अकबर का इतिहास || मुगल साम्राज्य Notes

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इससे पहले हमने आपको शेरशाह के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आपको अकबर के स्रोत के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

अकबर का प्रारम्भिक जीवन तथा राज्यारोहण History of Akbar in Hindi

अकबर का जन्म 15 अक्टूबर, 1542 ई. को अमरकोट के राजा वीरसाल के महल में हमायूँ की नवविवाहिता पत्नी हमीदाबानू बेगम के गर्भ से हुआ था। इस समय हुमायूँ की स्थिति दयनीय थी। वह शरणार्थी का जीवन व्यतीत कर रहा था। वीरसाल ने हुमायूँ को अपने यहाँ शरण दी थी और उसे सहायता देकर थट्टा तथा भक्खर पर चढाई करने के लिए रास्ते में ही था तभी उसे पुत्र जन्म की सूचना दी गयी। इस शुभ समाचार को प्राप्त कर हुमायूँ को अति प्रसन्नता हुई उस पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी। उसने कस्तूरी को कटवाकर अपने दोस्तों में बाँटते हुए कहा, “पुत्र जन्म के उपलक्ष उपहार है जो मैं तुम्हें दे सकता हूँ परन्तु मैं आशा करता हूँ जिस प्रकार यहाँ का वातावरण कस्तूरी की सुगन्ध से भर गया है उसी प्रकार एक दिन मेरे पुत्र का यश समस्त संसार में व्याप्त हो जायेगा।”

हिन्दाल की मृत्यु के पश्चात 1551 ई. में अकबर को गजनी का सूबेदार बना दिया और उसकी लड़की के साथ अकबर की शादी कर दी। मुनीमखाँ को अकबर का संरक्षक नियुक्त कर दिया। 22 जनवरी, 1555 ई. को अकबर ने सिकंदर सूर को सरहिन्द नामक स्थान पर हराया। तत्पश्चात हुमायूँ ने अकबर को युवराज घोषित कर दिया और लाहौर का गवर्नर नियुक्त कर दिया। मुनीमखाँ के स्थान पर बैरमखाँ को उसका संरक्षक बना दिया। 22 जनवरी, 1556 ई. को पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर हुमायूँ की हुमायूँ हो गयी। उस समय अकबर पंजाब के कलानौर (गुरुदासपुर) नामक स्थान पर था। बैरमखाँ ने सम्राट का मृत्यु का समाचार प्राप्त करते ही एक ईटों का सिंहासन खडा करवाया और 14 फरवरी, 1556 ई. को अकबर को सम्राट घोषित कर दिया। उस समय अकबर के अधिकार में पंजाब का थोड़ा-सा भाग ही था। History of Akbar in Hindi

अकबर की कठिनाईयाँ –

यद्यपि अकबर का कलानौर के स्थान पर राज्याभिषेक कर दिया गया था किन्तु उसके पास न तो कोई सिंहासन था और न साम्राज्य, वास्तव में इन दोनों वस्तुओं की प्राप्ति के लिए अकबर को भीषण संघर्ष करना पड़ा। उसने निम्नलिखित कठनाइयों का सामना किया।

  • कंधार, काबुल तथा बदख्शाँ – इन प्रदेशों पर बाबर तथा हुमायूँ का अधिकार रह चुका था, किन्तु जब हुमायूँ की स्थिति डाँवाडोल होने लगी तो उसके भाईयों तथा सम्बन्धियों ने इन प्रान्तों पर अधिकार कर लिया तथा वे स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य करने लगे थे तभी से ये अस्थिरता के शिकार रहें काबुल मिर्जा हकीम की अधीनता में था परन्तु उस पर फारस के राजा की दृस्टि थी। बदख्शाँ में मिर्जा सुलेमान शासक था जो स्वयं दिल्ली की गद्दी को दावेदार था। History of Akbar in Hindi
  • अफगानों की समस्या – अफगान शक्ति अभी भी पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पाती थी। सिकन्दर शाह सूर पंजाब में था। मुहम्मद आदिल शाह सूर के सेनापति हेमू ने दिल्ली तथा आगरा पर अधिकार कर लिया था।
  • राजपूतों की समस्या – राजपूताना में राजपूत शासक थे जो मुगलों को भारत से निकालना चाहते थे।
  • भारतीय मुसलमानों की समस्या – भारतीय मुसलमान मुगलों को विदेशी समझते थे।
  • सरंक्षक की समस्या – बैरमखाँ सरंक्षक था। इस पद के लिए तार्दीवेग आदि भी उम्मीदवार थे। वे बैरमखाँ से ईर्ष्या रखते थे। परस्पर वैमनस्य था।
  • अकबर का राज्य – अकबर का राज्य अत्यन्त सीमित था। पंजाब का कुछ भाग ही उसके प्रभाव में था।

    आर्थिक समस्या – आर्थिक स्थिति खराब थी। उपजाऊ जमीन खराब हो चुकी थी। उसी साल अकाल तथा प्लेग का राज्य को सामना करना पड़ा।
  • अकबर का अवयस्क होना – अकबर जब राज सिहासन पर आसीन हुआ तो वह मात्र 14 वर्ष का था। उसे बैरमरखाँ के संरक्षक में काम करना पड़ा।

पानीपत का द्वितीय युद्ध (5 नवम्बर, 1556 ई.)

इस समय अकबर की स्थिति अत्यधिक डाँवाडोल थी। केवल पंजाब के प्रदेश पर उसका अधिकार शेष रह गया था। तरुड़ अवस्था तथा अनुभव की कमी के कारण उसका आत्मविश्वास जाता रहा था, ऐसी स्थिति में बैरमखाँ ने अत्यन्त वफादारी के साथ उसका साथ दिया। अकबर ने उसे खान बाबा की उपाधि प्रदान की और समस्त कार्यभार उसी के हाथ में छोड़ दिया। बैरमखाँ ने तुरन्त दिल्ली की ओर प्रस्थान करने का निश्चय किया। हेमू पहले से ही सावधान था। उसने मुगल सेना को आगे बढ़ने से रोकने का प्रयास किया। किन्तु वह सफल नहीं हो सका। History of Akbar in Hindi

5 नवम्बर, सन् 1556 ई. के दिन पानीपत के ऐतिहासिक युद्ध में हेमू तथा अकबर की सेनाओं में घोर संग्राम हुआ। कहा जाता है कि हेमू की सेना में एक लाख से ऊपर घुड़सवार और 1500 हाथी थे। युद्ध के आरम्भ में हेमू को काफी सफलता मिली और उसने मुगल सेना के दोनों पार्श्र्व को तोड़ दिया, किन्तु अचानक उसकी आँखों में एक तीर लगा जिससे वह अचेत होकर गिर पड़ा। उसकी सेना में भगदड़ मच गयी। वह स्वयं पकड़ा गया और अकबर के सामने लाया गया। बैरमखाँ के कहने पर अकबर ने उसका सिर अपनी तलवार से काट दिया और गाजी की उपाधि प्राप्त की। बाद के कुछ चाटुकार इतिहासकारों ने अकबर को दयालु तथा उदार हृदय सिद्ध करने के लिए यह कथा गढ़ी है कि उसने एक घायल बन्दी पर हाथ उठाने से इन्कार कर दिया। इस पर बैरमखाँ ने स्वयं अपनी तलवार से हेमू का सिर काट दिया, किन्तु जैसा कि स्मिथ लिखते हैं न तो उस समय अकबर में इतना नैतिक बल ही था कि वह बैरमखाँ जैसे प्रभावशाली संरक्षक की बात टाल सकता और न उस अवस्था में उसके विचार ही इतने उदार हो सकते थे कि वह एक घायल बन्दी पर हाथ न उठाता। History of Akbar in Hindi

पानीपत का द्वितीय युद्ध निर्णायक सिद्ध हुआ। सूर वंश का भाग्य-दीप सदैव के लिए चला गया। वास्तव में इस युद्ध के फलस्वरूप ही भारत में मुगल साम्राज्य की पुनस्थापना हुई। मुगलों तथा अफगानों के बीच भारत के प्रभुत्व के लिए दीर्घकाल तक चलने वाला संघर्ष समाप्त हो गया।

अकबर की विजयें तथा साम्राज्य विस्तार –

अकबर की महत्वाकांक्षाएँ –

अकबर भी अपने पूर्वाधिकारियों की भाँति अत्यन्त महत्वाकांक्षी साम्राज्यवादी था। आखिर उसकी नसों में तैमुर और बाबर का रक्त बहता था। ‘अबुल फसल’ ने लिखा है कि अकबर की विजय-नीति का उद्देश्य स्थानीय शासकों के उत्पीडन से जनता को छुटकारा दिला कर सुख-शान्ति की स्थापना करना था। लेकिन हम इस बात से सहमत नहीं क्योंकि उसने अपने राज्य विस्तार और सत्ता प्राप्त करने की लालसा से युद्ध किये। उसका मत था कि शासक को सदैव नयी विजयें प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए नहीं तो उसके पड़ोसी उसे चैन से नहीं बैठने देंगे। प्राचीन हिन्दु और मस्लिम राजाओ ने भी इसी सिद्धांत का अनुसरण किया था। अकबर ने राज्यारोहण के बाद से लेकर 1601 ई. तक अपने साम्राज्य की सीमाओं को बढ़ाने के लिए निरन्तर प्रयत्न किया। अपने लगभग पचास वर्ष के शासनकाल में काबुल से लेकर बंगाल तक और कश्मीर से लेकर खानदेश तक समस्त उत्तरी तथा मध्य भारत को विजय करके अपने अधीन किया और एक शासन-सत्र में बाँधा।

उसकी साम्राज्य लिप्सा और अपने प्रभुत्व को निष्कण्टक बनाने की अभिलाषा इतनी तीव्र थी कि वह छोटे शासक की स्वतन्त्रता को फूटी आँखों न देख सकता था। एक के बाद एक छोटे-बड़े राज्य मुगल साम्राज्य के कलेवर में समा गये।

अजमेर, ग्वालियर तथा जौनपर की विजय –

सिकन्दर सूर के दमन के बाद शीघ्र ही अकबर का मेवात और अजमेर मुहम्मद कासिम खाँ को जागीर के तौर पर दे दिये गये अकबर ग्वालियर तथा जौनपुर मुगल साम्राज्य के अन्तर्गत आ गये। 1559 ई. में खान जमान को जौनपुर पर आक्रमण करने भेजा गया। उसने सरलता से उसे जीतकर मुगल साम्राज्य का अंग बना लिया। History of Akbar in Hindi

मालवा की विजय (1561 ई. ) –

1561 ई. में बैरमखाँ के पतन के बाद अकबर ने मालवा पर विजय करने का निश्चय किया। उस समय मालवा की आन्तरिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए उसका विजय करना कठिन न था। सूरवंशीय सम्राटो के समय में शुज्जातखाँ मालवा पर शासन करता था। 1556 ई. में उसकी मृत्यु हो गया और उसका पुत्र बाजबहादुर उसका उत्तराधिकारी हुआ। उसने अपने को सुल्तान घोषित कर दिया। अकबर ने उसकी दुर्बलता का लाभ उठाकर 29 मार्च, 1561 ई. में उसके विरुद्ध आदमखाँ और पीर मुहम्मद के नेतृत्व में एक फौज भेजी। सारंगपुर के पास बाजबहादुर की हार हुई।

मेर्था पर अधिकार (1562 ई.) –

मेर्था पर उस समय मालदेव का सेनापति जयमल शासन कर रहा था। 1562 ई. में शरफुद्दीन के नेतृत्व में मुगल सेना ने मेर्था पर आक्रमण कर दिया और किले को चारों ओर से घेर लिया। अन्त में दुर्ग रक्षकों ने हथियार डाल दिये। सम्राट ने दुर्ग रक्षकों को इस शर्त पर छोड़ दिया कि वे दुर्ग में एकत्रित गोला-बारूद को मुगलों के हवाले कर देंगे, लेकिन देवदास ने इसको राजपूत जाति पर एक कलंक समझा और उसने अपने साथी वीर राजपूतों को लेकर शत्रु पर आक्रमण कर दिया। वह बड़ी वीरता के साथ लड़ा लेकिन अन्त में पराजित हुआ। वह तथा उसके 200 साथी वीरगति को प्राप्त हुए। मेर्था पर मुगलों का अधिकार हो गया। History of Akbar in Hindi

गोंडवाना की विजय (1564 ई.) –

गोंडवाना के छोटे से राज्य पर जो आजकल के मध्य प्रदेश का एक भाग के उस समय रानी दुर्गावती राज्य करती थी। उसका पुत्र वीरनारायण उस समय नाबालिक था। इसलिए वह स्वयं संरक्षक के हैसियत से काम करती थी। वह महोबा के चन्देल वंश मे पैदा हुई थी। उसने बहुत योग्यता के साथ शासन किया और राज्य के सभी भागों से प्रजा की भलाई के काम किये। साम्राज्यवादी अकबर उस वीर स्त्री के स्वतंत्र शासन को भी सहन न कर सकता था। वह स्वयं कहा करता था कि एक सम्राट को सदैव अपनी विजय का इच्छुक रहना चाहिए अनयथा पड़ोसी उसके विरुद्ध उठ खड़े होंगे।

अकबर के कड़ा के हाकिम आसफ खाँ को गोंडवाना विजय करने के लिए भेजा। रानी दुर्गावती ने अत्यंत साहस के साथ आक्रमणकारियों का सामना किया किन्तु मुगल सेना की अपार शक्ति से आतंकित होकर उसके अनेक सैनिक मैदान छोड़ कर भाग गये। आधुनिक जबलपुर जिले में गढ़ तथा मण्डला के बीच रानी ने भयंकर युद्ध किया, किन्तु अन्त में पराजय निश्चित समझकर उसने स्वयं अपना अन्त कर लिया जिससे वह शत्रुओ के हाथ में पड़ कर अपमानित न हो। चौरागढ़ का प्रसिद्ध किला भी आसानी से मुगलों के हाथ लग गया। रानी के पुत्र वीरनारायण ने अपनी माँ का अनुसरण किया और उसे युद्ध में लड़ते हुए वीरगति प्राप्त हुई। परिवार की सभी स्त्रियों ने जौहर करके अपने सम्मान की रक्षा की। History of Akbar in Hindi

राजपूताने की विजय –

अकबर राजपूतों की शक्ति तथा वीरता से अच्छी प्रकार परिचित था। उसकी यह मान्यता थी कि राजपूतों को नतमस्तक किये बिना साम्राज्य स्थायी नहीं रह सकता। राजपूतों को अपने अधीन लाने के लिए अकबर ने स्वेच्छा कूटनीति तथा शक्ति दोनों से काम लिया। जिन राजपूतों ने स्वेच्छा से अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली उनको उसने अपना मित्र बना लिया और उन्हें मनसबदार बना दिया और जिन राजाओं ने युद्ध के पश्चात अधीनता स्वीकार की उनके साथ भी अकबर ने उदारता का बर्ताव किया।

(अ) अम्बेर के राजा द्वारा अधीनता स्वीकार करना – सबसे पहले 1562 ई. में अम्बेर (जयपुर) के कछवाहा राजा भारमल ने अकबर की अधीनता स्वीकार की। जब अकबर अजमेर जा रहा था तो मार्ग में भारमल ने सपरिवार आकर सम्राट से भेंट की और अपनी मित्रता को स्थायी बनाने के लिए उसने अपनी पुत्री हीरा कुंवरी उर्फ हरकाबाई का सम्राट से विवाह कर दिया। यह विवाह अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। History of Akbar in Hindi

(ब) चित्तौड़ विजय (1567-68 ई.) – मेवाड का राज्य राजपतों में सबसे अधिक प्रसिद्ध और शक्तिशाली था। चित्तौड़ मेवाड की राजधानी थी। उस समय उदयसिंह वहाँ का राणा था। वह राणा साँगा की भाँति वीर और साहसी नहीं था। उसने मालवा के भगोड़ा शासक बाजबहादुर को शरण देकर अकबर को अप्रसन्न कर दिया था, इसलिए उसने चित्तौड़ पर आक्रमण करने का निश्चय किया, लेकिन यह तो एक बहाना मात्र था। चित्तौड़ पर आक्रमण करने का मख्य कारण राजनीतिक था। अकबर के लिए मेवाड़ विजय समस्त राजपूताने की विजय के लिए एक भूमिका थी। मेवाड़ के राणा को सभी राजपूत राजा अपना सिरमौर मानते थे। उसे आशा थी कि चित्तौड़ के राणा के घुटने टेक देने पर अन्य राजपूत राणा स्वतः उसकी अधीनता स्वीकार कर लेंगे।

(स) महाराणा प्रताप से संघर्ष हल्दी घाटी की लड़ाई (18 जून, 1576 ई.) – चित्तौड़ के पतन के चार वर्ष बाद 1572 ई. में गोगद नामक स्थान पर उदयसिह की मृत्यु हो गयी। उनके पुत्र राणा प्रताप सिंह उनके उत्तराधिकारी हुए।

प्रताप ने भोग-विलास का जीवन त्याग दिया और परिस्थितियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए शासन को नये ढाँचे में ढाला, कम्बलनेर को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया। सम्राट अकबर एक राजपूत राणा की इस स्वतन्त्रता को कब सहन कर सकता था। 1576 ई. में उसने आसफखाँ और मानसिंह की अध्यक्षता में एक विशाल सेना प्रताप के विरुद्ध भेजी। उसकी वर्ष जून के महीने में हल्दी घाटी का प्रसिद्ध युद्ध हुआ जिसमें हजारों राजपूतों ने अपने देश और गौरव की रक्षा के लिए जान दी। प्रताप स्वयं मारे गये होते किन्तु उनके स्वामीभक्त झालावाड़ के सरदार बीदा झाला ने राणा के मुकुट को स्वयं पहनकर अपने को राणा घोषित करके स्वयं आगे बढ़ गया और मारा गया। इस प्रकार राणा की जान बच गयी और वे युद्ध क्षेत्र से बचकर निकलने में सफल हो गये। उनके किले एक-एक करके सम्मुख सिर नहीं झुकाया। History of Akbar in Hindi

गुजरात विजय – उस समय यहाँ का शासक मुजफ्फरशाह तृतीय था। वह एक अयोग्य और दुर्बल शासक होने के कारण राज्य में विद्रोही सरदारों को अपने वश में न कर सका। उसके राज्य में अशान्ति तथा अव्यवस्था का बोलबाला था। अत: इस आन्तरिक दुर्बलता का लाभ उठाते हुए अकबर ने गुजरात पर आक्रमण करने का निश्चय किया। 1572 ई. में अकबर ने गुजरात पर धावा बोल दिया। मुजफ्फरशाह डर के मारे भाग खड़ा हुआ और वह एक खेत में जाकर छिप गया लेकिन अकबर के सैनिकों ने उसे खोज निकाला और बन्दी बना लिया। अकबर ने उसके साथ दया का बर्ताव किया और उसे पेंशन देकर हटा दिया। मिर्जा अजीज कोका को गुजरात का गवर्नर नियुक्त कर दिया। तत्पश्चात् अकबर ने सूरत का घेरा डाल दिया और 1573 ई. में उसने सूरत पर अधिकार कर लिया। History of Akbar in Hindi

बंगाल तथा बिहार की विजय – 1564 ई. में दक्षिण बिहार के सूबेदार सुलेमान करराना ने बंगाल पर भी अधिकार कर लिया। सलेमान सदैव दिल्ली सम्राट का प्रभुत्व स्वीकार करता रहा। 1572 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी। उसके पुत्र दाऊद ने उसकी नीति का त्याग कर अपने को स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया और साम्राज्य की पूर्वी सीमाओं पर आक्रमण शुरू कर दिये।

काबुल – अकबर का सौतेला भाई मिर्जा मुहम्मद हकीम काबुल पर शासन करता था। वह नाममात्र के लिए अकबर के आधीन था। किन्तु कुछ सरदारों और असन्तुष्ट अफसरों से मिलकर वह सम्राट के विरुद्ध षड्यन्त्र करने और दिल्ली की गद्दी पर बैठने का स्वप्न देखने लगा। साम्राज्य का दीवान ख्वाजा मंसूर भी इस षड्यन्त्र में शामिल था। 1580 ई. में मिर्जा हकीम ने अपने इरादों को पूरा करने के लिए पंजाब पर आक्रमण किया। अकबर ने शीघ्र ही इस विद्रोह की गम्भीरता को समझ लिया और वह स्वयं 50,000 घुड़सवार और 500 हाथी तथा एक बड़ी पैदल फौज लेकर अफगानिस्तान की ओर चल पड़ा। मार्ग में अकबर को पता चला की ख्वाजा मंसूर इस षड्यन्त्र में प्रमुखता से भाग ले रहा है। इस लिए अम्बाला के निकट सम्राट ने उसको फाँसी की सजा दे दी। इससे बागियों की हिम्मत टूट गयी। मिर्जा हकीम से सम्राट की शक्ति से डरकर बिना लड़े ही पंजाब से काबुल भाग गया। 9 अगस्त, 1581 ई. को अकबर ने काबुल में प्रवेश किया। मिर्जा हकीम हारा किन्तु अकबर ने उसे फिर काबुल राज्य लौटा दिया। हकीम से सदैव अपने भाई के प्रति वफादार रहने की शपथ खायी। काबुल की विजय का महत्व बहुत है। इससे अकबर को पूर्णतया निश्चिंत होकर कार्य करने का अवसर मिल गया। 1585 ई में मिर्जा हाकिम की मृत्यु के बाद काबुल मुगल साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया गया।

कश्मीर विजय – 1586 ई. में उसने राजा भगवानदास और कासिम खाँ को 5,000 फौज के साथ उस प्रदेश को विजय करने भेजा। उन्होंने अनेक कठिनाईयों के बावजूद बहादूरी से मुहिम को चलाया। अन्त में कश्मीर के राजा यसूफखाँ ने सन्धि कर ली और सम्राट की अधीनता स्वीकार कर ली। किन्तु उसके लड़के याकूब ने बहुत दिनों तक साम्राज्य की फौजों का मुकाबला किया और असफल रहा। शाही फौजों ने जिधर वह गया उसका पीछा किया। अन्त में उसने हथियार डाल दिये। कश्मीर मुगल साम्राज्य में मिला गया। History of Akbar in Hindi

सिन्ध तथा बलुचिस्तान – अकबर ने 1590-91 ई. में अब्दुल रहीम खानखाना को को थट्टा के शासक के विरुद्ध भेजा। मिर्जा जानी ने खानखाना का डटकर मुकाबला किया। सिन्धियों ने सड़कों पर अधिकार कर लिया और रसद का आना बन्द कर दिया। किन्तु अन्त में दो लड़ाइयों में जानी की हार हुई और उसने थट्टा का राज्य उसे फिर जागीर के तौर पर वापस कर दिया और उसे 3000 का मनसबदार नियुक्त किया। 1601 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी।

पश्चिमोत्तरी सीमान्त तथा कान्धार – 16 वीं तथा 17 वीं शताब्दियों में उत्तर-पश्चिमी सीमान्त मुगलों के लिए एक विकट समस्या थी। मुगलों का काबुल पर अधिकार था। उसकी रक्षा के लिए दो बातें आवश्यक थीं। एक तो कान्धार पर मुगलों का अधिकार रहे और दूसरे सीमान्त के पर्वतीय प्रदेश में रहने वाली जातियाँ शान्ति से रहें और मुगलों से मैत्री-भाव रखें, जिससे कि भारत और काबुल के बीच के मार्ग सुरक्षित रहें। History of Akbar in Hindi

दक्षिण विजय – समस्त उत्तरी तथा मध्य भारत पर अपना सम्पूर्ण प्रभुत्व स्थापित करने के बाद अकबर ने दक्षिण पर अपनी सत्ता कायम करने का निश्चय किया। “इस विषय में वह उत्तरी भारत के पूर्व सम्राटों की नीति का अनुसरण कर रहा था, जैसे मौर्य, गुप्त खिजली तथा तुगलक।”

भारतीय इतिहास की यह विशेषता रही है कि जब भारत का कोई सम्राट पूर्वरूप से उत्तरी में अपनी सत्ता कायम करने में सफल हो गया तो उसने दक्षिण में विजय प्राप्त करने का अवश्य ही प्रयास किया है। डॉ. बेनीप्रसाद का मत है कि दक्षिण नीति भारतीय इतिहास की दो हजार वर्ष की विरासत थी जो भौगोलिक परिस्थितियों का सीधा परिणाम थी। दक्षिण का विजय करने के अकबर के दो उद्देश्य थे – History of Akbar in Hindi

(अ) वह सम्पूर्ण भारत को जीतकर एकछत्र राज्य कायम करना चाहता था। इसके लिए यह आवश्यक था कि दक्षिण का बीजापुर, गोलकुण्डा, अहमदनगर, खानदेश आदि रियासतें जीतकर मुगल साम्राज्य का अंग बनायी जायें।

(ब) वह दक्षिण पर अधिकार करके पुर्तगाल वालों के व्यापारिक प्रभाव को कम करना चाहता था। डॉ. स्मिथ लिखते है कि अकबर ने दक्षिण का युद्ध इस इरादे से किया की वह उसे जीतकर समुद्र तट की ओर बढ़े और यूरोपीय जातियों की बस्तियाँ जीत ले।

इस प्रकार हम देखते है कि पूर्व सम्राटों की भाँति अकबर की दक्षिण नीति शुद्ध राजनीतिक और आर्थिक उद्देश्यों पर आधारित थी।

उस समय दक्षिण में चार मुख्य रियासतें थी – बीजापुर, गोलकुण्डा, अहमदनगर तथा खानदेश। बरार तथा बीदर दो और छोटी रियासतें थीं। बरार को 1575 ई. में अहमदनगर ने जीत लिया था और बीदर को कोई महत्व न था। 1591 ई. में अकबर चारो राज्यों को राजदूत भेजे और उनसे इस बात की माँग की कि वे उसका आधिपत्य स्वीकार करें। खानदेश को छोड़कर सबने उसकी आज्ञा की अवहेलना की। इस पर उसने युद्ध का निश्चय किया। History of Akbar in Hindi

अहमदनगर की विजय – 1593 ई. में एक विशाल सेना अब्दुरहीम और शहजादा मुराद के नेतृत्व में भेजी गयी। उन्होंने अहमदनगर को घेर लिया किन्तु चाँदबीबी ने बड़ी वीरता से आक्रमणकारियों का मुकाबला किया। फरिश्ता लिखता है, “उसने बुरका पहनकर स्वयं युद्ध का संचालन किया और शत्रु पर गोलाबारी करवायी और पत्थर फिंकवाये जिससे उन्हें पीछे हटना पड़ा। रात के समय उसने खड़े होकर कारीगरों से काम करवाया और एक नौ फीट गहरी दरार को लकड़ी, पत्थरों, मिट्टी से भरवा दिया।” इस वीरतापूर्ण प्रतिरोध का आक्रमणकारियों पर बड़ा प्रभाव पड़ा। अन्त में सन्धि हो गयी। चाँदबीबी ने अकबर को बरार का प्रदेश दे दिया और उसकी अधीनता स्वीकार कर ली।

खानदेश की विजय – खानदेश के सुल्तान ने अकबर का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया था। किन्तु उसके पुत्र मियाँ बहादुरशाह ने अपने को मुगलों की सत्ता से मुक्त करने का प्रयत्न किया। उसका विश्वास था कि वह असीरगढ़ के मजबूत किले से मुगलों का प्रतिरोध सफलतापूर्वक कर सकेगा। किन्तु उस समय तक अकबर साम्राज्य के दूसरे भागों के झंझटों से मुक्त हो चुका था। इसलिए उसने अपनी पूरी शक्ति लगाकर खानदेश पर अपना प्रभुत्व कायम रखने का प्रयत्न किया। 1600 ई. मे खानदेश की राजधानी बुरहानपुर पर मुगलों का बिना अधिक कठिनाई के अधिकार हो गया। मुगल फौजों ने असीरगढ़ कले को घेर लिया जो उस जमाने में अज्ञेय समझा जाता था। 6 महीने तक मुगल सेनाओं ने किले को जीतने की जी-तोड़ कोशिश की किन्तु सफल नहीं हुए। तब अन्त में अकबर ने विश्वासघात से काम लिया। उसने मियाँ बहादुर की भेंट करने के लिए अपने खेमे में बुलाया और कैद कर लिया। फिर भी किले के रक्षकों ने फाटक नहीं खोले। पुर्तगाली तोपची रक्षकों की सहायता कर रहे थे। अकबर ने आखिरकार रिश्वत देकर किले के फाटक खुलवाये। इस प्रकार किले पर अकबर का अधिकार हो गया। खानदेश साम्राज्य में मिला लिया गया। दक्षिण के समस्त जीते हए प्रदेशों अहमदनगर, खानदेश तथा बरार के तीन सूबे बना दिये गए। History of Akbar in Hindi

यह तो थी अकबर की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको अकबर की धार्मिक नीति धार्मिक नीति के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

Leave a Reply

error: Content is protected !!
Don`t copy text!