मौर्योत्तर कालीन भारतीय शासक Notes

मौर्योत्तर कालीन भारतीय शासक Mauryottar kaaleen vansh Mauryottar kaal

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से Upsc Ias Guru.com की वेबसाइट पर पिछले पोस्ट में हमने आपको मौर्योत्तर काल (200 ईसा पूर्व से 300 ईसा पूर्व) में हुए विदेशी शासकों के बारे में जानकारी दी थी  इस पोस्ट में हम आपको मौर्योत्तर काल में हुए भारतीय शासकों के बारे में बताएंगे

मौर्य साम्राज्य के पतन के पश्चात भारतीय शासक भारत में क्रमशः शुंग, कण्व, सातवाहन तथा वाकाटक वंश के ब्राह्मण जाति के शासकों ने भी अपना साम्राज्य स्थापित किया।   

शुंग वंश (185 ई. पू.-75 ई.पू.) 

 शुंग वंश मूलतः उज्जैन के निवासी व ब्राह्मण जाति के थे। संघ राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी।  शुंग वंश का संस्थापक पुष्यमित्र था,  जिसने 185 ई. पू. में अंतिम मौर्य सम्राट वृहद्रथ की हत्या कर राजगद्दी प्राप्त की। पुष्पमित्र ने सेनानी की उपाधि धारण की। पुष्यमित्र शुंग के अयोध्या के गवर्नर धनदेव के अयोध्या अभिलेख, पतंजलि की पुस्तक महाभाष्य, कालिदास की पुस्तक मालविकागिनमित्र तथा ज्योतिषी संबंधी पुस्तक गार्गी संगीता से यवन आक्रमण की जानकारी प्राप्त होती है। इनके अनुसार पुष्यमित्र के समय में यवनों ने चित्तौड़ के निकट माध्यमिका नगरी और अवध में साकेत का घेरा डाला, किंतु पुष्यमित्र ने उन्हें पराजित किया। धनदेव के अयोध्या अभिलेख से पता चलता है कि पुष्यमित्र शुंग ने 2 अश्वमेध यज्ञ करवाएं, जिनमें उसके पुरोहित पतंजलि थे।   

पुष्यमित्र शुंग का शासन काल वैदिक धर्म के उत्थान का कारण माना जाता है। संभवतः  इसी कारण बौद्ध ग्रंथों में पुष्यमित्र शुंग को बौद्धों का उत्पीड़क बताया गया है, परंतु यह सत्य नहीं है क्योंकि पुष्यमित्र शुंग ने सांची में 2  स्तपों का निर्माण करवाया तथा अशोक कालीन  सांची के  महास्तूप की काष्ठ -वेदिका के स्थान पर पोषण – वेदिका निर्मित करवाई।  इसके अतिरिक्त उसने मध्यप्रदेश के सतना जिला में भरहुत स्तूप का निर्माण भी करवाया।  mauryottar kaaleen vansh mauryottar kaal  

पुष्यमित्र शुंग के बाद अग्नि मित्र शासक बना। कालिदास के मालविकाग्निमित्र नाटक से पता चलता है कि अग्निमित्र के समय में भी यवन आक्रमण हुआ, जिन्हें अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र ने सिंधु नदी के तट पर पराजित किया। अग्नि मित्र के उत्तराधिकारी क्रमशः वसुमित्र, ब्रजमित्र, भागभद्र एवं देवभूति हुए। देवहूति शुंग वंश का अंतिम शासक था, जिसकी हत्या उसके मित्र वसुदेव ने कर कण्व वंश की स्थापना की।   

कण्व वंश (75 ई. पू. -30 ई.पू.) 

कण्व वंश के कुल चार शासकों के नाम प्राप्त होते हैं – वासुदेव, भूमिमित्र, नारायण व सुशर्मन। 30 ई. पू. में कण्व वंश के अंतिम शासक सुशर्मन  की हत्या सिमुक ने कार्य सातवाहन वंश की स्थापना की।   

सातवाहन वंश (30 ई. पू. -250 ई.) 

सातवाहन वंश की राजधानी प्रतिष्ठान (महाराष्ट्र) थी। इस वंश का संस्थापक सिमुक हुआ। मत्स्य पुराण में सातवाहन शासकों की वंशावली प्राप्त होती है। यहां ध्यातव्य है कि अठारह पुराणों में सबसे प्राचीन पुराण मत्स्य पुराण है, जिसमें सर्वप्रथम लिंग पूजा का उल्लेख मिलता है। सिमुक का उत्तराधिकारी शतकणी प्रथम हुआ, जिसने 2 अश्वमेघ यज्ञ एवं 1 राजसूय यज्ञ किया। इसकी रानी नागानिका के  नानाघाट अभिलेख से पता चलता है कि इसने पहली शताब्दी ई. पू. में ब्राह्मणों को भूमि अनुदान में दी। भूमिदान का यह पहला अभिलेखीय साक्ष्य है। सातकर्णि का उत्तराधिकारी हाल हुआ, जिसने ने प्राकृत भाषा में गाथासप्तशती नामक पुस्तक की रचना की थी। सातवाहन वंश सबसे प्रतापी शासक गौतमीपुत्र सातकर्णि  था। इसकी माता बलश्री के नासिक अभिलेख में गौतमीपुत्र सातकर्णि को एक मात्र ब्राह्मण, अद्वितीय ब्राह्मण एवं वर्ण व्यवस्था का रक्षक कहा गया।इसने शक शासक नहपान को हरा कर मार डाला। गौतमीपुत्र सातकर्णि उत्तराधिकारी वशिष्टिपुत्र पुलुमावी ने अमरावती में  बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया। सातवाहन वंश का अंतिम शासक यज्ञश्री सातकर्णि हुआ, जिसके सिक्कों पर जलयान का चित्र अंकित है। यज्ञश्री सातकर्णी के पश्चात सातवाहन वंश का पतन हो गया।   mauryottar kaaleen vansh mauryottar kaal

वाकाटक वंश   

वाकाटक वंश की राजधानी नंदीवर्धन (नागपुर) थी। इसी वंश का संस्थापक विंध्य शक्ति था। विंध्य शक्ति के उत्तराधिकारी प्रवरसेन प्रथम ने 4 अश्वमेघ किए थे तथा प्रवरसेन द्वितीय ने प्रकृत भाषा में सेतुबंध नामक पुस्तक की रचना की। अजंता की गुफ 1 संख्या 9 एवं 10 वाकाटक काल से ही संबंधित है।

मौर्योत्तर काल में राजनीतिक जीवन 

मौर्योत्तर काल में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कई विदेशी एवं देसी राज्यों की स्थापना हुई थी। इस काल में प्रायः प्रशासन का आम स्वरूप राजतंत्रात्मक था, जिसमें राजा ही सत्ता का प्रधान होता था, किंतु प्रशासन के विभिन्न स्तरों में अलग-अलग राज्यों के अंतर्गत प्रशासन के स्वरूप में व्यापक अंतर भी दिखाई देता है। फिर भी इस काल की राजनीतिक क्षेत्र में हुए कुछ नवीन परिवर्तनों को निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत देखा जा सकता है-   

• विकेंद्रीकृत राजनीतिक व्यवस्था 

इस काल की राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप  विकेंद्रीकृत था। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में, कई विदेशी एवं देशी राजाओं ने अपने अपने राज्य स्थापित कर रखे थे। विदेशी राज्यों के अंतर्गत इण्डोग्रीन शासकों ने सकल एवं तक्षशिला में, शक शासकों ने तक्षशिला, मथुरा, नासिक एवं उज्जैन में, पहलव शासकों ने तक्षशिला में तथा कुषाण शासकों ने पेशावर एवं मथुरा में अपने राज्य स्थापित कर रखे थे। वही देशी राज्यों में व कण्व वंश के शासकों ने पाटलिपुत्र में तथा सातवाहन व वाकाटक वंश के शासकों में नासिक में अपने राज्य की स्थापना की। 

• राजत्व का देवीकरण     

इस काल में विकेंद्रीकरण की प्रवृत्ति को नियंत्रित करने हेतु अर्थात प्रजा तथा अधीनस्थ सड़कों पर अपना प्रभाव बनाए रखने हेतु राजा के पद का देवीकरण किया गया था। सातवाहन शासकों ने अपनी तुलना राम, भीम, केशव, अर्जुन इत्यादि देवताओं से की थी, जबकि कुषाण शासकों ने चीनी परंपरा के अनुसार देवपुत्र की उपाधि धारण की थी। यहां तक कि कुषाण राज्य में रोमन परंपरा के समान नृत्य राजाओं की मूर्तियां देवकूल में स्थापित करवा कर उनकी पूजा की जाती थी। 

•  द्वैध –  शासन प्रणाली     

इस काल में कुषाण एवं  शक शासकों अंतर्गत हमें द्वैध शासन प्रणाली के साक्ष्य भी प्राप्त होते हैं। इस पद्धति के अंतर्गत संयुक्त शासन व्यवस्था को अपनाया गया था, जिसमें राजा के साथ-साथ प्रयः युवराज को भी बराबर का सहभागी माना जाता था।   

• सैन्य शासन प्रणाली     

इस काल में सातवाहन वंश के अंतर्गत प्रांतों में सैन्य शासन प्रणाली दिखाई देता है। वस्तुतः सातवाहन राजाओं के द्वारा प्रारंभ की गई भूमि अनुदान पद्धति से दूरस्थ क्षेत्रों में भी केंद्रीय सत्ता स्थापित हुई थी। चूंकि दूरस्थ क्षेत्रों पर भी प्रभावी नियंत्रण बनाए रखना था, यही कारण है कि सातवाहन व शासकों ने प्रांतों में सेनापति (गौल्मिक) को ही शासनाध्यक्ष  के रूप में नियुक्त किया।   

• मातृसत्तात्मक का प्रभाव     

मौर्योत्तर काल में सातवाहन शासकों के प्रशासन में मातृसत्तात्मक प्रभाव दिखाई देता है। सातवाहन राजा अपने नाम के साथ अपनी माता का नाम भी जोड़ते थे। जैसे – गौतमीपुत्र,शातकनी, विशिष्ट पुत्र पुलुमावी आदि। उसी प्रकार वाकटक प्रशासन में रानियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। उदाहरणार्थ – वाकटक नरेश रूद्र सेन द्वितीय की मृत्यु के पश्चात उसकी पत्नी प्रभावती गुप्त ने राज्य का संचालन किया था।

इस प्रकार मौर्योत्तर काल के राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न राजवंशों के अंतर्गत कई नवीन परिवर्तन हुए तथा इनमें से कुछ परिवर्तन परवर्ती काल के राजनीतिक जीवन की भी अनिवार्य विशेषताएं बन गई।

दोस्तों यह तो थी मौर्योत्तर काल में हुए भारतीय शासकों के बारे संछिप्त जानकारी अगली पोस्ट में हम आपको मौर्योत्तर काल के सामाजिक और आर्थिक जीवन के बारे में विस्तार से बताएंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru.com के साथ 🙂


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