गुप्तकाल : गुप्तकालीन आर्थिक और धार्मिक जीवन Notes

Hello, दोस्तों स्वागत है आपका Upsc Ias Guru .com पर पिछली पोस्ट में हमने आपको गुप्त काल के प्रारंभिक जानकारी दी थी जिसमें हमने आपको गुप्तकालीन सामाजिक जीवन व्यवस्था की संपूर्ण जानकारी के बारे में बताया था आज की पोस्ट में हम आपको गुप्तकालीन आर्थिक और धार्मिक जीवन के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे तो चलिए शुरू करते हैं

गुप्तकाल : गुप्तकालीन आर्थिक और धार्मिक जीवन gupta period economic and religious notes gupton ka dhaarmik or arthik jeevan  

गुप्तकालीन आर्थिक जीवन   

आर्थिक दृष्टिकोण से गुप्त काल चहुमुखी समृद्धि का काल माना जाता है। हालांकि अंतिम चरण में अर्थव्यवस्था में गिरावट के साक्ष्य मिलते हैं, फिर भी प्रारंभिक चरण में कृषि, शिल्प – उद्योग, वाणिज्य – व्यापार, मुद्रा ,नगरीकरण आदि क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति हुई। 

•  कृषि   

गुप्त काल में कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई। कृषि अर्थव्यवस्था के विकास को प्रेरित करने वाले निम्नलिखित कारक थे –

1) भूमि अनुदान पद्धति के कारण कृषि योग्य भूमि का विस्तार हुआ।

2) गुप्त शासकों ने सिंचाई के साधनों का विकास किया। उदाहरणार्थ – स्कंदगुप्त के समय में सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार हुआ।

3) इस काल में नवीन सिंचाई तकनीक का भी विकास हुआ। ह्मेनसांग ने घटी यंत्र (रहट) तथा बाणभट्ट ने तुला यंत्र (रहट) के प्रयोग की चर्चा की है।     

इस काल में कृषकों से अनेक प्रकार के कर लिए जाते थे, जैसे – भाग (भूराजस्व), भोग (राजा को प्रतिदिन दी जाने वाली सामग्री), बलि (धार्मिक कर), शूल्क (चुंगीकर) आदि। इस प्रकार की विस्तृत कर प्रणाली कृषि अर्थव्यवस्था के विकास को प्रमाणित करती है। 

•  शिल्प – उद्योग

उद्योग गुप्त काल में शिल्प – उद्योगों का विकास हुआ। शिल्प – उद्योग के विकास में श्रेणी व्यवस्था का विशेष महत्व था। अलग-अलग उद्योग धंधों से जुड़ी अलग-अलग श्रेणियां व्यापारिक क्रियाकलापों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। राजा द्वारा भी उन्हें स्वायत्तता एवं सुरक्षा प्रदान की गई थी।     

शिल्प – उद्योग में सर्वाधिक महत्व वस्त्र उत्पादन का था। इस काल में अच्छे किस्म के सूती, रेशमी एवं ऊनी वस्त्रों का उत्पादन किया जाता था। अजंता से प्राप्त चित्रों में बेहतर किस्म के वस्त्रों का प्रदर्शन मिलता है। इस काल में विशेष प्रकार के आभूषणों का भी निर्माण किया जाता था। बृहत् संहिता में 22 प्रकार के आभूषणों का उल्लेख मिलता है।   

•  वाणिज्य – व्यापार     

गुप्त काल में वाणिज्य – व्यापार में भी अभूतपूर्व प्रगति हुई। इस काल में भारत का व्यापार रोम, अरब, मध्य एशिया, इथोपिया, चीन, दक्षिणी पूर्वी एशिया आदि देशों के साथ होता था। विदेशी व्यापार में निर्यात की प्रमुख मदें वस्त्र, हाथी दांत  का वस्तुएं, मसाले, सुगंधित द्रव्य आदि थी, जबकि चीन से रेशम, इथोपिया से हाथी दांत, अरब, ईरान व बैकिट्रया से घोड़ों का आयात किया जाता था।   

किंतु गुप्त काल के अंतिम चरण में वाणिज्य व्यापार में गिरावट आई। परिवर्ती गुप्त शासकों के सिक्कों में मिलावट के साक्ष्य मिलते हैं। उसी प्रकार फह्मान के अनुसार वाणिज्य – व्यापार में मुद्रा की जगह कौड़ियों का प्रयोग होता था। यह दोनों तथ्य वाणिज्य – व्यापार में आ रही गिरावट के प्रमाण हैं। वस्तुतः गुप्त काल के अंतिम चरण में सामंतवाद के उद्भव से आंतरिक व्यापार को एवं हूण आक्रमण तथा रोम के साथ व्यापार अवरुद्ध हो जाने से विदेशी व्यापार को धक्का लगा। gupta period economic and religious notes gupton ka dhaarmik or arthik jeevan  

•   यातायात एवं संचार   

वाणिज्य – व्यापार की समृद्धि से यातायात एवं संचार के साधनों का विशेष महत्व था। स्थालीय व्यापार में उत्तरापथ एवं दक्षिणापथ की, जबकि जलीय व्यापार में भड़ोंच एवं तम्रलिप्ती जैसे बंदरगाहों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।   

•   मुद्रा   

गुप्त शासकों ने स्वर्ण, चांदी एवं तांबे के सिक्के जारी किए। प्राचीन भारत में सर्वाधिक स्वर्ण सिक्के जारी करने का श्रेय गुप्त शासकों को प्राप्त है। सिक्कों का अत्यधिक संख्या में पाया जाना वाणिज्य – व्यापार में हुई समृद्धि को दर्शाता है, किंतु परवर्तीय काल की मुद्राओं में मिलावट के साक्ष्य मिलते हैं। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि गुप्त काल के अंतिम चरण में अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई।   

•  नगरीकरण   

गुप्त काल में कृषि, शिल्प – उद्योग, वाणिज्य – व्यापार मुद्रा आदि क्षेत्रों में हुई प्रगति ने नगरीकरण को भी प्रोत्साहित किया। इस काल में पाटलिपुत्र, उज्जैन, वैशाली आदि नगरों का विकास हुआ।

  इस प्रकार गुप्त काल के प्रारंभिक चरण में आर्थिक क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई, किंतु अंतिम चरण तक जाते-जाते हमें अर्थव्यवस्था में अवनति के साक्ष्य प्राप्त होने लगते हैं।


गुप्तकालीन धार्मिक जीवन       

गुप्त काल धार्मिक समन्वय का काल था। इस काल में एक ओर जहां पूर्व काल की कुछ धार्मिक मान्यताएं और अधिक विकसित हुई, वहीं दूसरी ओर कुछ नवीन धार्मिक परंपराएं भी स्थापित हुई। गुप्तकालीन धर्म से जुड़ी महत्वपूर्ण विशेषताओं को निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत देखा जा सकता है –

1)  इस काल में ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान हुआ, परिणाम स्वरूप यज्ञ एवं कर्मकांडो का महत्व पुनः स्थापित हो गया। उदाहरणार्थ – समुद्रगुप्त एवं कुमारगुप्त में अश्वमेघ यज्ञ करवाए। 

2) मौर्योत्तर काल में उदित हुई भक्ति एवं अवतारवाद की अवधारणा का विकास हुआ।

3) मौर्योत्तर काल से प्रारंभ हुई मूर्ति पूजा की पद्धति का विकास हुआ।

4) गुप्तकालीन धर्म में पुरुष देवता के साथ कुछ स्त्री देवियां भी जुड़ गई, जैसे – शिव के साथ उमा व पार्वती, विष्णु के साथ लक्ष्मी आदि।

5) इस काल में धार्मिक क्षेत्र में चिंतन एवं दर्शन का भी विकास हुआ । वस्तुतः इसी काल में भारत के प्रमुख षड्दर्शन का अंतिम रूप से संकलन हुआ। इन दर्शनों के नाम एवं प्रणेता थे – सांख्य (कपिल), योग (पतंजलि),  न्याय (गौतम), वैशेषिक (कणाद), मीमांसा (जैमिनी) एवं वेदांत (वादरायण)।

6)  इस काल में जैन एवं बौद्ध धर्म के समान वैष्णव एवं शैव धर्म के भी कई संप्रदायों का उद्भव हुआ। उदाहरणार्थ – वैष्णव धर्म का प्रमुख संप्रदाय पांचरात्र था, जबकि शैव धर्म के प्रमुख संप्रदाय पशुपात, कापालिक एवं कालामुख थे।       

गुप्त कालीन शासक यद्यपि वैष्णव धर्म के अनुयायी थे, किंतु वे अन्य धर्मों के प्रति भी  सहिष्णु थे। गुप्त शासकों  में वैष्णव धर्म से प्रभावित होकर परमभागवत की उपाधि धारण की एवं गरूण को अपना राजकीय चिन्ह बनाया। गुप्त शासकों ने शैव धर्म को भी संरक्षण दिया। कुमार गुप्त एवं स्कंदगुप्त के नाम शिव के पुत्र कार्तिकेय के नाम पर ही आधारित है। इस काल में शैव धर्म  में कुछ नवीन तत्व दिखाई देते हैं, जैसे – शिव की पूजा पार्वती के साथ अर्ध नारीश्वर के रूप में की जाने लगी तथा शिव की पूजा विष्णु के साथ हरिहर के रूप में की जाने लगी। गुप्त काल में सूर्य पूजा भी प्रचलित थी। समकालीन साहित्यक  एवं पुरातात्विक स्रोतों  से मंदसौर, इंदौर, ग्वालियर माडास्यात (उत्तर प्रदेश) मूलस्थानपुर में सूर्य पूजा का उल्लेख प्राप्त होता है। gupta period economic and religious notes gupton ka dhaarmik or arthik jeevan    

गुप्त शासकों ने जैन एवं बौद्ध धर्म को भी संरक्षण प्रदान किया। समुद्रगुप्त ने श्रीलंका के शासक मेघवर्मन  को गया में बौद्ध विहार बनवाने की अनुमति दी थी। उसी प्रकार कुमार गुप्त ने नालंदा में प्रसिद्ध बौद्ध विहार की स्थापना करवाई थी। इस काल में जैन धर्म की भी उन्नति हुई। दक्षिण भारत में स्थित कदंब एवं गंग वंश का शासकों ने जैन धर्म  को आश्रय दिया। गुप्त शासक कुमारगुप्त के उदगिरि लेख से ज्ञात होता है कि शंकर नामक व्यक्ति ने  पार्श्वनाथ की मूर्तियां स्थापित की  थी। गुप्त काल में सर्वनंदी ने लोकविभंग तथा सिद्ध से न्यायवार्ता नामक जैन ग्रंथों की रचना की थी।     

इस प्रकार गुप्त शासक विभिन्न धर्मों के महान संरक्षक हुए। गुप्त काल में वैष्णव एवं शैव धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों का भी विकास हुआ। इस काल के धर्म में कुछ ऐसे नवीन परिवर्तन भी हुए, जिन्होंने वर्तमान के धर्म का स्वरूप निश्चित कर दिया। gupta period economic and religious notes gupton ka dhaarmik or arthik jeevan

इस पोस्ट में हमने आपको गुप्तकालीन आर्थिक और धार्मिक जीवन के बारे में विस्तार से बताया, अगली पोस्ट में हम आपको गुप्त कालीन कला और स्थापत्य कला के बारे में विस्तार से बताएंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .com के साथ 🙂

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