गुप्त काल : चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य संपूर्ण जानकारी

Hello, दोस्तों स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .com पर पिछली पोस्ट में हमने आपको गुप्त काल के प्रारंभिक जानकारी दी थी जिसमें हमने आपको समुद्रगुप्त के बारे में बताया था आज की पोस्ट में हम आपको चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य (375 ई. -415 ई.) के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे तो चलिए शुरू करते हैं

चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य (375 ई. -415 ई.) Gupta period chandragupta ii vikramaditya Notes

अन्य नाम – देवगुप्त/ देवराज/ देवश्री, विक्रमादित्य, शकारि। 

चंद्रगुप्त द्वितीय की माता का नाम दत्तदेवी था। इसका काल गुप्त काल का स्वर्ण युग माना जाता है। विशाखदत्त कृत देवी चन्द्रगुप्तम् नामक नाटक में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य से पूर्व रामगुप्त का गुप्त शासक के रूप में वर्णन किया गया है। इसके अनुसार शौक़ के आक्रमण के कारण राम गुप्त ने अपनी पत्नी ध्रुवदेवी को शकों को सौंपकर शांति स्थापित करने का विचार किया। इससे क्रूद्ध होकर  रामगुप्त के छोटे भाई चंद्रगुप्त द्वितीय ने ध्रुवदेवी का वेश बनाकर शकराज की हत्या कर दी। इसके उपरांत उसने राम गुप्त की भी हत्या कर ध्रुवदेवी से विवाह कर लिया ।

• चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की उपलब्धियां 

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की उपलब्धियों को निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है – 

• वैवाहिक संबंधों की नीति   

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने वैवाहिक संबंधों और विजयों के द्वारा अपने साम्राज्य की सीमा बढ़ाई। उसने निम्नलिखित राजवंशों में वैवाहिक संबंध स्थापित किए –

1)  नागवंश –  यह राजवंश मथुरा, अहिच्छत्र, पद्मावती आदि क्षेत्रों में स्थित था। विक्रमादित्य ने नाग राजकुमारी कुबेरनागा से विवाह किया, जिससे एक कन्या प्रभावती गुप्त उत्पन्न हुई।

2) वाकाटक वंश – वाकाटक लोग आधुनिक महाराष्ट्र प्रांत में शासन करते थे। वाकाटकों का सहयोग प्राप्त करने के लिए चंद्रगुप्त ने अपनी पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह वाकाटक नरेश रूद्रसेन द्वितीय के साथ कर दिया। वाकाटकों तथा गुप्तों की सम्मिलित शक्ति ने शकों का उन्मूलन कर डाला।

3) कदंब राजवंश – कदंब राजवंश के लोग कुंतल (कर्नाटक) में शासक करते थे। कदंब वंश के शासक का काकुत्सवर्मन ने अपनी एक पुत्री का विवाह चंद्रगुप्त द्वितीय के पुत्र कुमारगुप्त प्रथम से कर दिया। 

•  सैन्य विजय     

मेहरौली स्थित लौह स्तंभ में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के द्वारा सिंधु नदी के उस पार बाहलीकों के विरुद्ध और पूर्व में बंग शासकों के  विरुद्ध विजय का वर्णन किया गया है।  बंग की पहचान बंगाल तथा वाहलीकों की पहचान बल्ख से की जाती है। इसके उपरांत चंद्रगुप्त द्वितीय ने  उज्जयिनी के अंतिम शक शासक रूद्रसिंह तृतीय को 409 ई.  में पराजित किया। इस विजय के उपलक्ष में उसने मालवा क्षेत्र में व्याघ्र शैली के चांदी के सिक्के चलाए। यह सिक्के उसकी शकों पर विजय के सूचक हैं। 

•  धार्मिक समन्वय की नीति     

यद्यपि चंद्रगुप्त विक्रमादित्य वैष्णव धर्म का अनुयायी  था, उसने परम भागवत की उपाधि की थी, किंतु अन्य धर्मों के प्रति भी उसने सहिष्णुता की नीति अपनाई। उदयगिरि लेख से ज्ञात होता है कि उसका युद्ध सचिव वीर सेन शैव था तथा सांची अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसका एक अन्य महत्वपूर्ण अधिकारी आम्रकार्द्दव बौद्ध था। चीनी बौद्ध यात्री फाह्मान द्वितीय के रागय ही भारत की यात्रा की थी। 

• सांस्कृतिक उपलब्धि  Gupta period chandragupta ii vikramaditya Notes    

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के उज्जैन दरबार मे 9 विद्वानों की एक मंडली निवास करती थी, जिसे नवरत्न कहा गया। इसमें धन्वंतरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेताल भट्ट, घटकर्पर, कालिदास, वराहमिहिर और वररुचि  जैसे विद्वान थे।       

• कला एवं स्थापत्य

कला एवं स्थापत्य के विकास में भी चंद्रगुप्त द्वितीय की पर्याप्त रूचि थी। मेहरोली का  लौह स्तंभ लेख इसकी पुष्टि करता है। साथ ही चंद्रगुप्त द्वितीय ने मुद्रा के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। चंद्रगुप्त द्वितीय ने अत्यधिक संख्या में स्वर्ण, रजत एवं ताम्र मुद्राएं जारी की।         

हालांकि चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की उपलब्धियां की कुछ सीमाएं हैं, जैसे – प्रथम, उसने बड़े भाई राम गुप्त की हत्या करके राजगद्दी प्राप्त की थी। द्वितीय, चंद्रगुप्त द्वितीय के महरौली लोह स्तंभ से प्राप्त सैनिक विजयों के आरंभ में इतिहासकार एकमत नहीं है।         

इन सीमाओं के बावजूद यह कहा जा सकता है कि चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का उपलब्धियां उसे एक महान गुप्त शासक साबित करती है। वस्तुतः अगर गुप्त काल के लिए स्वर्ण युग जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाए, तो निश्चित रूप से यह काल चंद्रगुप्त द्वितीय का ही होगा।   

• कुमारगुप्त प्रथम (415 ई. -455 ई.)        

इसे महेंद्रादित्य भी कहा जाता था। कुमारगुप्त के समय में गुप्तकालीन सर्वाधिक उल्लेख प्राप्त हुए हैं। जैसे – ग्वालियर का तुमैन अभिलेख, जिसमें कुमारगुप्त को शरदकालीन सूर्य की भांति बताया गया है। इसी के समय का गुप्तकालीन मुद्राओं का सबसे बड़ा ढेर बयान मुद्राभांड (राजस्थान) प्राप्त हुआ है। इसके अंतिम दिनों में पुष्यमित्र नामक जातियों ने आक्रमण किया, जिसको स्कंदगुप्त ने पराजित किया। कुमारगुप्त ने नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। इसने अश्वमेध यज्ञ किया था। कुमारगुप्त ने मयूर आकृति के सिक्के चलाए थे। 

• स्कंदगुप्त (455 ई. – 467 ई.)   

स्कंदगुप्त की उपाधि क्रमादित्य और शक्रादित्य थी। इसी के समय मध्य एशिया के  हूणों  ने आक्रमण किया, जिन्हें स्कंदगुप्त ने पराजित किया। हूण आक्रमण की जानकारी जूनागढ़ अभिलेख (गुजरात) तथा भितरी स्तंभ लेख (गाजीपुर, उत्तर प्रदेश) से मिलती है। स्कंदगुप्त ने 466 ई.  में चीन के सांग सम्राट के दरबार में राजदूत भेजा। स्कंदगुप्त ने वृषभ आकृति के सिक्के चलाए थे।         

स्कंदगुप्त के अंतिम समय में गुप्त वंश का पतन प्रारंभ हो चुका था। प्रमुख परवर्ती गुप्त शासक क्रमानुसार निम्नलिखित थे – पुरुगुप्त, बुधगुप्त, नरसिंहगुप्त “बालादित्य”, भानुगुप्त, वैन्यगुप्त, कुमारगुप्त द्वितीय एवं विष्णुगुप्त (अंतिम) शासक हुए। Gupta period chandragupta ii vikramaditya Notes

इस पोस्ट में हमने आपको चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य (375 ई. -415 ई.) के बारे में विस्तार से बताया साथ ही साथ गुप्त काल के अन्य प्रमुख राजाओं के बारे में भी आपको जानकारी दी, अगली पोस्ट में हम आपको गुप्तकालीन राजनीतिक व्यवस्था के बारे में विस्तार से बताएंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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