गुप्तकाल : गुप्तकालीन राजनीतिक व्यवस्था Notes

Hello, दोस्तों स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .com पर पिछली पोस्ट में हमने आपको गुप्त काल के प्रारंभिक जानकारी दी थी जिसमें हमने आपको चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य संपूर्ण जानकारी के बारे में बताया था आज की पोस्ट में हम आपको गुप्तकालीन राजनीतिक व्यवस्था के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे तो चलिए शुरू करते हैं

गुप्तकालीन राजनीतिक व्यवस्था Gupt kaal kee prashaasan vyavastha administration in the gupta period Notes

गुप्तकालीन राजनीतिक व्यवस्था की जानकारी कुछ साहित्यक एवं पुरातात्विक स्रोतों से पता चलती है। साहित्यक स्रोतों में कामंदक  की नीतिसार, कालिदास की विभिन्न रचनाएं, विशाखदत्त की मुद्राराक्षस,फाह्मान का यात्रा विवरण आदि प्रमुख है, जबकि पुरातात्विक स्रोतों में विभिन्न गुप्त शासकों एवं व्यापारियों द्वारा जारी किए गए सिक्के एवं मुहरें प्रमुख है।   

•  स्वरूप

गुप्तकालीन राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप राजतंत्रात्मक था। गुप्त प्रशासन का केंद्र बिंदु राजा था। समस्त प्रकार की कार्यपालिका, विधायिका व न्यायपालिका शक्तियां राजा में ही  निहित थी।  राजा  का पद प्रायः  वंशानुगत होता था। इस काल में राजा के पद का  निरपेक्ष  दैवीकरण हो गया। उदाहरणार्थ – चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के देव गुप्त की उपाधि धारण की थी। वस्तुतः गुप्त काल में सामंतवाद के उद्भव के कारण विकेंद्रीकरण को प्रोत्साहन मिला। यही कारण है कि प्रधान राजा अपने अधीनस्थ सामंतों को निमंत्रण करने हेतु भारी भरकम  उपाधियां धारण करते थे, जैसे – महाराजाधिराज, परमभट्टारक, परमेश्वर देवगुप्त आदि।     

गुप्त काल में राजा की सहायता के लिए मंत्रिपरिषद होती थी, जिसके सदस्यों को अमात्य  कहा जाता था। मंत्रियों का पद प्रायः अनुवांशिक होता था। यहां तक कि एक ही मंत्री के पास कई विभाग भी होते थे।  उदाहरणार्थ – समुद्रगुप्त के समय हरिषेण- कुमारामात्य, संधिविग्राहक एवं महादंडनायक आदि पदों पर आसीन था। यह तथ्य भी राजा की कमजोर होती स्थिति एवं विकेंद्रीकृत राजनीतिक व्यवस्था का समर्थन करता है। Gupt kaal kee prashaasan vyavastha administration in the gupta period Notes     

गुप्तकालीन प्रशासनिक व्यवस्था को निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है –

•  केंद्रीय प्रशासन     

केंद्रीय प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी राजा होता था। राजा की सहायता के लिए अन्य महत्वपूर्ण अधिकारी भी होते थे और अधिकारियों को नगद वेतन दिया जाता था, जिनमें प्रमुख थे –

  1. प्रतिहार – अंतपुर का रक्षक
  2. महाप्रतिहार – राजमहल का प्रधान सुरक्षा अधिकारी
  3. महाबला अधिकृत – सेना का सर्वोच्च अधिकारी
  4. अमात्य  – नौकरशाह
  5. कुमार अमात्य :- उच्च पदाधिकारियों का विशिष्ट वर्ग
  6. महा सेनापति अथवा महाबलादिकृत :– सेना का सर्वोच्च अधिकारी
  7. महासंधिविग्रहिक :- शांति और वैदेशिक नीति का
  8. महादंडनायक :- युद्ध एवं न्याय का मंत्री
  9. ध्रुवाधिकरण :– भूमि कर वसूलने वाला प्रमुख अधिकारी
  10. महाक्षपटलिक :– राजा के दस्तावेजों और राजाज्ञा को लिपिबद्ध करने वाला
  11. महामंडलाधिकृत :– राजकीय कोष का प्रमुख अधिकारी
  12. दंडपाशिक :- पुलिस विभाग का प्रधान अधिकारी
  13. विनयस्थितिस्थापक :- धार्मिक मामलों का अधिकारी
  14. पुस्तकाल – भूमि का लेखा जोखा रखने वाला अधिकारी
  15. शौल्किक – सीमा शुल्क विभाग का प्रधान
  16. गोल्मिक – वन अधिकारी
  17. पुरपाल – नगर का मुख्य अधिकारी
  18. अग्रहारिक – दान विभाग का प्रधान
  19. रणभंडागारिक – सेना के सम्मान की व्यवस्था कर रखने वाला पदाधिकारी
  20. करणिक – लिपिक

यह समस्त अधिकारी राजा के प्रसाद्पर्यंत होते थे। अतः केंद्रीय प्रशासन में केंद्रीय की व्यवस्था बनी हुई थी।

 • प्रांतीय प्रशासन     

केंद्र का विभाजन प्रांतों में होता था, जिसे देश/ अवनि/ भुक्ति कहा जाता था। प्रांत के प्रमुख को उपरिक कहते थे। इस पद पर प्रायः राजकुल से संबंधित व्यक्ति की ही नियुक्ति की जाती थी। गुप्त काल में मौर्य काल के विपरीत प्रांतीय परिषद के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं। वस्तुतः यह तथ्य इस बात की ओर संकेत करता है कि राजा का प्रांतपति पर नियंत्रण कमजोर होता जा रहा था। 

•  जिला प्रशासन       

प्रांत का विभाजन जिलों में होता था, जिसे विषय कहा जाता था। जिला के प्रमुख को विषयपति कहते थे। गुप्त काल में जिला स्तर में विषयपति की सहायता के लिए एक विषयपरिषद का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसके प्रमुख सदस्य थे – नगर श्रेष्ठि (नगर के श्रेणियों का प्रधान), सार्थवाह व्यापारियों का प्रधान), प्रथम कूलिंग (प्रधान शिल्पी) तथा प्रथम कायस्थ (प्रधान लेखक)।   

•  ग्रामीण प्रशासन     

जिले का विभाजन विथि (तहसील) में,  विथि का विभाजन पेठ (कुछ ग्रामों का समूह) में, जबकि पेठ को विभाजन ग्राम में होता था। इसी प्रकार प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम होती थी। ग्रामीण स्तर पर स्थानीय स्वायत्ता एवं वंशानुगत शासन पद्धति प्रचलित थी। ग्राम का प्रशासन ग्राम सभा द्वारा चलाया जाता था, जिसके प्रमुख अधिकारी थे – महत्तर,कुटुमिबन, अष्टकुलाधिकारी  एवं ग्रामीक।  

•  नगर प्रशासन   

गुप्त काल में प्रमुख नगरों, जैसे –  पाटलिपुत्र, अवंती, वैशाली आदि का सर्वोच्च अधिकारी पुरपाल होता था। इस काल में हमें नगरीय प्रशासन में भी वंशानुगत पद्धति के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। उदाहरणार्थ –  जूनागढ़ अभिलेख से यह ज्ञात होता है कि स्कंदगुप्त के समय गिरनार नगर का प्रमुख अधिकारी चक्रपालित, जिसने सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार करवाया था, वह जूनागढ़ के प्रांतपति  पर्णदत्त  का पुत्र था ।

• श्रेणी प्रशासन

गुप्त काल में विभिन्न उद्योग – धंधों से संबंधित व्यवसायियों के पृथक – पृषक संगठन होते थे, जिन्हें श्रेणी कहां जाता था। इन श्रेणियों को अपने सदस्यों पर प्रशासन हेतु स्वायत्ता प्राप्त होती थी। यह श्रेणियां अपने सदस्यों के झगड़ों का स्वयं निपटारा करती थी, उनके लिए शिक्षा का प्रबंध करती थी आदि।  

• राजस्व प्रशासन   

गुप्त काल में राजस्व प्रशासन का केंद्रीय अधिकारी ध्रुवाधिकरण होता था, जो भूमि कर संग्रह से संबंधित अधिकारी था। राजस्व प्रशासन में ही महाक्षपटलिक नामक अधिकारी भूमि आलेखों को सुरक्षित रखता था, जबकि न्यायाधिकरण नामक अधिकारी भूमि संबंधी विवादों का निपटारा करता था। 

•  न्याय प्रशासन   

गुप्तकालीन नारद स्मृति व बृहस्पति स्मृति से न्याय प्रशासन की जानकारी प्राप्त होती है। गुप्त काल में पहली बार दीवानी एवं फौजदारी कानून भली-भांति परिभाषित एवं पृथककृत हुए। साम्राज्य का सर्वोच्च न्यायिक अधिकारी राजा होता था, जबकि अन्य प्रमुख न्यायिक अधिकारियों को महा दंडनायक कहा जाता था। इस काल में कठोर दंड का प्रावधान नहीं था। चीनी यात्री फाह्यान के अनुसार मृत्युदंड नहीं दिया जाता था, किंतु बार-बार एक ही अपराध करने पर अपराधी का दाहिना हाथ काट दिया जाता था। दंडविधान का कमजोर होना भी राजा की कमजोर होती स्थिति की ओर संकेत करता है। Gupt kaal kee prashaasan vyavastha administration in the gupta period Notes   

•  सैन्य प्रशासन     

गुप्त काल में सेना  के सर्वोच्च अधिकारी को महाबलाधिकृत कहां जाता था। इस काल में सेना के मुख्यतः 3 अंग थे – पैदल सेना,अश्वारोही सेना एवं गज सेना। सैन्य सामग्री की व्यवस्था एक पृथक अधिकारी (रणभंडागरिक) के अधीन होती थी।   

•  सकारात्मक पक्ष 

गुप्तकालीन प्रशासन के कुछ सकारात्मक पक्ष थे, जिन्हें निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत देखा जा सकता है –

1) सर्वप्रथम दीवानी एवं फौजदारी न्याय को परिभाषित एवं पृथक्कृत किया गया था।

2)  सर्वप्रथम संपत्ति संबंधी अधिकारों की विस्तृत व्याख्या की गई।

3) सर्वप्रथम सैन्य शक्ति के अंतर्गत अश्वारोही सेना का महत्व स्थापित हुआ।

4) श्रेणी प्रशासन का स्वायत्ता दी गई, जिससे उद्योग – धंधों के विकास को प्रोत्साहन मिला। 

•  नकारात्मक पक्ष     

गुप्तकालीन प्रशासन के कुछ नकारात्मक पक्ष थे, जिन्हें निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत देखा जा सकता है –

1) प्रशासनिक अधिकारियों का वंशानुगत होना।

2) प्रशासनिक अधिकारियों को नगद वेतन के बदले भूमिदान।

3) प्रशासन का सामन्तीकरण।

4) स्थायी सेना का विकास नहीं। 

•   निष्कर्ष /महत्व   

उपयुक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि गुप्तकालीन प्रशासन में उच्च स्तर पर केंद्रीकरण, किंतु निम्न स्तर पर विकेंद्रीकरण के तत्व प्रभावी थे। इस प्रकार के प्रशासन की कुछ ऐसी विशेषताएं थी, जो परवर्ती काल के प्रशासन को प्रभावित करती रही। उदाहरणार्थ – गुप्त काल में जिस सामंतवाद का उद्भव हुआ था, उसमें निरंतर विकास होता गया। आगे गुप्तोत्तर काल में सामंतवाद के कारण ही एक केंद्रीय राज्य की बजाए छोटे छोटे राज्यों का उद्भव हुआ। उसी प्रकार इस काल में न्यायिक प्रशासन में जिन विद्वानों का निर्माण हुआ था, उनमें से कुछ विधि-विधान आधुनिक न्यायिक व्यवस्था में भी देखे जा सकते हैं। Gupt kaal kee prashaasan vyavastha administration in the gupta period Notes

इस पोस्ट में हमने आपको गुप्तकालीन राजनीतिक व्यवस्था के बारे में विस्तार से बताया, अगली पोस्ट में हम आपको गुप्त काल के सामाजिक जीवन के बारे में विस्तार से बताएंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .com के साथ 🙂

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