आर्यों के मूल निवास स्थान सम्बन्धी सिद्धांत Notes

हेलो दोस्तों, स्वागत है, इस पोस्ट से हम आप को वैदिक काल के बारे में बतायेगे जिससे आपकी प्राचीन भारत के इतिहास की जानकारी मिल सके और आप की तैयारी को और भी बल मिल सके तो चलिए शुरू करते है आज की पोस्ट 🙂

वैदिक काल या वैदिक सभ्‍यता UPSC notes

ब्राह्मण

ब्राह्मण वेदों के गद भाग है, जिनके द्वारा वेदों को समझने में सहायता मिलती है। वस्तुत यह भेज संबंधी अनुष्ठानों पर पाठ है अर्थात इनमें मंत्रों का अनुष्ठान निक तथा कर्मकांड  महत्त्व दर्शाया गया है। आर्णयकवस्तुत यह ब्राह्मणों के परिशिष्ट है। अर्णयाक का अर्थ है वन में लिखा जाने वाला। अत इन्हें वन पुस्तक भी कहा जाता हैं। Origin of Aryans

अर्नायक में दार्शनिक सिद्धांतों एवं रहस्यवादका वर्णन है। उपनिषदउपनिषद शब्द उप एवं निष धातु से बना है। उप का अर्थ है समीप तथा निस का अर्थ है बैठना अर्थात उपनिषद का अर्थ है वह शास्त्र या विद्या जो गुरु के निकट बैठकर एकांत  में सीखी जाती है। उपनिषद वेदों के अंतिम भाग है, अतः इन्हें वेदांत भी कहा जाता है। इसमें पूर्णत दार्शनिक बाते की गई है। उपनिषद ज्ञान पर बल देता है तथा ब्रह्मा व आत्माओं के संबंधों से निरूपित करता है।

उपनिषदों की संख्या 108 है लेकिन 10 उपनिषद विशेष महत्व के है, जिन पर शंकराचार्य ने टिकाए  लिखी है। इनमें से  छांदोग्य उपनिषद सबसे प्राचीन है।            

आर्यों का मूल निवास स्थान

वैदिक सभ्यता के निर्माता आर्यों को माना जाता है। आर्य संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है- श्रेष्ठ।आर्यों के मूल निवास स्थान को लेकर इतिहासकारों में विवाद है। डॉक्टर अविनाश चंद्र ने सप्त सैंधव प्रदेश स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में तिब्बत पंडित बाल गंगाधर तिलक ने अपनी पुस्तक दी आकृतिक होम ऑफ दी आर्य नश में उत्तरी ध्रुव जबकि मैक्स मूलर ने मध्य एशिया में बैक्टीरिया (अफगानिस्तान )को आर्यों का मूल निवास स्थान बताया है। किंतु सर्वमान्य मत यह है कि आर्य भारत यूरेशिया (आल्पस पर्वत का पूर्वी क्षेत्र) से आए थे । Origin of Aryans    

आर्यों के आगमन की तिथि

आर्यों के भारत आगमन की तिथि के संबंध में इतिहासकारों में विवाद है, किंतु मानवी बात यह है कि आर्य भारत 1500 ईस्वी पूर्व में आए थे। एशिया माइनर से प्राप्त बोगाज़कोई अभिलेख (1400 ईस्वी पूर्व ) में दो कबीला खती एवं मित्तनी के मध्य संधि का उलेख है। संधि की शर्तों की रक्षा के लिए कुछ वैदिक देवताओं जैसे-इंद्र, मित्र, वरुण तथा नासत्य ( अश्विन) को साक्षी माना गया है। इससे प्रमाणित होता है कि भारत में आर्यों का आगमन 1400 ईस्वी पूर्व से पहले हो चुका था।

आर्यों का भौगोलिक क्षेत्र

ऋग्वेद वैदिक काल में आर्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में अरावली पर्वत तथा पूर्व में गंगा नदी से लेकर पश्चिमी में  अफगानिस्तान तक बसे थे, जब की उत्तर वैदिक काल तक आते आते आर्य दक्षिण में नर्मदा नदी तक तथा पूर्व में गंडक नदी तक पहुंच गए थे।

वैदिक कालीन नदियां

वैदिक संहिता में कुल 31 नदियों का उल्लेख है। इनमें से सिंधु नदी का सबसे अधिक बार उल्लेख है। आर्यों की सबसे महत्वपूर्ण नदी सिंधु नदी थी, जबकि रिग वैदिक आर्यों की सबसे पवित्र नदी सरस्वती नदी थी, जिसे नदी तमा, मति तमा, देवी तमा कहा गया है। ऋग्वेद में सप्त सिंधु प्रदेश को सात नदिया सिंधु सरस्वती विश्वा (झेलम), अस्कनी (चैनाव) , परूपनी,(रावी) पिपासा (ब्याश) तथा सतुदी (सतलज) थी साथ ही ऋग्वेद में 4 नदियां कुंभा (काबुल), कुरू ( कुरम) गोमती (गोमल) व सू बास्टू (स्वात) का ऊलेख है। इनमें से वर्तमान में कुम्भा व कुमू अफगानिस्तान में, जबकि गोमती व सुवस्तू पाकिस्तान में बहती है। Origin of Aryans

1) ऋग्वैदिक काल (1500-1000 ईस्वी पूर्व)

2) उत्तरबेदिक काल (1000 – 600 ईस्वी पूर्व) 

इस काल की राजनीतिक जीवन की जानकारी ऋग्वेद से प्राप्त होती हैं। ऋग्वैदिक काल की राजनीतिक व्यवस्था कबीलाई संरचना पर आधारित थी। आर्य कई कबीलों में बट हुए थे तथा उनका कोई स्थाई निवास नहीं था। यादीपि ऋग्वेद में गणतंत्र का प्रारंभिक उल्लख मिलता है, किंतु इस काल में राजनीतिक व्यवस्था का लोक प्रिय स्वरूप राजतंत्रात्मक था। राजा का राज्य विसेक होता था, किंतु उसकी पहचान उसके कबीले के साथ होती थी। इसी कारण राजा को जनेष्य गोपा कहा जाता था। इस काल में ना तो राष्ट्र जैसी संकल्पना का विकास हुआ था और ना ही राजा के पद का देवियेकरण । राजा के मुख्यत दो कर्तव्य थे- प्रथम युद्ध में सेना का नेतृत्व करना एवं द्वितीय कबीले के लोगों की रक्षा करना। तू इस काल में राजा निरंकुश नहीं बल्कि प्रजा हितैषी होता था क्योंकि

1)  इस काल में राजा को कोई नियमित कर प्राप्त नहीं होता था यदि पी बली नामक कर का उल्लेख मिलता है, किंतु यह एक स्वैच्छिक कर था।

2) इस काल में स्थाई सेना का निर्माण नहीं हुआ था।

3) राजा की शक्ति पर अंकुश लगाने वाली कुछ कबीलाई संस्थाएं जैसे- सभा समिति एवं विदत होती थी।

यद्यपि पराया राजा का पद वंशानुगत था, फिर भी समिति के सदस्य राजा के निर्वाचन में भाग लेते थे। समिति सदस्य आम जनता की संख्या थी। इसकी तुलना वर्तमान में लोकसभा से की जा सकती है। सभा मुख्यत; नियायक कार्य से संबंधित थी, जिसमें कुलीन एवं श्रेष्ठ जन भाग लेते थे। इसकी तुलना वर्तमान की राज्यसभा से की जा सकती है। जबकि विदत आर्यों की प्राचीन संस्था थी, जो कि सैनिक , आ सैनिक एवं धार्मिक कार्यों से संबंधित थी। Origin of Aryans

ऋग्वैदिक में प्रशासन की सबसे बड़ी इकाई जन थी। जिसके प्रमुख को जनस्य गोपा (राजा को) कहां जाता था। जन का विभाजन विश्व में अविस का विभाजन ग्राम में एवं ग्राम का विभाजन कुल गृह में होता था। विश, ग्राम एवं कुल/गृह के प्रमुख को क्रमश बिस्पति, ग्रामणी एवं कुलक/गृह पति कहा जाता था।

इस काल में राजा की सहायता हेतु कुछ प्रशासनिक अधिकारियों का भी उल्लेख प्राप्त होता है, जैसे- पुरोहित, सेनानी, विश पति, ग्रामीणों, कुलश, सुथ(रथकार), स्पर्श ( गुप्तचर) , पुरप (दुर्ग रक्षक) आदि। ये समस्त अधिकारी रक्त संबंध से ही जुड़े हुए थे।

ऋग्वैदिक काल में न्यायिक प्रशासन के संबंध में सबसे कम जानकारी प्राप्त होती है। संभवत न्याय का सर्वोच्च अधिकारी राजा होता था जोकि पुरोहित एवं सभा के सदस्यों की सहायता से न्याय करता था। इस काल में सबसे बड़ा अपराध पशु चोरी, जबकि अन्य अपराध संगवारी हत्या आदि थे। दंड के रूप में सतदय एवं वर दय (बदला) प्रथा प्रचलित थी। उच्च श्रेणी के व्यक्ति हत्या का हत्या का दंड 100 गायो के रूप में लिया जाता था, जिसे शतदाय कहते थे।

ऋग्वैदिक काल में सैनिक प्रशाशन के संबंध में सबसे कम जानकारी प्राप्त होती हैं, क्योंकि स्थायी सेना का आभाव था। युद्ध के समय नागरिक सेना की व्यस्था कर ली जाती थी, जिसे मिलिशिया कहा जाता था। Origin of Aryans

यह तो थी वैदिक काल के आर्यों का मूल निवास स्थान ,नदियों की जानकारी अगले पोस्ट में हम आपको उत्तर वैदिक काल का राजनीतिक जीवन के बारे में जानकारी देंगे तो बने रहिए Upsc Ias Guru .Com के साथ 🙂

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