समय में ऋण लेकर काम चलाता था, इस स्तिथि में जिनकों ऋण नहीं मिल पाता था, उनके लिए भूखों मरने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं था। चौथे, सरकार ने कृषि पैदावार बढ़ाने का प्रयत्न नहीं किया। किसान इतना पैदा नहीं कर पाता था कि राजस्व देकर अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सके। इसके लिए भी उसको ऋण लेना पड़ता था।

कृषि के व्यवसायीकरण के विस्तार ने भारतीय किसान को कीमतों की घटा-बढ़ी के अधीन बना दिया था। बिचौलियों के कारण बढ़ी हुई कीमतों पर किसानों को लाभ नहीं मिल पाता था और दूसरी ओर कीमतों के घटने का उन पर बहुत बुरा असर पड़ता था। 1920 ई. में मन्दी के दौरान ग्रामीण ऋणग्रस्तता की समस्या अधिक विकराल रूप से सामने आयी। इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर जमीन का हस्तान्तरण किया गया और गिरवी रखी गयी। किसानों ने ऋण के बोझ से मुक्ति पाने के लिए जमीनों को ऋणग्रस्तता को हस्तान्तरित किया तथा ऋण लेने के लिए जमीन को गिरवी भी रखा। इस समस्या का समाधान करने के लिए सरकार ने वायदे भी किये, किन्तु किया कुछ नहीं। कोई भी राज्य कर्ज की अदायगी स्थगित कराने का साहसपूर्ण कदम उठाने के लिए तैयार नहीं था। विभिन्न क्षेत्रों में कुल ग्रामीण ऋण राशि निम्न प्रकार थी। gramin ringrastata

प्रान्तकुल ग्रामीण ऋण राशि (करोड़ रुपयों में)
बिहार-उड़ीसा155
मद्रास150
बम्बई80
बंगाल100
बर्मा50-60
पंजाब135
मध्य प्रान्त36
संयुक्त प्रान्त124
असम22
केन्द्रीय क्षेत्र18
कुर्ग35-55
कुल राशि876.45 करोड़ रुपये

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि ग्रामीण ऋणग्रस्तता की स्थिति चिन्ताजनक थी। यह समस्या कृषि सम्बन्धों में कोई परिवर्तन न किये जाने से और तीव्र हो गयी थी। सरकार ने जो भी कदम उठाये उनके द्वारा इस समस्या का समाधान नहीं किया जा सका। भारत का विशाल ग्रामीण जनसमूह खासतौर से गरीब किसान, जमीदार, व्यापारी, साहूकार के मिले-जुले उत्पीड़न के बोझ से नीचे दब गया और अर्द्धदासता की स्थिति में पहुंच गया। इस दौरान अधिक से अधिक जमीन किसानों के हाथ से जमींदार के हाथ में चली गयी और किसानों की बड़ी संख्या खेतिहर मजदूरों की कतार में सम्मिलित हो गयी। gramin ringrastata

यह तो थी ब्रिटिश शासनकाल में ग्रामीण ऋणग्रस्तता की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको ब्रिटिश शासनकाल में भारत से धन का निष्कासन के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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