गुप्त काल : समुद्रगुप्त के बारे में संपूर्ण नोट्स

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .Com पर आज हम आपको (गुप्त काल (275 550 ई.) Gupta period (275 – 550 AD) के बारे में बताएंगे इससे पहले हमने आपको मौर्योत्तर काल के संपूर्ण नोट्स की जानकारी आपके सामने प्रस्तुत किया था

(गुप्त काल (275550 ई.) 

Gupta period (275 – 550 AD)

श्रीगुप्त – 240-280

घटोट्कच गुप्त – 280-319

चन्द्रगुप्त प्रथम – 319-350

समुद्रगुप्त – 350-375

रामगुप्त – 375

चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य – 375-415

कुमारगु्प्त प्रथम् – 415-455

स्कन्दगुप्त – 455-467

नरसिंहगुप्त बालादित्य – 467-473

कुमारगुप्त द्वितीय – 473-477

नरसिंहगुप्त ‘बालादित्य’ – 495-530


कुषाणों के पतन के बाद उत्तर भारत में अनेक छोटे-छोटे राज्यों का उदय हुआ, जिनमें से कुछ गणतंत्र एवं कुछ राजतंत्र थे। अंततः गुप्तों ने, जो प्रारंभ में कुषाणों के सामंत थे, उत्तर भारत में एक वृहद् साम्राज्य का निर्माण किया। 

गुप्त शासक (275 ई. -550ई.) Gupta period (275 – 550 AD)  

गुप्त वंश का संस्थापक या आदिपुरुष श्रीगुप्त को माना जाता है।  श्रीगुप्त के उत्तराधिकारी क्रमशः घटोत्कच एवं चंद्रगुप्त प्रथम हुए। चंद्रगुप्त प्रथम को गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है। वह प्रथम गुप्त शासक था, जिसने महाराधीराज की उपाधि धारण की थी। उसके राज्यरोहण की तिथि 319 ई. को गुप्त संवत् आरंभ माना जाता है। चंद्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवी राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया तथा अपने साम्राज्य का विस्तार आधुनिक बिहार व उत्तर प्रदेश टाइप करने में सफलता प्राप्त की। उसके साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी। चंद्रगुप्त प्रथम ने सर्वप्रथम सोने के सिक्के जारी किए, जिन्हें राजा – रानी प्रकार या विवाह प्रकार के सिक्के कहा जाता है। Gupta period Samudragupta: History, Empire and Accession notes

गुप्तों की उत्पत्ति संबंधी विचार

जातिइतिहासकार
1-  क्षत्रियसुधारक चट्टोपाध्याय, आर.सी.मजूमदार, गौरी शंकर हीरा चन्द्र ओझा
2-  ब्राह्मणडॉ राय चौधरी, डॉ रामगोपाल गोयल आदि
3- शूद्र तथा निम्न जाति से उत्पत्तिकाशी प्रसाद जायसवाल
4- वैश्यएलन, एस.के. आयंगर, अनन्द सदाशिव अल्टेकर, रोमिला थापर, रामशरण शर्मा

• समुद्रगुप्त (335 ई. – 375 ई.)

चंद्रगुप्त प्रथम के उपरांत समुद्र गुप्त शासक बना। समुद्रगुप्त के कुछ सिक्कों पर काच नाम उत्कीर्ण है, जिन पर सर्वराजोच्छेत्ता की उपाधि भी मिलती है। कुछ विद्वान कांच को समुद्रगुप्त का भाई, जबकि कुछ ऐसे समुद्रगुप्त का ही दूसरा नाम मानते हैं। हालांकि इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि समुद्रगुप्त का अपने भाइयों से उत्तराधिकारी के लिए संघर्ष हुआ हो। 

• समुद्रगुप्त की उपलब्धियों का मूल्यांकन 

समुद्रगुप्त की उपलब्धियों की जानकारी मुख्यतः हरिषेण की प्रयाग प्रशस्ति तथा स्वयं समुद्रगुप्त द्वारा जारी किए सिक्कों से मिलती है। समुद्रगुप्त की उपलब्धियों को निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत देखा जा सकता है –   

•  सैन्य उपलब्धि   

चंद्रगुप्त प्रथम के राज्य काल तक गुप्तों की सत्ता बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के छोटे से भाग तक ही सीमित थी। किंतु समुद्रगुप्त जैसे महत्वाकांक्षी सम्राट ने दिग्विजय की नीति अपनाई तथा एक वृहद गुप्त साम्राज्य की स्थापना की। समुद्रगुप्त सैन्य अभियानों को 5 चरणों में विभाजित करके देखा जा सकता है –

1) आर्यावर्त की विजय – प्रथम चरण में समुद्रगुप्त ने आर्यावर्त के कुल 12 राज्यों को विजित किया तथा इन राज्यों के विरुद्ध राज्य प्रसभोदधरण की नीति अपनाई, अर्थात – इन राज्यों का बालतू उन्मूलन कर उन्हें अपने साम्राज्य में मिला लिया। Gupta period Samudragupta: History, Empire and Accession notes

2) दक्षिणापथ की विजय – द्वितीय चरण में समुद्रगुप्त ने दक्षिणा पथ के 12 राज्यों को विजित किया तथा इन राज्यों के विरुद्ध ग्रहणमोक्षानुग्रह की नीति अपनाई, अर्थात विजय के बाद राज्य वापस कर दिए गए। समुद्रगुप्त द्वारा दक्षिण विजय के सन्दर्भ में अपनाई गई गई ग्रहणमोक्षानुग्रह की नीति उसकी व्यवहारिक सोच को इंगित करती है। वस्तुतः बिना विकसित यातायात एवं संचार के साधनों के पाटलिपुत्र से दक्षिण के राज्यों पर नियंत्रण असंभव था। इसी कारण समुद्रगुप्त ने इन राज्यों को अपने साम्राज्य में शामिल नहीं किया। आगे अलाउद्दीन खिलजी ने भी दक्षिण के राज्यों के संदर्भ में इसी नीति का अनुसरण किया।

3) आटविक राज्यों की विजय – तृतीय चरण में समुद्रगुप्त ने मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश में  स्थित आटविक  राज्यों को विजित किया तथा इन राज्यों के विरोध परिचारिकीकृत  की नीति अपनाई, अर्थात – इन राज्यों को अपना सेवक बना लिया।

4)  समावर्ती राज्यों की विजय – चतुर्थ चरण में समुद्रगुप्त ने उत्तर व पूर्वी सीमा पर स्थित पांच राज्यों को विजित किया तथा इन राज्यों के  विरुद्ध सर्वकरदानाज्ञाकरणप्रणामागमन …. की नीति अपनाई, अर्थात – यह राज्य समुद्रगुप्त को सभी प्रकार के कर देते थे, उसकी आज्ञाओं का पालन करते थे तथा उसे प्रणाम करने के लिए राजधानी में उपस्थित होते थे। 5 समावती राज्य थे –  समतट  (बांग्लादेश), डवाक (असम), कामरूप( असम), कर्तपुर  (हरियाणा) तथा नेपाल।       

आटविक एवं समवर्ती राज्यों के प्रति अपनाई गई नीति भी समुद्रगुप्त की योग्यता एवं व्यवहारिक सोच को इंगित करती है। चुका ये अविकसित क्षेत्र थे तथा यहां की जनता की सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताएं अलग थी। अतः इन राज्यों को गुप्त साम्राज्य में शामिल करने से राज्य के समक्ष नवीन चुनौतियां उत्पन्न हो सकती थी, जबकि राज्य को इनसे कोई विशेष आर्थिक लाभ नहीं था। यही कारण है कि समुद्रगुप्त ने इन राज्यों को अपने साम्राज्य में शामिल न करते हुए इन्हें अपने आज्ञा का पालन करने हेतु ही बाध्य किया। Gupta period Samudragupta: History, Empire and Accession notes

5) विदेशी राज्यों की विजय – पंचम चरण में समुद्रगुप्त ने 5 विदेशी राज्यों –  देवपुत्र (कुषाण), शक, मुरूंड, सिंहल ( श्रीलंका) एवं सर्वद्वीप ( दक्षिण- पूर्व एशिया के द्वीप) को विजित  कर इन के विरुद्ध आत्मनिवेदन कन्योपायान गरुत्मदण्डस्व विषय भुक्ति शासन याचना  की नीति अपनाई, अर्थात – यह राज्य स्वयं को सम्राट की सेवा में उपस्थित करते थे, आपने कन्याओं का दान देते थे तथा अपने राज्यों में शासन करने हेतु गरुण मुद्रा से अंकित राजाज्ञा के लिए प्रार्थना करते थे।

इस प्रकार समुद्रगुप्त ने उत्तर भारत में एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। साथ ही श्रीलंका एवं दक्षिणी -पूर्वी एशिया के द्वीपों पर भी समुद्रगुप्त का प्रभाव स्थापित था। समुद्रगुप्त को कभी भी पराजय का सामना नहीं करना पड़ा, इसीलिए विंसेंट स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा है। किंतु समुद्रगुप्त की साम्राज्यवादी नीति नेपोलियन की साम्राज्यवादी नीति रो धी श्रेष्ठ थी। जहां नेपोलियन की साम्राज्यवादी नीति से उसका पतन हो गया, वही समुद्रगुप्त की साम्राज्यवादी नीति से उसके यस एवं कीर्ति में वृद्धि हुई।

•  धार्मिक उपलब्धि     

यद्यपि समुद्रगुप्त ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था, किंतु उसने अन्य धर्मों का विकास को भी प्रोत्साहित किया। उदाहरणार्थ – समुद्रगुप्त ने श्रीलंका के शासक मेघवर्म को गया में बौद्ध विहार बनाने की अनुमति दी थी।

•  सांस्कृतिक उपलब्धि     

समुद्रगुप्त ने अपने राज दरबार में विभिन्न विद्वानों को संरक्षण दिया। उदाहरणार्थ – प्रयाग प्रशस्ति का लेख हरिषेण एवं प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुबंधु। समुद्रगुप्त स्वयं भी कुशल संगीतकार था। उसके कुछ ऐसे सिक्के प्राप्त हुए हैं, जिन पर उसे वीणा बजाते दिखाया गया है यही कारण है कि समुद्रगुप्त को कविराज की उपाधि भी प्राप्त थी। समुद्रगुप्त ने मुद्रा के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उस के शासनकाल में अनेक प्रकार की मुद्राएं जारी की गई। उदाहरणार्थ –  अश्वमेघ प्रकार के सिक्के।       

हालांकि समुद्रगुप्त की उपलब्धियों की कुछ सीमाएं भी है, जैसे – प्रथम संभवतः उसने बड़े भाई की हत्या करके राजगद्दी प्राप्त की थी। द्वितीय, दक्षिण भारत के संदर्भ में अपनाई गई ग्रहणमोक्षनुग्रह की नीति आगे चलकर सामंतवाद के उदय का एक प्रमुख कारण रही। तृतीय, समुद्रगुप्त का शासन काल सांस्कृतिक दृष्टिकोण से उतना समृद्धिशाली नहीं था, जितना कि चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का। इन सीमाओं के बावजूद यह कहा जा सकता है कि यह कहा जा सकता है कि समुद्रगुप्त गुप्तकालीन शासकों में एक महान शासक था। उस की उपलब्धियां केवल सैनिक विजियों तक ही सीमित नहीं थी,  बल्कि धर्म, साहित्य एवं कला के क्षेत्र में भी उसका महत्वपूर्ण योगदान था। Gupta period Samudragupta: History, Empire and Accession notes

दोस्तों यह तो थी गुप्तकाल की प्रारंभिक जानकारी जिसमें हमने आपको समुद्रगुप्त के बारे में विस्तार से बताया अगली पोस्ट में हम आपको चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य (375 ई. -415 ई.) के बारे में बताएंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru के साथ 🙂

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