नूरजहाँ का इतिहास || मुगल साम्राज्य Notes

Hello दोस्तों, स्वागत है आपका फिर से हमारी इतिहास नोट्स की सीरीज में इससे पहले हमने आपको जहाँगीर के इतिहास के बारे में विस्तार से बताया था, इस पोस्ट से हम आपको नूरजहां का इतिहास के बारे में बतायेगे जिससे आपको  मध्यकालीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आपकी तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

नूरजहां का इतिहास

नरजहाँ का प्रारम्भिक जीवन –

नाममेहरूनिशा Mehrunissa
जन्मतिथि31 मई, 1577 ई.
जन्म स्थानकंधार
मृत्यु17 दिसम्बर, 1645 ई
मृत्यु स्थानलाहौर
पिता का नामगयास बेग


नूरजहाँ का वास्तविक नाम मेहरुनिसा था। उसका पिता ग्यासबेग तथा माता अस्मत बेगम तेहरान निवासी थे। ग्यासबेग को फारस में प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण अपने भाग्य की परीक्षा के लिए भारत आना पड़ा। 1577 ई. में कन्दहार में मेहरुनिसा का जन्म हुआ। फतेहपुर सीकरी आने पर ग्यासबेग को अकबर की सेवा मे सम्मिलित कर लिया गया। मेहरुनिसा सन्दरता में अद्वितीय थी। वह अपनी माता के साथ महल में आया-जाया करती थी। सलीम उस पर विमुग्ध हो गया और उसके साथ अपना विवाह करना चाहता था। अकबर इस विवाह के पक्ष में न था अतएव उसका विवाह सम्राट के कहने पर अलीकुली के साथ कर दिया गया। Nurjahan history in hindi

एक शेर को मारने के उपलक्ष्य में उसे सलीम द्वारा शेर अफगान की उपाधि दी गई थी। जहांगीर के राज्यारोहण पर उसे वद्रवान की जागीर प्राप्त हुई। चूँकि वह विद्रोही हो रहा था इसलिए बंगाल के सूबेदार कुतुबुद्दीन को आज्ञा दी कि वह शेर अफगान को नरवर भेज दें। इस कार्यवाही में कुतुबुद्दीन मारा गया। इससे क्रोधित होकर कुतुबुद्दीन के एक सेवक ने शेर अफगान की हत्या कर दी। मेहरुनिसा को सलीमा बेगम की सेवा में रख दिया गया। 1611 ई. में मीना बाजार में मेहरुनिसा को देखकर जहांगीर मुक्त हो गया और उसके साथ विवाह कर लिया। जहाँगीर ने उसे पहले नूरमहल और बाद में नूरजहाँ की उपाधि दी। Nurjahan history in hindi

नूरजहाँ गुट – अपने विवाह के कुछ ही वर्षो पश्चात नरजहाँ ने अपना दल बना लिया था जिसे नरजहाँ गुट अथवा जनता गुट के नाम से जारा गया। इस गुट में नूरजहाँ उसके पिता एत्मादउद्दौला, माता असमत बेगम उसका भाई आसफ खाँ व शाहजादा खुरम शामिल थे। इसमे सभी योग्य व राज्य के शीर्ष पदों पर आसीन थे। प्रशासन पर इसका प्रभुत्व था। कुछ पुराने सरदार इस दल के विरोधी थे तथा वे नूरजहां के बढ़ते प्रभाव को पसंद नहीं करते थे किंतु उसकी स्थिति दुर्बल थी। इस दल का प्रभुत्व 1622 ई. तक स्थापित रहा। Nurjahan history in hindi

उत्तराधिकार का युद्ध – शाहजहाँ के जीवनकाल में ही सिंहासन के लिए संघर्ष आरम्भ हो गया। यह संघर्ष दो विचारधाराओं के बीच था। एक का प्रतिनिधित्व दारा करता था तथा दूसरे का औरंगजेब। इस युद्ध मे जितना रक्तपात हुआ उतना किसी अन्य युद्ध में नहीं। शाहजहाँ ने अपने जीवन-काल में ही अपना साम्राज्य चारों पुत्रों में बाँट दिया। था। दारा पंजाब तथा उत्तर-पश्चिम प्रान्त का सूबदार था। मुराद मालवा तथा गुजरात, औरंगजेब दक्षिण तथा शाहशुजा बंगाल में शासन कर रहा था। इस संघर्ष के निम्नलिखित कारण थे –

1. संघर्ष की परम्परा – मुगल वंश में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष की परम्परा थी। हुमायूँ को अपने भाईयों से संघर्ष करना पड़ा था। अकबर को भी अपने चचेरे भाई मिर्जा हकीम तथा पुत्र सलीम के विरोध का सामना करना पड़ा जहाँगीर के समय पुत्र खुसरों और खुर्रम ने विद्रोह किया। इसलिए स्वाभाविक था कि शाहजहाँ के समय में भी पुत्रों में गद्दी के लिए संघर्ष हो।

2. तख्त या तख्ता का सिद्धांत – शाहजहाँ के पुत्र जानते थे कि या तो हमकों सिंहासन प्राप्त होगा या प्राण दण्ड मिलेगा। शाहजहाँ स्वयं अपने भाईयों को मारकर गद्दी पर बैठा था। इसलिए भाईयों ने शाहजहाँ के जीवन काल में ही अपने भाईयों को हटाकर तख्त पर अधिकार करने का निर्णय कर लिया। Nurjahan history in hindi

3. शाहजहाँ के अनुकूल परिस्थितियाँ – इस समय शाहजहाँ के सभी पुत्र युवावस्था को पार कर रहे थे। दारा की अवस्था 43 वर्ष शुजा 41 वर्ष, औरंगजेब 39 वर्ष तथा मुराद 33 वर्ष का था। सबके पास सिंहासन प्राप्त करने के लिए अपार साधन थे।

4. कौटुम्बिक कूटनीति – शाहजहाँ के पुत्रों में भाई-चारे की भावना का अभाव था। दारा तथा औरंगजेब एक-दूसरे से नफरत करते थे। परिवार मे भी षड्यंत्र का प्रकोप था। जहाँआरा की सहानुभूति दारा के साथ और रोशनआरा की औरंगजेब के साथ थी।

5. शाहजहाँ की बीमारी और वृद्धावस्था – शाहजहाँ 67 वर्ष का हो चुका था और बीमार रहने लगा था। उसकी बीमारी की वजह से सभी शहजादे सिंहासन प्राप्त करने के लिए तैयारी करने लगे। उसकी बीमारी की वजह से सभी शाहजादे सिंहासन प्राप्त करने के लिए तैयारी करने लगे। बीमारी के समय दारा लोगों को शाहजहाँ से मिलने न देता था। इससे दूर प्रदेशों में नियुक्त शाहजादो ने यह समझा कि शाहजहाँ की मृत्यु हो गयी है। इसलिए वे संघर्ष की तैयारी करने लगे।

प्रमुख घटनाएँ –

5 सितम्बर, 1657 ई. को मुराद ने अहमदाबाद में अपने को स्वतन्त्रत घोषित कर दिया। औरंगजेब ने चालाकी से काम लिया और मुराद को फुसलाकर अपने पक्ष में कर लिया। दोनों के बीच एक संधि हुई मुराद को अफगानिस्तान, पंजाब, कश्मीर और सिन्ध के प्रान्त तथा लूट का 1/3 भाग प्राप्त होगा। दोनों की सेना है 25 फरवरी 1658 ई. को मालवा में दिपालपुर नामक स्थान पर मिल गयी। औरंगजेब में मीरजुमला को जिसे मुगल दरबार में लौटाने की आज्ञा मिली थी। कैद कर लिया, क्योंकि वह स्वयं भी औरंगजेब का साथ देना चाहता था। इससे औरंगजेब की स्थिति और मजबूत हो गयी। दारा ने इनके खिलाफ एक सेना जसवन्त सिंह और कासिमखाँ की अधीनता में भेजी।

धरमत का युद्ध – उज्जैन से 14 मील दूर धरमत नामक स्थान पर शाही सेनाओं तथा औरंगजेब की सेनाओं का युद्ध हुआ। इस युद्ध में औरंगजेब को विजय प्राप्त हुई।
सामगढ़ का युद्ध – धरमत के युद्ध में विजय के बाद औरंगजेब तथा मुराद की ओर बढ़े। दारा ने भी एक विशाल सेना तैयार की और मुकाबले के लिए कूच कर दिया। दोनों के बीच 21 मई, 1658 ई. को सामूगढ़ में युद्ध हुआ। औरंगजेब विजयी हुआ और दारा को भागना पड़ा।
शाहजहाँ कैद में – सामूगढ़ के युद्ध के बाद औरंगजेब ने आगरा के दुर्ग पर घेरा डाला। शाहजहाँ को आत्मसमर्पण करना पड़ा। उसे वहीं राजमहल में बन्दी बना कर रखा गया।
दारा का अन्त – दारा आगरा से भाग निकला। वह इधर-उधर घूमता रहा। औरंगजेब की सेना लगातार उसके पीछे लगी रही। देवरल नामक स्थान पर औरंगजेब तथा दारा की सेना में अन्तिम संघर्ष हुआ। दारा पराजित हुआ और बाद में मार डाला गया।
मुराद का अन्त – औरंगजेब को मुराद की तरफ से विद्रोह की शंका थी इसलिए एक दिन दावत में शराब पिलाकर मुराद को कैद कर लिया और ग्वालियर के किले में रख दिया एक दिन उसने भागने का प्रयास किया तब उसका वध कर दिया गया। Nurjahan history in hindi
शुजा का अन्त – धरमत के युद्ध से पूर्व ही शुजा ने अपने को बंगाल में स्वतंत्र घोषित कर दिया था। दारा ने अपने पुत्र सुलेमान शिकोह को शुजा के खिलाफ भेजा जिसको उसने 14 फरवरी, 1658 ई. को बहादुरपुर नामक स्थान पर पराजित किया। शुजा बंगाल की तरफ चला गया। औरंगजेब ने शुजा को खजता के युद्ध में पराजित किया। शुजा भागा तथा औरंगजेब की सेना उसके पीछे लगी रही। अन्त में भयभीत होकर शुजा अराकान भाग गया। बाद में अराकान के लागों ने उसकी हत्या कर दी।

उत्तराधिकार के युद्ध में औरंगजेब की सफलता के कारण –

1. इस युद्ध में औरंगजेब की सफलता का सबसे महत्वपूर्ण कारण औरंगजेब का अनुभव और सैनिक रण-कौशल था। औरंगजेब की सेना अधिक कुशल, अनुभवी, शिक्षित तथा सुसंगठित थी। सेना में अनुशासन और एकता थी।

2. इसके विपरीत दारा को उतना अनुभव न था जितना औरंगजेब को। दारा को युद्ध और शासन का उतना अनुभव प्राप्त न था जितना अन्य भाईयों को। वह बहुत गर्वशील था जिसके कारण मुस्लिम अमीर उससे अप्रसन्न थे।

3. दारा राजपूतों पर अधिक विश्वास करता था जिसके कारण मुसलमान उससे नाराज थे। उनकी सहानुभूति औरंगजेब के साथ थी। इससे इन लोगों ने दारा का साथ छोड़ दिया।

4. दारा की सेना में भिन्न-भिन्न जाति के लोग थे। यह सेना जल्दी मे इकट्ठा कर ली गयी थी और इसको लड़ने का अच्छा अनुभव प्राप्त न था।

5. दारा का तोपखाना औरंगजेब के तोपखाने की तुलना में घटिया था।

6 मीरजुमला का औरंगजेब से मिल जाना दारा के लिए घातक सिद्ध हुआ। इससे औरंगजेब की सैनिक शक्ति बढ़ गयी।

7. शाहजहाँ भी दारा की पराजय के लिए जिम्मेदार था। दोनों युद्धा के समय पराजय के लिए जिम्मेदार था। दोनों युद्धों के समय वह आगरा के दुर्ग में ही रहा। यदि वह दुर्ग से निकल कर कमान सम्भाल लेता तो शायद औरंगजेब के सैनिक शाहजहाँ के खिलाफ नहीं लड़ पाते। समझौते का कोई न कोई रास्ता निकल आता।

8. शाही सेना के बहुत से अफसर औरंगजेब से मिले हए थे। औरंगजेब युद्ध के दरम्यान निर्णय लेने में खुद सक्षम था। जबकिशाही सेना को आगरा से आदेश प्राप्त करना पड़ा।

युद्ध के परिणाम –

  1. साम्राज्य का शासन अस्त-व्यस्त हो गया।
  2. इन युद्धों में जन और धन की बहुत हानि हुई।
  3. शाहजहाँ को जेल में जीवन व्यतीत करना पड़ा।
  4. इन युद्धों ने इस कथन की पुष्टि कर दी कि जो शाहजादा सबसे योग्य है वही गद्दी प्राप्त करेगा।
  5. दक्षिण के बीजापुर गोलकुण्डा राज्य कुछ समय के लिए बर्बाद होने से बच गये। Nurjahan history in hindi

यह तो थी नरजहाँ का इतिहास की जानकारी के नोट्स अगली पोस्ट में हम आपको शाहजहां का काल मुगल काल का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है? के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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